हमारे पेशेवर और घरेलू जीवन में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI का बढ़ता दखल हमें एक ऐसे भविष्य के लिए तैयार कर रहा है जिसमें एल्गोरिद्म की लय के साथ बेहतर तालमेल हो. अब तो जीवन के मूल यानी इंसानों के पैदा होने में भी AI का ज्ञान बेहद अहम भूमिका निभाने लगा है. कुछ माह पहले देहरादून का एक दंपती गुरुग्राम के बिरला फर्टिलिटी क्लिनिक पहुंचा. महिला को दो बार मोलर प्रेग्नेंसी हो चुकी थी.
यह एक ऐसी दशा है जिसमें गर्भाशय में भ्रूण नहीं बल्कि असामान्य ऊतक विकसित होते हैं. डाइलेसन ऐंड क्यूरेटेज (D&C) के साथ दोनों ही प्रेग्नेंसी का अंत दर्दनाक रहा, जिसमें गर्भाशय की परत साफ हो जाती है. इस स्थिति के कारण एशरमैन सिंड्रोम हुआ, जिसमें गर्भाशय के अंदर प्रभावित ऊतकों के कारण आगे गर्भधारण मुश्किल हो जाता है.
डॉक्टरों ने इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) की सलाह दी, जिसमें किसी महिला के अंडाणु को प्रयोगशाला में शुक्राणु से निषेचित किया जाता है और फिर गर्भधारण के लिए भ्रूण उसके गर्भाशय में प्रतिरोपित कर दिया जाता है. हालांकि, इसके लिए सबसे पहली जरूरत है कि महिला पूरी तरह स्वस्थ हो. जरूरी आनुवंशिक परीक्षण किए गए और फिर हिस्टेरोस्कोपी के जरिए प्रभावित ऊतकों को हटाया गया.
PRP थेरेपी के सेशन में ऊतकों की मरम्मत के लिए उसके अपने रक्त से पर्याप्त प्लेटलेट्स वाला प्लाज्मा निकाला गया. धीरे-धीरे उसके गर्भाशय की परत मजबूत हुई और एक आनुवंशिक रूप से सामान्य भ्रूण उसमें प्रतिरोपित किया गया. महीनों बाद उसकी गोद में एक मासूम बच्ची खिलखिला रही थी. IVF की इस कामयाबी में हर प्रक्रिया के पीछे एक नए और शक्तिशाली सहयोगी की अहम भूमिका रही और वह है : AI.
देशभर के फर्टिलिटी क्लिनिक सफलता दर सुधारने की कोशिशों में जुटे हैं और मरीजों में गर्भधारण की संभावनाएं बढ़ाने के लिए एल्गोरिद्म का सहारा ले रहे हैं. भ्रूण गुणवत्ता के ज्यादा सटीक विश्लेषण से लेकर अंडाशय की प्रतिक्रिया का अनुमान लगाने और उत्तेजना प्रोटोकॉल (व्यक्तिगत स्तर पर प्रजनन की दवा के जरिए) तैयार करने तक, AI पूरी IVF प्रक्रिया को बेहतर बना रहा है. बिरला फर्टिलिटी ऐंड IVF, बेंगलूरू के डिप्टी मेडिकल डायरेक्टर डॉ. मंजूनाथ कहते हैं, ''IVF की दक्षता में लगातार सुधार हो रहा है, और विभिन्न चरणों में AI का इस्तेमाल सफलता की उम्मीदों को और बढ़ा रहा है.’’
कभी 'कृत्रिम शिशु’ पैदा करने के लिए कुख्यात रही IVF तकनीक मां-बाप बनने में अक्षम भारतीय दंपतियों के लिए जीवन रेखा बन गई है. मार्केट रिसर्च फर्म नोवा फर्म एडवाइजर के मुताबिक, भारतीय IVF सर्विस मार्केट 2025 में अनुमानित तौर पर 2.35 अरब डॉलर (करीब 21,000 करोड़ रुपए) की तुलना में बढ़कर इस दशक के अंत तक दोहरे अंकों की गति से बढ़ सकता है.
हानाहेल्थ के IVF प्रभाग के वाइस प्रेसिडेंट ए.आर. घटक कहते हैं, ''जैसे-जैसे प्रजनन दर घटती जाएगी, हम कहीं ज्यादा दंपतियों को IVF चुनते देखेंगे. तकनीक अपनाने के साथ भारत में IVF के अगले चरण को गति मिलेगी. भ्रूण चयन से लेकर सफलता दर बढ़ाने तक के लिए क्लिनिक तेजी से AI-आधारित उपकरणों और समाधानों, डिजिटल इमेजिंग और टाइम-लैप्स इनक्यूबेटर (जो लगातार विकसित हो रहे भ्रूणों की तस्वीरें लेते रहते हैं) को अपना रहे हैं.’’
अभी हाल तक IVF की सफलता दर मामूली रहती थी. खासकर 35 से 40 वर्ष की महिलाओं के मामले में. ह्यूमन रिप्रोडक्शन पत्रिका के मुताबिक, मानक प्रोटोकॉल के तहत जीवित जन्म दर 20-35 फीसद थी, जबकि 37 वर्ष की आयु वाली महिलाओं के मामले में यह दर करीब 27 फीसद थी. AI इसमें बदलाव लाने लगी है.
डायग्नोस्टिक्स में 2023 में प्रकाशित एक रिव्यू में बताया गया कि AI प्रणालियां भ्रूण आकृति विज्ञान यानी उनके आकार, आकृति और विकास पैटर्न की 94 फीसद तक सटीकता के साथ भविष्यवाणी करती हैं और IVF गर्भावस्था के नतीजों में उनका अनुमान 77.8 फीसद तक सही होता है.
स्मार्ट प्रजनन का उपकरण
नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट्स में छपे 2025 के एक अध्ययन में पाया गया कि MAIA (मॉर्फोलॉजिकल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस असिस्टेंस) प्लेटफॉर्म ने 70.1 फीसद सफल प्रतिरोपण भविष्यवाणी दर हासिल की, जो पारंपरिक आकलनों से करीब पांच फीसद बेहतर है.
MAIA एक AI मॉडल है जिसे IVF में प्रतिरोपण के दौरान कई भ्रूणों में से एक के आकलन और चयन में भ्रूणविज्ञानियों की सहायता के लिए डिजाइन किया गया है. MAIA और ERCIA (भ्रूण रैंकिंग इंटेलिजेंट क्लासिफिकेशन एल्गोरिद्म) के जरिए डीप लर्निंग सिस्टम भ्रूणों की रियल टाइम ग्रेडिंग करता है, जो अनुमानित प्रतिरोपण दक्षता पर केंद्रित होती है.
बिरला फर्टिलिटी ऐंड IVF, गुरुग्राम में प्रजनन विशेषज्ञ डॉ. प्राची बेनारा कहती हैं, ''IVF के विभिन्न चरणों को सफल बनाने में AI का इस्तेमाल हो रहा है. इससे सटीकता, स्थिरता और अतिरिक्त गहन निगरानी में सुविधा होती है जिससे डॉक्टरों और भ्रूण विज्ञानियों को बेहतर निर्णय लेने में मदद मिलती है.’’ देशभर के नोवा IVF फर्टिलिटी क्लिनिकों में काइ हेल्थ के AI-आधारित भ्रूण आकलन उपकरण वीटा एंब्रियो की शुरुआत ने सटीकता बढ़ा दी है.
नोवा में भ्रूणविज्ञान प्रमुख डॉ. सुजाता रामकृष्णन कहती हैं, ''यह भ्रूण की सेहत संबंधी उन बारीकियों को परख लेता है जिन्हें इंसानी आंखें नहीं देख पातीं. क्लिनिकल डेटा बताता है कि AI-आधारित भ्रूण चयन मानवीय मूल्यांकन की तुलना में सटीकता को 12 फीसद तक बढ़ा देता है.’’ वीटा एंब्रियो उपकरण कई क्लिनिकों में इस्तेमाल किए जा रहे हैं, जिनमें DSS इमेजटेक का IVF वर्टिकल हानाहेल्थ भी शामिल है.
AI ने पूरा परिदृश्य ही बदलकर रख दिया है. इसकी शुरुआत अंडाणुओं या अंड कोशिकाओं के चयन से होती है, जिनकी गुणवत्ता निषेचन की सफलता को काफी हद तक प्रभावित करती है. भ्रूणविज्ञानी अमूमन अंडे के आकार, समरूपता और सतही संरचना के दृश्य मूल्यांकन पर निर्भर करते हैं. लेकिन ये निर्णय व्यक्तिपरक होते हैं. AI का उपयोग करने वाले कंप्यूटर विजन सिस्टम उन छोटी-छोटी चीजों का भी पता लगा लेते हैं जो सामान्यत: आंखों से ओझल रहती हैं. इससे नतीजों में काफी सुधार होता है.
शुक्राणु जांच एक अन्य प्रारंभिक प्रक्रिया है. बेनारा कहती हैं, ''AI उपकरण शुक्राणु की गतिशीलता, आकार और समग्र स्वास्थ्य का मूल्यांकन डॉक्टरों की तुलना में ज्यादा सटीक कर सकते हैं. निषेचन के लिए सबसे स्वस्थ शुक्राणु चयन से भ्रूण निर्माण की संभावनाएं बेहतर होती हैं.’’ IVF केंद्रों की चेन 'सीड्स ऑफ इनोसेंस’ की संस्थापक डॉ. गौरी अग्रवाल कहती हैं कि AI-आधारित माइक्रोस्कोप शुक्राणुओं की मॉर्फोलॉजी और शुक्राणु की संख्या की गणना में अधिक सटीक साबित होते हैं.
शोधकर्ता बिना चीरा लगाए जरूरी जानकारियां देने वाले AI उपकरण भी विकसित कर रहे हैं जो सिर्फ भ्रूण की तस्वीरों का विश्लेषण करके गुणसूत्र संबंधी असामान्यताओं, जैसे एन्यूप्लॉइडी का पता लगाने में सक्षम होते हैं. एन्यूप्लॉइडी एक आनुवंशिक विकार है जिसमें गुणसूत्रों की अनुपस्थिति या अधिकता गर्भपात का एक बड़ा कारण बनती है. मंजूनाथ के मुताबिक, ''सामान्य तौर पर एन्यूप्लॉइडी के लिए प्रतिरोपण से पहले आनुवंशिक परीक्षण किया जाता है. लेकिन AI के इस्तेमाल से चीरा लगाने की जरूरत नहीं पड़ती और भ्रूणविज्ञानियों को अक्सर अधिक सटीक जानकारी उपलब्ध होती है.’’
IVF क्षेत्र में हो रही तरक्की के प्रभाव को लोगों के निजी अनुभवों से बेहतर ढंग से समझा जा सकता है. मुंबई की 37 वर्षीया गृहिणी नवजोत कौर IVF को लेकर लंबे समय से संशय में थीं. जब उन्होंने अंडों के चयन, एंब्रियो ग्रेडिंग, शुक्राणु विश्लेषण और अंडों के विकास के आकलन के लिए AI का इस्तेमाल करने वाले क्लिनिक को चुना तो उनका नजरिया बदल गया. हर चरण आंकड़ों के साथ समझाया गया. AI की वजह से मानवीय देखभाल भी काफी अच्छी रही और हाल में उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया.
उम्मीदें और हकीकत
भारतीय दंपतियों के लिए IVF एक महंगा उपाय है. एक मानक चक्र (पूरा उपचार 3-6 चक्रों तक चलता है) की लागत एक से चार लाख रुपए के बीच होती है. विशेष इमेजिंग सिस्टम, डेटा प्लेटफॉर्म, लाइसेंसिंग और प्रशिक्षण के लिए AI आधारित उपकरणों के इस्तेमाल के साथ कृत्रिम गर्भाधान का खर्चा 20-50 फीसद और बढ़ जाता है. इससे उपचार लागत प्रति चक्र लगभग 6 लाख रुपए तक पहुंच सकती है.
अपनी मामूली बचत के साथ मुंबई की 33 वर्षीया स्कूल शिक्षिका आयशा सिंह IVF का खर्च बमुश्किल उठा सकती थीं. AI के साथ कृत्रिमगर्भाधान के लिए अतिरिक्त भुगतान करना लगभग असंभव था. वे कहती हैं, ''हमारे प्रदूषित वातावरण ने बांझपन को एक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बना दिया है.’’ निराश हो चुकीं आयशा चाहती हैं कि IVF को वैकल्पिक विकल्प की बजाए आवश्यक देखभाल सुविधा के तौर पर देखा जाना चाहिए.
बहरहाल, पैसा सिर्फ एक बाधा है. IVF में AI इस्तेमाल की वैज्ञानिक और व्यावहारिक सीमाएं हैं. इसमें सटीक नतीजे लगभग पूरी तरह आंकड़ों पर केंद्रित होते हैं और खराब या गैर-प्रामाणिक डेटासेट अनुमानों को पूरी तरह बिगाड़ सकता है. नतीजे विश्वसनीय होने पर भी उसकी व्याख्या में अंतर की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है.
घटक का कहना है, ''हमें AI-आधारित नतीजों की तुलना भ्रूणविज्ञानियों के नतीजों से करने वाले ज्यादा प्रकाशित आंकड़ों की दरकार है. अभी कुछ विसंगतियां हैं.’’ नियमन को लेकर देरी की ओर भी इशारा करते हुए उनका कहना है, गोपनीयता, पारदर्शिता और डेटा-साझाकरण नियम तकनीक की गति की तुलना में बहुत धीमी गति से विकसित हो रहे हैं. उन्हें एक साथ समेकित करना भी एक चुनौती है. समान प्रशिक्षण, मानकीकृत प्रयोगशाला पद्धतियां और भरोसा बढ़ने में समय लगता है. उनके मुताबिक, ''ऊंची लागत, ठोस नियमों का अभाव और सीमित साक्ष्य AI के इस्तेमाल में बाधक बने हुए हैं.’’
भविष्य की संभावनाएं
हालांकि, अभी कुछ कमियां हैं लेकिन दिशा स्पष्ट है. मजबूत डेटासेट होने पर AI उम्मीदों से भरी अतिरिक्त सुविधाओं के साथ IVF का एक अभिन्न अंग बन जाएगा. विशेषज्ञों का मानना है कि आगे चलकर AI भ्रूण चयन से आगे बढ़कर IVF परामर्श और व्यक्तिगत उपचार में भी अहम भूमिका निभाने लगेगा. बेनारा कहती हैं, ''AI निश्चित तौर पर परामर्श—विश्वसनीय जानकारी, रिमाइंडर और मार्गदर्शन प्रदान करने- में सहायक भूमिका निभा सकता है. हालांकि, सहानुभूति और भावनात्मक सहयोग की कमी तो रहेगी.’’
अग्रवाल इससे सहमत हैं. वे कहती हैं, ''IVF सिर्फ एक चिकित्सा प्रक्रिया नहीं बल्कि अक्सर उन जोड़ों के लिए आखिरी उम्मीद होती है जो सालों से बांझपन की समस्या से जूझ रहे होते हैं.’’ वैश्विक सफलता दर 40-50 फीसद के आसपास है, जिसका अर्थ है कि कई जोड़ों को कई चक्र से गुजरना पड़ता है. असफल चक्र अक्सर महीनों तक अवसाद और चिंता का कारण बने रहते हैं. उनके मुताबिक, ''IVF सफलता दर में सुधार सिर्फ आंकड़ों से कहीं आगे की बात है. इसमें थोड़ा-बहुत सुधार ही न जाने कितने परिवारों को बार-बार होने वाली पीड़ा से उबार सकता है.’’
बेहतर भ्रूण इमेजिंग से लेकर सेहत की निगरानी के लिए इस्तेमाल डिजिटल असिस्टेंट तक AI प्रजनन देखभाल के पूरे परिदृश्य को नया रूप देता रहेगा. हालांकि, आनुवंशिक बदलावों के साथ 'डिजाइनर बच्चे’ अभी एक असंभव सपना लगते हैं लेकिन विज्ञान गल्प कथाओं के हकीकत में बदलने की उम्मीद लगातार गहराती जा रही है.

