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ठेठ स्थानीयता से निकलकर विश्व फलक की रचना कैसे बनी बानू मुश्ताक की 'हार्ट लैंप'

कथाकार बानू मुश्ताक को बुकर पुरस्कार मिलना कन्नड़ का ही नहीं समस्त भारतीय भाषाओं का सम्मान. उम्मीद है आने वाले वर्षों में कहानी विधा को दुनिया भर में एक नई निगाह से देखा जाएगा

बानू मुश्ताक बुकर पुरस्कार के साथ
बानू मुश्ताक बुकर पुरस्कार के साथ
अपडेटेड 11 जून , 2025

बानू मुश्ताक लिखित और दीपा भस्थी द्वारा अनूदित हार्ट लैम्प को इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार मिलना सिर्फ कन्नड़ भाषा का ही नहीं, समस्त भारतीय भाषाओं का सम्मान है. देखा जाए तो यह घटना एक कृति के बहाने भारतीय साहित्यिक और सांस्कृतिक समकालीनता पर पड़ी स्पॉटलाइट भी हो सकती है, जिससे अन्य कई कृतियों के वैश्विक पटल पर प्रकाशमान होने की संभावना बलवती हो जाती है.

यह पुरस्कार पहली बार कन्नड़ भाषा की किसी कृति को मिला और दीपा भस्थी इस सम्मान को पाने वाली पहली भारतीय अनुवादक बनीं. इससे पहले, 2022 में गीतांजलि श्री के हिंदी उपन्यास रेत समाधि (डेज़ी रॉकवेल के अंग्रेजी अनुवाद टूम ऑफ सैंड) को यह पुरस्कार मिला था. वह इस सम्मान को पाने वाली किसी भी भारतीय भाषा की पहली कृति थी, जिसे विश्व-मंच पर भारत के भाषाई साहित्य के रेखांकन का आरंभ-बिंदु माना जा सकता है.

बानू मुश्ताक की साहित्य यात्रा ने एक वैचारिक मुकाम पाना उस वक्त शुरू किया, जब 1970 के दशक में उनका जुड़ाव 'बंडया साहित्य' (विद्रोही साहित्य) आंदोलन से हुआ. धीरे-धीरे वे जाति, वर्ग और धार्मिक उत्पीड़न के विरुद्ध एक सशक्त आवाज बनकर उभरीं. पेशे से वकील बानू ने अपने लेखन के माध्यम से मुस्लिम समुदाय की महिलाओं के जीवन, संघर्ष और आकांक्षाओं को उजागर किया है.

उनकी कहानियां सामाजिक अन्याय का धड़कता हुआ दस्तावेज हैं, जिनका शिल्प प्रतिरोध में तनी मुट्ठी और आंसू बहाने की जगह जिद्दी डग भरने के तेवर से बनता है. उनका लेखन स्पष्टवादी और यथार्थवादी है, इस कारण उन्हें कई बार धमकियों का सामना भी करना पड़ा.

हार्ट लैम्प में संकलित 12 कहानियां 1990 से 2023 के बीच लिखी गईं, जो दक्षिण भारत की मुस्लिम महिलाओं के जीवन की जटिलताओं, परंपराओं और आधुनिकता के टकराव को सादगी, लेकिन संवेदनशीलता से चित्रित करती हैं. यह उन स्त्रियों की कहानियां हैं, जिन्हें बोलने की अनुमति नहीं दी जाती, जिन्हें आधा वाक्य बोलते ही चुप करा दिया जाता है, जिनके वजूद को स्वीकार तक नहीं किया जाता. वे दुख सहती हैं और प्रतिरोध करती हैं. वे प्रेम और उम्मीद करती हैं. वे हमारी जानी-पहचानी स्त्रियां हैं, जो हमारे घर-परिवार-मुहल्लों में रहती हैं और इस किताब में भी.

बानू कहती हैं कि उन्होंने अपनी कहानियां कर्नाटक के अपने छोटे-से गांव में बरगद की छांव में जी-रची-सुनी-बुनी हैं. उनकी कहानियों में गहरी स्थानीयता है और इसने आश्चर्यजनक रूप से साहित्य के वैश्विक आस्वादकों का हृदय जीता है, जो इस प्राचीन धारणा को पुष्ट करता है कि संसार का दिल भाषा और उसके अलंकारों से नहीं, कहानी की करुणा और भावों की अनुभूति से पिघलता है.

इस अवसर पर सह-विजेता दीपा भस्थी के योगदान को भी रेखांकित किया जाना चाहिए. अनुवाद की भाषा कैसी हो, इसे लेकर उनके स्पष्ट आग्रह हैं, जिनका उल्लेख वे कहानी-संग्रह के अंत में प्रस्तुत अपनी अनुवादकीय टिप्पणी में करती हैं. उन्होंने कन्नड़ के कई शब्दों को अंग्रेजी में यथावत रखा है, ताकि अनूदित होने के बाद भी वाक्य का सांस्कृतिक अर्थ और संदर्भ बना रह सके.

इसीलिए इस किताब में एक सार्वभौमिक अंग्रेजी की जगह एक विशिष्ट भारतीय अंग्रेजी नजर आती है जिसमें कन्नड़ की छौंक लगी हुई है. इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार लेखक और अनुवादक दोनों के बीच साझा होता है, इसलिए निर्णय लेते समय मूल कृति की विलक्षणता के साथ-साथ अनुवाद में किए गए नवाचारों को भी ध्यान में रखा जाता है.

पहला अवसर है जब किसी कहानी-संग्रह को इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार मिला है. अंग्रेजी में जिसे शॉर्ट-स्टोरी कहते हैं और हिंदी में कहानी (उसे लघु-कहानी नहीं कहते), वह अब साहित्य की केंद्रीय विधा कदापि नहीं है. दशकों पहले ही उपन्यास उसे अपदस्थ कर चुका है. एक समय था जब संसार में ओ. हेनरी, चेखव और बोर्हेस तथा भारत में प्रेमचंद और मंटो की कहानियों की धूम रहती थी.

फिर कहानी विधा का असर कम होने लगा और उपन्यासों को लेखक की उत्कृष्टता का मानदंड माना जाने लगा. ज्यादातर बड़े अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार (जैसे नोबेल, बुकर और डब्लिन लिटरेचर अवार्ड) उपन्यासों को ही मिलते रहे. ऐसे में हार्ट लैम्प को मिला यह पुरस्कार एक विधा के रूप में कहानी को मिला सम्मान भी है. इससे उम्मीद बनती है कि आने वाले बरसों में कहानी विधा को न केवल भारत में, बल्कि संसार में भी एक नई निगाह से देखा जाएगा.

- गीत चतुर्वेदी कवि, कथाकार और अनुवादक हैं.

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