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यूट्यूब के CEO नील मोहन को क्यों लगता है कि भारत में 'क्रिएटर इकोनॉमी' में अपार ग्रोथ दिख सकती है

नील मोहन ने कहा कि क्रिएटिविटी के लिहाज से हिंदुस्तान कमाल की जगह है. यह एक ऐसा मुल्क है, किस्सागोई जिसकी सांस्कृतिक जड़ों में गहरे समाई हुई है

यूट्यूब के सीईओ नील मोहन.
यूट्यूब के सीईओ नील मोहन.
अपडेटेड 30 मई , 2025

यूट्यूब,नील मोहन मैनेजिंग एडिटर एम.जी. अरुण को एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में बता रहे हैं कि कंपनी के ग्लोबल क्रिएटिव ईकोसिस्टम में भारत की क्या अहमियत है. बातचीत के संपादित अंश:

यूट्यूब के सीईओ नील मोहन केरल में कन्नूर के कंटेंट क्रिएटर बिजू की कहानी अक्सर सुनाते हैं. कोविड के दौरान बस ड्राइवर की नौकरी खोने के बाद बिजू ने अपने यूट्यूब चैनल केएल ब्रो बिजू ऋत्विक पर अपनी मातृभाषा मलयालम में अपनी रोजमर्रा की जिंदगी की झलकियां दिखाकर शॉर्ट-फॉर्म कंटेंट बनाने का फैसला किया.

जल्द ही उनकी प्रस्तुति की सीधी-सादी शैली लोगों को पसंद आई और उनके फॉलोअर्स की पूरी एक फौज तैयार हो गई. मोहन कहते हैं, ''कुछ साल बाद बिजू न सिर्फ भारत में बल्कि पूरे एशिया में हमारे सबसे बड़े यूट्यूबर बन गए और फिलहाल उनके 7.1 करोड़ सब्सक्राइबर हैं. जब मैं उनसे मिला तो उस बेहद सरल शख्स ने जो कहा, वह मुझे काफी प्रभावित कर गया. 'यूट्यूब ने मुझे एक समाज दिया है.' यही उनके लिए सबसे खास है. न सिर्फ भारत भर में बल्कि पूरी दुनिया में लोग उनके वीडियो पर टिप्पणी कर रहे हैं.''

बिजू सरीखे लोगों को यूट्यूब जो कुछ हासिल करने में मदद कर रहा है, मोहन को उस पर बेहद गर्व है. अमेरिका में भारतीय आप्रवासी परिवार में जन्मे मोहन ने फरवरी 2023 में इसका सीईओ बनने से पहले यूट्यूब के चीफ प्रोडक्ट ऑफिसर के रूप में आठ साल काम किया. खुद यूट्यूब के बड़े फैन, मोहन कोविड लॉकडाउन के दौरान अपने गैराज को दुरुस्त करने का तरीका सीखने के लिए यूट्यूब वीडियो देखा करते थे.

न्यूज और स्पोर्ट्स के दीवाने मोहन को संगीत में भी गहरी दिलचस्पी है. ये ऐसी विधाएं हैं, जिन्हें वे लगातार यूट्यूब पर खंगालते रहते हैं. वे भारत को लेकर उत्साहित हैं. यहां करीब 15,000 यूट्यूबरों में से हरेक के पास 1 करोड़ से ज्यादा सब्सक्राइबर हैं; पिछले साल ही 1 करोड़ भारतीय चैनलों ने यूट्यूब पर अपने वीडियो अपलोड किए. 2022 और 2024 के बीच 40 अरब डॉलर की गूगल सब्सीडियरी ने भारतीय क्रिएटरों, आर्टिस्ट्स और मीडिया कंपनियों को 21,000 करोड़ रुपए का भुगतान किया.

इसलिए, यूट्यूब भारत को लेकर न सिर्फ बड़े सपने देख रहा है, बल्कि बड़ा दांव भी लगा रहा है. यह भारत सरकार की 'मिलीजुली अर्थव्यवस्था' पर नए जोर की ओर इशारा करता है, जो रचनात्मकता, संस्कृति और कंटेंट पर जोर देता है. इस साल 20 वर्ष की हो चुकी कंपनी अगले दो वर्षों में भारतीय रचनाकारों, कलाकारों और मीडिया के विकास में तेजी लाने के लिए 850 करोड़ रुपए से ज्यादा का निवेश करने की योजना बना रही है.

मोहन कंटेंट क्रिएटरों को 'न्यू मीडिया पावरहाउस' कहते हैं. वे इसे बिल्कुल नया पेशा बताते हैं, ''यह युवाओं के लिए रोजी-रोटी कमाने और करियर बनाने का एक नया तरीका है.'' उनका यह भी मानना है कि यूट्यूब ने भारत में किसी भी अन्य प्लेटफॉर्म के मुकाबले कंटेंट को ज्यादा लोकतांत्रिक बनाया है, जिसमें शिक्षा से लेकर कला और शिल्प, खेती से लेकर फिल्म एडिटिंग, खाना पकाने से लेकर कॉमेडी, डिजाइन से लेकर डीआइवाइ और बहुत कुछ है. इसका विस्तार अलग-अलग बोलियों और भाषा तक में है.

भोजपुरी और हरियाणवी से लेकर कोकबोरोक, संथाली और छोकरी तक तमाम भाषा-बोलियों तक यह फैला हुआ है. मोहन कहते हैं, ''यूट्यूब के बारे में सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि किसी भी दिन आपकी जिस भी विषय में रुचि हो, उसी तरह की रुचि वाले बहुत-से लोग आपके लिए कुछ नया और अद्भुत कंटेंट तैयार करते हैं.'' नीचे की बातचीत में वे हमें बताते हैं कि यूट्यूब कैसे लोगों की मदद कर रहा है.

प्र. 'क्रिएटर ईकोसिस्टम' में लोगों की काफी रुचि है, खासकर उनकी कमाई के मामले में. इस संबंध में यूट्यूब का भारत में अनुभव कैसा रहा है?
भारत यूजर्स के मामले में हमारे लिए सबसे बड़ा देश है. भारत में 18 साल से ऊपर के पांच में से चार इंटरनेट यूजर लगातार यूट्यूब का इस्तेमाल करते हैं. अब जब मैं यहां पर मौजूद हूं तो समझ पा रहा हूं कि यहां एक अविश्वसनीय क्रिएटर इकोनॉमी मौजूद है. मैं इसे अपने निजी अनुभव में देखता हूं. मेरी हाइस्कूल की पढ़ाई लखनऊ में हुई थी और मुझे लखनवी खाना बहुत पसंद है. दशकों बाद मैं एक यूट्यूबर रणवीर बरार से मिला, जो खाने के शौकीन हैं.

उनका एक फूड चैनल है, वे बेहतरीन शेफ हैं और हाल ही में कुछ लखनवी चाट रेसिपी बना रहे थे. उसने मुझे ऐसी जगह पहुंचा दिया, मुझे समान रुचियों और पृष्ठभूमि वाले लोगों के समुदाय से जोड़ा. यूट्यूब का असर इतना गहरा है, और एक दिन में अरबों बार. यही बात इसे वाकई अद्भुत बनाती है, खासकर एक युवा व्यक्ति के लिए. यह इस पर निर्भर करता है कि आप कंटेंट का उपभोग कैसे करते हैं, चाहे वे आपके पसंदीदा क्रिएटर से हो, आपके पसंदीदा खेल आयोजन से हो या आपके पसंदीदा संगीतकारों और कलाकारों से हो.

• कंटेंट और उसे देखने वालों की संख्या में यह जो विस्फोट हुआ है, उसके क्या कारण हैं?
इसकी कुछ बुनियादी वजहें हैं. एक तो यह है कि भारत में अद्भुत रचनात्मक प्रतिभा है. यह ऐसी जगह है जहां किस्सागोई की कला उसकी संस्कृति में रची-बसी है. मेरा मतलब सिर्फ बॉलीवुड या आज के संगीत से नहीं है, बल्कि हजारों-हजारों साल से है. इसलिए यूट्यूब इन सभी अनोखे रचनाकारों के लिए एक मंच बन गया है. यह असल में बेहद जीवंत है और सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं है. यह कहानी कहने की कला, यह संस्कृति संगीत से लेकर फिल्म और खेल तक भी कुछ ऐसी है जो अब यूट्यूब की बदौलत पूरी दुनिया में पहुंच रही है.

इसलिए किसी भारतीय रचनाकार के देखने के समय का 15 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा भारत के बाहर का है. यह लगभग 45 अरब घंटे का देखने का समय है. यह एक तरह से भारत के एक रचनाकार राष्ट्र होने का प्रमाण है. इस संबंध में सरकार का डब्लूएवीईएस (वेव्ज) यानी विश्व ऑडियो विजुअल और मनोरंजन शिखर सम्मेलन आयोजित करने का दृष्टिकोण मील के पत्थर जैसा है.

• यूट्यूब ने लोगों के लिए खुद को अभिव्यक्त करने का एक लोकतांत्रिक मंच बनाया है, लेकिन कुछ की विश्वसनीयता और फैक्ट-चेक की जरूरत को लेकर भी सवाल उठे हैं. बतौर मंच, आपका कंटेंट पर कितना नियंत्रण है?
यूट्यूब का जादू और मुझे लगता है कि भारत में क्रिएटर कमाई में ऐसी कामयाबी की वजह से ही यह एक खुला मंच है. यह, जैसा कि आप कह रहे हैं, कंटेंट का लोकतंत्रीकरण है. हमारा मिशन स्टेटमेंट ही है. सभी को एक अदद आवाज मुहैया कराना और उन्हें दुनिया को दिखाना. आपके पास कहने के लिए कुछ रचनात्मक है, साझा करने के लिए कोई विचार है, तो आप यूट्यूब पर ऐसा कर सकते हैं. लेकिन सिर्फ इसलिए कि हम खुला मंच हैं, इसका मतलब यह नहीं कि कुछ भी चलता है.

हमारे यूट्यूब पर हमेशा ही हमारी कंटेंट नीतियों को काबू पाने वाले सामुदायिक दिशानिर्देश रहे हैं और ये असल में दुनिया में हालात बदलने के साथ विकसित हुए हैं. हमारा सिद्धांत हमेशा खुला मंच है, जो बोली की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खड़ा है. लेकिन साथ ही ऐसे नियम भी हैं जो बताते हैं कि कैसे कंटेंट की इजाजत है. उस संतुलन को बनाए रखना वास्तव में यूट्यूब का मकसद है, और इसके बारे में हमारी टीमें बहुत गहराई से सोचती हैं.

और समाचार संगठनों के बारे में क्या कहेंगे?
स्वतंत्र यूट्यूबरों के साथ-साथ, जिसमें पत्रकार या राजनैतिक टिप्पणीकार भी हो सकते हैं, यह असल में एक मायने में मजबूत माहौल का तंत्र है. इंडिया टुडे, आजतक चैनलों को हमारे मंच पर खासी कामयाबी मिली है क्योंकि वे एक ब्रांड और दर्शकों के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतिनिधित्व करते हैं और यूट्यूब के दर्शक इसे समझते हैं और यूट्यूब पर उनका उपभोग करते हैं.

यूट्यूब हर किसी के ख्याल में है, बेशक, यह ऐसा है, जिसे आप अपने फोन पर देखते हैं, आप ऐप खोलते हैं और उसे देखते हैं. लेकिन सबसे तेजी से तो हम टेलीविजन स्क्रीन, बहुत सारे न्यूज कंटेंट के स्तर पर विस्तार कर रहे हैं, जिसमें आपके चैनल की भी सामग्री है. और यह हमारे लिए विकास का बहुत बड़ा ड्राइवर है.

किसी शिकवे-शिकायत पर फौरन उसकी जिम्मेदारी तय हो सके, इसे पक्का करने के लिए आप क्या करते हैं?
पहली बात जो मैं कहना चाहूंगा, वह यह है कि यूट्यूब का मामला आपकी बातों से बुनियादी तौर पर अलग है. हम प्रकाशित नहीं करते हैं, प्रकाशित आप कर रहे हैं. हम प्लेटफॉर्म हैं, टेक्नोलॉजी प्लेटफॉर्म, जो आपके जैसे पब्लिश करने वाले को कामयाब होने, दर्शकों को खोजने, उन्हें बढ़ाने, साख बनाने में आपकी मदद करता है.

इसलिए वही फैक्ट-चेक, वह संपादकीय प्रक्रिया जिसकी आप देखरेख करते हैं और जो रोजमर्रा के आधार पर समाचार सामग्री तैयार करती है, वही यूट्यूब पर लागू होती है. लेकिन पब्लिश करने वाले हमारे भागीदार हैं. आप यूट्यूब पर अपने कंटेंट के लिए जिम्मेदार हैं, आप इसकी जवाबदेही लेते हैं, आप इसे जब चाहें हटा सकते हैं. बेशक, आप हमारी 'यूट्यूब सेवा की शर्तों', हमारे कम्युनिटी दिशानिर्देशों के तहत हैं.

आप यूट्यूब केये दिशानिर्देश किस तरह बनाते हैं?
हम अपने सभी हितधारकों, बाहरी हितधारकों से सलाह लेकर ये नीति-नियम तय करने की कोशिश करते हैं और फिर कोशिश करते हैं कि इन नीति-नियम को लेकर हम बहुत पारदर्शी रहें यानी उन्हें हम अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करते हैं. आखिरी बात यह कि हम उन नियमों को लागू करने में जितना संभव हो, उतना सख्त होना चाहते हैं. यूट्यूब बहुत विशाल है. हमारे पास 20 अरब वीडियो का भंडार है.

बहुत बड़ी तादाद में कंटेट होने से हम यह सब मैन्युअल तरीके से नहीं कर सकते. इसलिए, हम कंटेट सामग्री को नीति-नियम की कसौटी पर कसने के लिए मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस दोनों का मिलाजुला इस्तेमाल करते हैं. इसलिए, मशीनें उन वीडियो की पहचान कर सकती हैं जो हमारी कंटेट पॉलिसी का संभावित रूप से उल्लंघन कर सकते हैं या नहीं. फिर उन्हें समीक्षा के लिए उच्च प्रशिक्षित व्यक्तियों के पास भेजा जाता है, जिनमें से कई लोग भारत में हैं.

जब क्रिएटर सेंसरशिप में फंस जाते हैं तो सरकारों और नीति निर्माताओं के साथ काम करना कितना चुनौतीपूर्ण होता है? 
हम सरकार में अपने हितधारकों के साथ नियमित रूप से काम करते हैं और उच्चतम स्तर पर हित समान ही होते हैं. चुने हुए नेताओं की जिम्मेदारी अपने समाज का प्रतिनिधित्व करना और यह पक्का करना है कि वे सुरक्षित रहें, वृद्धि करते रहें और आगे बढ़ते रहें... यूट्यूब पर हमारे भी ये ही लक्ष्य हैं. इस तरह की साझेदारी बहुत सहयोगी किस्म की होती है.

फिर बता दूं, हम इसे लेकर बहुत पारदर्शी हैं कि यूट्यूब कैसे काम करता है. हम उस सूचना को साझा करने, प्रतिक्रिया मांगने और इस बारे में जानकारी जुटाने का प्रयास करते हैं कि हमारे सरकारी हितधारकों के लिए क्या महत्वपूर्ण है. यह हमारी सबसे पहली और अहम जिम्मेदारी है कि हम उन सभी देशों के कानूनों का पालन करें जहां हम काम करते हैं और इस साझा उद्देश्य में करीबी और सक्रिय भागीदार भी बनें. सरकारों, विशेष रूप से प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार, के लिए एक और चीज महत्वपूर्ण है और वह है क्रिएटर अर्थव्यवस्था की बढ़ोतरी.

15-20 साल पहले अपना सफर शुरू करते समय क्या आपने ऐसे यूट्यूब की कल्पना की थी जैसा यह आज है?
हम इस साल अपना 20वां जन्मदिन मना रहे हैं. मैंने पहले भी यूट्यूब के साथ काम किया था या तो मैं या यूट्यूब, गूगल का हिस्सा थे. मैंने कई साल पहले गूगल को डबलक्लिक नाम की कंपनी बेचने में मदद की थी. यह लगभग उसी समय की बात है जब गूगल ने यूट्यूब का अधिग्रहण किया था. यूट्यूब सिलिकॉन वैली में एक छोटा स्टार्ट-अप था. उन्होंने एक पिज्जा पार्लर के ऊपर जगह किराए पर ली थी. वे डबलक्लिक में मेरे क्लाइंट थे.

सच पूछिए तो मेरे सबसे बड़े क्लाइंट्स में से एक थे. आज यूट्यूब जहां है, उसके बारे में संस्थापकों समेत किसी ने अनुमान नहीं लगाया होगा. लेकिन शुरुआती दिनों से ही यह दिख रहा था कि वे कुछ न कुछ करने में लगे थे. ये सभी चीजें रातोरात सफल होने जैसी लगती हैं लेकिन इन्हें बनने में कई साल लगे हैं. मैंने यूट्यूब को युवाओं का नया टेलीविजन बताया. हालांकि वह रातोरात नहीं हुआ. यह कड़ी मेहनत और तकनीक पर हमारे बड़े दांव लगाने का नतीजा है. कुल जमा बात यह कि यूट्यूब एक टेक्नोलॉजी कंपनी है. हकीकत में हमारा काम इस स्टेज को बनाना और फिर अपने क्रिएटरों को इस पर चमकने की सुविधा देना है, यही यूट्यूब की सफलता है. 

आपने बताया कि एआइ किस तरह से कंटेंट की निगरानी में मदद करता है. दूसरे ऐसे कौन-से तरीके हैं जिनमें मशीन लर्निंग और एआइ समेत तकनीक का इस्तेमाल यूजर एक्सपीरियंस को बेहतर बनाने के लिए किया जा रहा है?
यूट्यूब कैसे काम करता है, असल में एआइ इसका आधार है. हम एक दशक से भी ज्यादा समय से इसमें निवेश कर रहे हैं. जब आप यूट्यूब ऐप खोलते हैं, तो आपको जो रिकमेंडेशंस दिखती हैं, वे आपकी व्यक्तिगत रुचि पर आधारित होती हैं. मशीन लर्निंग तकनीक की तरह यह एआइ की ताकत है, जो आपको उस समय देखने के लिए सबसे बेहतर वीडियो देती है. आज की बात करें.

बड़े बदलाव के मामले यानी एआइ के लिहाज से यूट्यूब वाकई बहुत ही दिलचस्प जगह पर है. हम एआइ तकनीक पर गूगल डीपमाइंड जैसी अपनी सहयोगी कंपनियों के साथ मिलकर काम करते हैं. लेकिन हम एक ऐसी कंपनी भी हैं जिसका हर दिन क्रिएटिव इंडस्ट्री से सामना होता है. इसलिए मैं एआइ को ऐसे टूल के रूप में देखता हूं जो मानवीय सृजन शक्ति को बढ़ाएगा, न कि उसकी जगह लेगा. और यह बहुत महत्वपूर्ण है. आखिरकार, आगे चलकर एआइ में हमारा निवेश कहां होगा, यह इस बारे में सोचने का एक ठोस तरीका होगा.

यह कैसे काम करता है, आप इसके कुछ उदाहरण दे सकते हैं?
हमारे पास ड्रीमस्क्रीन नाम की नई सुविधा है, जो गूगल डीपमाइंड के वीओ मॉडल को यूट्यूब इंजीनियरिंग के साथ जोड़ती है. इसलिए जब आप यूट्यूब खोलते हैं, प्लस बटन दबाते हैं और वीडियो बनाना शुरू करते हैं तो आप एक सरल टेक्स्ट प्रॉम्प्ट एंटर कर सकते हैं कि कॉन्फ्रेंस रूम के बजाए, पार्क बनाएं, कुछ पेड़ और पक्षी और झरना भी हो और, तुरंत ही, कुछ ही सेकंड में, वह वीडियो तैयार हो जाता है. यही वाकई एआइ को टूल बनने देने का विजन है जो क्रिएटर्स को सशक्त बनाए और क्रिएशन को और ज्यादा लोकतांत्रिक बनाए.

एक और विशेषता बहु-भाषी ऑडियो की है जो भारत जैसे कई भाषाओं वाले देश के लिए खासतौर पर प्रासंगिक है. यह फीचर इस बात को मानता है कि आज यूट्यूब क्रिएटर के लिए अपने दर्शक बढ़ाने में बाधा भौगोलिक नहीं, बल्कि असलियत में भाषा है. अंग्रेजी भाषा के क्रिएटर के रूप में आपके हिंदी या बांग्ला भाषी प्रशंसक हो सकते हैं, लेकिन वे आप तक नहीं पहुंच सकते क्योंकि आप उनकी भाषा नहीं बोलते. एआइ की मदद से हम आपकी आवाज, आपके उच्चारण का उपयोग करते हुए उसका तुरंत अनुवाद कर सकते हैं, जिससे कि आप दूसरी सभी भाषाओं में अपनी तरह बोलते लगें. यह सर्जकों के हाथों में एआइ की ताकत है.

यूट्यूब शॉर्ट्स बेहद सफल रहा है. आपको पूरी लेंथ वाले वीडियो देखते लोग नजर आते हैं. कौन-सी बात सबसे अच्छा काम करती है?
यही इसकी सबसे बड़ी खासियत है. यूट्यूब ऐसी जगह है, जहां सब कुछ है, चाहे वह 15 सेकंड का शॉर्ट हो या 15 मिनट का पारंपरिक यूट्यूब व्लॉग या अपने पसंदीदा गेमर के साथ 15 घंटे का लाइवस्ट्रीम. वह उपयोगकर्ता की उम्मीद का हिस्सा बन जाता है. यह विशेष रूप से उन युवा दर्शकों के लिए सच है जो बचपन से यूट्यूब देखते बड़े हुए हैं. चाहे इसे अपने मोबाइल फोन पर देखना हो या अपने टेलीविजन स्क्रीन पर, वे एक ही जगह पर सभी तरह के कंटेंट देख सकते हैं. यह फिर से हमारे विजन का मूल है और यह है वीडियो सामग्री देखने, बनाने और साझा करने के लिए अग्रणी सेवा बनना और यह इन सभी तरह के प्रारूपों में हो सकता है, उस दिन जो भी आपकी रुचि हो.

क्रिएटिविटी के लिहाज से हिंदुस्तान कमाल की जगह है. यह एक ऐसा मुल्क है, किस्सागोई जिसकी सांस्कृतिक जड़ों में गहरे समाई हुई है. हमारा मिशन स्टेटमेंट है हर किसी को आवाज मुहैया करना और फिर उसे पूरी दुनिया को दिखाना. अगर आपके पास कहने के लिए कुछ भी क्रिएटिव है या साझा करने को कोई आइडिया है तो आप यूट्यूब पर वह सब कर सकते हैं.

अपने फोन पर चीजें देखते-समझते हुए हर किसी को यूट्यूब का ही ख्याल आता है. लेकिन सबसे तेजी से तो हम टीवी स्क्रीन पर और बहुत सारे न्यूज कंटेंट के क्षेत्र में बढ़ रहे हैं. इनमें न्यूज चैनल भी शामिल हैं. मशीन लर्निंग और एआइ में हम बहुत पहले से निवेश करते आ रहे हैं. और जिन मामलों में हम सही मायनों में इसका इस्तेमाल करते हैं, कंटेंट मॉडरेशन उनमें से एक है.

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