
उसे छोटी उम्र से बड़े-बड़े कप उठाने का शौक था. 2021 में दरभंगा राजपरिवार की ओर से आयोजित एक क्रिकेट टूर्नामेंट में वह गया था, वहां उसने बड़े चाव के साथ अपने कद से आधे आकार का कप उठाकर तस्वीर खिंचवाई थी. दो साल बाद उसी टूर्नामेंट में वह समस्तीपुर टीम का हिस्सा था.
फाइनल में उसकी टीम तो हार गई मगर उसे मैन ऑफ द सीरीज चुना गया. युवराज कपिलेश्वर सिंह ने उसे 10,000 रुपए का चेक दिया. उस टूर्नामेंट में कमेंट्री कर रहे डॉ. संतोष कहते हैं, ''12 साल के लड़के के इतने शानदार खेल से मैं चकित था और कमेंट्री में बार-बार इस बात का जिक्र कर रहा था.''
तब संतोष को गुमान तक न रहा होगा कि महज दो साल बाद यह लड़का आईपीएल मुकाबले में 35 गेदों में शतक लगाकर 'मैन ऑफ द मैच' का खिताब लेने मंच पर जाएगा. टूर्नामेंट में टॉप पर मौजूद गुजरात टाइटंस के मोहम्मद सिराज, राशिद खान और ईशांत शर्मा जैसे गेंदबाजों की उसने धुर्रियां बिखेर दीं.
28 अप्रैल की रात की वह उपलब्धि उसके लिए एक सपना पूरा होने जैसी थी. खिताब लेने के बाद उसने कहा कि वह गेंद को देखकर खेलता है, गेंदबाज को नहीं. न ही उसे इस बात का डर होता है कि आने वाले समय में हर कोई उसे ही टारगेट करेगा. फिर उसने पिता को याद किया जो रोज उसे उसके गांव समस्तीपुर के मोतीपुर से पटना लगभग सौ किमी दूर प्रैक्टिस कराने ले जाते थे. उस मां को जो रात तीन बजे उठकर उसके जाने की तैयारी करती थी और उस परिवार को जो उसके साथ इस सफर में हमेशा खड़ा रहा.
बिहार की राजधानी पटना से तकरीबन 105 किमी दूर ताजपुर कस्बा है. वहां से तीन-चार किमी दूर उबड़-खाबड़ सीमेंटेड रास्ते से होकर 29 अप्रैल को वैभव के गांव मोतीपुर पहुंचने पर उसके दरवाजे पत्रकारों और यूट्यूबरों का भारी जमावड़ा दिखा. वैभव की टीम राजस्थान रॉयल्स की तरफ से उसके माता-पिता को मीडिया से बात करने की मनाही-सी बताई गई.
चाचा राजीव सूर्यवंशी बताते हैं, ''मेरे भैया संजीव सूर्यवंशी भी क्रिकेटर रहे हैं और जिलास्तर तक खेले. वैभव में उन्हें चार साल की उम्र में ही क्रिकेट की संभावना दिखी तो इस मझले बेटे पर मेहनत शुरू कर दी. घर के पास खाली जमीन पर मैट बनवाया और गांव के लड़कों से गेंदबाजी करवाकर नेट प्रैक्टिस करवाने लगे.''
खुद सिखाने की अपनी सीमा थी, सो पहले समस्तीपुर के कोच ब्रजेश कुमार झा और कुछ साल बाद पटना के कोच मनीष ओझा के पास भेजा. 12 की उम्र में ही वैभव का सेलेक्शन अंडर 19 में हो गया. और पिछले साल राजस्थान रॉयल्स की टीम में चुनाव.
चार-पांच महीने पहले राजस्थान रॉयल्स की टीम वैभव को ट्रेनिंग के लिए नागपुर ले गई. तब तक वह एक छोटे और एक बड़े भाई और दूसरे परिजनों के साथ गांव में ही था. उसका खेतिहर परिवार है. बकौल राजीव, ''वैभव की ट्रेनिंग में भाई का खूब पैसा लगा मगर यह सच नहीं कि हमें खेत वगैरह बेचना पड़ा. वैभव को सफलता मिली. भाई-भाभी का संघर्ष पूरा हुआ. हम खुश हैं.''
वैभव की कामयाबी से वे ही नहीं, पूरा मोतीपुर गांव और खासकर गांव के किशोर और युवा बेहद खुश हैं. मगर असली खुशी तो समस्तीपुर के पटेल मैदान में दिखती है, जहां उसके कोच ब्रजेश कुमार झा, उसके साथी और क्रिकेट सीखने वाले दूसरे बच्चे 29 अप्रैल की शाम वैभव की सफलता को सेलिब्रेट कर रहे होते हैं. ब्रजेश केक काटते हैं और अपने शिष्यों को लड्डू बांटते हैं. बच्चे पटाखे चलाते हैं.
इसी मैदान पर वैभव के साथ चार साल तक खेलने वाले आदित्य राज कहते हैं, ''उसके पास एक-दो सेकंड का मार्जिन ज्यादा होता है और वह उसी में गेंद को पहले पढ़ लेता है. यही उसकी सबसे बड़ी खासियत है. वह काफी मेहनत करता था, इसी से उसकी मसल मेमोरी बन गई. अब उसे गेंद हम सबसे ज्यादा पहले और ज्यादा अच्छी तरह समझ में आती है.'' एक और साथी प्रियांशु कहते हैं, ''वह पुल शॉट सबसे अच्छा खेलता है मगर कम लोग ही जानते हैं कि उसका डिफेंस भी बेहतरीन है.''

कोच ब्रजेश बताते हैं, ''वैभव साढ़े पांच साल की उम्र में हमारे पास आया था. उसे चोट लगती, फिर उठकर खेलता. सीनियर बॉलर्स की ज्यादातर गेंदें उसकी छाती तक पहुंचतीं, वह पंजों पर उठकर उसे हिट करता. उस उम्र में भी उसके ऐसा दबंग होने से मैं सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ था.'' ब्रजेश की मानें तो उनके हिसाब से वैभव अभी अपनी क्षमता का आधा भी दिखा नहीं पाया है. उसका कवर ड्राइव, कट और पुल काफी स्ट्रांग हैं. बैक टु बॉलर सिक्स बहुत अच्छा मारता है. एलबो के सामने से कवर ड्राइव खेलता है. ज्यादा गेंदें खेलने को मिलने पर खासकर वन-डे और टेस्ट मैच में उसके ये शॉट भी दिखेंगे. उसमें लंबी पारी का गहरा पेशेंस है.''
समस्तीपुर छोटा शहर है मगर ब्रजेश के पास क्रिकेट सीखने वालों की भीड़ लगी रहती है. अभी वे डेढ़ सौ बच्चों को सिखा रहे हैं. 29 अप्रैल को ही 20 किमी दूर एक गांव से, घरों में पेंट करने वाले पिता का पृथ्वीराज नाम का किशोर बेटा वैभव जैसा क्रिकेटर बनने की चाहत लिए उनके पास पहुंचा. ब्रजेश के पास 10-12 बच्चे खासी गरीब पृष्ठभूमि के हैं, जिनसे वे फीस न के बराबर लेते हैं. वैभव की कामयाबी ने उन्हें यह भरोसा दिया है कि बिहार के छोटे शहरों से भी बच्चे दुनिया भर में अपनी प्रतिभा दिखा सकते हैं.
वैसे, ब्रजेश की कोचिंग से पहले भी एक खिलाड़ी अनुकूल रॉय आईपीएल में जा चुके हैं जो केकेआर में खेलते हैं. मजा देखिए कि अनुकूल के सेलेक्शन की सेरेमनी के दौरान ही वैभव पिता के साथ ब्रजेश के पास पहुंचा था. यहां उसने नौ साल की उम्र तक सीखा, फिर स्टेट लेवल टीम के लिए ट्रायल देने पटना जाने लगा. वहीं कोच मनीष ओझा की एकेडमी में उसके पिता ने उसका नाम लिखवा दिया. स्टेट लेवल में उसकी छोटी उम्र की वजह से उसे स्टैंड बाई में रखा गया था. मगर बिहार क्रिकेट एसोसिएशन की नजर उस पर पड़ चुकी थी.
वैभव के साथ इन दिनों जयपुर में मौजूद बीसीए के अध्यक्ष राकेश तिवारी बताते हैं, ''वैभव को हम ढाई साल से सपोर्ट कर रहे हैं. पिछले साल उसे नेशनल क्रिकेट एकेडमी भी भेजा गया था. 12 साल की उम्र में अंडर 19 खिलाया. अच्छा खेला तो रणजी में डाला गया. इस पर पूरे देश से आवाज उठी कि इतनी कम उम्र के लड़के को रणजी में कैसे खिला सकते हैं, लेकिन उसने दो-तीन मैच में ही खुद को साबित कर दिया.''

राजस्थान रायल्स के कार्यकारी अध्यक्ष रंजीत बरठाकुर बताते हैं, ''हमारे कोच राहुल द्रविड़ और उनकी टीम ने वैभव के पोटेंशियल को भांपकर हमें राय दी थी कि इसके जैसी हिटिंग पावर भारत में किसी के पास नहीं है. दुनिया में भी इस उम्र में कोई प्लेयर ऐसा हिट नहीं करता. हम अच्छी ट्रेनिंग देकर वैभव को ग्लोबल प्लेयर बनाएंगे.''
लेकिन वैभव की बल्लेबाजी पर सबसे रोचक टिप्पणी लेखक-पत्रकार सोपान जोशी करते हैं, ''उसकी बैकलिफ्ट बहुत ऊंची है. बाजू ढीले रहते हैं जिसकी वजह से उसका स्विंग बहुत फ्री है. बाजुओं को स्प्रिंग की तरह तानता और छोड़ देता है. इस वजह से उसका बल्ला तलवार की तरह लगता है.'' 28 अप्रैल के बाद जिसकी काट बड़े-बड़े गेंदबाज भी खोजने में जुट गए होंगे.