मलयालम सिनेमा बीते कुछ साल से असामान्य मजमून और थीम आजमाने के लिए सराहा जाता रहा है. मगर उसकी कद्दावर शख्सियतों को भी शायद अंदाजा न था कि क्या होने वाला है. 27 मार्च को रिलीज हुई 180 करोड़ रुपए लागत वाली 'मेगा ऐक्शन थ्रिलर' एम्पुराण (अधिपति) ने इस कदर सियासी विवाद खड़ा कर दिया कि रिलीज होने के हफ्ते भर के भीतर खुद इसके निर्माताओं ने ही स्थितियां संभालने के लिए इसमें कांट-छांट की 'पेशकश' कर दी.
यह सब संघ समर्थकों के दक्षिणपंथी ऑनलाइन अभियान से शुरू हुआ. वे इस बात से बेहद नाराज थे कि बतौर नायक सुपरस्टार मोहनलाल से सुसज्जित इस फिल्म में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार को 2002 के गुजरात दंगों के लिए जिम्मेदार दिखाया गया.
आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर ने हमले के लिए खास तौर पर फिल्म के अभिनेता-निर्देशक-निर्माता पृथ्वीराज को चुना और कहा कि वे 'राष्ट्रविरोधियों की आवाज' हैं और फिल्म को 'भारत-विरोधी और हिंदू-विरोधी' करार दिया. उधर, बीजेपी के राज्य उपाध्यक्ष और फिल्मकार मेजर रवि सरीखे छोटे-मोटे खिलाड़ियों ने दावा किया कि भारतीय सेना इस फिल्म से नाराज है, और भविष्यवाणी की कि मोहनलाल माफी मांगेंगे क्योंकि उन्हें ''फिल्म के विभाजनकारी कंटेंट के बारे में पता नहीं'' था.
ठीक तभी सुपस्टार ने अगले दिन (30 मार्च) फेसबुक पोस्ट में बिना शर्त माफी मांगते हुए कहा कि उन्हें वाकई ''अपने प्रियजनों को हुई मानसिक पीड़ा के लिए खेद है...और इस एहसास के साथ कि जिम्मेदारी फिल्म के पीछे काम करने वाले हम सब लोगों की है, हमने मिलजुलकर फिल्म के ऐसे हिस्सों को अनिवार्य रूप से हटाने का फैसला लिया है.'' निर्देशक पृथ्वीराज ने कोई टिप्पणी किए बिना यह पोस्ट शेयर की, जबकि पटकथा लेखक मुरली गोपी ने मौन रहना पसंद किया.
मगर तब तक चौतरफा जुबानी गोलीबारी शुरू हो गई. कांग्रेस ने फिल्मकारों की बांहें मरोड़ने और ''विश्वस्तरीय मलयालम फिल्म को दबाने'' की कोशिश करने के लिए बीजेपी की लानत-मलामत की और कहा कि खुद उसने ''द केरल स्टोरी सरीखी सी-ग्रेड प्रोपेगेंडा फिल्म को कर-मुक्त फिल्म का दर्जा'' दिया था. वहीं वामपंथी 'कलाकारों के अधिकारों' के हिमायती बनकर सामने आए. यहां तक कि मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन और उनकी पत्नी कमला भी फिल्म को सिनेमाघरों से उतारने और फिर 'नए सिरे से सेंसर किया गया' संस्करण लाए जाने से पहले 30 मार्च को फिल्म देखने के लिए दौड़ पड़े.
दिग्गज पत्रकार जोस कवि ने इंडिया टुडे से कहा कि उन्होंने एम्पुराण रिलीज होने के दिन ही देख ली थी और ''यह देखने के लिए फिर देखेंगे कि कौन-कौन-से दृश्य हटाए गए हैं.'' उन्होंने यह भी कहा, ''केरल में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ...जब निर्माताओं ने कट्टरपंथियों के आगे घुटने टेक दिए हों.''
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व सांसद और सामाजिक टिप्पणीकार सेबेस्टियन पॉल हालांकि इस पूरे तमाशे को 'मार्केटिंग की रणनीति' के तौर पर देखते हैं. वे कहते हैं, ''क्या किसी ने री-सेंसरशिप की मांग की थी? निर्माताओं ने अपनी इच्छा से कुछ हिस्से हटा दिए और मुख्य अभिनेता ने, जो सह-निर्माता भी हैं, तथ्य बयान करने के लिए बिना शर्त माफी मांग ली 'क्योंकि इससे उनके प्रियजन आहत हुए', जो आरएसएस समर्थक हैं. अगर उन्हें इतना ही ज्यादा खेद था तो उन्हें फिल्म वापस ले लेनी चाहिए थी और अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए माफी मांगनी चाहिए थी.''
उनके मुताबिक, ''मोहनलाल और सह-निर्माता गोकुलम गोपालन दोनों कारोबारी फायदे के लिए आरएसएस और बीजेपी के आकाओं को खुश रखना'' चाहते थे. वे आरोप लगाते हैं कि यह सब इतनी अच्छी तरह हुआ कि अब उन्हें वाम सरकार का समर्थन हासिल है जबकि निर्देशक पृथ्वीराज को सारा दोष और जिम्मेदारी उठाने के लिए छोड़ दिया गया है.
लेकिन 24 कट और एक माफी के बाद भी विवाद 2019 की जबरदस्त हिट फिल्म लूसिफर की सीक्वल एम्पुराण का पीछा नहीं छोड़ रहे. ताजातरीन नाराज होने वालों में तमिलनाडु के किसानों का एक तबका है, जिसे जाहिरा तौर पर मुल्लापेरियार बांध के मुद्दे पर अपमानजनक चित्रण रास नहीं आया.
इस सबके बीच यह बात भी सामने आई कि फिल्म बिरादरी किसी भी पक्ष के लिए सहयोगी और मददगार नहीं है. मोहनलाल को पहले राज्य में वामपंथी और कांग्रेस नेताओं के साथ अच्छे रिश्ते बनाए रखते हुए भगवा-समर्थक खेमे की तरफ झुकाव रखने वाला माना जाता था. पृथ्वी की मां और दिग्गज अदाकारा मल्लिका सुकुमारन पिछले लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पक्ष में काफी मुखर रही थीं और उन्होंने लोकसभा की तिरुवनंतपुरम सीट पर राजीव चंद्रशेखर का खुला समर्थन किया था.
अब वे अपने बेटे और उसके परिवार को निशाना बनाने के लिए राज्य बीजेपी के नेताओं के साथ रोज तुर्शी-ब-तुर्शी दो-दो हाथ कर रही हैं. मुरली गोपी ने पहले 'वाम-विरोधी' फिल्में लिखीं और उन्हें 'हिंदुत्व के प्रति नरम' माना जाता है. बीजेपी के एक सूत्र कड़वाहट के साथ कहते हैं कि अब उन्हें ''एहसास हुआ कि (केरल में पार्टी के) स्थायी सहयोगी बहुत कम हैं.''
इस बीच एम्पुराण विरोधी अभियान की बदौलत केरल की सत्तारूढ वाम मोर्चा सरकार को आशा कार्यकर्ताओं की हड़ताल से लोगों का ध्यान बंटाने में मदद मिली. फिल्म निर्माताओं को भी ज्यादा शिकायत नहीं होगी: एम्पुराण ने रिलीज के चार दिनों के भीतर 200 करोड़ रुपए बटोर लिए और वह खचाखच दर्शकों के साथ करीब 750 सिनेमाघरों में अब भी दिखाई जा रही है, इसके बावजूद कि एक अखबारी आलोचक ने इसे 'पहचान का संकट...और उलझन भरी गड्डमड्ड वाली स्क्रिप्ट' करार दिया है.