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जब भारत में पहली बार टेलीविजन की दुनिया हुई रंगीन; फिर देखते ही देखते कैसे बदल गया छोटा पर्दा

1982 में 21 लाख टीवी सेट और करीब 1.5 करोड़ दर्शक संख्या से भारत देखते ही देखते अस्सी के दशक के अंत तक 1.5 करोड़ टीवी सेट और 7.5 करोड़ दर्शक संख्या पर पहुंच गया

Special Issues turning points entertainment
चस्का धारावाहिकों का टेलीसीरियल हम लोग की वह कास्ट
अपडेटेड 16 जनवरी , 2025

भारत में छोटा पर्दा...1975 के दौर में काफी छोटा था. रोज का प्रसारण शुरू हुए दशक भर ही हुआ था, चार घंटे बड़बड़ करते काले-सफेद दृश्य, सुबह और शाम. 'रुकावट के लिए खेद है’ शायद सबसे लंबा चलने वाला प्रोग्राम रहा हो. केवल दूरदर्शन था और दूरदर्शन ज्यादा दूर जाता नहीं था.

यह केवल सात शहरों में था, और इसके केंद्र अब भी आकाशवाणी की स्टेपनी की ही तरह हैं. अधिकतम संभव दर्शक थे पचास लाख. वह ग्राफ बिल्कुल ठहरा हुआ भी नहीं था. चित्रहार, क्रिकेट और वर्गीय उन्नयन की बदौलत, लेकिन असली उत्थान का इंतजार था. वह एशियाड 1982 के साथ आया.

जब रोशनी और रंगों की बाढ़ आ गई. सचमुच, भारत में बड़ी खेल प्रतियोगिता के इस पहले आयोजन से ठीक पहले इनसैट-1ए लॉन्च हुआ और रंगीन टेलीविजन शुरू हुआ. मगर टेक्नोलॉजी का रुक-रुककर चलना तो बस एक पहलू था, रस कंटेंट या विषय सामग्री में था.

साल 1984 में शुरू हम लोग से भारतीयों को पता चला कि टीवी संजीदगी से आदत डालने वाला हो सकता है. सरकारी प्रसारण के नेक मालूम देने वाले उद्देश्यों के अनुरूप होते हुए भी बसेसर और परिवार की कहानी ने फिल्म के विपरीत कभी न खत्म होने वाली तल्लीनता दी. दर्शक बंधे के बंधे रह गए. विज्ञापनदाताओं की कतार लग गई. मैगी का 2-मिनट नूडल इसके मध्यभागों में पहली बार आया. सोप ओपेरा का नशा नए पेय और शर्बतों के साथ जारी रहा.

1982 में 21 लाख टीवी सेट और करीब 1.5 करोड़ दर्शक संख्या से भारत देखते ही देखते अस्सी के दशक के अंत तक 1.5 करोड़ टीवी सेट और 7.5 करोड़ दर्शक संख्या पर पहुंच गया. घर-परिवारों का एक हिस्सा वीसीआर से जुड़ने के बाद अब घरेलू मनोरंजन का लती भी हो गया. कुछ वक्त तो लगा कि मानो वीडियो फिल्म स्टार को खत्म कर सकता है. सिनेमा ने उस प्रतिस्पर्धा से लड़ना कभी बंद नहीं किया.

सीमाएं तनाव और चिंता से भरी थीं, पर खोखली और सुराखदार भी थीं. अपने कार्यक्रमों की स्लेट को सजाने-संवारने के लिए डीडी फिल्मकारों की शरण में गया. कइयों ने उपकृत किया. महेश भट्ट ने टीवी के लिए जनम बनाई. श्याम बेनेगल ने भारत एक खोज बनाया. सबसे धमाकेदार कामयाबियां दूसरे क्षेत्र से आए लोगों से आईं: रमेश सिप्पी का बुनियाद (1986), रामानंद सागर का रामायण (1987), बी.आर. चोपड़ा का महाभारत (1989).

उसके बाद तो पहिया गोल और गोल घूमता गया: उदारीकरण और सैटेलाइट टेलीविजन ने डीडी का लंबा एकाधिकार तोड़ दिया, स्थानीय और वैश्विक चैनलों की भरमार के साथ रिमोट बटन के स्टारडम में उभार आया, और फिर वे आए जिन्हें आप सिनेमा की दुनिया के प्रवासियों का अगला जत्था कह सकते हैं. बीते जमाने के अभिनेता जितेंद्र की पत्नी और बेटी शोभा और एकता कपूर ने अपने 'के’ तमाशों से टेलीविजन कार्यक्रमों का रंग-ढंग बदल दिया. 2000 में जब अमिताभ बच्चन ने कौन बनेगा करोड़पति के साथ टीवी पर पदार्पण किया, तब तक किसी को कोई शक नहीं रह गया था कि छोटा अब अद्भुत ढंग से बड़ा था.ठ्ठ

इंडिया टुडे के पन्नों से 

लोकप्रिय फिल्मी आख्यान

अंक: 2 मई, 1987
टेलीविजन: लोकप्रिय फिल्मी आख्यान

 पहली नजर में, जनवरी के अंत में शुरू हुआ रामानंद सागर का टीवी धारावाहिक रामायण हर लिहाज से गलत नजर आता है...रामायण में हाइस्कूल के किसी प्रोग्राम जैसी सरलता है. फिर भी शायद ही किसी धारावाहिक ने ऐसी धूम मचाई हो.
—सिमरन भार्गव

क्या आप जानते हैं?

1980 के दशक में दूरदर्शन के दो सबसे ज्यादा देखे गए शो में साझा सूत्र प्रसिद्ध और सक्वमानित अभिनेता अशोक कुमार थे. हम लोग में उन्होंने नैतिक सबक के साथ हर एपिसोड का सार प्रस्तुत किया, तो रामायण में सूत्रधार के रूप में अपनी आवाज दी.

टीवी की बदौलत बॉलीवुड को अपने सबसे बड़े सितारों में से एक मिला: शाहरुख खान. मुंबई आने और पहली फिल्म दीवाना के साथ बड़े पर्दे पर कदम रखने से पहले उन्होंने फौजी और सर्कस में अभिनय किया था.

टेलीविजन की ऊंची छलांग

● 1984 मेक्सिकन सोप ओपेरा से प्रेरित हम लोग दूरदर्शन पर पहला प्रायोजित शो था. ये जो है जिंदगी दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाला पहला सिटकॉम या सिचुएशनल कॉमेडी शो बना

● फिल्मकार कुंदन शाह, सईद मिर्जा, श्याम बेनेगल, गुलजार और पंकज पाराशर ने डीडी के लिए कार्यक्रम बनाए

● 1987 टीवी की दर्शक संक्चया शिखर पर पहुंच गई जब घर-परिवार हर रविवार की सुबह रस्म की तरह रामायण और फिर बी.आर. चोपड़ा का महाभारत देखने लगे. रिलायंस विश्व कप लाइव टेलीकास्ट के ऊंचे मुकामों में से एक था

● इंडिया टुडे ग्रुप की वीडियो मैग्जीन न्यूजट्रैक ने डीडी, आकाशवाणी का विकल्प पेश किया

●1992 ज़ी टीवी भारत में लॉन्च होने वाला पहला निजी चैनल बना. डीडी के शो दोबारा दिखाने के बाद इसने तारा और अंताक्षरी के रूप में मौलिक कार्यक्रम शुरू किए

रंगीन सुबह कलर टीवी सेट के वे शुरुआती प्रोग्राम

● 1995 खबरों का निजीकरण शुरू हुआ जब ज़ी न्यूज लॉन्च हुआ, एनडीटीवी ने न्यूज टुनाइट शुरू किया और टीवी टुडे नेटवर्क ने डीडी मेट्रो पर अपने हिंदी न्यूज शो आज तक के लिए 20 मिनट का स्लॉट लिया. पांच साल बाद यह 24 घंटे का न्यूज चैनल बना

● 2000 एकता कपूर के बालाजी टेलीफिल्म्स ने स्टार पर क्यूंकि सास भी कभी बहू थी और कहानी घर-घर की  के साथ सास-बहू तमाशों की सूनामी छेड़ दी

● अमिताभ बच्चन ने स्टार पर कौन बनेगा करोड़पति होस्ट करके अपने करियर को जीवनदान दिया

● फैमिली मेलोड्रामा की बाढ़ के बीच बी.पी. सिंह ने सीआइडी लॉन्च किया, जो सबसे लंबा चलने वाला शो बना

● बिग बॉस ने रियलिटी शो के प्रारूप को थोड़ा कामुक पुट दिया. बच्चन के चरणचिन्हों पर चलकर सलमान खान ने टीवी को अपनाया

● भारत में नेटफ्लिक्स और अमेजन प्राइम की शुरुआत के साथ ओटीटी का युग शुरू हुआ. दर्शक सीरीज की 'बिंज वॉचिंग’ करने या एक के बाद एक एपिसोड लगातार देखने लगे, जिसके साथ टीवी देखने की आदतों में बदलाव आया.

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