
अमेरिका के ओरेगन में 1981 में अपनी स्थापना के करीब 44 साल बाद आज भी रजनीशपुरम को लेकर विवाद उठते आए हैं. 54 वर्षीया प्रेम सरगम ने ओशो के नाम से ज्यादा मशहूर दिवंगत धर्मगुरु भगवान रजनीश के कम्यून में बच्ची के रूप में बिताई अपनी जिंदगी के बारे में अभी इसी साल खुलकर बात की. लंदन के द टाइम्स को दिए इंटरव्यू में सरगम ने कहा कि मुक्त प्रेम की आड़ में उनके साथ बलात्कार और शीलभंग किया गया.
16 साल की उम्र में कहीं जाकर उन्हें समझ आया कि हुआ क्या था. ओशो के आंदोलन ने इस विचार की वकालत की कि बच्चों को कामवासना का अनुभव करवाया जाना चाहिए. उनके ड्रीम टाउन यानी दुनियाभर के उनके श्रद्धालुओं के लिए ओरेगन में बनाए गए कम्यून में शोषण को आम बात बना दिया गया.
अनुयायियों को वहां आने के लिए आमंत्रित किया गया, जहां वे मुक्त प्रेम, सत्संग के सत्र और 'प्रगतिशील रचनात्मक सोच-विचार’ सहित ओशो की शिक्षाओं को व्यवहार में लाने के लिए स्वतंत्र थे. अलबत्ता साल भर के भीतर ही रजनीशपुरम के रहवासी स्थानीय लोगों के साथ कानूनी लड़ाइयों में उलझ गए. उनमें से ज्यादातर लड़ाइयां इस तथ्य को लेकर थीं कि विशाल खेत को टाउनशिप बनाने की कोशिशें की जा रही थीं. देखते ही देखते मामला हाथ से निकल गया और ओशो तथा उनके अनुयायियों को आनन-फानन वहां से भागना पड़ा. लौटकर उन्होंने शुरुआती ठिकाने कोरेगांव पार्क, पुणे में आश्रम शुरू किया.
ओशो उन पहले संन्यासियों में थे जिन्होंने तड़क-भड़क भरी जीवनशैली की वकालत की, पूर्वी तथा पश्चिमी दर्शनों को मिलाकर आध्यात्मिक जीवनशैली वाले पंथ का निर्माण किया. मुक्त प्रेम के बारे में उनके विचारों की वजह से अक्सर उन्हें 'सेक्स गुरु’ कहकर अपमानित किया गया, तो कइयों का कहना है कि असल में वे श्री श्री, सद्गुरु और रामदेव सरीखे दूसरे आध्यात्मिक उद्यमियों के प्रणेता और अग्रदूत थे.
ज्यादातर गुरुओं के विपरीत ओशो हालांकि अलहदा थे. उन्होंने सेक्स और भौतिक शरीर के बारे में खुलकर बात की, गर्भपात और गर्भनिरोधक का समर्थन किया और अनुयायियों से कभी शराब छोड़ने के लिए नहीं कहा. उन्होंने अपनी दौलत और ताकत की शान भी बघारी, रोल्स रॉयस पर चलते थे (एक वक्त उनके पास 93 गाड़ियों का बेड़ा था), रोलेक्स घड़ियां पहनते थे, निजी रक्षकों का विशाल जत्था रखते थे, और विशाल सिंहासननुमा कुर्सी से प्रवचन देते थे. अंतत: 1990 में पुणे के अपने आश्रम में ओशो का इंतकाल हुआ, वे अपने पीछे कोई उत्तराधिकारी भी नहीं छोड़ गए. उनकी विरासत की लड़ाई जारी है.
इंडिया टुडे (अंग्रेजी) के पन्नों से
अंक: 15 दिसंबर, 1985
आवरण कथा पैराडाइज लॉस्ट

लौटकर आए रजनीश में अमेरिकी खौफ से कहीं ज्यादा कुछ है. मुक्त सेक्स के गुरु अब एड्स से बचने के लिए कंडोम के प्रयोग की वकालत करते हैं और उनके पास फोरप्ले का अधिकृत नुस्खा है जो चूमने या मुख मैथुन का निषेध करता है, पर कान के निचले सिरों को चाटने के लिए प्रोत्साहित करता है.
अपने अंतर्मन में कहीं गहरे वे शायद व्यर्थता की भावना से ग्रस्त थे. यह पूछे जाने पर कि अपनी मृत्यु के बाद किस रूप में याद किया जाना चाहेंगे, उनका जवाब था: 'नाचीज के रूप में’
रजनीश अब भी आत्मा के पीटर पैन हैं, उन्मुक्त इच्छाओं के पुजारी, मोक्ष का सौभाग्य हासिल करने के साधन के तौर पर धन-संपत्ति के बेबाक पैराकार. उनके कई गैर-शिष्यों के लिए भी उनकी उपस्थिति किसी प्यारे अलौकिक व्यक्ति की तरह है
उनके कल्पनालोक की रूमानी आभा में क्षणभंगुर चमक है.
मगर आखिर में मसीहा को ही अपने झुंड की अगुआई करनी होती है. एक स्वर्ग का सपना तहस-नहस हो जाने के बाद और वह भी गठियाग्रस्त 54 की उम्र में, वे इसका पुनर्निर्माण कर पाएंगे, मुश्किल ही है. —सुमित मित्रा, साथ में रिचर्ड ड्रेपर, पोर्टलैंड में और राज चेंगप्पा, पुणे में
7000 लोग
एक पूरे बंजर इलाके को रजनीश के अनुयाइयों ने तीन साल के भीतर 7,000 लोगों की टाउनशिप में बदल दिया. इसमें अग्निशमन विभाग, पुलिस, रेस्तरां, मॉल, टाउनहाउस, 4,200 फुट की हवाईपट्टी, यातायात व्यवस्था, सीवेज शोधन संयंत्र, अंगूर के बगीचे, जलाशय और अस्पताल सब कुछ थे.
एक गुरु और उसका फैलाव
● ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन और ओशो आंदोलन के छोटे-छोटे केंद्र भारत और दुनियाभर में अब भी सक्रिय हैं. वे योग को बढ़ावा देते हैं और आर्ट थेरैपी कार्यक्रम करते हैं.
● रजनीशपुरम बारी-बारी से फसलें उगाने और कंपेनियन प्लांटिंग सरीखे जैविक खेती के तरीकों को बड़े पैमाने पर लोकप्रिय बनाने वाले पहले ठिकानों में से एक था.
● ओशो की तकनीकों की बदौलत योग और ध्यान दुनिया भर में लोकप्रिय हुए.
● रजनीशपुरम को लेकर अब भी वाइल्ड कंट्री और चिल्ड्रन ऑफ द कल्ट सरीखी डॉक्यूमेंट्री फिल्में बनती आ रही हैं.
क्या आप जानते हैं?
रजनीशपुरम में यहां तक कि जिप कोड 97741 के साथ खुद का पोस्ट ऑफिस भी स्थापित किया गया था.
"मुझे यकीन नहीं कि लोग पूरी तरह से एक बराबरी के हो सकते हैं. मनोवैज्ञानिक रूप से यह बकवास बात है. पिकासो पिकासो हैं. रवींद्रनाथ रवींद्रनाथ हैं. आप इस तरह से लोगों को बराबरी का थोड़े बना सकते हैं. लेकिन समाज को हर किसी को असमान होने का समान अवसर देना चाहिए. इन साढ़े चार साल में हम ऐसा करने में कामयाब रहे हैं."
—ओशो, इंडिया टुडे के साथ बातचीत, 15 दिसंबर, 1985