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कैसे हो रहे लोग 'डिजिटल अरेस्ट', पीड़ितों की इन कहानियों से समझिए

डिजिटल अरेस्ट के शिकार लोगों की सूची में पूर्व आईजीपी से लेकर रिटायर्ड मेजर जनरल, वकील और पत्रकार तक शामिल हैं. इस साल के पहले चार महीनों में भारतीय 120 करोड़ रुपए इन ठगों के हाथ गंवा बैठे

साइबर ठगी की शिकार ऋचा मिश्रा (35 वर्ष)
साइबर ठगी की शिकार ऋचा मिश्रा (35 वर्ष)

क्या है 'डिजिटल अरेस्ट (गिरफ्तारी)' ठगी

● पीड़ितों से फोन कॉल, ईमेल या संदेश के जरिए संपर्क किया जाता है, और घोटालेबाज दावा करता है कि दूसरों की गैर-कानूनी आईडी चोरी या मनी लॉन्ड्रिंग जैसे मामले में आपके खिलाफ जांच चल रही है.

● फौरन गिरफ्तारी या कानूनी कार्रवाई की धमकी देकर वे पीड़ित को बुरी तरह डरा देते हैं, उसे वीडियो कॉल में जुड़ने के लिए राजी कर लेते हैं, और बताते हैं कि उन्हें 'डिजिटल तौर पर गिरफ्तार’ कर लिया गया है.

● फिर पीड़ित को घंटों या कई दिनों तक निपट अकेले वीडियो कॉल पर बने रहने के लिए मजबूर किया जाता है.

● वे इतनी दहशत पैदा कर देते हैं कि पीड़ित कुछ सोच-समझ नहीं पाता. फिर वे उसे 'बेदाग निकालने' या 'जांच में सहायता करने' की आड़ में निश्चित बैंक खाते या यूपीआई आईडी में बड़ी रकम ट्रांसफर करने को मजबूर करते हैं.

● हालांकि भारत में डिजिटल अरेस्ट या गिरफ्तारी का कोई कानून नहीं है; सभी कानूनी कार्रवाइयां खास दायरे में व्यक्तिगत हाजिरी के आधार पर होती हैं.

नई दिल्ली, ऋचा मिश्रा, 35 वर्ष, पत्रकार

फर्जीवाड़ा: ड्रग्स का फर्जी पार्सल, डिजिटल गिरफ्तारी

यह महज एक और शनिवार था. अक्तूबर की 5 तारीख, समय दोपहर 12.15 बजे. इंडिया टुडे टेलीविजन की पत्रकार ऋचा मिश्रा अज्ञात नंबर से आया कॉल उठाती हैं. उधर से आवाज आती है, "मैं फेडएक्स से करण वर्मा बोल रहा हूं. आपने एक कूरियर भेजा है."

ऋचा की त्यौरियां चढ़ जाती हैं. वे कहती हैं, "कोई कूरियर नहीं भेजा." जवाब आता है, "मुंबई एयरपोर्ट पर एक बरामदगी हुई है. आपके नाम पर संदिग्ध चीजें मिली हैं." ऋचा थोड़ी ढीली पड़ जाती हैं. ''किस किस्म की चीजें?"

"पांच पासपोर्ट, तीन क्रेडिट कार्ड... और 200 ग्राम एमडीएमए."

वे चौंक जाती हैं, "एमडीएमए!" वह कहता है, "ड्रग्स मैम, आपके आधार कार्ड का कोई दुरुपयोग कर रहा हो सकता है." फिर, वह उनकी बात कथित तौर पर "मुंबई पुलिस" के किसी विनय कुमार चौधरी से करवाता है. वह कहता है, "ड्रग स्मग्लिंग और मनी लॉन्ड्रिंग में आपकी गिरफ्तारी का वारंट है." ऋचा बताती हैं, "वे दो घंटे तक परेशान करते रहे."

उनके पास पूरी जानकारी थी: ऋचा की दिनचर्या, उनका परिवार, उनके डर. "पैसे की कोई मांग नहीं की, पर उनका मंसूबा सात दिनों तक मुझे फंसाए रखने का था. हर दो घंटे बाद वे अपडेट मांगते, और लगातार डराए रखते." उधर से आवाज कुछ रुकी तो ऋचा ने एक रिश्तेदार और दफ्तर में एक साथी को फोन किया.

उन्होंने बताया कि यह कोई फर्जीवाड़ा है. बाद में उन्होंने पुलिस में शिकायत की. लेकिन, वे कहती हैं, "दमघोंटू खौफ बना हुआ है. डिजिटल अरेस्ट...यानी आपका जैसे कुछ खो गया. अब फर्जीवाड़े का साया हट चुका है, तब भी रह-रहकर खौफजदा कर जाता है. याद दिला जाता है कि कैद सशरीर नहीं हुई थी, बल्कि दिमाग को कैद कर लिया गया था."

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जयपुर, विकास द्विवेदी, 70 वर्ष, रिटायर आईजी, पुलिस (नाम बदला हुआ)

फर्जीवाड़ा: बाल तस्करी के नेटवर्क से जुड़ा आधार

चूना लगा: 2.14 करोड़ रु. (1.7 करोड़ रु. बरामद हुए)

अगस्त की एक सुबह यह सब कुछ एक व्हाट्सऐप कॉल के साथ शुरू हुआ, जिसे रिटायर आईजीपी ने बिना कुछ सोचे-समझे उठा लिया था. दूसरी तरफ से आई आवाज में एकदम पेशेवर विनम्रता थी. कॉल करने वाला बोला, "सर, यह कॉल मुंबई कस्टम्स की तरफ से की गई है. आपके आधार से जुड़ा एक पैकेज रोका गया है. हमारे लिए आपकी जानकारी को तुरंत सत्यापित करना जरूरी है."

कभी संयुक्त राष्ट्र में काम कर चुके विकास ने कोई हिचकिचाहट दिखाए बिना अपने आधार की जानकारी दी. साथ ही बताया कि एक माह पहले उनका सेलफोन खो गया था और उन्होंने एफआईआर भी दर्ज कराई थी. इस पर कॉलर ने कहा, "ओह सर. इसी वजह से ऐसा हुआ होगा. किसी ने फोन से आपका डाटा एक्सेस कर लिया होगा. थोड़ा इंतजार कीजिए, मैं इस मामले को सीबीआई तक पहुंचाता हूं."

विकास कुछ कहते, इससे पहले कॉल को दूसरी फोन लाइन पर ट्रांसफर कर दिया गया. बैकग्राउंड में वायरलेस सेट की आवाज गूंज रही थी. तभी एक रौबदार आवाज गूंजी, "इस आदमी को फौरन गिरफ्तार करो! इसका नाम ड्रग तस्करी मामले में आया है. छापे में उसके नाम से फर्जी पासपोर्ट और एटीएम कार्ड बरामद किए गए हैं."

विकास हक्का-बक्का रह गए. जब तक कुछ समझ पाते, उनके फोन की स्क्रीन पर वीडियो कॉल आने लगी. दूसरी तरफ बैठे व्यक्ति ने सफेद शर्ट पहन रखी थी, उसके पीछे सीबीआई का प्रतीक चिह्न प्रमुखता से नजर आ रहा था. चेहरे के भाव एकदम गंभीर थे.

उस व्यक्ति ने कहा, "मिस्टर विकास यह कोई छोटी बात नहीं है. आपके बैंक खातों का इस्तेमाल कथित तौर पर थाईलैंड में बाल तस्करी और अंग प्रत्यारोपण से जुड़े मामले में 380 करोड़ रुपए के लेनदेन में किया गया है. हमने उन माता-पिता की पहचान की है जिन्होंने अपने बच्चों को बचाने की उम्मीद में आपके आधार से जुड़े खातों में पैसे जमा किए हैं."

आरोप पूरी तरह बेतुका था. विकास ने कुछ सोचते हुए कहा, "यह सच नहीं है." अधिकारी ने तुरंत अपना स्वर नरम करते हुए कहा, "सर, यह साफ-साफ आपके आईडी डिटेल का दुरुपयोग है. लेकिन आपका नाम क्लियर करने के लिए हमें एक औपचारिक प्रक्रिया का पालन करना होगा."

बस फिर क्या था, पूरा जाल बिछ चुका था. अगले कुछ घंटे विकास ने खुद को एक गंभीर संकट में फंसा पाया. 'अधिकारी' ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट, आरबीआई और सीबीआई टीम वाला एक उच्चस्तरीय पैनल पूरा मामला देख रहा है. उसके बाद कॉल करने वाला बोला, "वे एक सुरक्षित रकम जमा करने को कह रहे हैं जो बाद में वापस हो जाएगी. इससे मामले की जांच में सहयोग करने की आपके इरादे को साफ करेगा. समस्या को हल करने का यह सबसे जल्द और आसान तरीका है."

विकास ने हिचकिचाहट दिखाई तो उस व्यक्ति ने उन्हें आश्वस्त किया, "आपको हर भुगतान के लिए मुहरबंद प्रमाणपत्र प्राप्त होंगे." अब तक वह विकास को पूरी तरह झांसे में ले चुका था. धोखेबाजों ने उनकी बचत के बारे में पूछा, और बातों-बातों में सभी वित्तीय संपत्तियों के बारे में जानकारी हासिल कर ली. पहले तो विकास ने थोड़ा विरोध भी किया.

लेकिन उन लोगों के बेहद शिष्टाचार के साथ पेश आने और "उनके सम्मान की रक्षा" करने पर जोर देने से वे कमजोर पड़ गए. उन्होंने अपने सभी फंड का ब्योरा दे दिया तो कॉल करने वाले ने कहा, "आपको रकम निकालनी होगी." विकास ने उनकी बात मान ली. अगले 20 दिनों में चार बार वे अपने बैंक गए और पैसे निकाले. हर ट्रांसफर के बाद एक मुहर लगा प्रमाणपत्र मिल जाता था जो मोटे तौर पर जायज और प्रामाणिक लगता था.

तब तक विकास ने अखबार पढ़ना, समाचार देखना, यहां तक कि परिवार से बात करना भी बंद कर दिया था. घोटालेबाजों ने चेतावनी दे रखी थी कि उनका फोन निगरानी में है. उनका कहना था, "अगर आप इस मामले का किसी से जिक्र करते हैं तो वह भी फंस जाएगा." विकास बेंगलूरू में नौकरी करने वाले अपनी बेटी या दामाद को इस मामले में घसीटे जाने के बारे में तो सपने में भी नहीं सोच सकते थे.

21वें दिन तक विकास 2.14 करोड़ रुपए ट्रांसफर कर चुके थे. फिर भी कॉल जारी रहे और 22 लाख रुपए की मांग की गई. अब तक उनके लिए पैसे का इंतजाम करना मुश्किल हो चुका था. तभी एक दोस्त आया. उसने विकास को बेचैन देखकर इसका कारण बताने का दबाव डाला.

विकास आखिरकार टूट गए और उन्होंने सारी आपबीती बता डाली. इसके बाद वे दोनों राज्य के डीजीपी के पास गए, जो उनके पूर्व सहकर्मी थे. डीजीपी यह सब जानकार हैरान रह गए. उन्होंने कहा, "आप इस तरह के झांसे में कैसे आ सकते हो."

लेकिन सवाल-जवाब के लिए समय नहीं था. पुलिस ने तुरंत कार्रवाई की, बैंकों को अलर्ट किया और लेनदेन का पता लगाया. अच्छी बात यह रही कि मुंबई में एक फ्रीज किए गए खाते में 1.7 करोड़ रुपए मिले. बाद में विकास ने कबूला कि जिस बात ने उसे सबसे ज्यादा चौंकाया, वह यह थी कि "उन्होंने मेरे दिमाग को कैसे नियंत्रित किया. उन्होंने इस कदर डर पैदा कर दिया, इतने सम्मान के साथ बात की कि मैं उनसे सवाल ही नहीं कर पाया. मैं अपने ही घर में अपने ही दिमाग का कैदी बनकर रह गया."

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तन्वी जैन, 33 वर्ष, मैनेजर, भारतीय स्टेट बैंक

फर्जीवाड़ा: मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ा आधार

चूना लगा: 17 लाख रु. (बाद में बरामद हुआ)

तन्वी जैन

प्रारंभ में 'सीबीआई अधिकारी' बनकर फोन करने वाले ने कहा कि उनके सिम कार्ड को केनरा बैंक खाते में अवैध लेनदेन से जोड़ा गया है. बेहद शांत और पेशेवर लहजे वाले उस व्यक्ति ने कहा कि हो सकता है, हाल ही में होटल में ठहरने के दौरान तन्वी के आधार कार्ड के साथ छेड़छाड़ की गई हो.

कानून की पढ़ाई कर चुकीं और कंपनी सचिव तन्वी ने माना कि "यह संभव है" और इस तरह फर्जीवाड़े के जाल में फंसती चली गईं. इस तरह आठ घंटे तक जो सिलसिला चला, उसमें वे 17 लाख रुपए लगभग गंवा चुकी थीं. और वे अपने किए पर पछताती रहीं.

फोन करने वाले ने मदद का वादा किया. बातचीत धीरे-धीरे व्यक्तिगत होने लगी और उस व्यक्ति ने अपनी पत्नी और निवेश में उसकी रुचि के बारे में कई बातें बताईं. और तो और, तन्वी जैन खुद म्यूचुअल फंड के बारे में उसे सलाह देने लगीं और यह बताया कि उनकी स्वयं की परिसंपत्तियां कितनी हैं.

उन्हें थोड़ा-बहुत संदेह उस वक्त हुआ जब उन्हें 10 पेज का 'सुप्रीम कोर्ट का दस्तावेज' भेजा गया, जिसका शीर्षक था - तन्वी जैन बनाम डी.वाई. चंद्रचूड़. कानून की पढ़ाई से वे जानती थीं कि ऐसा तो हो ही नहीं सकता लेकिन फोन करने वाला इतना चतुर था कि अपने नैरेटिव से उनके संदेह को शांत कर दिया. फर्जी सीबीआई अधिकारी ने दावा किया कि उनका आधार कार्ड नरेश गोयल (जेट एयरवेज के संस्थापक) से संबद्ध हवाला मामले से जुड़ा हुआ है और इस तरह से उन्हें प्रकारांतर से धमकी दी, जिससे कि वे टूट गईं.

एक टेलीफोन कॉल के दौरान फर्जी अधिकारियों में से एक चिल्लाया, "मुझे पता है कि तुमने कितना पैसा बनाया है." इस आरोप से उनकी आंखों में आंसू आ गए. इससे पहले एक अन्य फोन करने वाले ने उन्हें आवश्यकता पड़ने पर रोने और अनुनय-विनय करने की सलाह दी थी. उनके चतुर मनोवैज्ञानिक छल में कोई खामी नहीं थी, पहले भयभीत करते थे फिर सहायता देने की बात करते थे, जिससे कि फंदा आगे और कसा जा सके.

घोटालेबाजों ने सिर्फ अपना कहा ही नहीं मनवाया बल्कि ऐसे नाटकीय ढंग से पेश आते रहे मानो वे कोई धोखाधड़ी नहीं कर रहे हैं. उन्होंने उनके फोन पर स्काइप इंस्टॉल करवाया और कथित जांचकर्ताओं के साथ वॉकी-टॉकी जैसी बातचीत करवाई. उन्होंने उन्हें साइबर दुनिया में सतर्क रहने की सलाह दी और समझाया कि अपना आधार या क्रेडिट कार्ड अजनबियों के पास नहीं छोड़ना चाहिए तथा अवांछित ऐप्स डाउनलोड करने को लेकर चेताया. इस बीच उन्होंने उनके पैसों को अपना बनाना जारी रखा.

उनके बहकावे में आकर तन्वी ने अपने खाते से एक ही बार में 17 लाख रुपए ट्रांसफर करने की व्यवस्था कर दी. बैंक में जब एक जूनियर अधिकारी ने पूछा कि इतनी हड़बड़ी क्या है तो तन्वी ने जोर देकर कहा कि यथाशीघ्र पैसे ट्रांसफर किए जाएं. उन्होंने जोर देकर कहा कि उन्हें निजी कारणों से धन की आवश्यकता है. इस झूठ को बोलने के लिए उन्हें कायदे से समझाया गया था.

जिन खातों में उन्होंने पैसे ट्रांसफर किए, उनके नाम 'मित्तल एंटरप्राइजेज' जैसे संदिग्ध थे, फिर भी घोटालेबाजों ने उन्हें यकीन दिला दिया कि ये छिपे हुए खाते हैं, जिनका इस्तेमाल सरकारी एजेंसियां सुरक्षा के उद्देश्यों के लिए करती हैं. उन्होंने उन्हें यह यकीन दिला दिया कि उनकी हर छोटी-बड़ी गतिविधि पर नजर रखी जा रही है.

कुछ घंटे बीतते ही तन्वी के जेहन में फिर से संदेह उभरने लगे. अपनी मां का फोन मांग कर उन्होंने एक मित्र को संदेश भेजा और सचेत ढंग से पूछा कि क्या प्रवर्तन निदेशालय इस ढंग से काम करता है. हालांकि वे अभी भी डरी हुई थीं, लेकिन उन्होंने फोन करने वाले को और तीन लाख रुपए देने से मना कर दिया. यह पैसे उनकी भविष्य निधि में जमा थे. आठ घंटे की मनोवैज्ञानिक यातना के बाद, सच्चाई सामने आई.

उन्होंने एकाएक फोन काट दिया और तुरंत हरकत में आ गईं. अपने बैंकिंग संपर्कों का उपयोग करके, उन्होंने धोखेबाज के खातों का पता लगाया और तुरंत साइबर अपराध हेल्पलाइन और जयपुर पुलिस को वारदात की सूचना दी. घोटालेबाजों ने पहले ही खाते को खाली करना शुरू कर दिया था, लेकिन पुलिस कार्रवाई से उनकी 17 लाख रुपए की रकम वापस मिल गई.

जांच में कई खातों का पेचीदा जाल सामने आया, जिनमें कुछ शिमला के गैर-सरकारी संगठनों और देश भर में फैली कंपनियों से जुड़े हुए थे. हालांकि पैसों का पता चल गया, लेकिन फोन करने वालों तक पुलिस नहीं पहुंच सकी. अपनी अग्निपरीक्षा पर मनन करते हुए तन्वी ने माना कि "मेरे मन में प्रश्न उठे थे कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भला इसमें क्यों शामिल होंगे लेकिन यह ऐसा था मानो मैं सम्मोहित हो गई थी. उन्हें भलीभांति पता था कि उन्हें कैसे मुझे भरोसे में लेना है. बैंकर और वकील होते हुए भी मैं उनके झांसे में आ गई."

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भोपाल, डॉ. प्रीति, 50 वर्ष, एक मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर (नाम बदला हुआ)

फर्जीवाड़ा: फेडएक्स पार्सल, जिसमें एमडीएमए होने की बात कही गई

चूना लगा: 40 लाख रु.

वह गर्मियों की शाम थी. एक व्यस्त दिन के बाद थकी हुई डॉक्टर चाय का कप लेकर बैठी ही थीं कि फोन की घंटी बजी. दूसरी तरफ से बहुत शांत स्वर में किसी ने पूछा, "क्या यह डॉ. प्रीति का नंबर है? मैं फेडेक्स से बोल रहा हूं." डॉ. के हां कहने पर फोन के दूसरी तरफ वाले शख्स का अंदाज बदल गया.

उसने कहा, "आपके नाम का एक पार्सल मुंबई में पकड़ा गया है. इसमें पांच पासपोर्ट और एमडीएमए ड्रग्स पाए गए हैं." डॉक्टर के लिए तो यह मामला काटो तो खून नहीं वाला था. वे घबराई हुई बोलीं, "यह हो ही नहीं सकता! मैंने कोई कूरियर नहीं भेजा है." 

कॉल करने वाले ने एक भी मौका नहीं छोड़ा. उसने दबाव बनाने के लिए कहा, "मैम, यह गंभीर मामला है. मैं आपको मुंबई क्राइम ब्रांच से जोड़ रहा हूं. आपको यह बात सीधे पुलिस को समझानी होगी."

इससे पहले कि वे कुछ कह पातीं, उन्हें एक नए शख्स की आवाज सुनाई दी जिसने अपना परिचय क्राइम ब्रांच के इंस्पेक्टर के रूप में दिया. पीछे से एक वायरलेस सेट पर कुछ आवाजें भी सुनी जा सकती थीं. इससे डॉक्टर के मन में बाकी का संदेह भी दूर हो गया. अधिकारी ने सख्त लहजे में कहा, "पैकेट के साथ आपके दस्तावेज पाए गए हैं. अब आप भी इस मामले में एक आरोपी हैं और इसकी जांच होगी."

डॉक्टर प्रीति खुद को निर्दोष बताती रहीं, लेकिन 'अधिकारी' अड़ा रहा. "आपको सहयोग करना होगा. आपका बयान ऑनलाइन दर्ज किया जाएगा. अब, मुझे अपने बैंक खाते का विवरण दीजिए. आपके पास कितना पैसा है?"

वे झिझक रही थीं, उनकी अंतरात्मा बार-बार उन्हें किसी अजनबी को कुछ न बताने के लिए मना रही थी, लेकिन डर ने उन्हें लाचार बना दिया. अधिकारी ने उनसे स्काइप डाउनलोड करने को कहा तो उन्होंने उसकी बात मान ली. उसने हुक्म दिया, "अपने आप को एक कमरे में बंद कर लो. यह संवेदनशील मामला है और हम इसमें कोई बेवजह की खलल नहीं चाहते."

स्क्रीन झिलमिला रही थी. उस पर एक वर्दीधारी व्यक्ति नजर आया, जो व्यवहार में तो शांत था, लेकिन उसका अंदाज रोबीला था. उसके पीछे कुछ अन्य अधिकारी भी नजर आने लगे. उनकी उपस्थिति ने इस नाटक को विश्वसनीयता दे दी. अगले चार घंटों तक डॉक्टर प्रीति से लगातार पूछताछ चलती रही.

उन्होंने विवरण साझा करते हुए कहा, "आपको अपने खातों का सारा पैसा—लगभग 40 लाख रुपए—इस खाते में ट्रांसफर करना होगा. जांच की अवधि तक के लिए आरबीआई आपके खाते को फ्रीज कर देगा. जिस खाते में आपको पैसे भेजने हैं, वह क्राइम ब्रांच का होल्डिंग एकाउंट है. आपके पैसे को सुरक्षित रखने का यही एकमात्र तरीका है."

उनके तर्कसंगत दिमाग को पता था कि कुछ गड़बड़ है, लेकिन थकावट, डर और ठगों द्वारा किए गए लगातार नाटक ने उनकी सोचने-विचारने की शक्ति को प्रभावित कर दिया और उन्होंने वही किया जो उनसे कहा गया था. कांपते हाथों से उन्होंने पैसे ट्रांसफर कर दिए.

इसके बाद कॉल कट गई. स्तब्ध और अस्त-व्यस्त, डॉक्टर लड़खड़ाते हुए कमरे से बाहर निकल आईं. जैसे ही वे बाहर निकलीं, उन्हें वास्तविकता का एहसास हुआ और समझ में आया कि उन्हें धोखा दिया गया है, उनका पैसा लूट लिया गया है.

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सूरत, शरीफा वहाब, 75 वर्ष (परिवार की बुजुर्ग)

फर्जीवाड़ा: आधार वेबसाइट से डाटा लीक

चूना लगा: 20 लाख रु.

सूरत के एक भरे-पूरे परिवार से ताल्लुक रखने वाली शरीफा वहाब अमूमन बाल-बच्चों, नाती-पोतों और दूरदराज के रिश्तेदारों से घिरी रहती हैं. सभी का उन पर अटूट भरोसा है और उनका बेहद सम्मान करते हैं. यही हमेशा से शरीफा वहाब की ताकत भी रही है. लेकिन उस दिन सुबह की घटना से ऐसा लगा कि मानो उनके आत्मविश्वास का किला ही ढह गया है.

उनके फोन पर आई कॉल अंधेरे में तीर चलाने जैसी थी. फोन करने वाले ने बेहद सधी और गंभीर आवाज में उन्हें बताया कि उनका फोन नंबर 'आधार वेबसाइट के डाटा लीक' से जुड़े एक फिशिंग मामले में सामने आया है. जाहिर तौर पर धमकी थी, सीबीआई उनके यहां छापा मारने वाली है. अपने जीवन के सात दशकों में शरीफा ने खुद को कभी इतना डरा हुआ महसूस नहीं किया था.

हालांकि, कोई छापा नहीं पड़ा. इसके बजाए कॉल करने वालों ने एक डरावनी शर्त रखी, उन्हें "डिजिटल गिरफ्तारी" में रखा गया और जांच के बारे में किसी को न बताने की हिदायत दी गई. किसी भी गलत कदम के 'गंभीर नतीजे' होने की बात भी कही गई.
सात दिनों तक शरीफा ने अपने फोन का कैमरा चालू रखा, वे उसी स्थिति में अपनी दिनचर्या में लगी रहीं और खुफिया आंखें उन पर लगातार नजरें बनाए रहीं.

बाद में घटनाक्रम के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, "वर्दी पहने एक आदमी ने कैमरे पर मुझसे कुछ देर बातें की. बाकी लोग सादे कपड़ों में थे लेकिन उनकी आवाज...वह इतनी अधिकारपूर्ण थी जिस पर मैं सवाल ही नहीं उठा सकती थी. उन्होंने मुझे ऐसा महसूस कराया कि जैसे मैं किसी ऐसे अपराध के लिए जिम्मेदार हूं, जिसे बयान भी नहीं किया जा सकता."

डिजिटल गिरफ्तारी के पूरे नाटक के बीच फिर एक महिला ने प्रवेश किया, उसने काफी नरमी से बात की और ऐसा दर्शाया जैसे उनकी सारी बात समझ रही है. उसने यह बात कही कि हो सकता है यह सब गलतफहमी के कारण हुआ हो. उसके बाद छठे दिन अल्टीमेटम आया—अगर शरीफा तत्काल पूछताछ से बचना चाहती हैं तो 70 लाख रुपए का 'जमानत बॉन्ड' दे सकती हैं.

इससे पता चलेगा कि वे जांच में सहयोग करना चाहती हैं और जांच में दोषमुक्त पाए जाने पर यह रकम उन्हें लौटा दी जाएगी. शरीफा ने जांचकर्ताओं को बताया, "मुझे तो यही लगा था कि वे असली अधिकारी हैं, इसलिए मेरा पैसा सुरक्षित रहेगा. मैं बस यही चाहती थी कि यह सब खत्म हो जाए." अगले दिन यह मानते हुए कि अपनी आजादी खरीद रही हैं, शरीफा ने अपने खातों से 20 लाख रुपए ट्रांसफर कर दिए.

डिजिटल गिरफ्तारी कुछ समय के लिए हटा ली गई लेकिन चेतावनी दी गई— बाकी राशि 72 घंटों के भीतर नहीं चुकाई गई तो "मेहमान" घर पहुंच जाएंगे. इस पर हताश शरीफा ने अपना म्यूचुअल फंड खत्म करने के लिए परिवार के निवेश सलाहकार से संपर्क साधा.

इसके साथ ही झूठे जाल का पर्दाफाश होने लगा. घबराए सलाहकार ने शरीफा के 45 वर्षीय अंतरराष्ट्रीय हीरा कारोबारी बेटे से संपर्क किया. जब उसने अपनी मां से पूछा, तो वे ज्यादा देर बात को छिपा नहीं सकीं. लेकिन तब तक 'फर्जी खातों' में जमा कराई गई रकम साफ हो चुकी थी.

एक जांच अधिकारी ने बताया, "वे यह मानने को तैयार ही नहीं थीं कि कोई फर्जीवाड़ा हुआ. सच्चाई सामने आने पर वे और भी ज्यादा घबरा गईं." बेटे के मुताबिक, "अब भी जब उसका फोन बजता है तो वे सिहर उठती हैं."

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