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कैमरे के जरिए कैसे वाइल्ड लाइफ दुनिया की नई इबारत लिख रही हैं फोटोग्राफर आरज़ू खुराना?

महज तीस साल की उम्र में वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर आरज़ू खुराना ने देश के सभी 55 टाइगर रिजर्व में घूमकर जो अनुभव साझा किए वे कई सवालों के जवाब हैं. लेकिन इसके साथ कई सवाल भी उपजते हैं जो जरूरी और मौजूं हैं

आरज़ू खुराना, वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर
आरज़ू खुराना, वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर
अपडेटेड 20 सितंबर , 2024

घने जंगल की अलसाई सुबह. कम-सुनी आवाजें और करीबन अनदेखे नजारे. बंदरों का एक जोड़ा चीखते हुए हांफने लगा है. नतीजतन, सांभरों का एक झुंड चिहुंक कर अपनी जगह इतनी फुर्ती से छोड़ता है, जैसे वे यहां कभी थे ही नहीं. लंगूरों ने घात लगाए बैठे बाघ को देखते ही अपनी भाषा में 'भागते रहो' की मुनादी पीट दी. ''अगर आपको वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी करनी हो तो एक चीज सीखनी होगी, इंतजार करना...वह भी बहुत ज्यादा इंतजार..." 

कैमरे के पीछे फुसफुसाती हुई यह नसीहत अपने इस यूट्यूब वीडियो में दे रही हैं आरज़ू खुराना. कभी किराए के कैमरे से वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी की शुरुआत करने वालीं 30 वर्षीया आरज़ू खुराना के यूट्यूब चैनल पर जंगलों से जुड़े करीबन पांच सौ वीडियो हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी से लॉ ग्रेजुएट आरज़ू गुजरे एक दशक में वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी का जाना-पहचाना नाम बन चुकी हैं. उनकी खींची तस्वीरें देश और देश के बाहर भी खूब सराही गई हैं.

कॉर्बेट टाइगर रिजर्व, उत्तराखंड

जंगल और उससे अपने नाते पर आरज़ू कहती हैं, "मुझे अच्छी तरह याद है जब कई साल पहले धुंध, कीचड़ और ठंड में कैमरा लेकर कई घंटे इंतजार करने के बाद भी कोई मन की तस्वीर नहीं मिली थी, उस दौरान दिमाग का एक हिस्सा यह कह रहा था कि ये मेरे बस की बात नहीं, घर वापस चलना चाहिए. लेकिन मैंने आखिरी कुछ मिनट और इंतजार करने का फैसला किया और फिर मुझे जो तस्वीर मिली, उसने सारी कहानी बदल दी."

अपने पहले कैमरे से लेकर दुनिया भर की प्रदर्शनियों और पत्रिकाओं में छपने तक, इंतजार के और भी सफे आरज़ू से बातचीत में खुलते हैं. वे बताती हैं कि "ज्यादातर जंगलों के कोर एरिया में मोबाइल नेटवर्क बहुत मुश्किल हो जाता है. ऐसे में अपनी इकलौती बेटी को पापा-मम्मी किस भरोसे पर जंगल जाने दे सकते थे! अब सोचती हूं तो उनका पॉइंट भी लॉजिकल लगता है." 

हैरानी की बात नहीं कि भारत के शहरी इलाकों में सबसे ज्यादा सेकंड हैंड बेची जाने वाली चीजों की लिस्ट में साइकिल और डीएसएलआर कैमरा बहुत ऊपर के पायदान पर दर्ज हैं. लेकिन चीज खरीदकर जरूरत पैदा करने की जगह जरूरत की चीज खरीदी जाए तो जरूरी काम किया जा सकता है. जरूरी क्या? जंगल और इसके ईकोसिस्टम को समझना.

आरज़ू कहती हैं, "दस साल पहले ज्यादातर बार वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी का मतलब सिर्फ टाइगर की फोटो क्लिक करना समझा जाता था. लेकिन मैंने कीड़ों, मेढकों, चिड़ियों, बंदरों जैसे उन जानवरों की तस्वीरों से शुरुआत की जो जंगल के ईकोसिस्टम में उतने ही जरूरी हैं जितना टाइगर. मेरी पहली तस्वीर जो मुझे शुरुआती दिनों की सबसे सुंदर तस्वीर लगती है, वह सारस के जोड़े की है. जिस तस्वीर पर मुझे पहली बार दुनिया भर से तारीफ मिली वह एक हिरण और चिड़िया की थी, जो मेरा कॉपीराइट साइन भी है."

आरज़ू के काम को आज की तारीख में सोशल मीडिया पर बीस लाख से ज्यादा लोग फॉलो करते हैं. लाखों लोगों का ध्यान आरज़ू के लिए जिम्मेदारी का सवाल है. साल 2023 में एक दफा उनके मन में यह सवाल उपजा कि भारत में लोग कितने टाइगर रिजर्व के बारे में जानते हैं? आप खुद से यह सवाल करें. जवाब में गिनती राजाजी, कॉर्बेट, कान्हा, दुधवा, पीलीभीत और बांधवगढ़ से आगे बढ़ने के लिए नाम तलाशने लगेगी.

किंगफिशर मुंबई

लेकिन हैरानी की बात है कि अगस्त, 2024 तक भारत में टाइगर रिजर्व की गिनती 55 तक पहुंच चुकी है, जिनमें नौ तो अकेले नॉर्थ ईस्ट में हैं. इस सवाल से आरज़ू को इन सारे टाइगर रिजर्व में जाने की जिम्मेदारी का एहसास हुआ. और अक्तूबर 2023 में यह वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर अपना कैमरा लेकर निकल पड़ी एक बेहद मुश्किल काम को साधने. यहीं से शुरुआत हुई ऑल टाइगर रिजर्व (एटीआर) की.

भारत के सभी टाइगर रिजर्व, वह भी एक बार में. बकौल आरज़ू, "मेरे साथी वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर अक्सर अफ्रीका जाने की बात करते थे. सबको लगता था कि एक बार मसाई मारा (अफ्रीका में एक नेशनल रिजर्व) जाना है. तब मैं सोचती थी कि क्या हमने अपने देश की वाइल्ड लाइफ को पूरी तरह एक्सप्लोर कर लिया? नहीं. बस फिर शुरू हुआ प्रोजेक्ट ऑल टाइगर रिजर्व."

सुदूर उत्तर-पूर्व के काम्लांग टाइगर रिजर्व से लेकर दक्षिण में पेरियार टाइगर रिजर्व तक फैला यह प्रोजेक्ट एटीआर आरज़ू का इम्तिहान साबित होने वाला था. इनमें से कई टाइगर रिजर्व ऐसे थे जहां के बाघ इंसानों के आदी भी नहीं हुए थे. आरज़ू बताती हैं, "आप मिजोरम का डाम्पा टाइगर रिजर्व देखें तो वहां शायद ही कोई जाता हो. या कन्याकुमारी का कलाक्कड़ टाइगर रिजर्व देखिए. ये वे टाइगर रिजर्व हैं जो टूरिस्ट लिस्ट में नहीं होते. ऐसे में यहां के बाघ बहुत शर्मीले होते हैं और इंसानों के सामने आने से कतराते हैं."

करीब चालीस हजार किलोमीटर का सफर तय करके आरज़ू ने सात महीने में प्रोजेक्ट एटीआर खत्म किया. सिर्फ किलोमीटर और महीनों के हिसाब से अगर आप प्रोजेक्ट एटीआर की मुश्किल का अंदाजा नहीं लगा पा रहे हों तो इसमें यह बात और जोड़ लें कि देश के एक कोने से दूसरे कोने तक का यह सफर एक लड़की ने तय किया.

वे देश भर में फोटोग्राफी की वर्कशॉप करके नए सीखने वालों को कैमरे की तकनीक सिखाती हैं. पर कोई जंगल क्यों जाए? आरज़ू बहुत सुंदर जवाब देती हैं, "आप जंगल से ठीक वैसे ही नहीं लौटते जैसे आप जाते हैं. आपके भीतर दया और दूसरों के लिए प्यार बढ़ जाता है."

हिंदी के कवि कुंवर नारायण की एक कविता की आखिरी चार पंक्तियां ठीक वही बात कहती हैं: ...अबकी बार लौटा तो/ हताहत नहीं/ सबके हिताहित को सोचता /पूर्णतर लौटूंगा..

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