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सांस्कृतिक निर्यात में कैसे बढ़ रहा है भारत का दबदबा?

भारतीय कला के प्रति बढ़ती दिलचस्पी लगतार निवेश और परस्पर सहयोग की जरूरत रेखांकित करती है ताकि दोनों पक्ष एक-दूसरे को प्रेरित कर इसे आगे ले जाएं

इलस्ट्रेशन: नीलांजन दास
इलस्ट्रेशन: नीलांजन दास
अपडेटेड 29 अगस्त , 2024

भारत हलचल भरा कॉस्मोपोलिस है, जहां हर चीज हर जगह एक साथ हो रही है. भारतीय और भारतीय मूल के नायक यहां ही नहीं बल्कि दुनिया भर के सांस्कृतिक, कारोबारी और राजनैतिक परिदृश्य में फल-फूल रहे हैं. भारत की सांस्कृतिक धरोहर और विरासत की गहरी जड़ें प्राचीन परंपरा में हैं.

यह वैश्विक धारणाओं को गढ़ने और रचनात्मक सिनर्जी को बढ़ावा देने का अद्वितीय अवसर देता है. विकासशील देशों में भारत की प्रधानता दूसरे देशों के साथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करने में बहुत ज्यादा अहम है. ऐसे आपसी सहयोग दोतरफा रिश्तों को बढ़ाते हैं और कला की समावेशी व समतापूर्ण दुनिया बनाने के अवसर निर्मित करते हैं.

भारतीय कला बाजार इस वक्त अपने सबसे मजबूत दौर में है, जब अमृता शेर-गिल, एस.एच. रजा, राजा रवि वर्मा और वी.एस. गायतोंडे सरीखे मशहूर कलाकारों की कृतियों की नीलामी के रिकॉर्ड टूट रहे हैं. समकालीन कला की बिक्री भी बढ़ रही है और उसके समानांतर दक्षिण एशियाई कला में वैश्विक संस्थाओं की दिलचस्पी में भी इजाफा हो रहा है.

दुनिया भर के जाने-माने संग्रहालयों में भारतीय कलाकारों की कृतियां अब पहले से कहीं ज्यादा प्रमुखता से दिखाई देती हैं. मैं निश्चित रूप से मानती हूं कि भारतीय और दक्षिण एशियाई कला के प्रति संस्थाओं, निजी संग्रहकर्ताओं और फाउंडेशनों की सालों की प्रतिबद्धता के नतीजे आखिर अब दिख रहे हैं.

यह 60वें वेनिस बिएनाले में प्रस्तुत कलाकारों की संख्या से जाहिर है. साथ ही, फिलहाल दक्षिण भारतीय कलाकारों को प्रदर्शित करने वाली सांस्थानिक प्रदर्शनियों में न्यूयार्क में हुमा भाभा की कृतियां प्रदर्शित करने वाली पब्लिक आर्ट फंड, रकीब शॉ को पेश करने वाली म्यूजियम ऑफ फाइन आर्ट, ह्यूस्टन, यॉर्कशायर स्कल्प्चर पार्क में भारती खेर की भव्य प्रदर्शनी और अन्य शामिल हैं.

किरण नाडर

पश्चिमी कला बाजार को विकसित होने में सदियां लगीं. इसके विपरीत भारतीय कला बाजार उसके मुकाबले अभी युवा है. मौलिक कलाकृतियों को अपने रहन-सहन में शामिल करने की संस्कृति बनिस्बतन नई अवधारणा है, पर तेजी से जोर पकड़ रही है. संस्कृति मंत्रालय और दूसरी सरकारी संस्थाओं ने विभिन्न सांस्कृतिक उत्सवों, प्रदर्शनियों और धरोहर का संरक्षण करने वाली परियोजनाओं को सहारा दिया है. 

कला का बदलता परिदृश्य

इन उपलब्धियों के बावजूद हम भारत के सांस्कृतिक निर्यात को कई गुना बढ़ाने और उसकी वैश्विक हैसियत में इजाफा करने के लिए और बहुत कुछ कर सकते हैं. बीते कुछ साल में कला, फोटोग्राफी और डिजाइन की नई सांस्कृतिक और सर्जनात्मक जगहों के उभरने के साथ कला के परिदृश्य में काफी बदलाव आया है. सबसे ज्यादा जश्न मनाने लायक बात यह है कि कई निजी संगठनों, फाउंडेशनों और संस्थाओं ने दक्षिण एशियाई कला को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने का बीड़ा उठाया है.

सेरेंडिपिटी आर्ट्स फेस्टिवल और कोच्चि बिएनाले लगातार कमाल की प्रदर्शनियां प्रस्तुत कर रहे हैं. कारोबारी और परोपकारी सुनील मुंजाल की आने वाली पहल बृज के अलावा मुंबई में नीता मुकेश अंबानी कल्चरल सेंटर और बेंगलूरू में एमएपी सरीखी कई संस्थाएं इस काम में बढ़-चढ़कर योगदान दे रही हैं. इसके अलावा, इंडिया आर्ट फेयर ने लगातार दुनिया भर के कलादीर्घा संचालकों, क्यूरेटर और कला संग्राहकों को साथ लाने में भूमिका निभाई है. अभी हाल ही में आर्ट मुंबई ने भी इस क्षेत्र में अपनी दक्षता साबित की है.

ये पहलकदमियां जीवन के हर क्षेत्र में कला के समावेश की तरफ इशारा करती हैं. इस बढ़ती दिलचस्पी से हमारे समाज में कला की अहमियत को सामूहिक मान्यता मिलने की झलक मिलती है. साथ ही यह इस क्षेत्र में एक दूसरे को प्रेरित करने व आगे बढ़ाने के लिए लगातार निवेश करने और साथ मिलकर काम करने की जरूरत पर बल देती है.

इस सबने हमें स्वतंत्र रूप से संचालित संग्रहालय और सांस्कृतिक केंद्र बनाने की महत्वाकांक्षाओं को प्रोत्साहित किया, जो इस दिशा में आगे बढ़ते अहम कदमों का परिचायक है. नया ठिकाना इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के रास्ते में बड़े और मुख्य भूभाग पर फैला है. अब से तीन साल बाद जब यह खुलेगा, प्रेक्षकों के व्यापक फलक के साथ यह विचारों और वार्तालाप का संगमस्थल और खोज का मुकाम होगा. नया केएनएमए दृश्य कलाओं, संगीत, नृत्य और रंगमंच का ठिकाना होगा, जहां प्रदर्शनियां, स्थायी प्रदर्शन और प्रस्तुतियां आयाजित की जाएंगी.

सामूहिक प्रयास

भारत की कला और संस्कृति को बढ़ावा देना सामूहिक उद्यम है, जिसमें सरकार, सांस्कृतिक संस्थाएं, कला व संस्कृति समुदाय और संरक्षक शामिल हैं. वैश्विक मंच पर भारत की सांस्कृतिक मौजूदगी को प्रोत्साहन देने और बढ़ाने के लिए साथ मिलकर काम करते हुए हम देश की छवि, प्रभाव और प्रतिष्ठा को काफी ऊंचा उठा सकते हैं. सभी आयु वर्गों में कला की शिक्षा को बढ़ावा देकर हम देश के रूप में अपनी ताकत बढ़ा सकते हैं, ठीक उसी तरह जैसे पश्चिम में किया जाता है.

हमारे देश के बच्चों को उच्च गुणवत्ता की कला कार्यशालाओं और कार्यक्रमों की वह सुलभता मिलनी ही चाहिए. यह बच्चों की नई पीढ़ी को न केवल कला से जोड़ेगा बल्कि कुछ ज्यादा बड़े सपने देखने और इसे समानांतर दुनिया की तरह नहीं बल्कि अपनी पहुंच में मौजूद चीज की तरह बरतने की ताकत देगा, जहां वे कला में भविष्य तलाशने पर विचार कर पाएंगे.

भारतीय कलाकारों और सांस्कृतिक परियोजनाओं को लगातार समर्थन देकर हम अपनी समृद्ध धरोहर को सॉफ्ट पावर के अहम रूप की तरह सान पर चढ़ा सकते हैं. इस विकसित होते परिदृश्य में रास्ता बनाते हुए हम ज्यों-ज्यों आगे बढ़ रहे हैं, भारत के सांस्कृतिक निर्यात की वैश्विक मंच पर चिरस्थायी छाप छोड़ने की क्षमता रोमांचक और आशाजनक, दोनों है. इसे अपनाने का मतलब ज्यादा परिपूर्ण और आपस में जुड़े वैश्विक सांस्कृतिक संवाद में योगदान देना होगा. मुझे यकीन है कि सांस्कृतिक राजनय को ज्यादा से ज्यादा महत्व देने वाली दुनिया में पहला कदम उठाना भले कभी-कभी सबसे मुश्किल होता हो, लेकिन पुरस्कार चिरस्थायी होते हैं.

- किरण नाडर

लेखिका किरण नाडर म्यूजियम ऑफ आर्ट (केएनएमए) की संस्थापक हैं

लंबी छलांग

> भारतीय कला बाजार फिलहाल अपने सबसे मजबूत दौर में है, जहां मशहूर कलाकारों की कृतियों की नीलामी के रिकॉर्ड टूट रहे हैं. समकालीन कला की बिक्री भी बढ़ रही है.

> सरकार ने विभिन्न सांस्कृतिक महोत्सवों, प्रदर्शनियों और धरोहरों के संरक्षण की परियोजनाओं को सहारा दिया है और निजी संगठनों ने भी दक्षिण एशियाई कला को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने का बीड़ा उठाया है.

> हमें सभी आयु वर्गों में कला की शिक्षा को भी बढ़ावा देना चाहिए.

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