अपने दोनों कार्यकाल में मोदी सरकार ने आदिवासी समुदायों के कल्याण पर काफी ध्यान दिया है. इसी का नतीजा है कि आदिवासी मामलों के मंत्रालय का बजट आवंटन 190 फीसद बढ़ा है, जो वित्त वर्ष 2014 में 4,295.94 करोड़ रुपए से बढ़कर वित्त वर्ष 2024 में 12,461.88 करोड़ रुपए पर पहुंच गया.
मंत्रालय इस पैसा का इस्तेमाल आदिवासी समुदायों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोजगार के बेहतर अवसर पैदा करने में करता है. बतौर उदाहरण, दूरवर्ती क्षेत्रों में स्थापित एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों में मौजूदा समय में 1,20,000 से अधिक छात्र पढ़ाई कर रहे हैं.
आदिवासियों के लिए कौशल प्रशिक्षण और भूमि अधिकार संबंधी पहलों के अलावा मंत्रालय प्रधानमंत्री जनजातीय विकास मिशन के माध्यम से लघु वन उपज के लिए एमएसपी और आदिवासी उत्पादों के लिए विपणन सहायता भी मुहैया कराता है. कुल 1,83,412 आदिवासी इस योजना से जुड़े हैं.
पीएम ने पिछले वर्ष खासकर निर्बल आदिवासी समूहों के विकास के उद्देश्य से करीब 24,000 करोड़ रुपए के बजट के साथ प्रधानमंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महाअभियान शुरू किया था. इसका उद्देश्य सबसे हाशिये पर मौजूद आदिवासियों को विकास से जोड़ना है.
ऐसे 75 समूह 18 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 22,544 गांवों में बसे हैं, जिनकी आबादी करीब 28 लाख है. इसके जरिए दूरदराज और दुर्गम क्षेत्रों में जहां-तहां बसे जनजातीय समुदायों के लिए सड़क, दूरसंचार, बिजली, सुरक्षित आवास, स्वच्छता और स्वच्छ पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित करना है, जिससे गरीब से गरीब व्यक्ति को भी मुख्यधारा से जोड़ा जा सके.
क्या किया जाना चाहिए
आदिवासी भूमि एवं संसाधन अधिकार आदिवासी अधिकारों की रक्षा के लिए कानून हैं लेकिन उन पर अमल सुनिश्चित करने के लिए सुधार की जरूरत है
शिक्षा मानकों में सुधार आदिवासी क्षेत्र के स्कूलों में न्यूनतम शिक्षण सामग्री की उपलब्धता के साथ देशज भाषाओं में पढ़ाई के प्रावधान की जरूरत है
आदिवासी पहचान की रक्षा तेजी से हो रहे शहरीकरण के बीच आदिवासी संस्कृति की रक्षा के लिए उपयुक्त कदम उठाने होंगे. सरकार को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि गैर-आदिवासी आबादी के बीच आदिवासी संस्कृति का सम्मान किया जाए
पुनर्वास सहायता विकास कार्यों के कारण जो लोग अपनी जमीन गंवाते हैं, उनके पुनर्वास के दौरान संसाधन मुहैया कराने के साथ विस्थापन के मनोवैज्ञानिक प्रभाव के प्रति भी बेहद संवेदनशील रुख अपनाया जाए
जुएल उरांव, 63 वर्ष भाजपा, जनजातीय मामलों के मंत्री
शुरुआत
> जुएल उरांव का जन्म ओडिशा के सुंदरगढ़ जिले के एक गरीब आदिवासी परिवार में हुआ. इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमाधारी उरांव ने 1989 में भाजपा में शामिल होने से पहले छह साल तक बीएचईएल के साथ काम किया. वे 1998 तक दो बार विधायक भी रहे.
पहले मंत्री
> 1999 में सुंदरगढ़ से छठी बार सांसद बने उरांव को तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी के बनाए केंद्रीय आदिवासी मामलों के मंत्रालय में पहला मंत्री बनाया गया था. अब वे फिर उसी भूमिका में हैं.
दुर्गादास उइके, 61 वर्ष भाजपा, जनजातीय मामलों के राज्यमंत्री
> आरएसएस से पुराना नाता मध्य प्रदेश में एक स्कूल में शिक्षक रहे उइके बाद में आरएसएस के लिए काम करने लगे. राज्य के बैतूल निर्वाचन क्षेत्र से सांसद उइके पूर्व में मंत्रालय की परामर्श समिति के सदस्य रह चुके हैं.