अयोध्या के नए राम मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा के पांच महीने बाद अब वहां भाजपा की हार के खलनायक तलाशे जा रहे हैं. पर यह रामकथा ढर्रे से थोड़ी अलहदा है. इसमें खल किरदार पूजा में नारियल कम पड़ने पर अपना सिर ही शिव को अर्पित करता है. बैकग्राउंड में कैलाश खेर गूंजते हैं: महादेव साधक/पराक्रम का मानक/धरा से गगन तक/दिशाओं की धक-धक/ दशानन दशानन.
दर्शकों की गहरी जिज्ञासा की जद में हैं रावण बने मशहूर अभिनेता आशुतोष राणा. अपनी चाल, दैहिक भंगिमाओं और काव्यात्मक संवादों के आरोह-अवरोह पर गहरी कमान के साथ वे भी बीच-बीच में दर्शकों से जैसे पूछते हैं: ''पंच ठीक रहा!'' समुद्र तट पर रावण खुद सीता को राम के बगल में बिठाकर बतौर पंडित यज्ञ कराता है.
वह सीता को इस हिदायत के साथ अशोक वाटिका से लाया है कि राघव से बात नहीं करना, नैनों से अथवा वाणी से. इसी तरह पति के हत्यारे रावण से बदला लेने के लिए शूर्पनखा का बनवासी राम के पास पहुंचना.
दिल्ली के फेलिसिटी थिएटर ग्रुप का तीन घंटे का नाटक 'हमारे राम' इन दिनों खासा चर्चित हो रहा है. 22 जून को अहमदाबाद में इसका 50वां शो है. इसके प्रोड्यूसर और राम का किरदार कर रहे राहुल भुचर की मानें तो अगले अप्रैल तक इसके 155 शो देश भर के शहरों में प्लान हो चुके हैं. कंप्यूटर ग्राफिक इमैजिनेशन (सीजीआई), खेर के अलावा सोनू निगम और शंकर महादेवन की गायिकी और इसी पाए की लाइट और साउंड डिजाइन.
पॉपुलर ऑडियंस को खींचने वाले तमाम एलिमेंट मौजूद हैं इसमें. महज संयोग ही था कि दो साल की तैयारी के बाद पूरी तरह से कविता में रचा गया, पौराणिक कथानक वाला यह म्यूजिकल कॉस्ट्यूम ड्रामा 22 जनवरी को अयोध्या में प्राण-प्रतिष्ठा के आसपास ही दिल्ली में शुरू हुआ. और अब विदेशों में भी ले जाने की बात चल रही है. दिलचस्प है कि इसके टिकट 500-600 से लेकर 12,000 रु. तक में बिके हैं.
पौराणिक कथानक वाला फेलिसिटी का एक और नाटक महाभारत—अभिनेता पुनीत इस्सर निर्देशित—भी अगली 7 जुलाई को सौ शो पूरे करने जा रहा है. भुचर बताते हैं कि किसके महादेव नाम से एक और प्ले की तैयारी है. उसमें भी मुख्य किरदार देश के एक चर्चित अभिनेता करने वाले हैं, हालांकि वे उनका नाम जाहिर नहीं करते. राणा सरीखे एक बुलंद अभिनेता को थिएटर में फिर खींच लाने पर वे कहते हैं: ''अभी तो देखते जाइए. रावण के बाद वे दूसरे नाटकों में राम का और कृष्ण का भी किरदार करेंगे.''
हमारे राम और अपने ऐसे ही दूसरे कामयाब कमर्शियल नाटकों के जरिए भुचर यह मैसेज देने की कोशिश में हैं कि थिएटर का कलाकार नाटक करते हुए अच्छे ढंग से अपनी जिंदगी चला सकता है. उसे सिनेमा के सामने मजबूर होने की कतई जरूरत नहीं. मंशा अच्छी है. देखें यह संदेश कितनों तक पहुंचता है.