जहां से नजदीकी एअरपोर्ट प्रयागराज और वाराणसी डेढ़ सौ से दो सौ किमी पर हों, सबसे पास का रेलवे स्टेशन रीवा भी 70 किमी के जटिल भूगोल की दूरी पर हो, ऐसे कस्बेनुमा शहर में अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव! मध्य प्रदेश के उत्तर पूर्व में छत्तीसगढ़ और यूपी के दूरदराज के घने जंगली इलाकों से सटे सीधी में दर्जन भर से ज्यादा देशी-विदेशी फिल्मकार भी कुछ इसी तरह से हैरतजदा थे.
और फिर 10-15 की उम्र वाले वे बच्चे: आपने यह फिल्म क्यों बनाई? आप डॉक्यूमेंट्री ही क्यों बनाते हैं? आपको इसका आइडिया कहां से मिला? कोई भी फिल्म खत्म होते ही उसके डायरेक्टर से कच्चे-पक्के सवालों की बौछार. कई दफा एक ही सवाल दो मिलकर दाग रहे थे. 'जवाब दे तो चुका,’ ऐसा कहे जाने पर वे भी मासूमियत से बोल देते: अच्छा ठीक है.
रसीले महुए और खनन माफिया के लिए ख्यात/कुख्यात सीधी 5-7 जनवरी तक विंध्य इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के तहत कई गुदगुदाते वाकयों का गवाह बन रहा था. इंतजामिया टीम की ही प्रियंका का प्यारा-सा शिकवा था, "विदेशी तो ठीक है, यहां वाले भी अंग्रेजियै में बोलते हैं! काहे भाई? हमको तो नए और विचारों वाले सिनेमा के लिए ऑडियंस बनानी है. बुलाकर लाते हैं. फिर सुनना पड़ता है कि समझ में नहीं आ रहा." सैलानी किस्म के अमेरिकी प्रोड्यूसर रिचर्ड सिल्वर टी ब्रेक के दौरान कन्नड़ फिल्मकार गौरी श्रीनिवासन से कोंचते हुए पूछते हैं, "स्टेज पर आपका नाम ठीक से बोला था?" वे लंबी स्माइल के साथ हुंकारी भरती हैं.
पास ही युवा दर्शकों का एक तबका देखी फिल्मों पर बघेली में बतिया रहा है. एक स्कूल से आए 15-20 छात्रों ने मध्य प्रदेश के ही रतलाम के फिल्मकार रोहित पाटीदार को घेर लिया है. वे थोड़ी देर पहले ही दिखाई गई उनकी शॉर्ट फीचर पापी के बारे में और कुछ जानना चाह रहे हैं.
शहर के अक्षत होटल से लगे कैंपस और चपटे-से आयताकार हॉल में इस फेस्ट का यह पांचवां साल था. महानगरों के किचकिचिया कोलाहल और बनावटीपन से दूर यहां का आत्मीय और अंतरंग माहौल फिल्मकारों को भा रहा है.
तीन दिन में देश-विदेश और मध्य प्रदेश की 14-15 फिल्में दिखाई गईं. तमिल फिल्मकार अमू धवन ने अपनी चर्चित फिल्म वी3 की नायिका का नाम विंध्या रखा था क्योंकि उसकी मुख्य अभिनेत्री पावना गौड़ा उन्हें दो साल पहले इसी फेस्ट में मिली थीं. जातिवाद पर अगली फिल्म शूट करने को अब वे यहीं लोकेशन देख रहे हैं.
एसआरएफटीआइ के छात्र पाटीदार इसी माहौल को रेखांकित करते हैं, "यहां फिल्मकार-दर्शक सब बेतकल्लुफ होकर मिलते हैं. शॉर्टफिल्ममेकर्स को भी अपनी बात रखने का मौका मिलता है. दूसरे फेस्टिवल्स में ऐसा नहीं हो पाता." हां, बेहतर स्क्रीनिंग स्पेस एक समस्या है. फेस्ट के डायरेक्टर प्रवीण सिंह चौहान और संयोजक नीरज कुदेर इससे वाकिफ हैं. 15 जनवरी को खरमास खत्म होते ही छठे उत्सव के लिए एंट्रीज खुलेंगी. उम्मीद है अगले साल पर्दा नए परिवेश में सजेगा.