दिल्ली में दिसंबर की रात और कदमताल करती रेशमी ठंड मिलकर एक अजीब सा लबादा तैयार किए बैठी हैं. दिल्ली के वसंत कुंज का एक रिहाइशी फ्लैट. इसी पते पर दिल्ली-एनसीआर से कुछ लोग पहुंच रहे हैं. सभी के पास एक नाम है 'ब्लू मटीरियल’. अपने-अपने पेशे को साध चुके ये लोग 'ब्लू मटीरियल’ की उस गुत्थी को सुलझाने की मंशा के साथ पहुंच रहे हैं, जो 'ऑल दलित लाइन अप’ की टैगलाइन से और गहरी मालूम पड़ती है. गिनती के बीस लोग.
ज्यादातर एक-दूसरे से बिल्कुल अनजान. प्रोफेसर, एक्टिविस्ट, आइटी प्रोफेशनल, थिएटर आर्टिस्ट, फुटबॉलर...पहली नजर में उनमें कोई बात एक जैसी नहीं दिखती. सिवाय इस बात के कि यह छोटी सी जुटान हंसने के नाम पर इकट्ठी हुई है. यह 'ब्लू मटीरियल’ का स्टैंड-अप कॉमेडी 'हाउस शो’ है. हफ्ते के कामकाजी दिन रखे गए इस हाउस शो की मेजबान दरवाजे पर अचकचाते, ठिठक कर भीतर देखते मेहमानों से उनके सही पते पर पहुंच आने की तस्दीक करती हैं.
रात आठ बजे शुरू होने वाले इस शो के लिए ठीक आठ बजे भी परफॉर्मर्स के चेहरे पर कोई जल्दी नहीं दिखाई देती. इसकी वजह थोड़ी देर बाद शुरू हुए शो के पहले कुछ मिनटों में ही समझ में आ जाती है. ''सोसाइटी में अंकल लोग का फेवरेट गेम क्या होता है?’’ इस सवाल के साथ रवि अपने खांटी मराठी अंदाज में माइक पर आते हैं. ''कैंडी क्रश?’’ ना. ''मेरे से कल एक अंकल ने नाम पूछा, मैंने कहा रवि...फिर वो अंकल कहते हैं 'रवि के आगे क्या?..’ मैंने कहा रवि गायकवाड़...अंकल फुल मज्जे में ताली मारकर कहते हैं, 'तुझा एससी अहात (तुम दलित हो)’...सरनेम से एससी बताने का गेम कैंडी क्रश से भी पुराना है.’’ ठहाके. रवि की इस बात से इंतजार और बेचैनी का लंबा बही-खाता खुलता है.
फरवरी 2022 में ब्लू मटीरियल की शुरुआत करने वाले 26 साल के मनाल पाटिल एडवर्टाइजिंग ग्रेजुएट हैं और फिलवक्त विज्ञापन लिखते हैं. मनाल और रवि कुछ साल से स्टैंड-अप कॉमेडी कर रहे हैं. ब्लू मटीरियल क्यों? दोनों कहते है, ''क्योंकि जाति के नाम पर भेदभाव, छुआछूत और गैर-बराबरी पर बात नहीं हो रही थी. हम कोई क्रांति नहीं ला रहे. हम बस अपनी कहानी बता रहे हैं. वही कहानी, जो बाकियों ने देखी है, लेकिन हमने भुगती है.’’
इनके लतीफों में आंबेडकर, छुआछूत, गैर-बराबरी, पॉर्न और मास्टरबेशन बराबर मात्रा में मौजूद हैं. इन जोक्स पर जो हंसे, वे भांपना चाह रहे थे कि वे गलत तो नहीं हंसे. और जो नहीं हंसे, वे कान सहलाते हुए अपना 'ह्यूमर मीटर’ दुरुस्त करने की कोशिश में अगल-बगल से सुर उठाते हैं. रवि कहते हैं, ''इंडिया में दलित कॉमेडी नई लगती है. लेकिन ये नाइंटीज में अमेरिका में बहुत चल चुकी है. ऑल ब्लैक कॉमेडी तब रेसिज्म पर बात करने का सबसे उम्दा हथियार था. जब ऑल ब्लैक कॉमेडी हो सकती है तो ऑल दलित कॉमेडी क्यों नहीं?’’
एक जोक में जब मनाल बारहवीं में कम मार्क्स आने पर आगे एडमिशन नहीं मिलने की चिंता अपने पिता से जाहिर करते हैं, तो पिता कहते हैं हमारे पास एक सुपरपावर है. क्या? रिजर्वेशन. ''तू पिज्जा ऑर्डर कर, पिज्जा आने से पहले तेरे को एडमिशन मिल चुका होगा.’’ यह सुनकर ठहाके लगाते लोग इस जोक का मतलब तब तक नहीं समझ पाते जब तक मनाल आखिर में यह नहीं कहते कि जब मैंने पिता से अंग्रेजी में कहा कि यह तो बाकी के लोगों के साथ गलत है, तब पिता कहते हैं, ''अंग्रेजी मत झाड़, मुझे रिजर्वेशन मिला इसलिए तेरे को अंग्रेजी आती है.’’
रवि और मनाल स्टैंड-अप कॉमेडी को जाति के चश्मे से देखने के खतरों से अनजान नहीं हैं. दोनों कहते हैं कि ''बहुत बार बहुत से दोस्त और जानने वाले समझाते हैं कि कॉमेडी में जाति और गैर-बराबरी पर बात करने से हमारा करियर खत्म हो जाएगा. और हमने इसका असर देखा है जब हमारे पुराने वीडियो देखकर हमें स्टेज देने से मना कर दिया गया.’’
ब्लू मटीरियल ने जातिगत भेदभाव पर बातचीत को कॉमेडी में किस कदर साध लिया है, इसकी बानगी माइक थामे अगला एक्ट करते राधेकृष्ण राम देते हैं. अपने नाम पर ठहाके लगवाकर अगले ही मिनट जब राधेकृष्ण कहते हैं कि बराबरी नुक्सान पहुंचाती है, तब दर्शक भौंहें सिकोड़ते हैं. राधेकृष्ण कहते हैं, ''गांव में तो मैं जो भी छू देता था वो मेरा हो जाता था, लेकिन दिल्ली में मेरी बाल्टी से लोग पानी चुरा ले जाते हैं.’’
सन्नाटा. वे मुस्कुराते हुए कहते हैं, ''मैं अपनी जाति की वजह से कबड्डी में चैंपियन बन गया था, क्योंकि कोई मुझे छूता ही नहीं था!’’ लोग हंसते हुए बगलें झांकने लगते हैं. महाराष्ट्र के बीड से आने वालीं अंकुर तांगड़े ब्लू मटीरियल की सदस्य होने से पहले महिला किसानों के अधिकारों के लिए आवाज उठाती थीं. छत्तीसगढ़ के बस्तर से आने वाले मंजीत सरकार ब्लू मटीरियल के सदस्यों में से एक हैं. मंजीत कहते हैं, ''गांव में मेरे छुए नल को गंगाजल से साफ किया गया है. आप मुझसे या मुझ जैसों से किस कहानी की उम्मीद करते हैं.’’ हंसी और भेदभाव की त्रासदी के बीच ब्लू मटीरियल में अभी तक हंसी का पलड़ा भारी है.
बीते दो साल में इस 'ऑल दलित स्टैंड-अप कॉमेडी गैंग’ ने भारत के कई शहरों में दर्जनों शो किए हैं. मुंबई में इनके पहले कामयाब शो से लेकर दिल्ली के हालिया शो तक ब्लू मटीरियल ने जो असर उपजाया है, उसे पसंद-नापसंद करने वालों के अपने तर्क हो सकते हैं, लेकिन इस 'ब्लू कॉमेडी’ के असर को नजरअंदाज तो नहीं ही किया जा सकता है.