
राम वनजी सुतार जैसा दूसरा कोई नहीं. 99 साल की उम्र के राम सुतार संभवत: सबसे बुजुर्ग मूर्तिकार हैं जो अब भी मूर्तियां ढाल रहे हैं. अगर आकार मूर्तिकार की योग्यता का अकेला पैमाना हो तो शायद उन्हें महानतम माना जाएगा. हमारे वक्त में राम सुतार के अलावा भला कौन यह दावा कर सकता है कि उसने सबसे ज्यादा आदमकद प्रतिमाएं बनाई हैं?
पद्म भूषण से सम्मानित सुतार 14 अक्टूबर को अमेरिका के मैरीलैंड में उनकी बनाई 19 फुट ऊंची आंबेडकर की प्रतिमा के अनावरण के साथ एक बार फिर खबरों में थे. हालांकि सुतार के विशाल पैमाने से यह बहुत छोटी प्रतिमा है, पर इसे भारत के बाहर भारतीय संविधान के निर्माता की सबसे बड़ी प्रतिमा करार दिया गया.
2018 में सुतार गुजरात में सरदार वल्लभभाई पटेल की 597 फुट की कांस्य प्रतिमा स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का निर्माण करके रातों-रात अंतरराष्ट्रीय शख्सियत बन गए थे. यह दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है. सुतार 1994 से अपने बेटे अनिल राम सुतार के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. अनिल ने वाशिंगटन यूनिवर्सिटी इन सेंट लुइस से आर्किटेक्चर और अरबन डिजाइन की पढ़ाई की है. मकेट यानी मूर्तिकारिता के शुरुआती मॉडल और स्केच का काम अब बेटा करता है, फिर भी पिता रोज स्टूडियो आते और देखरेख करते हैं. नोएडा के सेक्टर-63 में किसी इंडस्ट्री जितना विशाल स्टूडियो 3डी स्कैनर, रोबोट, क्रेन और प्रतिमाएं बनाने के लिए थर्मोकोल को काटने वाली छह सीएनसी मशीनों से लैस है.
सुतार की बनाई मूर्तियां दुनिया भर में मिल सकती हैं. उनकी बनाई महात्मा गांधी की प्रतिमाएं दुनिया भर के 450 शहरों में स्थापित हैं. एक ईमेल इंटरव्यू में सुतार ने खुद अपनी असाधारण कृतियों की फेहरिस्त बताई: स्टैच्यू ऑफ यूनिटी, बेंगलूरू अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर केंपे गौड़ा की प्रतिमा, हैदराबाद में बी.आर. आंबेडकर की 125 फुट ऊंची प्रतिमा, पुणे में छत्रपति शिवाजी महाराज की 100 फुट ऊंची प्रतिमा. अलबत्ता संसद भवन के लिए विराजमान और विचारमग्न गांधी की प्रतिमा उनकी सबसे प्रतिष्ठित कृति मानी जाती है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते ही पटेल की विशाल मूर्ति की परियोजना पर जोर दिया था. 31 अक्टूबर, 2013 को उन्होंने इसकी नींव रखी. मोदी की प्रचंड जीत के बाद इसका निर्माण पक्का हो गया. दशकों पहले जब भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण ने उन्हें एलोरा की मूर्तियों के जीर्णोद्धार का काम सौंपा, सुतार पर जवाहरलाल नेहरू की नजर पड़ी.
एक सुंदर युवती के रूप में अपने दो बेटों मध्य प्रदेश और राजस्थान को अपने से सटाए सजीली युवती के रूप में चंबल नदी की 45 फुट ऊंची प्रतिमा देखने के बाद नेहरू उनसे बहुत प्रभावित हुए. उन्होंने सुतार को भाखड़ा नांगल बांध का निर्माण करते वक्त जीवन का बलिदान देने वाले कामगारों को समर्पित 50 फुट का कांस्य स्मारक बनाने का काम सौंपा. प्रतिमा की थीम 'श्रम की विजय' होनी थी, पर पैसों की कमी से ठंडे बस्ते में चली गई.

सुतार मायावती के प्रिय थे. जब वे उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं, उन्होंने सुतार को दलित महापुरुष बी.आर. आंबेडकर की प्रतिमा बनाने का काम सौंपा और ऐसी 'शुभ' समय सीमा तय की, जिसे पूरा करना नामुमकिन था. पूरी होने पर मायावती ने मूसलाधार बारिश के बावजूद प्रतिमा तुरंत स्थापित करने की मांग की. आखिरकार रात 11.30 बजे 'अनुचित' समय पर जब यह कष्टसाध्य कवायद पूरी हुई, तो मायावती ने खुशी-खुशी माल्यार्पण किया. कितने मूर्तिकार ऐसी सनकें बर्दाश्त करेंगे?
न ही कई कलाकार सरकारी निविदा के लिए सबसे कम रकम भरने को तैयार होंगे. सुतार की मानें तो केवल एक बार- मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्रित्व काल में गांधी की प्रतिमा पर काम करते हुए- उन्हें एक ही मूर्ति के लिए दो निविदाएं भरने के अपमान से गुजरना पड़ा, एक मिट्टी की प्रतिमा बनाने के लिए और दूसरी उसे ढालने के लिए. सतत गुणवत्ता के लिए आम तौर पर एक ही मूर्तिकार दोनों काम करता है.
सीधे-सादे और विनम्र सुतार इसलिए टिके रहे क्योंकि राजनीति की कीचड़ भरी गलियों से गुजरते हुए वे अपने हाथ साफ-सुथरे रख पाए. छह दशक लंबे करियर में वे भारत के सबसे जाने-माने 'सरकारी' मूर्तिकार रहे हैं. वे केंद्र की तकरीबन हर सरकार के पसंदीदा रहे.
महाराष्ट्र के धुले जिले के गोंदुर में फरवरी 1925 में जन्मे सुतार विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय (डीएवीपी) में मॉडलर की नौकरी मिलने पर 1959 में दिल्ली आए. उनका जन्म पारंपरिक दस्तकारों के विश्वकर्मा समुदाय के निर्धन परिवार में हुआ था. धुले के शिक्षक प्रशिक्षक कॉलेज में ड्रॉइंग के अध्यापक श्रीराम कृष्ण जोशी की मदद से उन्होंने 1952 में मुंबई के सर जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट से मेयो स्वर्ण पदक के साथ ग्रेजुएट किया.
इंडिया टुडे के ग्रुप फोटो एडिटर बंदीप सिंह जब शूट के लिए सुतार के स्टूडियो गए तो बैठने के बजाए खड़ा रहना पसंद करने वाले इस नब्बे के ऊपर के शख्स की 'चुस्ती-फुर्ती' देखकर दंग रह गए. सिंह उनकी 'पारखी नजरों' से भी चकित थे, जो ऐसी थीं मानो ''थाह ले रही हों." सिंह कहते हैं, "स्टूडियो के विशाल कक्षों में भगवान जगह के लिए राजनैतिक नेताओं के साथ धक्का-मुक्की कर रहे थे. हनुमान की बगल में अटल बिहारी वाजपेयी खड़े थे. इंदिरा गांधी की बगल में सरस्वती खड़ी थीं. मूर्तियां निर्माण के अलग-अलग चरणों में थीं. चारों ओर बिखरे अंग अति यथार्थवादी लग रहे थे. मानो सृजन और संहार एक साथ चल रहा हो."
राम सुतार की अनगिनत मूर्तियों को तत्काल पहचाने जा सकने की खूबी हासिल है. वे नीरस होते हुए भी जिंदगी की तरह हैं, और क्यों न हों, तस्वीरों पर जो आधारित हैं. 1984 में पश्चिम बंगाल के मंत्री ने रामकिंकर बैज की बनाई रवींद्रनाथ टैगोर की प्रतिमा इसलिए नामंजूर कर दी थी क्योंकि यह कवि की तरह नहीं दिखती थी. राम सुतार पर कोई ऐसा आरोप नहीं लगा सकता. प्रतिकृति उनकी विशेषता है.
—सौमित्र दास