राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) पर छाया तमस हट गया है. फिलहाल. चितरंजन त्रिपाठी (52) के रूप में उसे पांच साल बाद स्थायी निदेशक मिला है. 6 अक्तूबर की दोपहर ढाई बजे जब वे विद्यालय परिसर में दाखिल हुए तो वहां का स्टाफ बदली हुई देहभाषा, मुस्कान और गुलदस्ते के साथ बहुत कुछ कह रहा था. लंबी और झेलाऊ देरी होने के बावजूद हुई यह नियुक्ति किसी को चौंकाने वाली न थी.
अभी दो महीने भी न बीते होंगे जब त्रिपाठी भीष्म साहनी के उपन्यास तमस पर इसी नाम से एनएसडी रंगमंडल के साथ नाटक तैयार कर रहे थे. महीने भर रिहर्सल हुई और 15 अगस्त को उसके प्रीमियर के दो दिन पहले आनन-फानन में उसे रद्द कर दिया गया. उसके विरोध में कथित तौर पर भाजपा के एक पूर्व सांसद के माहौल बनाने के बाद. वे बीमार पड़ गए. बताते हैं इसके पीछे ओथैलो के विलेन इयागो (ओमकारा के लंगड़ा त्यागी!) जैसे कुछ किरदार भी थे जो त्रिपाठी के निदेशक बनने की संभावनाओं को पलीता लगा रहे थे.
वैसे, विद्यालय पर से तमस भले हट गया हो लेकिन त्रिपाठी की वॉट्सएप डीपी से उस नाटक का पोस्टर अब भी नहीं हटा है. क्या नाटक होने के बाद ही इसे हटाएंगे? ''अरे! अभी भी लगा है? तो ठीक है होने के बाद ही हटाएंगे.’’ हंसी के साथ दिए इस जवाब में आप उनकी जिद को महसूस कर सकते हैं.
दोस्तों के बीच चित्तू भाई के नाम से जाने जाते त्रिपाठी की क्रिएटिव जिंदगी का पूरा सफर इस चुप्पी किस्म की जिद का गवाह रहा है. ओडिशा के दूरदराज के भद्रक जिले में वैतरणी नदी के किनारे बसे चांदबाली से वे इसी जिद पर सवार होकर 1993 में एनएसडी में तालीम लेने पहुंचे थे.
1996 में यहां से निकलने पर विद्यालय के तत्कालीन निदेशक रामगोपाल बजाज ने 1998 में उन्हें रंगमंडल के कलाकारों के साथ एक बिल्कुल नया हास्य-व्यंग्य नाटक ताजमहल का टेंडर करने को न्यौता. इतना कम उम्र रंगकर्मी निर्देशन करे, एनएसडी रंगमंडल के इतिहास में वह पहला (और शायद आखिरी!) प्रयोग था.
टेंडर की भारी कामयाबी के साथ त्रिपाठी ने बताया कि वे दिल्ली आ गए हैं और अब रुकेंगे. वे रुके. निर्देशक, संगीतकार, गायक, गीतकार, अभिनेता के रूप में. मुंबई गए. सिनेमा और सीरीज भी कीं. लेकिन थिएटर और दिल्ली नहीं छोड़ा. तेरा मेरा टेढ़ा-मेढ़ा नाम से फिल्म बनाई. लाखों डूबे पर पत्नी पूजा ने ऐसे हर मौके पर हौसला कभी गिरने न दिया.
स्थायी निदेशक के रूप में वे भारी उम्मीदों के जाजम पर उतरे हैं. मसलन, पर्याप्त और उम्दा फैकल्टी का प्रबंध, रंगमंडल में दो दशक पहले जैसी क्रिएटिव जीवंतता लाना, भारंगम को नई शक्ल देना और विद्यालय की नई प्रस्तावित इमारत पर काम तेज करवाना. उन्हें इसका इलहाम भी है.
टेक्नोलॉजी पर भी उनकी नजर है. ''एआइ का जमाना आ गया है. थिएटर के लिए यह गोल्डेन टाइम है. ठीक से हैंडल करने पर टेक्नोलॉजी वरदान है वरना दानव जैसी ताकत है.’’ बड़े गुरुओं की ट्रेनिंग प्रोसेस का डॉक्युमेंटेशन उनकी एक और प्राथमिकता रहेगी, जिसे रंग संपदा जैसा नाम दिया जा सकता है. फिलहाल वे एनएसडी संबंधी नियम-कानून/बाइलॉज बारीकी से पढ़ रहे हैं.
उन्हें बारीकी से समझने वाले उनके द्रोणाचार्य रामगोपाल बजाज उनकी नियुक्ति पर संयत टिप्पणी करते हैं, ''किसी नाटक, किरदार या स्थिति को देखने के चित्तू के नजरिए को आप बहुत इन्फ्लुएंस नहीं कर सकते. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकारी तंत्र और संघ परिवार के संगठनों के साथ वे कैसे बैलेंस बनाते हैं.’’
अपने कॉमेडी नाटकों के लिए जाने गए, वैतरणी के तटवासी त्रिपाठी आखिरी दृश्य गंभीर ही रखने के हामी रहे हैं. पांच साल बाद इसकी गंभीरता से समीक्षा होगी कि देश में नाट्य विधा के शीर्ष संस्थान एनएसडी की वे किस हद तक पार लगा पाए वैतरणी.
चितरंजन का मानना है कि ''एआइ का जमाना आ गया है. थिएटर के लिए यह गोल्डेन टाइम है. ठीक से हैंडल करने पर टेक्नोलॉजी वरदान है वरना दानव है.’’