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यूटीटी बन रहा है टेबल टेनिस का नया घर

भारत की प्रतिष्ठित अल्टीमेट टेबल टेनिस (यूटीटी) लीग तीन साल के ठहराव के बाद फिर से पूरी रंगत में

मटिल्डा एखोम
मटिल्डा एखोम
अपडेटेड 4 अगस्त , 2023

चार साल पहले की ही तो बात है. जूनियर टेबल टेनिस खिलाड़ी दीया चितले 2019 में 16 बरस की थीं. तब वे नई दिल्ली के त्यागराज स्टेडियम के स्टैंड में खड़े होकर भारत में इस खेल की प्रीमियर लीग अल्टीमेट टेबल टेनिस (यूटीटी) में मुकाबला कर रहे खिलाड़ियों की हौसला अफजाई किया करती थीं. अगले साल वे खुद पदार्पण करने के इंतजार में थीं लेकिन खौफनाक वायरस ने उनके सपने को तार-तार कर दिया.

तीन साल के अंतराल के बाद यूटीटी लौट आया है (13-30 जुलाई) और चितले आखिरकार अपने सूबे की टीम यू मुंबा के लिए खेलते हुए उसमें जौहर दिखा रही हैं. उन्हें हाल में भारत की एशियाई खेलों की टीम में भी शामिल किया गया है. अब 20 साल की हो चुकीं चितले की आवाज में खनक साफ झलकती है. उनके शब्दों में, ''यह मजेदार, तेज और फैन-फ्रेंड्ली फॉर्मेट है. यह उससे अलग है जो हम खेला करते थे. हर गेम मायने रखता है और कुछ भी हो सकता है. ऐसा नहीं कि आप हायर रैंक के खिलाड़ी हैं तो जीत ही जाएंगे.’’

बहुत-से लोग इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि 2017 में यूटीटी के शुरू होने के बाद भारत में टेबल टेनिस ने तरक्की की है. अचंत शरत कमल दस बार के राष्ट्रीय चैंपियन और एशियाई खेलों तथा कॉमनवेल्थ खेलों के पदक विजेता हैं. यहां वे चेन्नै लायंस टीम से खेल रहे हैं. वे बताते हैं कि 2017 में लीग के लॉन्च होने के बाद किस तरह भारतीय टीम की रैंकिंग में सुधार आया. इसके आखिरी संस्करण तक वह 24 से नौ पर आ गई.

''बीस साल पहले मैं ऐसे मौके की तलाश में विदेश गया कि विदेशी खिलाडियों के साथ रहकर ज्ञान हासिल कर सकूं. यूटीटी युवाओं को वह सब देता है. प्रतिभा की तलाश के जितने माध्यम हमारे पास हैं, यह उनमें सबसे अच्छे में से एक है.’’ पिछले संस्करणों में मानव ठक्कर और सुतीर्था मुखर्जी ने चमक बिखेरी. चौथे संस्करण में चितले, पायस जैन और अंकुर भट्टाचार्य सरीखे नौसिखुओं पर नजरें टिकी हैं.

भारत के टेबल टेनिस खिलाड़ियों की अगली पीढ़ी को मंच देने के अलावा यूटीटी विदेशी खिलाड़ियों और कोच से ताकत हासिल करता है. विश्व के 22 नंबर के खिलाड़ी मिस्र के उमर असर, विश्व नंबर 26 अमेरिका की लिली झांग और विश्व नंबर 17 नाइजीरिया के कादरी अरुणा 12 सदस्यों की अंतरराष्ट्रीय टुकड़ी का हिस्सा हैं. खिलाड़ियों का कहना है कि यूटीटी का अनुभव उनकी तरक्की में मददगार है.

बकौल कमल, ''विदेशी खिलाड़ियों को अपने घर में हराने से आत्मविश्वास बढ़ता है.’’ चितले कहती हैं, ''विदेशी खिलाड़ियों वाली टीम का हिस्सा होना, उन्हें मैचों के लिए प्रशिक्षण लेते देखना, उनसे सीखने और उनके खिलाफ खेलने का मौका मिलना हमारे लिए अच्छा अनुभव है.’’

इन्हीं वजहों से मौजूदा राष्ट्रीय चैंपियन श्रीजा अकुला भी यूटीटी को लेकर उत्साहित हैं. अकुला मानती हैं कि ''स्थानीय लीग की वजह से खेल ज्यादा दिखता और चर्चा में आता है.’’ भारत में कबड्डी और वॉलीबॉल के मामले में ऐसा ही तो हुआ. टेनिस और बैडमिंटन सरीखे रैकेट खेलों के उलट टेबल टेनिस के टूर्नामेंट विरले ही कभी खेल चैनलों पर प्रसारित किए जाते हैं.

कमल के मुताबिक, ''इसकी वजह से ज्यादा लोग खेल देखने आते हैं और ज्यादा टीवी पर दर्शक मिलते हैं. असल मकसद यह है कि ज्यादा नौजवान इसमें हाथ आजमाएं. एक बार शुरू करने पर यह लत बन जाता है. बस एक लंबी मेज चाहिए होती है और आप दफ्तर या घर में भी खेल सकते हैं.’’

इसके प्रति लीग की प्रमोटर वीटा दानी का प्रेम भी ऐसे ही तो जगा. वे घर में डाइनिंग टेबल पर खेलती थीं. खेल की सहज सुलभता, मौज-मस्ती और हाथ-आंख में ज्यादा तालमेल सरीखे फायदों के चलते दानी ने भारत में इसे सहारा देना तय किया. वे आइएसएल की फुटबॉल टीम चैन्नैयिन एफसी की भी मालकिन हैं.

दानी के मुताबिक, प्रायोजक अब चाहते हैं कि फ्रेंचाइची बढ़ें, अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी हिस्सा लें और अंतरराष्ट्रीय प्रेसिडेंट वगैरह देखने आएं. इसके आगे उनका प्राथमिक लक्ष्य यह पक्का करना है कि टेबल टेनिस खिलाड़ियों की आवक जारी रहे. ''मुझे यकीन है कि हम और ज्यादा हीरो पैदा करेंगे और एक दिन ओलंपिक पदक भी ला सकते हैं.’’

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