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तितली, प्रेत शब्द और बंजारे

जलसाघर में करीब दो दर्जन किताबें लिए खड़ीं आशा मेहरा, पूछे जाने पर बड़े उत्साह से किताबों के नाम बताती हैं. सब क्लासिक हैं—अज्ञेय, रेणु, मन्नू भंडारी और भी बड़े नाम.

दिलचस्पी बरकरार: विश्व पुस्तक मेले में हिंदी पाठकों की भीड़
दिलचस्पी बरकरार: विश्व पुस्तक मेले में हिंदी पाठकों की भीड़
अपडेटेड 10 मार्च , 2023

प्रदीपिका सारस्वत

विश्व पुस्तक गति मैदान, गेट नंबर चार से सीधे, फिर थोड़ा-सा बाएं हॉल नंबर पांच-चार-तीन-और आखिर में दो. यहीं है हिंदी के पाठकों, लेखकों, प्रकाशकों, प्रशंसकों की दुनिया. हॉल में घुसने से पहले ही सेल्फी प्वाइंट पर एक महिला हाथ में किताब लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कटआउट के साथ तस्वीर खिंचाती नजर आती है.

आप पुस्तक मेले में हैं. 50 वसंत पहले शुरू हुई इस परंपरा का यह 31वां स्वरूप है. इस बीच कितना कुछ बदला है, किताबों के बाहर भी और भीतर भी. कोविड के कारण दो वर्ष बाद लगे मेले में सब अलग-अलग उछाह, अलग-अलग कारणों से यहां पहुंच रहे हैं.

शुरुआत में ही राजकमल प्रकाशन का जलसाघर है. एक तरफ कोने में मंच पर उदय प्रकाश की प्रतिनिधि कविताओं पर चर्चा चल रही है. पुस्तकें खरीद रही भीड़ का ध्यान चर्चा पर नहीं है. मंच के कुल 8-10 श्रोताओं में लेखक और लेखन की दुनिया से जुड़े लोग हैं, आम पाठक नहीं. ''मेला अब पाठकों का आईना नहीं रहा,’’  ऐसा सुजाता कहती हैं.

वे लेखिका हैं, दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाती हैं, यहां अगले सत्र में ज्ञानपीठ से पुरस्कृत कवयित्री अनामिका से बातचीत के लिए मौजूद हैं. वे कहती हैं, ''किताबें ऑनलाइन खरीद ली जाती हैं. लोग यहां अदबी दुनिया के चेहरों से रू-ब-रू होने आते हैं. सेल्फी खिंचाने के पागलपन में यह देख पाना मुश्किल है कि असली पाठक कौन है.’’

जलसाघर में करीब दो दर्जन किताबें लिए खड़ीं आशा मेहरा, पूछे जाने पर बड़े उत्साह से किताबों के नाम बताती हैं. सब क्लासिक हैं—अज्ञेय, रेणु, मन्नू भंडारी और भी बड़े नाम. वे दिल्ली पब्लिक स्कूल में हिंदी पढ़ाती हैं और ये किताबें वे स्कूल के पुस्तकालय के लिए ले जा रही हैं. वे बताती हैं, ''फोन और सोशल मीडिया पर जब से हिंदी में टाइप करने की सुविधा और चलन बढ़ा है, लोग फिर हिंदी में पढ़ना चाहने लगे हैं.

हम, जो बच्चों को दरवाजे को डोर कहना सिखा रहे थे, अब चाहते हैं कि वे दरवाजे को भूलें नहीं.’’ पाठकों में कोविड के दौरान आए बदलाव पर राजकमल प्रकाशन समूह के अध्यक्ष अशोक महेश्वरी कहते हैं, ''पाठक पहले भी थे लेकिन कोविड के कारण लगे लॉकडाउन में किताबों ने लोगों को अकेलेपन से दूर रखा. बहुतेरे नए पाठक बने. विषयों में भी विविधता आई. साहित्येतर किताबें भी अब खूब पढ़ी जा रही हैं. यह एक बड़ा बदलाव है जो जारी है.’’

कुछ दूरी पर नई वाली हिंदी का भीड़भरा खेमा ध्यान खींचता है. लेखक-घुमक्कड़ संजय शेफर्ड की किताब का लोकार्पण चल रहा है, कुछ पाठक प्रकाशन के एक अन्य लेखक दिव्य प्रकाश दुबे के साथ तस्वीरें उतरवाने में मशगूल हैं. एक युवा पाठिका आकर मानव कौल की नई किताब तितली की मांग करती है. वह कहती है उसने हिंद युग्म से छपी मानव की सभी किताबें पढ़ी हैं.

स्टॉल पर मौजूद भीड़ के बारे में प्रकाशक शैलेश भारतवासी कहते हैं, ''पहले हमारे स्टॉल पर आने वाले लोगों में 50 फीसद लोग हमारे और लेखकों के परिचित होते थे. अब दायरा इतना फैल गया है कि ऐसे लोग महज एक फीसद बचे हैं. हमें खुद ताज्जुब होता है कि इतने लोग हमें पढ़ रहे हैं.’’ नई किताबों में वे कवि विजय शंकर की मृत्योपरांत छपी किताब अद्वैतवादनी कुछ कह रही है का जिक्र बड़े उत्साह से करते हैं.

मेले के अनुभव के बारे में राजपाल प्रकाशन की मीरा जौहरी कहती हैं, ''दफ्तर में बैठकर कहां पता चलता है कि हमारे पाठक कैसे हैं, कौन हैं? यहां आकर बहुत ऊर्जा मिलती है. जब लोगों को इतनी मेहनत से यहां आते, इतनी किताबें खरीदकर ले जाते देखती हूं तो लगता है कि मैं कुछ अच्छा कर रही हूं.’’ वे मेले के दिनों के कई किस्से साझा करती हैं कि कैसे दो दिन पहले उन्होंने देखा एक व्यक्ति बच्चों के एक समूह को कॉरिडोर में किताब पढ़कर सुना रहा था. पास जाने पर देखा कि वे उन्हीं के लेखक संदीप मील थे.

हॉल में जिस स्टॉल पर बरबस ही नजर रुकती है, वह है बच्चों की चहेती पत्रिका चकमक का घर एकलव्य प्रकाशन. एक पाठक के हाथ में नीले रंग की एक किताब है—जामलो की दुनिया. कंधे पर झोला डाले खाली सड़क पर चली जा रही सात साल की जामलो की कहानी कोविड के दौरान मीलों चले हजारों मजदूर परिवारों की कहानी है. ''आज जब बच्चे सब देख ही रहे हैं, तो जरूरी है कि वे अपने समाज के इस पक्ष को समझें,’’ पांच साल के बेटे के लिए किताबें खरीद रहे देवकांत कहते हैं.

मेले में एक और प्रकाशन बहुत दिलचस्पी जगाता है—नीलम जादूगर कार्यालय. किताबों के मुखपृष्ठ बाकी प्रकाशनों से बहुत अलग. ''पल्प फिक्शन या लुगदी साहित्य की अपनी जगह है’’,  प्रकाशक सुबोध भारतीय बताते हैं. 1969 में बंद हुआ यह प्रकाशन एक समय खूब बिका और वेद प्रकाश शर्मा, कांबोज और सुरेंद्र मोहन पाठक जैसे लेखक घर-घर तक जा पहुंचे. इस प्रकाशन को सुबोध ने 2020 में फिर शुरू किया और अब तक वे 152 शीर्षकों की कुल 10,000 से ज्यादा प्रतियां बेच चुके हैं.

हैशटैग अरबन स्टोरीज नाम से उन्होंने खुद भी एक किताब लिखी है और अन्य लुगदी लेखकों के अनुभवों और जीवन पर भी उनका प्रकाशन किताबें लाया है. वे मेले और किताबों को लेकर काफी उत्साहित दिखते हैं. पर बोधि प्रकाशन के मायामृग इस बार उतने खुश नहीं हैं. वे कहते हैं, ''पहले लोग आकर पूछते थे कविता-कहानी की कौन-सी नई किताबें आई हैं. अब लोग हाथ में किताब उठाने से ऐसे डर रहे हैं जैसे गंदी हो जाएगी. हम तो चाहते हैं कि लोग किताब हाथ में लें, पर अब लगता है पहले वाला अपनापन नहीं रह गया है.’’

वाणी के खेमे में प्रकाशन की कार्यकारी निदेशक अदिति माहेश्वरी कई लोगों से घिरी हुई हैं. समय मिलने पर वे इस बार आई खास किताबों के बारे में बताती हैं—सब खांचे तोड़ती किताबें. मेले के बारे में वे कहती हैं, ''वाणी के डीएनए में जमीन की हकीकत है.

मेले में हम यही जानने की कोशिश करते हैं कि पाठक क्या चाहता है.’’ वे बिलासपुर से आए एक लड़के के बारे में बताती हैं कि वह दो साल से हर महीने 200-250 रुपए इकट्ठे कर रहा था और जब आया तो एक लंबी सूची और बड़े सूटकेस के साथ. ''ऐसे मौकों पर महसूस होता कि हम कुछ अच्छा कर रहे हैं’’, अदिति लगभग वही कहती हैं जो मीरा ने कहा.

किताबों को उठाता, फिर वापस रखता एक युवा लड़का फोन पर किसी से बात करते हुए कहता है, ''किताबों के नाम बता दो. अपनी मर्जी से उठाऊंगा तो बहुत उठा लाऊंगा. मेरा मन तो किताबें देखते ही मचल जाता है, तुम जानती हो.’’  हॉल नंबर दो में ही नहीं, हरेक हॉल में न जाने कितनों का मन इन दिनों ऐसे ही मचल रहा है. किताबें चुनने में तो किसी की क्या ही मदद की जा सकती है, पर मेले में मौजूद दस नई किताबों की यह सूची एक इशारा जरूर दे सकती है.

—मेले से 10 चुनिंदा किताबें

ये दिल है कि चोर दरवाजा—किंशुक गुप्ता, प्रकाशन: वाणी, कीमत: 450 रुपए, खासियत: एक प्रतिष्ठित  परिवार के युवक की समलैंगिक संवेदना की परतें खोलती कहानियां

सिस्टर लीसा की रान पर टिकी रात—विजयश्री तनवीर, प्रकाशन: हिंद युग्म, कीमत: 249 रुपए, खासियत: समृद्ध भाषा में कही गईं स्त्री जीवन की कहानियां

शब्दों के साथ-साथ—डॉ. सुरेश पंत, प्रकाशन: पेंग्विन, कीमत: 250 रुपए, खासियत: शब्दों की व्युत्पति और सही प्रयोग बताने वाली किताब

बंजारे की चिट्ठियां—सुमेर सिंह राठौड़, प्रकाशन: राजकमल प्रकाशन, कीमत:150 रुपए, खासियत: युवामन की थाह देता संघनित कथेतर गद्य—डायरी विधा में

नदी सिंदूरी—शिरीष खरे, प्रकाशन: राजपाल, कीमत: 
285 रुपए, खासियत: एक आदिवासी गांव की खो रही संस्कृति की स्मृति कथा

प्रेत लेखन का नंगा सच—योगेश मित्तल प्रकाशन: नीलम जासूस कार्यालय, कीमत:150 रुपए, खासियत: एक लुगदी प्रेत लेखक के अनुभव, जिसने लिखा, बिका, पर नाम न मिला

बेटा करे सवाल—अनु गुप्ता व संकेत करकरे, प्रकाशन: एकलव्य, कीमत: 325 रुपए, खासियत: किशोरों में आते बदलावों को समझती-समझाती किताब

मिनाम—मोर्जुम लोयी, प्रकाशन: बोधि, कीमत: 150 रुपए, खासियत: अरुणाचल की आदिवासी स्त्री की हिंदी में लिखी कथा

संघर्ष के तेवर—निवेदिता मेनन, अनुवाद: नरेश गोस्वामी, प्रकाशन: सेतु, कीमत: 475 रुपए, खासियत: भारत में नारीवादी राजनीति का जायजा लेती पुस्तक

जादूनामा : जावेद अख्तर एक सफर—अरविंद मंडलोई, प्रकाशन: मंजुल, कीमत: 1,599 रुपए, खासियत: शायर-गीतकार जावेद अख्तर के अनसुने किस्से.

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