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पुस्तक अंशः न्याय के लिए लड़ाई लड़ने की जुझारू प्रवृत्ति का नाम झगड़ू

झगड़ू इंडिया का नहीं बल्कि उस भारत का प्रतिनिधित्व करता है जो हर चौक चौराहे पर अपने और अपने परिवार के लिए रोटी, कपड़ा जुटाने के लिए जद्दोजहद करता है.

कचहरी की चकल्लस
कचहरी की चकल्लस
अपडेटेड 1 अप्रैल , 2022

पुस्तक अंश

दुर्गेश पांडेय
Binary opposition क्या होता है? जानते हैं.Good versus Evil. जब से आदमी है तब से लड़ाई जारी है. अच्छाई और बुराई के बीच.

End  में जीतता कौन है सबको मालूम है.

तो Problem  जीत की तो नहीं है.

Problem  जीत के लिए चुकाई जाने वाली कीमत की है.’’

''बाटला हाउस’’ में पुलिस अधिकारी का किरदार निभा रहे अभिनेता जॉन अब्राहम द्वारा बोला गया यह डायलॉग फिल्मी जरूर है लेकिन है सोलह आने सच. यही बात न्याय और अन्याय की लड़ाई में भी लागू होती है. हमें बचपन से यह सिखाया और बताया जाता है कि न्याय और अन्याय की लड़ाई में जीत सदा न्याय की होगी.

एकाध अपवादों को छोड़ दें तो ऐसा होता भी है. चाहे वह अच्छाई की लड़ाई हो या न्याय की लड़ाई उसकी कीमत तो चुकानी ही पड़ती है. ऐसी ही कीमत झगड़ू कई वर्षों से चुका रहा था. उसकी अनंत-हीन लड़ाई समाप्त ही नहीं हो रही थी.

झगड़ू इंडिया का नहीं बल्कि उस भारत का प्रतिनिधित्व करता है जो हर चौक चौराहे पर अपने और अपने परिवार के लिए रोटी, कपड़ा जुटाने के लिए जद्दोजहद करता है. लेकिन अन्य झगड़ुओं और इस झगड़ू में एक अंतर यह है कि मेहनत मजदूरी करने के साथ-साथ यह बीते कई वर्षों से न्याय की लड़ाई लड़ रहा है.

अपनी जुझारू प्रवृत्ति के कारण ही शायद लोगों ने उसे झगड़ू नाम दे दिया था. सांवला रंग, गहरी आखें, चौड़ा माथा, शरीर पर जगह जगह से फटा हुआ कुर्ता और घिस चुकी धोती. कुर्ता और धोती के असल रंगों का वर्णन किया जाना संभव नहीं है. परिवार में धर्म पत्नी के अलावा दो बेटियां थीं. बड़ी बेटी कुछ ही वर्षों में विवाह के लायक हो रही थी. लाख दुश्वारियों के बावजदू झगड़ू के चेहरे पर अभी भी तेज विद्यमान था.

रोज की मेहनत मजदूरी के सहारे ही वह अपना तथा अपने परिवार का पालन कर रहा था. उसकी पत्नी भी दूसरे के खेतों में काम करके उसका हाथ बंटाया करती थी. घर के नाम पर पुश्तैनी कच्चा खपरैल का मकान और जमीन के नाम पर मुख्य सड़क के किनारे लगभग आधा बीघा जमीन थी. यही जमीन उसके जी का जंजाल हो गई थी.

गांव के ही दशरथ सिंह ने उस जमीन पर कब्जा कर लिया था. दशरथ सिंह और उनके चार भाइयों का अच्छा खासा व्यापार है. दो-तीन पेट्रोल पंपों के अलावा कई कोल्ड स्टोरेज भी हैं. फिर भी दशरथ सिंह और उनके भाइयों की नजर कई वर्षों से झगड़ू की जमीन पर थी. दशरथ सिंह ने उस जमीन को बेचने के लिए कई बार दबाव भी बनाया परंतु झगड़ू जमीन को किसी भी कीमत पर बेचना नहीं चाहता था.

उसका कहना था कि वह जमीन उसके पिता की निशानी है. वह तो अपने जीवन में कोई जमीन खरीद नहीं सका और वह अपने पिता की बनाई हुई जमीन को कैसे बेच दे. यह नहीं हो सकता. अभी भी गांवों में जमीन को बेचना बहुत बुरा माना जाता है. दशरथ सिंह को वह जमीन किसी भी कीमत पर चाहिए थी. वह उनके व्यापार विस्तार में आड़े आ रही थी.

यह किसी से छुपा नहीं है कि लोग कचहरियों में मुकदमा केवल न्याय की आशा में ही नहीं करते हैं बल्कि कभी कभार कानून की कमजोरियों का फायदा उठाते हुए दूसरे को प्रताड़ित करने के लिए भी मुकदमा करते हैं. जब दशरथ सिंह झगड़ू की जमीन को किसी भी कीमत पर हथिया न सका तो उसने फर्जी कागजातों के सहारे झगड़ू के खिलाफ मुकदमा कर दिया.

कभी-कभी तो उसके मन में यह बात उठती थी कि वह जमीन बेच देता कि सारी समस्याओं से छुटकारा मिल जाए. उसकी पत्नी भी कभी कभार ऐसा ही करने का सुझाव देती थी लेकिन जब से दशरथ सिंह ने उसकी जमीन पर कब्जा कर कचहरी में मुकदमा दायर कर दिया है, तब से उसने ठान लिया है कि वह हार नहीं मानेगा. और तभी से चालू हो गई न्याय पाने की जद्दोजहद...

लेखक के ताजा उपन्यास कचहरी की चकल्लस का एक अंश

जब से दशरथ सिंह ने उसकी जमीन पर कब्जा कर कचहरी में मुकदमा दायर कर दिया है तब से उसने ठान लिया है कि वह हार नहीं मानेगा.

कचहरी की चकल्लस
लेखक:
दुर्गेश पांडेय
मैंड्रेक पब्लिकेशंस, भोपाल
कीमत:
129 रु.

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