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शख्सियतः उचट गया था फिल्मों से मन

प्रसिद्ध बांसुरी वादक पंडित रोनू मजुमदार बंदिशों की किताब तैयार करने, फिल्म संगीत के लिए समय न दे पाने और शंख बांसुरी के आविष्कार पर.

 पंडित रोनू मजुमदार
पंडित रोनू मजुमदार
अपडेटेड 7 फ़रवरी , 2022

प्रसिद्ध बांसुरी वादक पंडित रोनू मजुमदार बंदिशों की किताब तैयार करने, फिल्म संगीत के लिए समय न दे पाने और शंख बांसुरी के आविष्कार पर.

 एक बार फिर कोरोना की दहशत है. संगीत समारोह रद्द हो रहे हैं. संगीतकारों की दशा के बारे में आप क्या कहते हैं?

हां, संगीत समारोह फिर स्थगित होने लगे हैं. अहमदाबाद में सप्तक समारोह बीच में ही रद्द कर दिया गया. मुझे बजाना था लेकिन मेरा कार्यक्रम नहीं हो सका. कोरोना से हम कलाकारों का बहुत नुक्सान हुआ है.

लोग इकट्ठा नहीं होंगे तो कार्यक्रम कैसे होंगे? बहुत सारे कामकाज चलते हैं लेकिन कलाकारों पर तुरंत मार पड़ जाती है. सरकार को निश्चय ही कलाकारों के विषय में अब सोचना चाहिए.

 क्या कुछ नया हो पा रहा है इन दिनों?

बहुत-सी बंदिशों का संग्रह कर रहा हूं जिससे उनकी एक किताब तैयार की जा सके. ध्रुपद की चीजें भी बनाई हैं मैंने जो उदय भवालकर जी को भी सुनाईं. सुनकर वे खुश हुए.

 आप फिल्म संगीत से भी खूब जुड़े रहे हैं, खासकर आर.डी. बर्मन के साथ. उस सिलसिले को आगे बढ़ाने के बारे में आपने नहीं सोचा?

एक मराठी फिल्म सलाम द सैल्यूट के लिए संगीत तैयार किया. उससे पहले हॉलीवुड की फिल्म प्राइमरी कलर्स के लिए थीम संगीत बनाया था. पूरी फिल्म के संगीत निर्देशन का मुझे मौका नहीं मिला.

इसके लिए जितने समय और ऊर्जा की फिल्म उद्योग मांग करता है, वह मैं नहीं दे सका. पंचम दा के गुजरने के बाद मेरा मन भी फिल्मों से उचाट हो गया था. सच है कि फिल्मों के लिए मेरे भीतर जो संगीतकार बैठा है, उसका उपयोग नहीं हो सका है, इसका दुख हमेशा रहा है.

 रणेंद्र नाथ मजुमदार रोनू कब बन गया?

रोनू मेरा पुकारने का नाम है. पंडित रविशंकर जी मुझे इसी नाम से पुकारते थे और उन्होंने ही कहा था कि तुम्हारा यही नाम लोकप्रिय होगा. उनकी बात सच साबित हुई. रेडियो में भी मेरा रोनू नाम बोला जाने लगा. मेरा पूरा नाम प्रमाणपत्रों में ही दर्ज होकर रह गया.

 आपने शंख बांसुरी की ईजाद की. उसके पीछे आपकी क्या सोच रही है?

बीनकारी अंग में मंद्र सप्तक में जो आलाप होता है, उसकी जो गहराई होती है वह मुझे बांसुरी में कहीं मिलती नहीं थी. बहुत अच्छे कलाकारों की बांसुरी सुनने के बाद भी मुझे यह कमी हमेशा खलती थी.

पन्ना बाबू (पं. पन्नालाल घोष) तो बांसुरी में कई बदलाव कर ही गए थे. शंख बांसुरी के माध्यम से मैंने उनके ही काम को पूरा किया और एक नाम दिया है. शंख बांसुरी आज बहुत लोकप्रिय है और बांसुरी बनाने वाले इसे बना भी रहे हैं.

 आपके सभी गुरु मैहर घराने से थे लेकिन बनारस का संगीत भी आपके वादन में नजर आता है, खासकर यहां के उपशास्त्रीय संगीत का.

बिल्कुल सही कह रहे हैं. मेरे गुरु मैहर घराने के थे लेकिन बचपन में बनारस में रहने के कारण वहां के संगीत का मुझ पर प्रभाव तो पड़ना ही था. हम ठुमरी सम्राट महादेव प्रसाद मिश्र के रामापुरा वाले आवास पर जाते थे.

वे ठुमरी, चैती, कजरी, झूला खूब सुनाते थे. उसका असर तो आना ही था. यह सब मेरी मिट्टी से जुड़ा है. घराने से भी ऊपर होती है मिट्टी की खुशबू. जो चीजें आपकी बनावट में शामिल होती है, वह कभी जाती नहीं. मैं ये चीजें खूब बजाता हूं.

—आलोक पराड़कर.

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