बीते एक-डेढ़ साल में कोरोना की वजह से देश-दुनिया ने क्या-क्या नहीं देखा-भोगा. लॉकडाउन, लाखों मजदूरों का पलायन, बेरोजगारी, दूसरी लहर में ऑक्सीजन के बिना दम तोड़ते लोग, नदियों में बहाए जाते और उनके किनारे रेत में दफनाए जाते कोरोना पीड़ितों के शव.
साहित्य चूंकि समाज का दर्पण है इसलिए इन त्रासदियों को खासकर कवियों-गीतकारों ने अपने भाव और शब्दावली में पिरोकर आम लोगों तक पहुंचाए. पर उससे भी अहम बात यह थी कि सिनेमा और रंगमंच से जुड़े कुछ अहम नामों ने इन्हें स्वर देकर सोशल मीडिया के जरिए इनकी पहुंच को कई गुना बढ़ा दिया.
फेसबुक हो या यूट्यूब, इंस्टाग्राम हो या ट्विटर हर प्लेटफॉर्म पर इनका दायरा तेजी से बढ़ रहा है. छंदों के बंधनों से आजाद, आज के मौके की कविताओं को आवाज देने वाले कलाकार न तो कवि हैं और न ही गायक. इनके पाठ का रसास्वादन करने वाले आज के युवाओं में बड़ा वर्ग ऐसा है, जिसका साहित्य से कोई खास वास्ता नहीं.
पाठकर्ता कलाकार भी इस तरह की हौसला अफजाई की वजह से रोज नए कवियों की नई मौजूं कविताएं खोज-खोजकर ला रहे हैं, जिनमें मौजूदा दौर के सामाजिक और राजनीतिक हालात को उकेरने वाली तल्ख इमेजरी होती है.
सिनेमा की दुनिया से ताल्लुक रखने वाले मनीष गुप्ता ने कुछेक साल पहले यूट्यूब पर हिंदी कविता नाम से एक चैनल शुरू किया था. इसमें मनोज वाजपेयी, सौरभ शुक्ल, राजेंद्र गुप्ता, पीयूष मिश्र, सुरेखा सीकरी, स्वरा भास्कर और मोहम्मद जीशान अयूब जैसे कलाकारों ने रामधारी सिंह दिनकर, जयशंकर प्रसाद, मुक्तिबोध, भवानी प्रसाद मिश्र, दुष्यंत कुमार जैसे हिंदी के शीर्ष कवियों की कविताओं का पाठ किया.
इसमें कविता भाव के अनुरूप दृश्यों और संगीत के साथ पेश की जाती रही है. प्रयोग खासा चर्चित हुआ. फिर उर्दू स्टुडियो आया जिसमें नसीरुद्दीन शाह सरीखे ऐक्टर जुड़े और मिर्जा गालिब, कैफी आजमी, मीर तकी मीर, साहिर लुधियानवी जैसे शायरों को अपनी आवाज में पेश किया.
हिंदी कविता चैनल का हिस्सा रह चुके ऐक्टर राजेंद्र गुप्ता अब अपने यूट्यूब चैनल राजेंद्र गुप्ता रिसाइट्स पर बिना तामझाम के रोज एक कविता सुना रहे हैं. उन्हीं के शब्दों में, ‘‘आज की कविता छंद वाली नहीं, कंटेंट वाली है. यही कारण है कि इसकी ऑडिएंस बढ़ती जा रही है. एक नया वर्ग तैयार हो रहा है.
जिसका लिखने-पढऩे से खास ताल्लुक नहीं लेकिन साहित्य से वह जुड़ रहा है.’’ स्वांत:सुखाय है और अव्यावसायिक तौर पर कविता पाठ कर रहे गुप्ता इससे पहले फेसबुक और एक साहित्यिक संस्था चौपाल पर कहानी के साथ कविता पाठ करते थे. बीते दो साल में वे करीब 400 कविताओं का पाठ कर चुके हैं.
लेकिन इन प्रयोगों को ज्यादा ताकत दी है महामारी के विविध पहलुओं को लेकर लिखी जा रही कविताओं के पाठ ने. गुप्ता कहते भी हैं, ‘‘पिछले लॉकडाउन में किस तरह से लाखों मजदूर शहर छोड़कर अपने गांवों के लिए निकल पड़े थे. फिर अब ऑक्सीजन के अभाव में अनगिनत मौतें. इससे पहले शाहीनबाग, एनआरसी जैसे मुद्दे. पिछले डेढ़-दो साल से जिस तरह के राजनीतिक-सामाजिक उथल-पुथल वाले हालात रहे हैं, वे कवियों को कैसे उद्वेलित न करेंगे.’’
पाठ के लिए कविताएं चुनने में भी उन्होंने कद से ज्यादा कविता के असर को देखा. एक ओर उन्होंने साहिर, मजरूह, दिनकर, गुलजार, नरेश सक्सेना और कुंवर नारायण को पढ़ा तो दूसरी ओर संजय कुंदन, अनिल करमेले, प्रेम रंजन अनिमेष, हूबनाथ पांडेय, विजय कुमार, देवेंद्र आर्य, मणि मोहन, अमिताभ मिश्र, फरीद खान जैसे 40-50 समकालीन और नए कवियों की रचनाएं भी पढ़ीं.
बरेली के चिकित्सक-नाटककार डॉ. ब्रजेश्वर सिंह की वरवर राव और किसान कविता पसंद आई तो उसे भी स्वर दिया, जिनको अब तक 10,000 से ज्यादा श्रोता सुन चुके हैं. वे साफ कहते हैं, ‘‘जो कविता मुझे झंझोड़ती है, आज के हालात को सशक्त ढंग से बयां करती है और जिसके बारे में मुझे लगता है कि वह लोगों तक पहुंचनी चाहिए उसे मैं बतौर अभिनेता पहुंचा रहा हूं.’’
थिएटर और सिनेमा से नाता रखने वाले सौरभ शुक्ल ने भी हिंदी कविता के लिए भवानी प्रसाद मिश्र की ‘सन्नाटा’ कविता पढ़ी थी. फिर अभिनय में व्यस्तताओं के चलते पाठ का संयोग न बन सका. लेकिन उस प्रयोग के बारे में शुक्त कहते हैं, ‘‘उसमें मजेदार बात यह थी कि आप उसमें कविता पढ़ते ही नहीं थे, बल्कि यह भी बताते थे कि वह कविता आखिर आपको क्यों पसंद है, उसकी खासियत क्या है?
कविता में भाषा और विचार के अलावा भी काफी कुछ होता है जो आपको आकर्षित कर सकता है.’’ उनका मानना है कि कविता या कोई भी कला अपने आपमें कोई एक अलग चीज न होकर अपने समय का आईना होती है. आज की बहुत-सी कविताओं में आपको वे सवाल मिल जाएंगे जो आपके भीतर उठ रहे हैं. लोग उन्हें पढ़ेंगे-सुनेंगे तो स्वाभाविक तौर पर अपने को उनसे जोड़ेंगें.’’
गुप्ता और शुक्ल की तरह युवा अभिनेता मोहम्मद जीशान अयूब भी कविता लिखते नहीं बल्कि पढ़ते हैं. हिंदी कविता चैनल पर उन्होंने नजीर अकबराबादी की दो कविताएं बंजारानामा और दीवाली पढ़ी थी. वे इस पर मिले ऑनलाइन रिस्पांस से चकित थे. उन्हें लगा कि एक बड़ा तबका है जो कविताएं सुनना चाहता है ‘‘पर हम ही शायद उन तक नहीं पहुंच पा रहे.’’ जीशान नए कवियों के मुरीद हैं.
सीएए विरोधी आंदोलन के समय सुमित सपरा और आमिर अजीज जैसे युवा कवियों का उन्होंने खूब हौसला बढ़ाया था. रमाशंकर यादव विद्रोही की एक कविता उन्होंने इंस्टाग्राम पर डाली है: इतिहास में वो पहली औरत कौन थी जिसे सबसे पहले जलाया गया था? ऐसे कवियों को वे हिंदी साहित्य के बेहतर भविष्य के लिए जरूरी मानते हैं. जीशान के शब्दों में, ‘‘मेरे पढ़ने का कोई पैटर्न नहीं है.
कोई कविता सामने आती है, समाज के हालात को लेकर उसमें व्यक्त भाव अच्छे लगते हैं तो उसे पढ़ देता हूं. अब तो कविताओं के लिए बाकायदा दृश्य शूट कर सोशल मीडिया पर डाला जा रहा है. मैं भी इंस्टाग्राम पर डालता हूं. कोई नाम नहीं रखा है. असली मजा शब्दों का है, मैं किस तरह पढ़ रहा हूं, हाथ में किताब लेके.’’
सोशल मीडिया पर कविता की तरह गीत भी लोकप्रिय हो रहे हैं. गीत को इस मीडिया से जोडऩे का काम करने वालों में कवि-गीतकार, आलोचक ओम निश्चल भी हैं. उनका आकलन है कि कविता और शायरी अब गांवों तक भी पहुंच रही है. ''सोशल मीडिया के प्लेटफार्म ने सब कुछ आसान कर दिया है. फेसबुक हो या यूट्यूब, उस पर आप अपने लिखे हुए को छापकर उसे दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचा सकते हैं.
इसी के तहत नई कविताएं और गीत सुनाए जा रहे हैं और श्रोता इससे लोग जुड़ रहे हैं.’’ निश्चल का मानना है कि सोशल मीडिया वर्तमान समय की तस्वीर पेश करता है. सच को दिखाने वाले नए कवि और गीतकार उभरकर आ रहे हैं. वे शववाहिनी गंगा कविता की मिसाल देते हैं, ‘‘यह कविता इस तरह से वायरल हुई कि कई भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका है. इसका कथ्य प्रबल है. गंगा में अस्थि विसर्जन होता है.
लेकिन शव विसर्जन के बाद इसे कोई शव वाहिनी गंगा कहेगा तो यह सञ्जयता पर सवाल है.’’ उन्होंने साहित्य तक चैनल के लिए लाश नदियों में बहाते जाइये, उड़न खटोला बैठ फकीरी भूल गया बड़बोला, इस शहर में है अब दाना पानी नहीं, देश बचा लो जान बचा लो तथा अमर उजाला के काव्य चैनल के लिए अनेक पॉपुलर गीत लिखे और गाए हैं.
उन्होंने खुद एक गीत लिखा और गाया है: प्रवासी नहीं हैं प्रवासी नहीं हैं. उनका अपना यूट्यूब चैनल है ओम निश्चल नाम से जिस पर उन्होंने नामचीन कवियों और गीतकारों की रचनाओं को अपनी आवाज में डाला है. वे नए कवियों और गीतकारों को भी तलाशते रहते हैं और उनकी कविताओं और गीतों को अपने चैनल पर पेश करते हैं.
सूर्यभानु गुप्त, प्रभात पांडेय, यश मालवीय, विनोद श्रीवास्तव, अर्चना उर्वशी, प्राची सिंह, डॉ. यासमीन मूमल, रणवीर दिनेश आदि के अलावा नागेंद्र अनुज, राहुल शिवाय, पंकज शर्मा, प्रदीप शुक्ल सरीखे नई पीढ़ी के कवियों की रचनाओं का भी उन्होंने पाठ किया है.
सोशल मीडिया
(बाएं से क्रमश:) सौरभ शुक्ल, राजेंद्र गुप्ता, ओम निश्चल और जीशान अयूब आदि ने मौजूदा दौर में कविता को सोशल मीडिया के जरिए गैरपारंपरिक श्रोताओं के एक बड़े तबके तक पहुंचाया