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शख्सियतः अनिष्ट के बीच स्वर का एकांत

शास्त्रीय गायिका कलापिनी कोमकली महामारी में संगीतकारों की चुनौतियों, मध्य प्रदेश सरकार के रवैए और पिता कुमार गंधर्व पर बायोपिक के सुझाव पर.

शास्त्रीय गायिका कलापिनी कोमकली
शास्त्रीय गायिका कलापिनी कोमकली
अपडेटेड 28 मई , 2021

शास्त्रीय गायिका कलापिनी कोमकली महामारी में संगीतकारों की चुनौतियों, मध्य प्रदेश सरकार के रवैए और पिता कुमार गंधर्व पर बायोपिक के सुझाव पर.

निरंतर व्यस्त रहने वाले कलाकार दोबारा घरों में कैद हैं! जबरिया थोपा गया एकांतवास झेल रहे हैं! क्या कहेंगी इस पर?

पहले ऋषि या साधक इच्छा से एकांतवास चुनते थे तो आत्मबल बढ़ाना उद्देश्य होता था. और वह कितना सुंदर होता था. कलाकार जब एकांत चुनते हैं तो सृजन की मंशा पीछे रहती है. लेकिन यह एकांतवास अनिच्छा के बावजूद हमारी झोली में आया है.

इस एकांत में भय और पास-पड़ोस से उठ रहा अनिष्ट का बवंडर भी शामिल है. बेशक अगर एकांत, अनायास आ ही गया है—तो इसे वे सृजन में बदल दें. अपने चिंतन से उन्हें धीरज दें जो इस समय टूट चुके हैं.

श्रोता विहीन मंच यानी वर्चुअल गायन सभाओं से भी आप जुड़ती रही हैं! प्रस्तुति का नया फॉर्मेट कैसा लग रहा है?

भारतीय शास्त्रीय संगीत संवाद का संगीत है. हम श्रोताओं के सम्मुख गाते हैं—और उन्हें अपने सम्मुख पाते हैं. जब मंच पर होते हैं तो उन्हें भी अपने से जोड़ते हैं! हमें अपना धरातल समझने में भी मदद मिलती है. यह अन पैरलल है. इसका कोई विकल्प ही नहीं, कोई तुलना नहीं. लेकिन वर्चुअल मंच ने कुछ सहारा तो दिया. सूखे में इसे ही थोड़ी-सी राहत की बूंद समझकर मैंने भी प्रिय श्रोताओं से खुद को जोड़ा.

आपके पिता—गुरु पंडित कुमार गंधर्व ने फेफड़ों की समस्या से जूझते हुए देवास को अपनी रचना भूमि बनाया था. इधर हमने देखा कि कोरोना से हार मानने वालों के फेफड़ों ने उनका साथ नहीं दिया! क्या सोचती हैं आप?

सन् 1948 में वे देवास आए, ताकि स्वच्छ आबोहवा से शारीरिक मजबूती दोबारा पा सकें. उन्होंने अपनी इच्छा शक्ति से विजय भी पाई. जीवन भर एक फेफड़े के साथ वे गाते चले गए. गवैयों का मूलाधार होता है फेफड़ा. कोविड से उबरे लोगों का अनुभव है कि कोरोना उन्हें असाधारण रूप से थका देता है. जो गायक नहीं, सामान्य जन है चिकित्सकीय निर्देशों के अलावा जब उनका शरीर अनुमति दे तो प्रकृति और उसके साहचर्य में समय बिताने का विचार करें. ताकि तरोताजा रूप दोबारा पा लें.

इस विशेष पैंडेमिक प्रसंग में, मध्य प्रदेश शासन का जो सांस्कृतिक रवैया रहा, उसे कैसे देखती हैं?

पूर्णकालिक कलाकार कैसे अपने आप को बचाए? इस समय यह प्रश्न उन्हें बेचैन किए है. पिछले वर्ष भी वे हलाकान रहे. अब यह दूसरा दौर! मैं एमपी शासन को साधुवाद देना चाहूंगी, उन्होंने अक्तूबर महीने से महफिलें आयोजित कर थोड़ा तो सहारा दिया.

ऐसी सकारात्मकता के लिए दूसरी शासकीय-अर्धशासकीय संस्थाएं और अकादमियां भी योजनाबद्ध ढंग से आगे बढ़ें. हमने इस दौर में अनेक कलाकारों को खोया. कलाकारों पर परिवार चलाने का संकट है. फेस्टिवल्स बंद हैं, रिकॉडिंग नहीं हो रही, वे कैसे जीए? खर्चे तो अपनी जगह होंगे ही.

कोई कुमार जी पर बायोपिक निर्माण करना चाहे तो स्क्रिप्ट आप लिखना पसंद करेंगी या उन्हीं पर छोड़ देंगी?

कुमार जी के जीवन-संगीत पर फिल्म संभव हो तो यह मेरे लिए नए आनंद का विषय होगा. शास्त्रीय संगीत के कलाकारों पर कोई बायोपिक अभी तक तो देखी नहीं गई. इसका स्वागत किया जाना चाहिए. लेखन मेरा विषय नहीं है. लेकिन बायोपिक तथ्य आधारित काम होता है. हां, अगर कोई इच्छुक इस दिशा में मुझसे जानकारी लेना चाहे तो उन्हें सारे तथ्य उपलब्ध कराए जा सकते हैं.

—राजेश गनोदवाले.

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