scorecardresearch

किताबेंः दो लेखकों/पतियों की जीवनगाथा

ममता कालिया ने रवि कथा को एक विधिवत जीवनी लेखन का रूप नहीं दिया है. इसके कुछ हिस्से रवीद्र कालिया के जाने के बाद उन्होंने तद्भव के लिए लिखे थे.

अंदाज़-ए-बयां उर्फ़ रवि कथा
अंदाज़-ए-बयां उर्फ़ रवि कथा
अपडेटेड 5 मार्च , 2021

देवेंद्र राज अंकुर 

लंबे लॉकडाउन के दौरान हिंदी के दो समकालीन साहित्यकारों की जीवन गाथा पढ़ने को मिली. एक का शीर्षक है तिल भर जगह नहीं और दूसरी का अंदाज़-ए-बयां उर्फ़ रवि कथा. दोनों में किस्सागोई की सहजता, रवानगी और साथ-साथ आत्मीयता भरी पड़ी है. दोनों में कई बातें समानांतर दिखीं. दोनों एक ही प्रकाशक के यहां से छप कर आईं और लगभग एक साथ दोनों ही लेखक अब हमारे बीच नहीं रहे. दोनों जीवनियों को उनकी पत्नियों ने लिखा है, जो स्वयं भी बड़ी रचनाकार हैं. अवधनारायण मुद्गल की कथा चित्रा मुद्गल और रवींद्र कालिया की ममता कालिया ने प्रस्तुत की है.

कुछ गहरी समानताएं भी हैं. पत्नी होने के बावजूद दोनों लेखिकाओं ने जितनी आत्मीयता के साथ लिखा है, उससे कहीं ज्यादा निष्पक्षता-तटस्थता को भी बरकरार रखा है. मुझे नहीं लगता कि इससे पहले कभी अपने अंतरंग प्रेमी और पति के बारे में इतनी बेवाकी और खुलेपन से किसी लेखिका ने लिखा हो. या तो हम उसे कठघरे में खड़ा कर देते हैं या देवता बना देते हैं.

यहां ऐसा कुछ भी नहीं. दोनों जीवनीकारों ने अपने-अपने विषय को संपूर्णता से रचने की कोशिश की है—अवधनारायण मुद्गल या रवींद्र कालिया की हर खूबी, कमजोरी, झगड़ा और प्यार के क्षण को पूरे मनोयोग से जीवंत किया गया है. दोनों जीवन गाथाएं अलग अलग होकर भी एक दूसरे में आवाजाही करती रहती हैं. यह देखकर अच्छा लगता है कि अवधनारायण मुद्गल की कहानी में रवींद्र कालिया और उनका परिवार जब चाहे चले आते हैं. ठीक ऐसा ही रवि कथा में होता है.

इसके बावजूद दोनों जीवन गाथाएं अपनी अलग-अलग पगडंडियों पर भी निकल पड़ती हैं. अवधनारायण मुद्गल की जीवनी का शीर्षक तिल भर जगह नहीं उन्हीं की एक कविता नागयज्ञ और मैं की कुछ पं‌क्तियों पर रखा गया है. यह किताब वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में स्थापित 'अमृत लाल नगर सृजनपीठ’ में आमंत्रित लेखकीय आवास के दौरान एक विनिबंध के रूप में लिखी गई थी.

इसीलिए शुरू में कुछ औपचारिक लगती है लेकिन कब वह आत्मीयता में बदल जाती है, पता नहीं चलता. एक तरफ अवधनारायण मुद्गल के जीवन के छोटे-से छोटे ब्यौरे से हमारा परिचय होता चलता है तो साथ-साथ उनके कवि, कथाकार, अनुवादक और संपादक रूप से भी गहरे में साक्षात्कार होता है. जिस तरह से चित्रा जी ने अवधनारायण मुद्गल की एक-एक कहानी की समीक्षा की है उसे पढ़कर लगता है कि वे आलोचक के रूप में भी कम नहीं.

जीवनी के सबसे मा‌र्मिक और सशक्त प्रसंग वे हैं जब वे मुद्गल जी से जुड़े पारिवारिक प्रसंगों में जाती हैं—पहले उनके प्रणय प्रसंग और उसके बाद शामिल होता परिवार. विशेष रूप से छोटी बेटी, दामाद और एक दुर्घटना में उनकी मृत्यु की त्रासदी को चित्रा जी ने बहुत ही आत्मीयता में जाकर पकड़ा है. मुद्गल को रेसकोर्स जाने की लत पड़ गई थी. वे इस पूरे हादसे में कैसे बाहर निकले, उनके साथ लगातार स्थितियों को झेल रही पत्नी से बेहतर कौन शेयर कर सकता है.

ममता कालिया ने रवि कथा को एक विधिवत जीवनी लेखन का रूप नहीं दिया है. इसके कुछ हिस्से रवीद्र कालिया के जाने के बाद उन्होंने तद्भव के लिए लिखे थे. उनको मिली प्रतिक्रिया से उत्साहित होकर उन्होंने उसे एक पुस्तक रूप देने का मन बनाया होगा. पुस्तक एक क्रमवार जीवन गाथा न होकर रवींद्र कालिया और उनकी जिंदगी से जुड़ी घटनाओं और संस्मरणों का एक कोलाज जैसी है.

कथा का आरंभ वर्तमान में होता है और फिर कभी फ्लैशबैक और कभी फ्लैश फॉरवर्ड के माध्यम से अपने प्रेमप्रसंग, विवाह, परिवार और उससे जुड़ी लगभग सभी घटनाओं को अपने कथाजाल में समेटती चलती है. परिवार यहां भी है लेकिन अपने से ज्यादा कालिया जी का परिवार मौजूद है, विशेषरूप से उनकी मां. कभी खुशी कभी गम के बीच यहां भी एक ऐसा करुण प्रसंग मौजूद है जब वे गंगा नदी में डूबकर आत्महत्या करने के इरादे से घर छोड़कर चल देती हैं. पूरा प्रसंग जिस सुखद अंत पर खत्म होता है, कालिया जी की प्रतिक्रिया देखते ही बनती है. पुस्तक के शीर्षक के अनुरूप ममता जी ने कहानी सुनाने के अंदाज को बनाए रखा है. ठ्ठ

पत्नी होने के बावजूद चित्रा मुद्गल और ममता कालिया ने जितनी आत्मीयता से लिखा है, उससे कहीं ज्यादा निष्पक्षता और तटस्थता को भी बरकरार रखा है

अंदाज़-ए-बयां उर्फ़ रवि कथा
ममता कालिया

वाणी प्रकाशन, दिल्ली 
कीमत: 299 रुपए

तिल भर जगह नहीं
चित्र मुद्गल

वाणी प्रकाशन, दिल्ली 
कीमत: 199 रुपए.

Advertisement
Advertisement