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बेमिसाल कलाकार वाजिद खान

पांचवीं तक पढ़े वाजिद खान ने कई साल फुटपाथ पर गुजारे. आज वे दुनिया में अपनी कला और वर्कशॉप के लिए जाने जाते हैं

फोटोः यासिर इकबाल
फोटोः यासिर इकबाल
अपडेटेड 27 अगस्त , 2019

पहली नजर में ऐसा लगता है कि कोई चरवाहा किसी जानवर को हांक रहा है, लेकिन करीब से देखने पर छह फुट से ऊंचे छरहरे बदनवाले, साफा बांधे और लबादा ओढ़े आर्टिस्ट वाजिद खान लकड़ी के लट्ठों के बीच एक लट्ठों को दरियाई घोड़े की आकृति में तब्दील करते नजर आते हैं. वे रविवार, 18 अगस्त को तंजानिया की राजधानी दारएस्सलाम में आयोजित आर्ट वर्कशॉप में विकलांग लोगों को स्कल्पचर बनाना सिखा रहे थे. पिछले कुछ वर्षों के दौरान वे तुर्की, जर्मनी, फ्रांस समेत करीब 40 देशों में वर्कशॉप आयोजित कर चुके हैं.

आर्टिस्ट के तौर पर मध्य प्रदेश में इंदौर के वाजिद की लोकप्रियता देश से बाहर दूसरे महाद्वीपों में भी पहुंच गई है. कील-कांटे, बंदूक की गोली (नकली), कंकड़-पत्थर और लोहा-स्टील के जरिए विभिन्न प्रकार के आर्ट फॉर्म तैयार करने वाले इस कलाकार ने बहुत कम समय में अपनी अलग पहचान बना ली है.

फिलहाल, वे देश-विदेश में एक साथ कई कला परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं, जिनमें कतर में फीफा कप के लिए सज रहे शहर में स्कल्पचर का काम, दुबई एक्सपो 2020 के लिए शैडो आर्ट, दस हजार डमियों से महारानी एलिजाबेथ की तस्वीर, द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका को दर्शाने के लिए नेल आर्ट की कृति प्रमुख हैं. द्वितीय विश्व युद्ध से जुड़ी कलाकृति के बारे में वाजिद बताते हैं, ''यह 25x75 फुट की पीवीसी शीट पर बन रही है.

इसमें करीब 20 लाख कील-कांटे होंगे.'' अन्य युद्धों की तरह द्वितीय विश्व युद्ध में सबसे ज्यादा महिलाओं को दुख झेलना पड़ा. उनकी व्यथा को बयान करने वाली इस कलाकृति पर 35 महिलाओं की टीम काम कर रही है, जिसका नेतृत्व उनकी पत्नी मरियम सिद्दीकी कर रही हैं.

वाजिद की कलाकृतियां देश-विदेश में उद्योगपतियों, नेताओं, अभिनेताओं और प्रमुख हस्तियों के घरों की शोभा बढ़ा रही हैं, जिनमें यूएई और बहरीन के शाही परिवार, उद्योगपति अनिल अंबानी, नेता राज ठाकरे, अभिनेता सलमान खान शामिल हैं. इसके अलावा, राष्ट्रपति भवन, इन्फोसिस, आइआइएम इंदौर में उनकी कृतियां मौजूद हैं.

लोहे, पत्थर और कबाड़ से उन्होंने अपनी रचनात्मकता को व्यक्त करना जारी रखा है. चम्मच और कांटे से उन्होंने खूबसूरत चिडिय़ा बना डाली, जो फुदकती हुई मालूम देती है. इसे स्पून आर्ट नाम दिया गया है. साथ ही एक संदेश भी है: सेव बर्ड टु सेव द वर्ल्ड. रेसिंग हॉर्स नामक कलाकृति दूर से देखने पर भागता हुआ घोड़ा नजर आती है, जिसकी पीठ पर एक जॉकी सवार है, लेकिन बहुत करीब से देखने पर उसमें पुरानी गाड़ी के इंजन और दूसरे पार्ट्स नजर आएंगे.

इस मेटल आर्ट को वाजिद की रचनात्मकता अनूठा बनाती है. इसमें उन्होंने कार और मोटरसाइकिल के इंजन और उनके कलपुर्जों का इस्तेमाल किया है. वे कहते हैं, ''हॉर्स पावर इंजन की ताकत बताती है. कबाड़ में पड़ी इन चीजों से मैंने घोड़े की शक्ल देने का फैसला किया और यह कलाकृति सामने आ गई.'' यह कलाकृति देश के एक अन्य उद्योगपति के पास है.

इसी तरह वे पत्थर के छोटे-बड़े टुकड़ों से पोर्ट्रेट तैयार करते हैं. श्रीलंका के मशहूर आर्किटेक्ट ज्यॉफ्री बावा का पोर्ट्रेट इसकी शानदार मिसाल है. शैडो आर्ट की एक कृति सरदार वल्लभ भाई पटेल की है. इसमें उन्होंने गाड़ी के विभिन्न कल-पुर्जों का इस्तेमाल किया है, जिसका साया लौह पुरुष की छवि के रूप में उभरता है.

कला के क्षेत्र में अपने अनूठे प्रयोग से शोहरत और मकबूलियत हासिल कर चुके वाजिद ने दुनियाभर के मीडिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है. रिकॉड्र्स बुन्न्स में उनका नाम कई बार आया है. लेकिन हमेशा ऐसा नहीं था. उन्होंने अपनी जिंदगी को उसी तरह संवारा है, जैसे कबाड़ और कील-कांटों तथा पत्थरों से कलाकृति तैयार करते हैं.

मध्य प्रदेश में अफीम उगाने वाले जिले मंदसौर में अब्दुल वहीद और रोशन आरा के घर 10 मार्च, 1981 को पैदा हुए वाजिद पांच भाई और दो बहन हैं. बचपन से ही पढ़ाई में तबीयत नहीं लगती थी और इसकी वजह से अक्सर वालिद से मार खाते थे. वे खुद कहते हैं, ''पांचवीं फेल होने के बाद मैंने पढ़ाई छोड़ दी.'' एक रोज चुपके से घर से निकल गए और गुजरात में अहमदाबाद पहुंच गए. वहां उन्होंने कपड़े बेचे और अपना प्रयोग शुरू किया. दुनिया का सबसे छोटा इलेक्ट्रिक आयरन (प्रेस) बनाया और स्टीमर बनाया.

फिर मंदसौर लौट आए और वालिद को बताया कि सबसे छोटा आयरन बनाया है तो वे नाराज हो गए: ''बनाना ही था तो बड़ा बनाते जो कुछ काम आता.'' उनकी मां ने उन्हें समझाया कि घर से चले जाओ. वे इंदौर चले गए, वहां से मुंबई और फिर मंदसौर लौट आए. अपने शहर में लौटकर उन्होंने टेंपो चलाया. कुछ ठोस न होता देख इंदौर चले गए, जहां रिक्शा भी चलाया. वहां कोई ठिकाना नहीं था, फुटपाथ पर रहते थे. एक व्यक्ति ने उन्हें नाले पर बने एक घर में रहने का मौका दिया, जिसमें बकरे पाले जाते थे. ''टिन के शेड में बकरों के साथ रहता था. बरसात में बड़ी दिक्कत होती थी.''

फिर उन्हें शहर में शादी और समारोहों के लिए स्टेज डेकोरेशन का काम मिला, जहां उन्हें भरपेट खाना और महीने में वेतन मिल जाता था. उसी दौरान उन्होंने कला के शौक को तरोताजा कर लिया एवं नेल आर्ट का काम शुरू कर दिया. सबसे पहले उन्होंने महात्मा गांधी का पोर्ट्रेट तैयार किया, जिसे तैयार करने में उन्हें तीन साल लग गए, जो उनकी पहचान बन गया.

2011 में शादी की पहली सालगिरह पर इंदौर के एक होटल में खाने पहुंचे, जहां मशहूर व्यवसायी साजिद धनानी की उन पर नजर पड़ी. धनानी ने उन्हें अपना काम जारी रखने और एग्जिबिशन लगाने के लिए प्रेरित किया. महात्मा गांधी वाली पहली पेंटिंग बिकने के बाद वाजिद की मानो किस्मत पलट गई.

एम.एफ. हुसेन के बाद इंदौर ने दुनिया को एक और कलाकार दिया है: वाजिद खान. कामयाबी के शिखर पर होने के बावजूद उन्होंने अपनी विनम्रता नहीं छोड़ी है. गरीब और वंचित लोगों के लिए कला के वर्कशॉप आयोजित करना, उनकी मदद करना जारी रखा है. तंजानिया में भी वह यही कर रहे थे.

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