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गुरु तारो पार न पायो

महफिल में टीम भिलाई एंथम के संयोजन में पं. अजय चक्रवर्ती के शिष्य कोलकाता के अनोल चटर्जी खयाल गायन के लिए आमंत्रित थे. जानकार पीढ़ी हैरत में भी. और खुद वर्मा के बेटे अश्विनी को भी इस आयोजन से कम हैरानी न हुई.

अपने गुरु रतनचंद्र वर्मा के बेटे अश्विनी को सम्मानित करतीं सुष्मिता बोस मजुमदार
अपने गुरु रतनचंद्र वर्मा के बेटे अश्विनी को सम्मानित करतीं सुष्मिता बोस मजुमदार

आज जब गुरुओं को भूल जाने का चलन है, तब वे इस उलटी दिशा को सीधा करती दिख रही हैं. सुष्मिता बोस मजुमदार उच्च शिक्षा के लिए भिलाई से कोलकाता चली गई थीं और प्राचीन भारतीय इतिहास की प्रोफेसर बनकर वहीं रह गईं.

पिछले हफ्ते वे फिर भिलाई पहुंचीं. "गुरु प्रणाम'' आयोजित कर उन गुरु रतनचंद्र वर्मा को याद करने, जिनसे वे संगीत सीखती थीं. वर्मा हिमाचल से बतौर फोरमैन भिलाई स्टील प्लांट में आए थे. वे खास पटियाला घराने की रागदारी अंग की गजल गाने में निपुण थे.

महफिल में टीम भिलाई एंथम के संयोजन में पं. अजय चक्रवर्ती के शिष्य कोलकाता के अनोल चटर्जी खयाल गायन के लिए आमंत्रित थे. जानकार पीढ़ी हैरत में भी. और खुद वर्मा के बेटे अश्विनी को भी इस आयोजन से कम हैरानी न हुई.

"30 साल बाद मेरे पिता को उनकी एक शिष्या याद कर रही है.'' भावुक होकर वे बोले.

इसकी अहमियत वे बयान नहीं कर सकते. यही नहीं, मौके पर चुनिंदा गजलें सुनाकर उन्होंने साबित कर दिया कि विरासत में उन्हें किस दर्जे का गाना मिला है.

इधर शिष्या की सुनें, "यह तो मेरी जिम्मेदारी का एक हिस्सा है. मैं उसे निभाने की कोशिश में हूं.'' आगे उनकी चाह अब अश्विनी को कोलकाता के खांटी गवैयों के मध्य सुनवाने की है. सही है, "सम्य'' तभी आएगा.

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