किताब के कथाकार असगर वजाहत हैं. कहानी संग्रह को राजपाल ऐंड संस ने प्रकाशित किया है. किताब की कीमत 215 रु. है.
असगर वजाहत ने कहानी में जोखिम की हद तक प्रयोग किए हैं. लघुकथाओं के विन्यास से लगाकर संवाद और एकालाप जैसी अप्रचलित और नई प्रविधियों में लिखना उन्हें आवश्यक लगता है.
भीड़तंत्र उनका नया कहानी संग्रह है जिनमें उनकी लिखी ताजा कहानियां हैं जिनमें हाल के देश-समाज के दृश्य आ गए हैं.
भूमंडलीकरण की उद्दाम लालसाओं ने समाज में जो विकृतियां उत्पन्न की हैं, उन्हें असगर वजाहत अपनी कहानियों में रेखांकित करते हैं.
संग्रह की पहली ही कहानी भगदड़ में मौत दस छोटी-छोटी कहानियों का समुच्चय है जिसमें वे एक स्थिति रख देते हैं कि भगदड़ में मारे जाने के बाद कैसी-कैसी प्रतिक्रियाएं हो रही हैं.
ये प्रतिक्रियाएं समाज के सभी वर्गों से आ रही हैं जिनमें परिवार, सरकार, प्रशासन और कॉर्पोरेट तक शामिल हैं. संवेदनहीनता का यह चरम क्या हमारे ऐश्वर्यशाली समय की सचाई नहीं है?
वजाहत इस चरम को दिखाते हैं और पाठक को इस यथार्थ के विभिन्न आयामों से जोड़ देते हैं.
किरिच किरिच लड़की में शो रूम में डमी बनकर खड़ी लड़की को जैसे ही उसका प्रेमी छूता है वह "शीशे के नाजुक गुलदान'' की तरह टूटकर बिखर जाती है और उसकी किरचें फैल जाती हैं.
यह मानवीय संभावनाओं को शोषण से चकनाचूर कर देने की चरम स्थिति है. लड़की के अब्दुल शकूर की हंसी इस विडंबना का दूसरा पक्ष है जब अत्याचार के बावजूद पीड़ित से अपेक्षा की जा रही है कि वह हंसे—"हम तुम्हें मार रहे हैं लेकिन तुम हंस रहे हो.
देखो कितनी सच्ची, प्यारी और अनोखी हंसी है.'' कहानी के पांचवें भाग में वजाहत अब्दुल शकूर की हंसी के यथार्थ का उद्घाटन करते हैं जब वह कहता है कि उसे तो आपने ही समझाया है कि वह देश से प्यार नहीं करता.
यह कैसा अनुकूलन है जो नागरिकों में विभेद उत्पन्न कर रहा है. इस तरह के हठात अनुकूलन की संपूर्ण प्रक्रिया की अद्भुत कहानी है जो देश में सामुदायिक घृणा के प्रचार की तकनीक का सही चित्र बनाती है.
शिक्षा के नुकसान इस विडंबना का एक और चित्र है जहां कथाकार लोककथा जैसी प्रविधि में स्वीकृत समझ का विलोम गढऩे जैसा करता है जबकि उसका उद्देश्य इस सामुदायिक स्वीकृत समझ को पुष्ट करना ही है.
इस कहानी के भीतर तीन नीतिकथाएं हैं. पहली नीतिकथा के अंत में आया निष्कर्ष है—"तो शिक्षा से सबसे बड़ा नुक्सान यह है कि वह गधे को आदमी बना देती है.'' ध्यान दीजिए कि इशारा किधर है? लोगों का शिक्षित हो जाना लोकतंत्र में किसे नुक्सान पहुंचाता है.
प्रतिगामी समझ पर हिंदी में ऐसी कहानियां दुर्लभ हैं. इस लिहाज से असगर वजाहत की कहानियां लोकतंत्र के पक्ष में जनता का सच्चा स्वर बनकर आई हैं. बलात अनुकूलन और नायक पूजा का मिश्रण कैसे जड़ता को बढ़ाता है, यह कहानी लुटेरा खूब दिखाती है.
***