कायापलट तो कोई ओनो किकुनोसुके वी से सीखे. वे मशहूर ओन्नागाटा यानी जापान की शास्त्रीय नृत्य नाट्यशैली काबुकी में स्त्री किरदार करने वाले अभिनेता हैं. इन दिनों वे अपने अगले कायापलट में जुटे हैं. तीन घंटों के महाकाव्यात्मक नाटक द बैटल ऑफ द महाभारत में वे कर्ण और भगवान शिव की भूमिकाएं अख्तियार करेंगे. यह नाटक आगामी अक्तूबर में जापान में खेला जाएगा.
इस महीने उन्होंने काबुकी की शानदार नाट्य कृति क्यों कनोको मासुमे दोजोजी की एक खास प्रस्तुति में प्यार में डूबी नायिका को मंच पर साकार किया. दिल्ली के जापानी दूतावास में इसे चुनिंदा दर्शकों के लिए मंचित किया गया, जो 40 साल में अपनी तरह का पहला प्रदर्शन था.
मंच से रुखसत होने के घंटे भर बाद उन्हें पहचान पाना भी मुश्किल था. इस कला रूप के लिए खास तौर पर धारण किया गया गाढ़ा सफेद मेकअप कुमादोरी जैसे खुरचकर साफ कर दिया गया था. किरदार की पोशाक उचिका के उतर चुकी थी और उसकी जगह उन्होंने गहरा नीला सूट और काले जूते पहन रखे थे. उनके काले बाल सफाई से पीछे कढ़े हुए थे जिनसे एक लट भी बाहर नहीं निकली थी.
इस नाटक में 40 अदाकार होंगे, जो काबुकी के लिहाज से भी बहुत ज्यादा हैं. हिंदुस्तान की अपनी पहली यात्रा में यह स्टार अभिनेता महाभारत की अहमियत को समझने का जतन कर रहा था. 2014 में खेला गया नल-दमयंती पर आधारित नाटक नलचित्रम देखने के बाद वे इसके चरित्रों और प्रसंगों के मूल स्रोत से प्रेरित हुए थे. नाटककार सतोशी मियागी ने महाभारत की राजा और प्रजा की प्रेम कथा को 10वीं सदी के जापान की पृष्ठभूमि में बदला है.
यह रहस्यमय संगम है. जापानी मानते हैं कि केरल का कथकली काबुकी से बहुत ज्यादा मिलता-जुलता है और जब इस जापानी कला का आखिरी बार 1977 में एक भारतीय सभागार में मंचन हुआ था तभी से इसने अपने पंख फैलाए. किकुनोसुके कहते हैं, ''काबुकी को सरकारी संरक्षण हासिल नहीं है. इसे जिंदा रहने के लिए कुछ न कुछ नया करना ही पड़ता है. भारतीय महागाथा भी उसी नया करने के उपक्रम का हिस्सा है."