इस आधुनिक दौर में भी महिलाएं भेदभाव और अपराध झेलने को मजबूर हैं, तिस पर उनमें कानूनी जागरूकता का अभाव उन्हें और शोषित बना देता है. ऐसे में तुम्हारी सखी जैसी कानूनी सलाह वाली किताब की महत्ता बढ़ जाती है, वह भी तब जब लिखने वाला न केवल न्यायधीश बल्कि एक महिला है. यही वजह है कि दिल्ली में सीबीआइ अदालत में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश स्वर्णा कांता शर्मा ने बेहद संवेदनशीलता के साथ महिलाओं के खिलाफ होने वाले भेदभाव और अपराध से जुड़े विभिन्न कानूनों को छुआ है.
यह किताब ऐसे सभी कानूनों के बारे में बताती है जो किशोरावस्था से लेकर वृद्धावस्था तक, एक स्त्री की जिंदगी से जुड़े हैं. किताब दो भागों में बंटी है. पहले भाग में लेखिका ने प्रेम, आर्थिक मामले और महिला सशक्तिकरण को लेकर अपना नजरिया पेश किया है. उनकी सबसे अहम राय यह जान पड़ती है कि महिलाओं के लिए आर्थिक आजादी बेहद जरूरी है. दूसरे भाग में लेखिका ने महिलाओं के विशेष कानूनों जैसे दहेज संबंधी कानून से लेकर कामकाजी महिलाओं के अधिकारों तक की चर्चा की है. इनमें लैंगिक भेदभाव, बाल यौन शोषण, बाल विवाह, रैगिंग, विवाह, द्विविवाह, भरण पोषण एवं अभिरक्षा, लिव इन संबंध और यौन अपराध से जुड़े कानूनों की जानकारियों और महिलाओं के अधिकारों के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है.
धर्म खंड में अंतरधार्मिक विवाह, धर्मांतरण, हिंदू विवाह से लेकर मुस्लिम, ईसाई, पारसी और विशेष विवाह अधिनियम की जानकारी दी गई है. विभिन्न धर्मों में तलाक के तरीकों और कानून के बारे में जानना भी कम दिलचस्प नहीं. इनके अलावा यौन अपराध में एफआइआर दर्ज कराने से लेकर मानसिक आघात संभालने तक की सलाह हो या तेजाब हमले या जरूरतमंदों को मुफ्त कानूनी सलाह के अधिकार और मुआवजे के बारे में जानकारी, इन्हें पेश कर लेखिका ने संवेदनशीलता का ही परिचय दिया है. साइबर अपराधों से बचने को लेकर मशविरा उनके आज के दौर के विजन को भी सामने लाता है. बहरहाल, किताब की सबसे बड़ी खासियत यही है कि इसमें जटिल कानूनों को भी सरल और सहज तरीके से समझाया गया है.
तुम्हारी सखी: जरूरी कानूनों की सरल व्याख्या
स्वर्णा कांता शर्मा की मेरी सखी किताब में यौन हिंसा, घरेलू उत्पीडऩ से लेकर महिलाओं के हक के कानूनों की जानकारी है.

अपडेटेड 11 सितंबर , 2015
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