यह अंक दिवंगत मनीषी डॉ. तुलसीराम पर केंद्रित है. उनके लेखन में शांति, अहिंसा और करुणा व्याप्त है. वे गहन अध्येता और विद्वान थे. इस अंक के सभी लेखकों ने कमोबेश यही बात कही है. इनमें सूर्यनारायण रणसुभे, मैनेजर पांडे, जयप्रकाश कर्दम से लेकर बुद्ध शरण हंस, सभी ने उनकी रचनाओं और व्यक्तित्व के जीवन दर्शन, संघर्ष, दलित चेतना तथा लोक जीवन की व्याक्चया की है. इसकी शुरुआत तुलसीराम के वक्तव्य से होती है जिसमें वे बताते हैं कि अपने विचारों को दूसरों तक पहुंचाने के लिए मातृभाषा में लिखना क्यों जरूरी है. इसमें जातिवाद, सांप्रदायिकता, दलित साहित्य, धर्म जैसे ज्वलंत मसलों पर उनके लेख और इंटरव्यू भी हैं. उनकी पत्नी प्रभा चौधरी और बेटी अंगिरा के जरिए जहां उनका संवेदनशील पारिवारिक पक्ष उभरता है, वहीं मणींद्र नाथ ठाकुर ने रेखांकित किया है कि उनकी आत्मकथा किस तरह समाजशास्त्र की मौजूदा बहसों को समझने के लिए एक उपयोगी कृति है. उनके संपूर्ण व्यक्तित्व और लेखन की अहमियत को समझने के लिए प्रस्तुत अंक शुरुआती तौर पर यकीनन काम आ सकता है.
बया, अंकः अप्रैल-जून 2015
इस अंक के संपादकः श्रीधरम
मूल्यः 40 रु.
पुस्तक सार
डॉ. तुलसीराम के व्यक्तित्व और कृतित्व की एक झलक
बया के इस अंक में डॉ. तुलसीराम के लेख, उनकी आत्मकथा की आलोचना और व्यक्तित्व संबंधी लेख संकलित हैं.

अपडेटेड 4 अगस्त , 2015
Advertisement
Advertisement