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टोकरी में दिगंत, थेरी गाथा, 2014: थेरी गाथाओं के बहाने स्त्री की पड़ताल

अपने नए काव्य-संग्रह टोकरी में दिगंत, थेरी गाथा: 2014 में बौद्ध-धर्म की परंपराओं और स्मृतियों की जीवंत वाहक थेरी गाथाओं के बहाने अनामिका ने स्त्री-चेतना को अभिव्यक्त किया है.

अपडेटेड 31 मार्च , 2015

अपने नए काव्य-संग्रह टोकरी में दिगंत, थेरी गाथा: 2014 में बौद्ध-धर्म की परंपराओं और स्मृतियों की जीवंत वाहक थेरी गाथाओं के बहाने अनामिका ने बुद्ध की समकालीन मानी जानेवाली इन भिक्षुणियों के अस्तित्व की लड़ाई, उनकी विचार-संपदा को आज की स्त्री-चेतना की पूर्व-पीठिका के रूप में देखा है. थेरी गाथा खुद्दक निकाय के 15 ग्रंथों में से एक है, जिसमें 70 से ज्यादा बौद्ध भिक्षुणियों के विचार उसकी विभिन्न गाथाओं में शामिल हैं. अनामिका ने उन्हीं के जरिए स्त्री-देह बनाम स्त्री-मन के कुछ चिरंतन सवालों को समय के एक पुरातन छोर पर जाकर पकड़ने की कोशिश की है. अनामिका ने उनको लेकर पुरुषों के असुरक्षा बोध को उठाया है, जो स्त्री पर हक जमाने की एक रूढि़ के रूप में विकसित हुआ. जिंदगी के शाश्वत सौंदर्य और संघर्ष के कई दूसरे पक्षों को सुदूर इतिहास में जाते हुए, अनामिका ने उन्हें सुचिंतित रूप से यहां अपनी कविताओं में अभिव्यन्न्त किया है.

कविताओं में एक विशिष्ट काव्य-मुहावरा निर्मित करने वाली अनामिका अपनी कविताओं के विषय-चयन और उनके प्रभावी काव्य-निर्वहन के लिए जानी जाती हैं. अलोक-प्रचलित शब्दावली और अंदाज की सहजता उनकी कविताओं में देखने लायक होती है. उदाहरण के लिए उनकी 'थर्मामीटर' कविता को लिया जा सकता है. अनामिका के प्रकृति-चित्रण में कई बार चुपके से सामाजिक-राजनैतिक व्यवस्था के रंग आ मिलते हैं. तभी तो, मूलत: थेरियों और उनके विचार-समृद्ध जीवन-शैली पर लिखी इन कविताओं की दुनिया में एक साथ कई दुनिया देखी जा सकती है. ये दुनिया हमारी स्मृतियों, आख्यानों, इतिहास और किंवदंतियों में बिखरी हुई है. आइसबर्ग के 'टिप्स' की तरह ये जितनी सतह के ऊपर दिखती हैं, उससे कई गुना अधिक सतह के नीचे होती हैं. जैसा के. सच्चिदानंदन ने अपनी टिप्पणी में इशारा किया है, अनामिका की कविताओं में चाक्षुष बिंबों की प्रचुरता है, उनकी कविताएं हमारी चेतना से लुप्त या दूर हुई घटनाओं, स्थितियों, पात्रों को फिर से हमारे सामने लाती हैं.

उनकी कविताओं में एक स्त्री की उदात्त, हृदयस्पर्शी बतकहियां हैं. भूख, गरीबी, जिंदगी, मौत, चाहे कोई भी सवाल हो, उनकी नायिकाएं किसी भी परिस्थिति में डरती नहीं हैं. उनसे आंखें मिलाते हुए हंसी-ठिठोली करती हैं. कविताओं में घर-गृहस्थी के कई बिंब सहज ही आ धमकते हैं. यह अनामिका की सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना है और उनकी कविताओं की भाषिक उपलब्धि भी. उनके यहां सच 'डबकता' (पानी में उबलता) है और सूरज 'क्रिकेट-बॉल-सा दूर आकाश में उड़ता' है. उनका स्त्री-विमर्श अपने तरीके से परिभाषित होता है. उनकी नायिका आकाश से बात जरूरी करती है लेकिन पैर जमीन पर टिकाने की इच्छा है. कई कविताओं में कवयित्री की व्यन्न्तिगत स्मृतियों को जातीय स्मृतियों में बदलता हुआ देखा जा सकता है. तीन अंकों में बंटे इस संग्रह की अलग-अलग आस्वादों से भरी कविताओं से गुजरना एक रोचक काव्यात्मक उपलब्धि है.

टोकरी में दिगन्त
थेरी गाथा 2014
कवयित्री: अनामिका प्रकाशक: राजकमल
मूल्य: 300 रु.

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