उत्तर प्रदेश के राज्यपाल 80 वर्षीय राम नाईक के अभिभाषण पर 23 फरवरी की दोपहर तीन बजे विधानसभा की बैठक में गर्मागर्म बहस हो रही थी. तभी अचानक सपा सरकार में संसदीय कार्य और नगर विकास मंत्री आजम खान एक खास मिशन पर दिल्ली की ओर उड़ चले. वे सीधे राष्ट्रपति भवन पहुंचे और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के सामने राज्यपाल की शिकायतों का पिटारा खोल दिया. उन्होंने राष्ट्रपति से नाईक के 'बेतुके' बयानों को संज्ञान में लेते हुए कड़ा फैसला सुनाने की अपील की. तकरीबन 20 मिनट से कुछ ज्यादा समय राष्ट्रपति भवन में गुजारने के बाद आजम खान देर शाम लखनऊ लौट आए. लेकिन एक मंत्री के सीधे राष्ट्रपति से राज्यपाल की शिकायत करने की जो मिसाल उन्होंने पेश की, यूपी की राजनीति में उसका कोई दूसरा उदाहरण मौजूद नहीं है.
जनसंघ से राजनीति का सफर शुरू करने वाले राम नाईक केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री रह चुके हैं. पिछले साल 22 जुलाई को यूपी के राज्यपाल की कुर्सी संभालने के बाद कई ऐसे मौके और मुद्दे आए, जब उन्होंने सरकार के रुख के उलट अपना रुख जाहिर किया (देखें बॉक्स). कैबिनेट मंत्री आजम खान राजभवन और सरकार के बीच हुए टकराव की एक अहम कड़ी रहे हैं. मौजूदा समय में आजम खान की इस तकरार की वजह नाईक के रामपुर के 'मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट' को 'जौहर शोध संस्थान' का भवन देने के सरकार के फैसले पर आपत्ति उठाना थी. इसके बाद आजम ने 11 फरवरी को नाईक को चार पन्ने का लंबा पत्र लिखकर यह जाहिर करने की कोशिश की कि उनकी कार्यप्रणाली से मुसलमानों में काफी भय पैदा हो रहा है. दोनों के बीच इस तकरार की शुरुआत पिछले साल हुई थी. दरअसल, राज्यपाल ने आजम खान के उस बयान पर कड़ा एतराज जताया था, जिसमें उन्होंने रामपुर में मुलायम सिंह यादव के जन्मदिवस समारोह में खर्च होने वाला पैसा तालिबान और दाउद इब्राहिम जैसी देश विरोधी ताकतों से मिलने की बात कही थी. यह बात मीडिया के सामने तंज के तौर पर कही गई थी. इससे पहले आजम खान का पूर्व राज्यपाल टी.वी. राजेश्वर और बी.एल. जोशी के साथ भी टकराव हो चुका है. वजह आजम का वही पुराना ड्रीम प्रोजेक्ट. वे रामपुर के मौलाना मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दिलाना चाहते थे और राज्यपाल इस पर आपत्ति कर रहे थे.
हालांकि पिछले साल जुलाई में कुछ समय के लिए राज्यपाल रहे अजीज कुरैशी के संबंध आजम से ठीक रहे और जौहर विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक का दर्जा मिल गया. वर्तमान में मिजोरम के राज्यपाल की जिम्मेदारी निभा रहे अजीज कुरैशी कहते हैं, ''जब मैं यूपी का राज्यपाल था तो राजभवन में सियासत को हावी नहीं होने दिया था. राम नाईक और आजम को आपस में बैठकर विवाद सुलझाना चाहिए.''
राज्यपाल बनने के बाद से नाईक की सक्रियता ने जहां एक ओर कई विवादों को जन्म दिया है, वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसी नई परंपराओं की भी शुरुआत की है, जिन्होंने राजभवन को एक नई पहचान दी है. शायद यही वजह थी कि पिछले साल राष्ट्रीय अधिवेशन में सपा ने अपने राजनैतिक प्रस्ताव में राज्यपाल नाईक के मुख्यमंत्री की तरह काम करने के तौर-तरीकों पर कड़ी आपत्ति जताई थी.
नई परंपराओं पर खींचतान
पिछले साल जुलाई में राज्यपाल का दायित्व संभालने के बाद से राम नाईक ने तुरंत राज्यपाल पदनाम के साथ 'महामहिम' या 'हिज एक्सीलेंसी' शब्द के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी. इनके स्थान पर अब 'माननीय' या 'ऑनरेबल' शब्द का प्रयोग होता है. यही नहीं, उन्होंने पहली बार राजभवन से बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपने कामकाज का ब्यौरा देना शुरू किया. उनके ये तौर-तरीके विपक्षी पार्टियों के बीच आलोचना का केंद्र बन गए हैं. कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता प्रदीप माथुर कहते हैं, ''राज्यपाल हमेशा खबरों में बने रहना चाहते हैं. मैंने अब तक किसी राज्यपाल को ऐसे काम करते नहीं देखा.'' 15 फरवरी को लखनऊ स्थित बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) मुख्यालय में पार्टी नेताओं की बैठक में भी राज्यपाल की सक्रियता चर्चा का केंद्र रही. बीएसपी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती बोलीं, ''प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए राज्यपाल की नई परंपरा की शुरुआत पर राष्ट्रपति या केंद्र सरकार को जरूर संज्ञान लेना चाहिए कि यह सही है कि गलत. इतना जरूर है कि इससे सपा सरकार की कमजोरी जाहिर हो रही है.'' दूसरी ओर राजनैतिक विश्लेषक राज्यपाल के इस कदम को एक सीमा तक सही ठहरा रहे हैं. आजमगढ़ के प्रतिष्ठित शिबली नेशनल कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस विभाग के प्रमुख डॉ. गियास असद खान कहते हैं, ''संविधान में ऐसी कोई बाध्यता नहीं है कि गवर्नर प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं कर सकते, लेकिन आम तौर पर ऐसा देखने को नहीं मिलता. अगर वे अपने बारे में कुछ बताना चाह रहे हैं तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है.''
पटरी पर आए विश्वविद्यालय
राज्यपाल और कुलाधिपति नाईक को सूबे में उच्च शिक्षा की बदहाली विरासत में मिली थी. यूपी के कुल दो दर्जन विश्वविद्यालयों में से एक तिहाई कार्यवाहक कुलपतियों के भरोसे चल रहे थे. वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति बिंदा प्रसाद के खिलाफ जांच चल रही थी. मेरठ और कानपुर समेत कई अन्य विश्वविद्यालयों में कुलपति और रजिस्ट्रार के बीच तलवारें खिंची हुई थीं. कुलाधिपति के तौर पर राम ने सबसे पहले विश्वविद्यालयों से जुड़े मामलों को दो भागों में बांटा. पहला सरकार और दूसरा कुलाधिपति सचिवालय से संबंधित. फिर सभी कुलपतियों के साथ अलग-अलग बात की. किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, लखनऊ के कुलपति प्रो. रविकांत कहते हैं, ''राज्यपाल ने सबसे पहले यह स्पष्ट कर दिया कि विश्वविद्यालय में कुलपति ही सर्वोच्च है. इससे परिसर के भीतर चल रही गुटबाजी एक झटके में खत्म हो गई.'' नाईक का योगदान विश्वविद्यालयों में देरी से चल रहे शैक्षिक सत्रों को पटरी पर लाना भी है. इस वर्ष पहली बार प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों में एक साथ समय पर वार्षिक परीक्षाएं शुरू हो गई हैं. प्रो. रविकांत कहते हैं, ''पहली बार कुलाधिपति कार्यालय से हर विश्वविद्यालय की मॉनिटरिंग शुरू हुई है ताकि किसी भी तरह छात्रों का नुक्सान न हो.'' विश्वविद्यालयों में काफी समय से लंबित छात्रसंघ चुनाव भी अगले शैक्षिक सत्र से लिंगदोह समिति की सिफारिशों के अनुसार होंगे. विश्वविद्यालयों में प्रतिस्पर्धा के लिए केंद्र सरकार के 'विजिटर अवॉर्ड' की तर्ज पर यूपी के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय को 'चांसलर अवॉर्ड' से नवाजा जाएगा.
पंच की भूमिका में राजभवन
पिछली गर्मी में कोयले की कमी से जब यूपी के बिजली घर कराह रहे थे, केंद्र और राज्य सरकार के बीच की तनातनी ने हालात और बिगाड़ दिए थे. केंद्रीय कोयला मंत्री पीयूष गोयल मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर बातचीत न करने की तोहमत लगा रहे थे तो मुख्यमंत्री केंद्र सरकार पर भेदभाव का आरोप. कोयले पर लगातार बढ़ रही गरमाहट के बीच नाईक 'पंच' की भूमिका में आए. उनकी पहल पर ही पिछले साल सितंबर के पहले हफ्ते में गोयल और अखिलेश यादव ने फोन पर बातचीत कर समस्या का फौरी समाधान निकाला.
बाद में 3 दिसंबर को दोनों नेता दिल्ली में मिले और यूपी को 30-40 करोड़ टन उत्पादन क्षमता वाले कोयला ब्लॉक के आवंटन पर केंद्र ने सहमति जता दी. इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के करसड़ा में बंद पड़े सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट और वरुणा नदी के किनारे बनने वाले सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के लिए नगर निगम और स्थानीय जिला प्रशासन के बीच टकराव बढ़ता देख राज्यपाल को बीच में हस्तक्षेप करना पड़ा. नाईक ने पिछले साल 18 दिसंबर को वाराणसी के मेयर रामगोपाल मोहाले और अखिलेश यादव को आमने-सामने बिठाकर शहर के विकास में आ रही अड़चनें दूर करवा दीं. मोहाले कहते हैं, ''राज्यपाल सभी नेताओं के सामने अपनी बात बड़ी विनम्रता से रखते हैं और इसी वजह से उन्हें सबका समर्थन मिल रहा है.''
पिछले साल 29 सितंबर को लखनऊ में विद्युत नियामक आयोग के भवन के शिलान्यास समारोह के दौरान अपने भाषण में नाईक इस भवन के 2016 में तैयार होने की बात कहते ही पूछ बैठे, ''अगले चुनाव में कितना समय बाकी है?'' अखिलेश यादव सवाल का मंतव्य समझते हुए मंच पर बैठे हुए ही बोले, ''आपका आशीर्वाद रहा तो मैं 2017 तक सीएम रहूंगा.'' नाईक ने पलटवार करते हुए कहा, ''अच्छा है, तब तक मैं भी रहूंगा और आप भी रहेंगे.'' राजभवन और सरकार के बीच टकराहट तो जगजाहिर है. लेकिन यह भी तय है कि अगर संविधान के दायरे में रहकर सरकार और राजभवन ने अपनी-अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई तो 2017 तक परस्पर टकराव भी नए सोपान चढ़ेगा.
सक्रिय राज्यपाल, सांसत में यूपी सरकार
राज्यपाल को शिकायत है कि सरकार अपना काम ठीक से नहीं कर रही और सरकार को शिकायत कि राज्यपाल मुख्यमंत्री हुए जा रहे हैं.

अपडेटेड 18 मार्च , 2015
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