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मंतव्य 2 : एक समग्र कोशिश

पत्रिका मंतव्य-2 में गांव की पृष्ठभूमि वाला लघु उपन्यास लालटेन एकदम नई तरह की कहानी लेकर आया है. तो इस पत्रिका में सारी विधाओं का संतुलन बनाने की बेहतर कोशिश हैं.

अपडेटेड 20 जनवरी , 2015

मंतव्य-2
संपादकः हरे प्रकाश उपाध्याय
अंकः दिसंबर, 2014
मूल्य  100  रु.

नई पत्रिका मंतव्य-2 का नया अंक ताजा हवा के झोंके की मानिंद है. राम प्रकाश अनंत का गांव की पृष्ठभूमि वाला लघु उपन्यास लालटेन एकदम नई तरह की कहानी लेकर आया है. इसके मुख्य किरदार को जब उसकी मां बताती है कि ‘‘बामन मरने के बाद बिरमदेव बनते हैं, ठाकुर जिन्न और दूसरी जाति के लोग खईस बनते हैं तथा बिरमदेव सबसे शक्तिशाली होते हैं,’’ तो वह आश्चर्य में पड़ जाता है कि मरियल-सा पंडित मरने के बाद सबसे शक्तिशाली कैसे बन सकता है.

इसमें संत और मीरा क्रिस्तान नाम की दो गंभीर कहानियां हैं. साथ ही कमलेश्वर, रॉबिन शॉ पुष्प और नवारुण भट्टाचार्य जैसे रचनाकारों की जिंदगी के अनजाने पहलुओं की जानकारी दिलचस्पी जगाती है. कविता खंड में नवारुण और विजेंद्र की कविताएं ध्यान खींचती हैं. अलग-अलग खंडों में लखनऊ और बीकानेर की जीती-जागती तस्वीर किसी झांकी की तरह है. तो महादेवी जी का कुत्ता, बड़े साहब का कुत्ता और देहरादून के दिन जैसी रचनाएं रोचक हैं. यह सामग्री इसे पढऩे लायक बनाती है.

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