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फसानों का सफर: नई सदी के दिलचस्प अफसाने

इस किताब में कृष्ण चंदर, अमृता प्रीतम, बलवंत सिंह, हाजरा मसरूह, ज़फ़र पयामी, फिक्र तौंसवीं, शरद जोशी आदि की 21 रोचक कहानियों का संकलन है.

अपडेटेड 20 जनवरी , 2015

नई सदी की कहानियां
फ़सानों का सफ़र
संपादकः कृष्ण कुमार चड्ढा
हार्परकॉलिंस पब्लिशर्स इंडिया
मूल्य  250  रु.
पेज 224

उर्दू की मशîर साहित्यिक पत्रिका बीसवीं सदी किसी जमाने में पढ़े-लिखे घरों की पहचान हुआ करती थी और उसके संपादक खुश्तर गिरामी उर्फ राम रक्खा मल चड्ढा उर्दू साहित्यकारों के चहेते हुआ करते थे. 1938 में लाहौर में शुरू हुई पत्रिका का दफ्तर शालमी दरवाजे के पास था. उसके एक ओर मंदिर और दूसरी ओर मस्जिद थी.

बंटवारे के समय मंदिर-मस्जिद, दोनों जला दिए गए, लेकिन बीसवीं सदी  का दफ्तर साफ बच गया. बाद में यह दिल्ली से शुरू हुई. कृष्ण चंदर जैसे दिग्गज साहित्यकार को पहली बार बीसवीं सदी ने ही छापा. उस जमाने के सारे बड़े साहित्यकार इसमें छपते थे. 1960 तक हिंदी मकबूल होने लगी थी और इसी के मद्देनजर बीसवीं सदी की सहयोगी पत्रिका नई सदी हिंदी में शुरू की गई.

इसे उर्दू के साथ ही हिंदी के साहित्यकार भी मिल गए. यह पुस्तक कृष्ण चंदर, अमृता प्रीतम, बलवंत सिंह, हाजरा मसरूह, ज़फ़र पयामी, फिक्र तौंसवीं, शरद जोशी आदि की 21 कहानियों का संकलन है, जिसमें लगभग सारी कहानियां बहुत रोचक हैं. इसमें अफगान स्नो, फिलिप्स रेडियो, वेस्ट एंड वॉच कंपनी, ईनो, सिजर्स सिगरेट आदि के बीसवीं सदी में छपे विज्ञापन पुराने दिनों की याद ताजा कर देते हैं.

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