पंचकन्या
लेखक: मनीषा कुलश्रेष्ठ
प्रकाशक: सामयिक प्रकाशन, 3320-21, जटवाड़ा, दरियागंज,
नई दिल्ली-110002
कीमत: 395 रु.
जब लंदन में ग्रीष्म ऋतु शुरू होती है तो यहां के लोगों के बागीचे फूलों से और सड़कें खूबसूरत लोगों से भरी नजर आती हैं. इन दिनों ऐसा ही मौसम है और माहौल भी. मैं तरह-तरह के रंग-बिरंगे लोगों की भीड़ में आजकल अकसर पंचकन्याओं को तलाशती हूं. मनीषा कुलश्रेष्ठ के उपन्यास पंचकन्या की नायिकाओं की तरह, हर युग की हर जगह की अपनी पंचकन्याएं, जो अपनी आजादी के साथ ही अपना कन्या होना भी बचाए रखती हैं.
मनीषा कहती हैं कि इस उपन्यास की प्रेरणा और संदर्भ उन्हें प्रदीप भट्टाचार्य के मूल लेख 'पंचकन्या- स्त्री सारगर्भिता' से मिला है और खुद लेखिका के मुताबिक, ''निजी तौर पर फेमिनिज्म शब्द की जगह एलिस वॉकर का दिया शब्द 'वुमेनिज्म' मैं ज्यादा अपने मन के करीब पाती हूं. यह स्त्री होने के एहसास को लेकर ज्यादा सकारात्मक प्रतीत होता है.
बिना अलगाववादी फेमिनिज्म के हम पारंपरिक तौर पर समतावादी हैं. हमें नाचना पसंद है, चांद पसंद है, जीवंतता पसंद है, प्रेम से प्रेम है. खाने से और अपनी प्राकृतिक मांसलता से प्रेम है. संघर्ष से प्रेम है, लोक से प्रेम है और अंतत: खुद से प्रेम है. '' और यही विषय-वस्तु इस पूरे उपन्यास की है.
पुराणों के अनुसार, पंचकन्याएं वे हैं जो विवाहित होते हुए भी पूजा के योग्य मानी जाती हैं. इनमें अहिल्या, द्रौपदी, कुंती, मंदोदरी और तारा का जिक्र आता है. लेकिन मनीषा की पंचकन्याएं इन पौराणिक नामों से एकदम अलग हैं. प्रज्ञा एक मेहनती और बुद्धिजीवी पत्रकार है. माया संघर्षरत कलाकार है. एग्नेस फ्रांसीसी नृत्यांगना है जो भारत के एक गुरुकुल में कथक सीखने आती है. और नागकन्याएं हैं—अपने आप में आजाद, संघर्षरत और खुद से प्रेम में डूबीं.
जहां एग्नेस के साथ फ्रांस के थिएटर और कलाकारों से परिचित होने का मौका मिलता है तो उसकी नानी के साथ बतियाने का एहसास मिलता है, वहीं नागकन्याओं के साथ रेगिस्तान की चमकती रेत में घुमंतू कबीलों की संस्कृति और कठिन जीवन से रू-ब-रू होते हैं. प्रज्ञा आधुनिक, बिंदास शहरी लड़की से आपका सामना कराती है तो माया और आश्विन के साथ सपनों, खंडहरों और रिश्तों की अनोखी दुनिया में विचरण का मौका मिलता है.
उपन्यास की नायिकाएं आजादी, अस्तित्व, प्रेम और नारी सुलभ स्वभाव की डोरी से परस्पर बंधी हुई नजर आती हैं. वे नारीवादी तो हैं लेकिन किसी अतिवाद का शिकार नहीं हैं. वे परंपरावादी नारीवाद के बेहतर स्वरूप में हैं, जो अलग-अलग वर्ग और परिवेश से होते हुए भी उन्हें आपस में जोड़ता है.
पंचकन्या यायावरी के शौकीन पाठकों के लिए भी अच्छा विकल्प है. राजस्थान के सुदूर गांवों, किलों, उत्सवों और बंजारों के रीतिरिवाजों और संस्कृति का सजीव और उनके महोत्सवों की परंपराओं का, उनकी मानसिकता का रोचक वर्णन इस उपन्यास का एक और सकारात्मक पहलू है. कथानक की पृष्ठभूमि के शहर, गांव, स्थान आदि की व्याख्या करते समय उनका सजीव चित्रण लेखिका के वृहद यायावरी अनुभव को दर्शाता है.
उपन्यास के कथा शिल्प के थोड़ा कठिन होते हुए भी भाषा सौंदर्य बांधे रखता है. इन पात्रों की कहानियों के साथ-साथ चलती हुईं उनसे संबंधित विभिन्न परिवेश की विशेषताएं इतनी खूबसूरती से सामने आती हैं कि हर दृश्य, हर पात्र जाना-पहचाना और जीवंत होने लगता है.
पंचकन्या वर्तमान परिवेश की उन सशक्त पंचकन्याओं की कहानी है जो आजाद हैं, आत्मनिर्भर हैं, अपने अस्तित्व के लिए सजग हैं लेकिन तथाकथित नारीवादियों के विपरीत अधिक व्यावहारिक, स्वाभाविक और स्त्री होने के एहसास को लेकर अधिक सकारात्मक हैं. ये व्यावहारिकता के धरातल पर रहकर ही अपने संघर्षों को अंजाम देती हैं.
लेखक: मनीषा कुलश्रेष्ठ
प्रकाशक: सामयिक प्रकाशन, 3320-21, जटवाड़ा, दरियागंज,
नई दिल्ली-110002
कीमत: 395 रु.
जब लंदन में ग्रीष्म ऋतु शुरू होती है तो यहां के लोगों के बागीचे फूलों से और सड़कें खूबसूरत लोगों से भरी नजर आती हैं. इन दिनों ऐसा ही मौसम है और माहौल भी. मैं तरह-तरह के रंग-बिरंगे लोगों की भीड़ में आजकल अकसर पंचकन्याओं को तलाशती हूं. मनीषा कुलश्रेष्ठ के उपन्यास पंचकन्या की नायिकाओं की तरह, हर युग की हर जगह की अपनी पंचकन्याएं, जो अपनी आजादी के साथ ही अपना कन्या होना भी बचाए रखती हैं.
मनीषा कहती हैं कि इस उपन्यास की प्रेरणा और संदर्भ उन्हें प्रदीप भट्टाचार्य के मूल लेख 'पंचकन्या- स्त्री सारगर्भिता' से मिला है और खुद लेखिका के मुताबिक, ''निजी तौर पर फेमिनिज्म शब्द की जगह एलिस वॉकर का दिया शब्द 'वुमेनिज्म' मैं ज्यादा अपने मन के करीब पाती हूं. यह स्त्री होने के एहसास को लेकर ज्यादा सकारात्मक प्रतीत होता है.
बिना अलगाववादी फेमिनिज्म के हम पारंपरिक तौर पर समतावादी हैं. हमें नाचना पसंद है, चांद पसंद है, जीवंतता पसंद है, प्रेम से प्रेम है. खाने से और अपनी प्राकृतिक मांसलता से प्रेम है. संघर्ष से प्रेम है, लोक से प्रेम है और अंतत: खुद से प्रेम है. '' और यही विषय-वस्तु इस पूरे उपन्यास की है.
पुराणों के अनुसार, पंचकन्याएं वे हैं जो विवाहित होते हुए भी पूजा के योग्य मानी जाती हैं. इनमें अहिल्या, द्रौपदी, कुंती, मंदोदरी और तारा का जिक्र आता है. लेकिन मनीषा की पंचकन्याएं इन पौराणिक नामों से एकदम अलग हैं. प्रज्ञा एक मेहनती और बुद्धिजीवी पत्रकार है. माया संघर्षरत कलाकार है. एग्नेस फ्रांसीसी नृत्यांगना है जो भारत के एक गुरुकुल में कथक सीखने आती है. और नागकन्याएं हैं—अपने आप में आजाद, संघर्षरत और खुद से प्रेम में डूबीं.
जहां एग्नेस के साथ फ्रांस के थिएटर और कलाकारों से परिचित होने का मौका मिलता है तो उसकी नानी के साथ बतियाने का एहसास मिलता है, वहीं नागकन्याओं के साथ रेगिस्तान की चमकती रेत में घुमंतू कबीलों की संस्कृति और कठिन जीवन से रू-ब-रू होते हैं. प्रज्ञा आधुनिक, बिंदास शहरी लड़की से आपका सामना कराती है तो माया और आश्विन के साथ सपनों, खंडहरों और रिश्तों की अनोखी दुनिया में विचरण का मौका मिलता है.
उपन्यास की नायिकाएं आजादी, अस्तित्व, प्रेम और नारी सुलभ स्वभाव की डोरी से परस्पर बंधी हुई नजर आती हैं. वे नारीवादी तो हैं लेकिन किसी अतिवाद का शिकार नहीं हैं. वे परंपरावादी नारीवाद के बेहतर स्वरूप में हैं, जो अलग-अलग वर्ग और परिवेश से होते हुए भी उन्हें आपस में जोड़ता है.
पंचकन्या यायावरी के शौकीन पाठकों के लिए भी अच्छा विकल्प है. राजस्थान के सुदूर गांवों, किलों, उत्सवों और बंजारों के रीतिरिवाजों और संस्कृति का सजीव और उनके महोत्सवों की परंपराओं का, उनकी मानसिकता का रोचक वर्णन इस उपन्यास का एक और सकारात्मक पहलू है. कथानक की पृष्ठभूमि के शहर, गांव, स्थान आदि की व्याख्या करते समय उनका सजीव चित्रण लेखिका के वृहद यायावरी अनुभव को दर्शाता है.
उपन्यास के कथा शिल्प के थोड़ा कठिन होते हुए भी भाषा सौंदर्य बांधे रखता है. इन पात्रों की कहानियों के साथ-साथ चलती हुईं उनसे संबंधित विभिन्न परिवेश की विशेषताएं इतनी खूबसूरती से सामने आती हैं कि हर दृश्य, हर पात्र जाना-पहचाना और जीवंत होने लगता है.
पंचकन्या वर्तमान परिवेश की उन सशक्त पंचकन्याओं की कहानी है जो आजाद हैं, आत्मनिर्भर हैं, अपने अस्तित्व के लिए सजग हैं लेकिन तथाकथित नारीवादियों के विपरीत अधिक व्यावहारिक, स्वाभाविक और स्त्री होने के एहसास को लेकर अधिक सकारात्मक हैं. ये व्यावहारिकता के धरातल पर रहकर ही अपने संघर्षों को अंजाम देती हैं.