भारतीय पुरुष क्या अपनी दुलहन की वर्जिनिटी (कौमार्य) को लेकर अब भी उतने ही संवेदनशील हैं जितने दशक भर पहले तक हुआ करते थे? या इसे इस तरह कहें कि अगर ऐक्ट्रेस खुशबू अपने 2005 के बयान को दोहराएं, ‘‘कोई भी पढ़ा-लिखा मर्द यह नहीं चाहेगा कि उसकी पत्नी को वर्जिन होना ही चाहिए’’ तो क्या फिर उन पर जूते और अंडे फेंके जाएंगे, उन्हें अदालत में घसीटा जाएगा, और टीवी पर सार्वजनिक माफी मांगने के लिए मजबूर होना पड़ेगा?
इंडिया टुडे ग्रुप-एमडीआरए सेक्स सर्वे, 2013 से तो यही संकेत मिलता है कि आज भी पुरुषों का रुझान वैसा ही है. सर्वे बताता है कि विवाह पूर्व सेक्स कर चुके पुरुषों का अनुपात महिलाओं के मुकाबले तीन गुना है, फिर भी कम-से-कम 77 फीसदी पुरुष अब भी ‘‘वर्जिन दुलहन’’ पर ही जोर देते हैं.
यह हैरतअंगेज है क्योंकि स्त्री-पुरुष के मेल-जोल के तरीकों में भारी बदलाव स्पष्ट दिखाई दे रहा है. बीस साल पहले अधिकांश लोग खुलकर अपने ‘‘बॉयफ्रेंड’’ और ‘‘गर्लफ्रेंड’’ होने की बात स्वीकार नहीं करते थे. लेकिन, अब डेटिंग को लेकर सोच बदली है और इस पर लोगों का रुख नर्म हुआ है.
1980 के दशक तक अगर किसी फिल्मी सितारे का किसी के साथ रोमांस चलता था तो वह स्टारडस्ट की चटपटी गपशप से ही पता चलता था. आज, सितारे खुलकर यह बातें करते हैं कि वे किसे डेट कर रहे हैं, किसके साथ उनका ब्रेकअप हुआ है, या किसके साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं.
सेक्स सर्वे में विवाह पूर्व सेक्स की बात स्वीकारने वाले स्त्री और पुरुषों के प्रतिशत में फर्क भी उलझाने वाला है. अगर विवाह पूर्व सेक्स के मामले में स्त्रियों के मुकाबले पुरुषों की संख्या तीन गुना अधिक है तो इनमें अधिकतर पुरुष या तो वेश्यालयों में जाते होंगे या एक से अधिक पार्टनर वाली महिलाओं की संख्या ज्यादा होगी. ज्यादा संभावना यही है कि सामाजिक वर्जनाओं की वजह से महिलाएं विवाह पूर्व सेक्स की बात स्वीकार करने में हिचक रही हों.
पिछले एक दशक में देश में हाइमनोप्लास्टी की मांग में इजाफा हुआ है. कई बार हल्के-फुल्के शब्दों में इसे ‘‘पुनः कौमार्य’’ प्राप्त करना कहते हैं. यह कौमार्य झिल्ली (हाइमन) को दुरुस्त करने की सर्जरी है. दिल्ली के अपोलो अस्पताल में कॉस्मेटिक सर्जन अनूप धीर कहते हैं कि हर साल हाइमनोप्लास्टी की मांग 20-30 फीसदी की दर से बढ़ रही है.
चूंकि इसमें करीब 1 लाख रु. का खर्च आता है इसलिए यह मध्य और उच्च मध्य वर्ग का ही शगल हो सकता है. फरीदाबाद में एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में आब्स्टेट्रिक्स की प्रमुख अनिता कांत बताती हैं, ‘‘कई लड़कियों का मानना है कि उनके पार्टनर कितने ही आधुनिक क्यों न हों, इस मामले में पुरुष मानसिकता रूढ़िवादी ही है.’’
दूसरे शब्दों में भारतीय समाज में सेक्स को लेकर एक हद तक उदारता दिखने के बावजूद महिलाओं से जुड़ी सेक्स संबंधी पुरानी रूढिय़ों में खास बदलाव नजर नहीं आता है. लेकिन यह तो तय है कि हाइमन के दुरुस्त करने से ‘‘खोई’’ वर्जिनिटी वापस नहीं पाई जा सकती?
क्या पढ़े-लिखे पुरुषों को इस सर्जरी की जानकारी नहीं होगी? अगर बाद में उन्हें इसका पता चलता है तो क्या होगा? ऐसे में, अगर जोड़े इस बारे में खुलकर बात कर लें तो क्या पैसा, समय और दुश्चिंता से बचा नहीं जा सकता? सर्वे के मुताबिक, 77 फीसदी पुरुष कहते हैं कि अगर कोई लड़की अपने विवाह पूर्व सेक्स संबंधों के बारे में बताती है तो वे उससे शादी करेंगे ही नहीं.
हालांकि तथ्य यह भी है कि चाहे हाइमन को दुरुस्त किया गया हो या नहीं, इस बात का कोई संकेत नहीं मिल सकता कि किसी औरत ने शारीरिक संबंध बनाए हैं या नहीं. अक्सर हाइमन साइक्लिंग जैसे ज्यादा झटके और परिश्रम वाले खेल में हिस्सा लेने के ‘‘फट’’ जाता है. और आम मान्यता के विपरीत ‘‘नथ उतारने’’ जैसा कोई आयोजन नहीं होता.

ऑनलाइन सेक्स शिक्षा वाली वेबसाइट स्कार्लटीन ने हाइमन को ‘‘योनि के बाहरी आवरण’’ का नाम दिया है, उसके मुताबिक हाइमन बेहद महीन झिल्ली होती है जो योनि को आंशिक रूप से ढकती है (पूरी तरह बंद नहीं करती), इसलिए पुरुष संसर्ग के दौरान यह वास्तव में ‘‘टूटती, फटती, बिखरती’’ नहीं है.
इसके विपरीत यह हल्की-सी फट जाती है और बाद में अपने आप ही दुरुस्त भी हो जाती है. कई लड़कियों में हाइमन काफी लचीली होती है और संसर्ग के दौरान एक ओर को सरक जाती है. यही वजह है कि सेक्स के मामले में सक्रिय रहने वाली कई महिलाओं की हाइन पर कोई फर्क नहीं पड़ता और वह अपनी जगह बरकरार रहती है.
इन तथ्यों के बावजूद लगभग सभी समाजों और संस्कृतियों में पुरुष ‘‘वर्जिन’’ महिलाओं के प्रति काफी संवेदनशील बने हुए हैं. और इसके लिए वे कोई भी कीमत चुकाने के लिए तैयार हैं. 2012 में 22 वर्षीया कॉलेज छात्रा नताली डायलन ने नेट पर अपनी वर्जिनिटी की नीलामी की थी. उसे अपने ट्यूशन के लिए पैसे की जरूरत थी. नीलामी की बोली 37 लाख डॉलर तक पहुंची.
महिलाओं की वर्जिनिटी को लेकर इस पुरुष मानसिकता को कैसे समझा जा सकता है? कुछ की दलील है कि किसी पुरुष के लिए यह आश्वस्त होने का पारंपरिक तरीका है कि उसकी दुलहन पहले किसी और के बच्चे की मां नहीं बनी है. लेकिन आज के जमाने में यह क्या है?
लेखक और जेंडर स्टडीज के प्रोफेसर ह्यूगो ‘‘वाइजर वर्जिनिटी के बारे में पुरुष मानसिकता को ‘‘मर्दाना ताकत को लेकर चिंता’’ और ‘‘प्रतिस्पर्धा के डर’’ से जोड़ते हैं. यानी इसकी जड़ में पुरुषों को सेक्स को लेकर असुरक्षा है. अगर वह वहां तक पहुंच सकता है, जहां तक पहले कोई पुरुष नहीं पहुंचा है तो उसे इसकी चिंता नहीं होगी कि उसकी मर्दाना ताकत की तुलना दूसरों से किस तरह की जाएगी!
यह असुरक्षा बोध ही सामाजिक मान्यताओं के आवरण में छिपा रहता है. काम सूत्र पिता को सलाह देता है कि अपने बेटों का विवाह वर्जिन लड़कियों से करें तो उन्हें ‘‘समाजिक प्रतिष्ठा’’ हासिल होगी. यह भी दिलचस्प है कि ऐतिहासिक रूप से वर्जिन दुलहन की कामना मध्य और उच्च मध्य वर्ग में ही रही है, और ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं है.
अपने जीवन के अधिकांश समय अपनी प्राइवेसी को बचाए रखने में व्यस्त रहीं राजकुमारी डायना को विवाह के दौरान बहुचर्चित वर्जिनिटी टेस्ट से गुजरना पड़ा था, और उसके नतीजों की सार्वजनिक घोषणा कर उनके अंकल ने गौरवान्वित महसूस किया था. विक्टोरिया युग में अंग्रेज उच्च वर्ग के जोड़े कैरेज राइड, स्पर्श या चुंबन से ज्यादा कुछ करने का साहस नहीं दिखा सकते थे, जबकि 1800 में इंग्लैंड में कामगार वर्ग की करीब एक-तिहाई स्त्रियां शादी के दिन ही गर्भवती पाई जाती थीं!
इसी साल मध्य प्रदेश में राज्य सरकार के गरीब और आदिवासी परिवारों की मदद के लिए आयोजित सामूहिक विवाह में 450 दुलहनों को वर्जिनिटी और प्रेग्नेंसी टेस्ट से गुजरना पड़ा. अधिकारी यह जानकर हैरान थे कि कुछ दुलहनें गर्भवती थीं. उन्हें आयोजन से निकाल दिया गया.
स्त्री कौमार्य को लेकर भारत में सबसे प्राचीन सांस्कृतिक संदर्भ करीब 2000 साल पहले की किताब अर्थशास्त्र में मिलता है. इसमें अर्थव्यवस्था और प्रशासन संबंधी नीतियां हैं. इसमें लड़कियों की वर्जिनिटी भंग होने के मामलों में विभिन्न जाति और वर्ग के लिए अलग-अलग आर्थिक दंड विधान हैं.
ऊंची जाति के पुरुषों के लिए, अपनी जाति की किसी लड़की का कौमार्य भंग करने पर 400 पण जुर्माना या हाथ काटने का दंड था जबकि किसी दासी पुत्री के मामले में यह 12 पण और कपड़े तथा गहने देने का प्रावधान था.
वर्जिनिटी को सिर्फ आर्थिक मूल्य से ही नहीं तौला जाता बल्कि ऐसा विधान भी है जिससे उच्च वर्ग की वर्जिनिटी को ‘‘मंहगी वस्तु’’ और तथाकथित निचली जातियों की वर्जिनिटी को ‘‘सस्ती वस्तु’’ के रूप में आंका जाता है. लेकिन दोनों ही मामलों में है यह ‘‘वस्तु’’ ही. इस तरह महिलाओं को विभिन्न ब्रांड और मूल्य की वस्तु बना दिया जाता है.
यही वह सिद्धांत है जिसके तहत पुरुष वर्जिन दुलहनों की खरीद करता है. यह इससे अलग नहीं है कि महिलाएं प्लास्टिक या धातु की सेक्स तथा बच्चा पैदा करने की मशीन होतीं और दुकानों से खरीद लाई जातीं. यह वही कुत्सित सोच है कि एकदम नई मशीन खरीदी जाए, जिसका सील बंद हो. सेकंड हैंड सामान कौन खरीदना चाहेगा? और अगर सेकंड हैंड माल ही खरीदना हो तो सस्ते में खरीदना चाहेगा.
भारत के कई हिस्सों में जहां स्त्री-पुरुष अनुपात इतना घट गया है कि शादी करने के लिए लड़कियां नहीं मिलतीं, वहां ‘‘दुलहन तस्करी’’ का रिवाज चल पड़ा है. कई भाइयों वाला कोई परिवार ‘‘दुलहन’’ खरीदता है जो सभी भाइयों के सेक्स और बच्चा पैदा करने के काम आती है. और जब उन्हें लगता है कि उसका खूब इस्तेमाल हो गया है तो उसे किसी और जरूरतमंद परिवार को कुछ सस्ते में बेच दिया जाता है.
इस तरह एक ‘‘दुलहन’’ पांच-पांच बार तक बेची-खरीदी जा सकती है. इसके अलावा कुछ ऐसे समुदाय हैं जो परंपरा से अपनी बेटियों की वेश्यावृत्ति पर ही निर्भर हैं. उनके यहां किसी लड़की की वर्जिनिटी भंग का उत्सव या ‘‘नथ उतराई’’ के रूप में मनाया जाता है. इस आयोजन में उसे सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को बेचा जाता है. और अगर कोई वस्तु खरीद लाते हैं, तो भला कोई यह कहने वाला कौन होता है कि उसे कैसे इस्तेमाल करो और कैसे नहीं?
आश्चर्य नहीं कि इंडिया टुडे-एमडीआरए सर्वे में 80 फीसदी पुरुष मानते हैं कि अगर किसी स्त्री से उन्होंने शादी की है तो उससे सेक्स करने का भी उन्हें अधिकार है. या 80 प्रतिशत यह कहते हैं कि अगर वे नपुंसक हो जाते हैं तो भी उनकी पत्नियों को दूसरा सेक्स पार्टनर तलाशने का कोई हक नहीं है.
लेकिन अंततः स्त्री को संभोग और बच्चा पैदा करने की वस्तु मानने का पुरुषों का अमानवीय नजरिया सिर्फ उनके बूते ही कायम नहीं है. परंपरागत स्त्रियां भी खुद को उसी रूप में देखना चाहती हैं. स्त्रियां पुरुषों की वर्जिनिटी या सेक्स संबंधी आकांक्षाओं में फिट होने की चिंता में मरी जाती हैं अवसरवादिता, दुश्चिंता की शिकार होती हैं.
भारत में स्त्रियों की वर्जिनिटी का मूल्य स्थापित हुए 2000 साल हो गए हैं. अब इसे चुनौती देने का, बदलने का वक्त आ गया है. और यह तभी होगा जब भारतीय स्त्री अपने शरीर, अपनी काम भावनाओं की मालिक खुद बनना सीखेगी. जब वे पितृसत्ता से आंख से आंख मिलाकर यह कहना सीखेंगी कि मेरा शरीर है, मुझे इसके बारे में खुद फैसला लेना है, दफा हो जाओ और कभी इधर नजर न उठाना.
(रीता बनर्जी लेखक और जेंडर एक्टिविस्ट हैं.)

यह हैरतअंगेज है क्योंकि स्त्री-पुरुष के मेल-जोल के तरीकों में भारी बदलाव स्पष्ट दिखाई दे रहा है. बीस साल पहले अधिकांश लोग खुलकर अपने ‘‘बॉयफ्रेंड’’ और ‘‘गर्लफ्रेंड’’ होने की बात स्वीकार नहीं करते थे. लेकिन, अब डेटिंग को लेकर सोच बदली है और इस पर लोगों का रुख नर्म हुआ है.
1980 के दशक तक अगर किसी फिल्मी सितारे का किसी के साथ रोमांस चलता था तो वह स्टारडस्ट की चटपटी गपशप से ही पता चलता था. आज, सितारे खुलकर यह बातें करते हैं कि वे किसे डेट कर रहे हैं, किसके साथ उनका ब्रेकअप हुआ है, या किसके साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं.
सेक्स सर्वे में विवाह पूर्व सेक्स की बात स्वीकारने वाले स्त्री और पुरुषों के प्रतिशत में फर्क भी उलझाने वाला है. अगर विवाह पूर्व सेक्स के मामले में स्त्रियों के मुकाबले पुरुषों की संख्या तीन गुना अधिक है तो इनमें अधिकतर पुरुष या तो वेश्यालयों में जाते होंगे या एक से अधिक पार्टनर वाली महिलाओं की संख्या ज्यादा होगी. ज्यादा संभावना यही है कि सामाजिक वर्जनाओं की वजह से महिलाएं विवाह पूर्व सेक्स की बात स्वीकार करने में हिचक रही हों.

चूंकि इसमें करीब 1 लाख रु. का खर्च आता है इसलिए यह मध्य और उच्च मध्य वर्ग का ही शगल हो सकता है. फरीदाबाद में एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में आब्स्टेट्रिक्स की प्रमुख अनिता कांत बताती हैं, ‘‘कई लड़कियों का मानना है कि उनके पार्टनर कितने ही आधुनिक क्यों न हों, इस मामले में पुरुष मानसिकता रूढ़िवादी ही है.’’
दूसरे शब्दों में भारतीय समाज में सेक्स को लेकर एक हद तक उदारता दिखने के बावजूद महिलाओं से जुड़ी सेक्स संबंधी पुरानी रूढिय़ों में खास बदलाव नजर नहीं आता है. लेकिन यह तो तय है कि हाइमन के दुरुस्त करने से ‘‘खोई’’ वर्जिनिटी वापस नहीं पाई जा सकती?
क्या पढ़े-लिखे पुरुषों को इस सर्जरी की जानकारी नहीं होगी? अगर बाद में उन्हें इसका पता चलता है तो क्या होगा? ऐसे में, अगर जोड़े इस बारे में खुलकर बात कर लें तो क्या पैसा, समय और दुश्चिंता से बचा नहीं जा सकता? सर्वे के मुताबिक, 77 फीसदी पुरुष कहते हैं कि अगर कोई लड़की अपने विवाह पूर्व सेक्स संबंधों के बारे में बताती है तो वे उससे शादी करेंगे ही नहीं.
हालांकि तथ्य यह भी है कि चाहे हाइमन को दुरुस्त किया गया हो या नहीं, इस बात का कोई संकेत नहीं मिल सकता कि किसी औरत ने शारीरिक संबंध बनाए हैं या नहीं. अक्सर हाइमन साइक्लिंग जैसे ज्यादा झटके और परिश्रम वाले खेल में हिस्सा लेने के ‘‘फट’’ जाता है. और आम मान्यता के विपरीत ‘‘नथ उतारने’’ जैसा कोई आयोजन नहीं होता.

ऑनलाइन सेक्स शिक्षा वाली वेबसाइट स्कार्लटीन ने हाइमन को ‘‘योनि के बाहरी आवरण’’ का नाम दिया है, उसके मुताबिक हाइमन बेहद महीन झिल्ली होती है जो योनि को आंशिक रूप से ढकती है (पूरी तरह बंद नहीं करती), इसलिए पुरुष संसर्ग के दौरान यह वास्तव में ‘‘टूटती, फटती, बिखरती’’ नहीं है.
इसके विपरीत यह हल्की-सी फट जाती है और बाद में अपने आप ही दुरुस्त भी हो जाती है. कई लड़कियों में हाइमन काफी लचीली होती है और संसर्ग के दौरान एक ओर को सरक जाती है. यही वजह है कि सेक्स के मामले में सक्रिय रहने वाली कई महिलाओं की हाइन पर कोई फर्क नहीं पड़ता और वह अपनी जगह बरकरार रहती है.
इन तथ्यों के बावजूद लगभग सभी समाजों और संस्कृतियों में पुरुष ‘‘वर्जिन’’ महिलाओं के प्रति काफी संवेदनशील बने हुए हैं. और इसके लिए वे कोई भी कीमत चुकाने के लिए तैयार हैं. 2012 में 22 वर्षीया कॉलेज छात्रा नताली डायलन ने नेट पर अपनी वर्जिनिटी की नीलामी की थी. उसे अपने ट्यूशन के लिए पैसे की जरूरत थी. नीलामी की बोली 37 लाख डॉलर तक पहुंची.
महिलाओं की वर्जिनिटी को लेकर इस पुरुष मानसिकता को कैसे समझा जा सकता है? कुछ की दलील है कि किसी पुरुष के लिए यह आश्वस्त होने का पारंपरिक तरीका है कि उसकी दुलहन पहले किसी और के बच्चे की मां नहीं बनी है. लेकिन आज के जमाने में यह क्या है?

यह असुरक्षा बोध ही सामाजिक मान्यताओं के आवरण में छिपा रहता है. काम सूत्र पिता को सलाह देता है कि अपने बेटों का विवाह वर्जिन लड़कियों से करें तो उन्हें ‘‘समाजिक प्रतिष्ठा’’ हासिल होगी. यह भी दिलचस्प है कि ऐतिहासिक रूप से वर्जिन दुलहन की कामना मध्य और उच्च मध्य वर्ग में ही रही है, और ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं है.
अपने जीवन के अधिकांश समय अपनी प्राइवेसी को बचाए रखने में व्यस्त रहीं राजकुमारी डायना को विवाह के दौरान बहुचर्चित वर्जिनिटी टेस्ट से गुजरना पड़ा था, और उसके नतीजों की सार्वजनिक घोषणा कर उनके अंकल ने गौरवान्वित महसूस किया था. विक्टोरिया युग में अंग्रेज उच्च वर्ग के जोड़े कैरेज राइड, स्पर्श या चुंबन से ज्यादा कुछ करने का साहस नहीं दिखा सकते थे, जबकि 1800 में इंग्लैंड में कामगार वर्ग की करीब एक-तिहाई स्त्रियां शादी के दिन ही गर्भवती पाई जाती थीं!
इसी साल मध्य प्रदेश में राज्य सरकार के गरीब और आदिवासी परिवारों की मदद के लिए आयोजित सामूहिक विवाह में 450 दुलहनों को वर्जिनिटी और प्रेग्नेंसी टेस्ट से गुजरना पड़ा. अधिकारी यह जानकर हैरान थे कि कुछ दुलहनें गर्भवती थीं. उन्हें आयोजन से निकाल दिया गया.

ऊंची जाति के पुरुषों के लिए, अपनी जाति की किसी लड़की का कौमार्य भंग करने पर 400 पण जुर्माना या हाथ काटने का दंड था जबकि किसी दासी पुत्री के मामले में यह 12 पण और कपड़े तथा गहने देने का प्रावधान था.
वर्जिनिटी को सिर्फ आर्थिक मूल्य से ही नहीं तौला जाता बल्कि ऐसा विधान भी है जिससे उच्च वर्ग की वर्जिनिटी को ‘‘मंहगी वस्तु’’ और तथाकथित निचली जातियों की वर्जिनिटी को ‘‘सस्ती वस्तु’’ के रूप में आंका जाता है. लेकिन दोनों ही मामलों में है यह ‘‘वस्तु’’ ही. इस तरह महिलाओं को विभिन्न ब्रांड और मूल्य की वस्तु बना दिया जाता है.
यही वह सिद्धांत है जिसके तहत पुरुष वर्जिन दुलहनों की खरीद करता है. यह इससे अलग नहीं है कि महिलाएं प्लास्टिक या धातु की सेक्स तथा बच्चा पैदा करने की मशीन होतीं और दुकानों से खरीद लाई जातीं. यह वही कुत्सित सोच है कि एकदम नई मशीन खरीदी जाए, जिसका सील बंद हो. सेकंड हैंड सामान कौन खरीदना चाहेगा? और अगर सेकंड हैंड माल ही खरीदना हो तो सस्ते में खरीदना चाहेगा.
भारत के कई हिस्सों में जहां स्त्री-पुरुष अनुपात इतना घट गया है कि शादी करने के लिए लड़कियां नहीं मिलतीं, वहां ‘‘दुलहन तस्करी’’ का रिवाज चल पड़ा है. कई भाइयों वाला कोई परिवार ‘‘दुलहन’’ खरीदता है जो सभी भाइयों के सेक्स और बच्चा पैदा करने के काम आती है. और जब उन्हें लगता है कि उसका खूब इस्तेमाल हो गया है तो उसे किसी और जरूरतमंद परिवार को कुछ सस्ते में बेच दिया जाता है.
इस तरह एक ‘‘दुलहन’’ पांच-पांच बार तक बेची-खरीदी जा सकती है. इसके अलावा कुछ ऐसे समुदाय हैं जो परंपरा से अपनी बेटियों की वेश्यावृत्ति पर ही निर्भर हैं. उनके यहां किसी लड़की की वर्जिनिटी भंग का उत्सव या ‘‘नथ उतराई’’ के रूप में मनाया जाता है. इस आयोजन में उसे सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को बेचा जाता है. और अगर कोई वस्तु खरीद लाते हैं, तो भला कोई यह कहने वाला कौन होता है कि उसे कैसे इस्तेमाल करो और कैसे नहीं?
आश्चर्य नहीं कि इंडिया टुडे-एमडीआरए सर्वे में 80 फीसदी पुरुष मानते हैं कि अगर किसी स्त्री से उन्होंने शादी की है तो उससे सेक्स करने का भी उन्हें अधिकार है. या 80 प्रतिशत यह कहते हैं कि अगर वे नपुंसक हो जाते हैं तो भी उनकी पत्नियों को दूसरा सेक्स पार्टनर तलाशने का कोई हक नहीं है.
लेकिन अंततः स्त्री को संभोग और बच्चा पैदा करने की वस्तु मानने का पुरुषों का अमानवीय नजरिया सिर्फ उनके बूते ही कायम नहीं है. परंपरागत स्त्रियां भी खुद को उसी रूप में देखना चाहती हैं. स्त्रियां पुरुषों की वर्जिनिटी या सेक्स संबंधी आकांक्षाओं में फिट होने की चिंता में मरी जाती हैं अवसरवादिता, दुश्चिंता की शिकार होती हैं.
भारत में स्त्रियों की वर्जिनिटी का मूल्य स्थापित हुए 2000 साल हो गए हैं. अब इसे चुनौती देने का, बदलने का वक्त आ गया है. और यह तभी होगा जब भारतीय स्त्री अपने शरीर, अपनी काम भावनाओं की मालिक खुद बनना सीखेगी. जब वे पितृसत्ता से आंख से आंख मिलाकर यह कहना सीखेंगी कि मेरा शरीर है, मुझे इसके बारे में खुद फैसला लेना है, दफा हो जाओ और कभी इधर नजर न उठाना.
(रीता बनर्जी लेखक और जेंडर एक्टिविस्ट हैं.)