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इस्तांबुल छोड़ गए तोते

उपन्यास में इस्तांबुल (तुर्की) के इतिहास, संस्कृति, मानसिकता, पूर्व के एक प्रतिनिधि के रूप में पश्चिम से उसका द्वंद्व जैसे अनेक संदर्भ यहां मौजूद हैं. इस उपन्यास में पामुक ने अपने समाज की सामूहिक-ऐतिहासिक मानसिकता और स्मृति का गहरा उत्खनन किया है

अपडेटेड 21 अक्टूबर , 2013
एक विशिष्ट रचना या फिर रचनाकार की पहचान उनमें मौजूद जातीय विशिष्टता से भी होती है. ओरहान पामुक की रचनाओं में यह विशिष्टता अपनी पूर्णता में ही प्रतिध्वनित नहीं होती, बल्कि वहां यह मुखर भी है. पामुक की द ब्लैक बुक एक स्तंभ लेखक का अपने कॉलम के माध्यम से अपने समाज की मानसिकता पर असाधारण रूप से छा जाने से लेकर रहस्यमय रूप से गायब होने और अंततः उसे मार दिए जाने की दास्तान है.

द ब्लैक बुक का ढांचा सरल रेखीय न होकर वर्तुलाकार है. उपन्यासकार स्व की तलाश पर बार-बार लौटता है. एक केंद्रीय कथा जरूर है पर उसके चारों ओर अवांतरों की भरमार है. पामुक यहां समाज का वर्णन किसी प्रतिनिधि दृष्टांत से नहीं करते बल्कि एक धुरी के इर्द-गिर्द ब्यौरों और पूरकों की बौछार कर देते हैं. इस प्रकार यहां इतिहास से वर्तमान तक का कोलाज बन जाता है. अलादीन की दुकान का वर्णन एक समाज विशेष की जीवन पद्धति की ओर बढ़ जाता है. कथा की मुख्य धारा आगे निकलती है और हर कदम पर उससे एक नई धारा फूट पड़ती है. इस प्रक्रिया में सब्जेक्ट का रेंज फैलता चला जाता है. यहां अलादीन की, जल्लाद की, रूमी-तबरेज रिश्ते की कहानी है, सूफीज्म है, वाम आंदोलन है, पतन के चिन्ह को पहचानकर भूमिगत होता कलाकार है, अक्षरों के रहस्य की पड़ताल है. साथ ही एक राष्ट्र को लेकर कसक हैः ‘‘हम अभी भी यूरोप की शर्मिंदगी भरी छाया में रेंग रहे हैं, अभी भी कायर बने हुए हैं.’’

उपन्यास में जलाल सालिक मिल्लियत में स्तंभकार है. उसके स्तंभ का पूरे समाज में क्रेज है. वह तमाम तरह के विषय उठाता है. आगे चलकर वह भूमिगत हो जाता है. एक दिन जलाल के चचेरे भाई गालिब की पत्नी रूया भी गायब हो जाती है. रूया जलाल की सौतेली बहन है, संकेत है कि वह जलाल के पास चली गई है. गालिब रूया की तलाश में निकलता है, उसकी यह यात्रा जल्द ही जलाल की तलाश में बदल जाती है. जलाल को तलाशते हुए वह उसके निवास तक पहुंच जाता है. वहां उसे जलाल तो नहीं पर उसका तमाम लेखन मिलता है.

गालिब तय करता है कि वह अगर जलाल की तरह सोचने लगे तो उसके वर्तमान पते को ट्रेस कर सकता है. वह जलाल के दस्तावेजों में डूबता चला जाता है, उसकी शख्सियत ओढ़ लेता है. वह उसके रहस्यों, संकेतों, प्रतीकों, चिन्हों को पकडऩे की कोशिश करता है. लेकिन इस सिलसिले में रहस्य खुलने से ज्यादा उलझता जाता है. प्रश्न, संशय, संकेत उभरते हैं पर उनका काले-सफेद में उत्तर नहीं मिलता. एक भ्रम की स्थिति बनी ही रहती है. यह भ्रम एक राष्ट्र का मेटाफर बन जाता है.



जलाल परिवर्तन का रहनुमा है या उसे भोथरा करने वाला? जलाल वह है, जिसने लोगों में सपने का संचार किया था या वह जिसकी स्मृतिहीनता, शिथिलता से लोग छला महसूस करते हैं? उसके दीवाने हैं और विरोधी भी. उसे कौन मार डालता है? जिस पर उसने अपने स्तंभों में प्रहार किया उन्होंने या फिर वे जो उसके स्तंभ की निरंतरता टूटने से क्षुब्ध हैं? उपन्यास में यह प्रश्न हल नहीं होता. इसी अधूरेपन में उपन्यास की सार्थकता है. वह सरलीकृत समाधान नहीं देता, बल्कि कुछ जरूरी प्रश्न छोड़ जाता है. यह एक रचना के रूप में पाठक के धैर्य की परीक्षा भी लेता है, अपने विस्तार, उलझाव और रहस्यमयता से बांध भी लेता है. द ब्लैक बुक गहरे अर्थ में एक राष्ट्र की अस्मिता की तलाश है. अस्मिता की वह कोटि, जिसमें सामाजिक-सांस्कृतिक-राजनैतिक चेतना के समस्त सरोकार हैं. स्वजातीय विशिष्टता की इसमें शिद्दत से तलाश हैः ‘‘तोते इस्तांबुल छोड़ गए हैं और कौवों ने इस पर कब्जा कर लिया है.’’

जलाल के निष्क्रिय होने पर उससे मिलने को आतुर एक पाठक गहरी पीड़ा से प्रश्न करता है, ‘‘लेकिन उन नौसिखिए रजाई बनाने वालों का क्या होगा, जो कोड में लिखे उन वाक्यों में अपनी जिंदगियों के खोए मायने ढूंढऩे की जद्दोजहद में लगे हैं, जो आपने उन पर थोप दिए थे?’’ यह रचना उपन्यास विधा के ढांचे में अहम हस्तक्षेप करती है. विस्तार के बावजूद इसका मुख्य संदेश इसके इतिवृत्त से ज्यादा संकेतों में है. घटना बहुलता के बावजूद यह यथार्थ के सतहीपन से मुक्त है. यथार्थ की सूचना की बजाए मौजूद और संभाव्य के संकेत ज्यादा महत्वपूर्ण हैं. रूया के लिए गालिब की भटकन व्यक्ति-विशेष की भटकन से आगे बढ़कर अपने समय के चरित्र को उजागर करने वाली घटना बन जाती है. उपन्यास पर हालांकि, स्थानिकता हावी है, ऐतिहासिक और भौगोलिक संदर्भों के बिना इसे समझा नहीं जा सकता. इसके बावजूद यहां जो प्रश्न उठाए गए हैं, जो परिस्थितियां बनती हैं, समाज में उम्मीद, छल, टूटन, आशंका की जो शृंखला है, उसकी प्रतिध्वनि है, वह बहुत हद तक सार्वभौमिक है, खासकर पूरब के लिए.
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