मैं स्टीव, मेरा जीवन मेरी जुबानी
स्टीव जॉब्स,
अनुवाद : नीरू
वाणी प्रकाशन,
4695, 21-ए, दरियागंज, नई दिल्ली-2
कीमत: 150 रु.
www.vaniprakashan.in
vaniprakashan@gmail.com
स्टीव जॉब्स के बारे में कहा जाता है कि तकनीक के साथ रचनात्मकता के सम्मिलन से उन्होंने जो प्रयोग किए, उसने 21वीं सदी में उद्योग जगत के कम-से-कम छह क्षेत्रों को युगांतरकारी ढंग से प्रभावित किया—पर्सनल कंप्यूटर, एनिमेशन फिल्म, संगीत, फोन, कंप्यूटर टैबलेट्स और डिजिटल प्रकाशन. 10 अक्तूबर, 1999 को टाइम पत्रिका में प्रकाशित लेख में उन्होंने कहा था कि उन्हें कला और विज्ञान के संधि स्थल पर खड़ी चीजें प्रभावित करती हैं.
जॉर्ज बेहम द्वारा संपादित पुस्तक मैं स्टीव: मेरा जीवन, मेरी जुबानी को पढ़ते हुए बार-बार इस बात का एहसास होता है कि वे एक ऐसे तकनीकविद् थे, जिन्होंने एक कलाकार की तन्मयता के साथ 'एप्पल’ कंपनी के डिजिटल उत्पादों के साथ ऐसे प्रयोग किए, जिन्होंने तकनीक को मानव जीवन का हिस्सा बना दिया. आइपॉड, आइपैड, आइफोन कुछ ऐसे प्रभावशाली उत्पाद रहे, जिन्होंने तकनीक और मनुष्य के संबंधों को युगांतकारी ढंग से प्रभावित किया. जबकि वे न तो कंप्यूटर के हार्डवेयर इंजीनियर थे, न ही सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर. लेकिन कंप्यूटर और उसकी तकनीक को लेकर उन्होंने जो प्रयोग किए, उसने कंप्यूटर को 'निजी’ से निजतम बना दिया. स्टीव जॉब्स का व्यक्तित्व और उनके कल्पनाशील उत्पादों ने एक तरह से तकनीक युग को परिभाषित करने का काम किया है.
स्टीव जॉब्स खुद को 'तकनीकी नेता’ के रूप में देखते थे, जो बेहतरीन लोगों को अपने साथ जोड़कर अपने तकनीकी सपनों को इस तरह से साकार करते कि 'एप्पल’ के उत्पाद आम लोगों के लिए सपना बन जाते. श्रेष्ठता का एक ऐसा मानक, जिससे लोग फोन या आइपैड जैसे अन्य उत्पादों की तुलना करके देखने लगे. इस भागमभाग के दौर में, जिसमें लोगों के पास घर में रहने का समय नहीं होता, एप्पल ने ऐसे उत्पाद बाजार में उतारे, जिसमें लोग दौड़ते-भागते संगीत-सिनेमा का अपना शौक पूरा कर सकते थे, सबसे जुड़े रह सकते थे और अपने साथ अपने शौक को लेकर चल सकते थे.
आइपॉड, आइ पैड जैसे बेहतरीन उत्पादों के पीछे स्टीव जॉब्स का दिमाग था, जो बिजनेस के अपने आदर्श के रूप में गायकों के मशहूर समूह 'बीटल्स’ को अपना आदर्श मानते थे. उनका मानना था कि 'वे चार अति प्रतिभावान व्यक्ति’ थे जिन्होंने एक-दूसरे के नकारात्मक पक्षों को नियंत्रण में रखा. उन्होंने एक-दूसरे को संतुलित किया और कुल मिलाकर वे अंशों के जोड़ में महान थे. वे कहते हैं, ''मैं बिजनेस को भी ऐसे ही देखता हूं. व्यवसाय में महान कार्य कभी एक व्यक्ति द्वारा नहीं किए जाते, वे लोगों के समूह द्वारा किए जाते हैं.” प्रसंगवश, उन्होंने 9 नवंबर, 1998 को फॉर्च्यून पत्रिका के अंक में कहा था कि प्रसिद्ध गायक बॉब डिलन उनके जीवन के आदर्शों में रहे हैं, क्योंकि वे भी पिकासो की तरह विफलता का जोखिम उठाते रहे हैं. स्टीव ने अपने नए-नए प्रयोगों के साथ विफलता का यह जोखिम लगातार उठाया और हमेशा अपने समय से आगे चलने की कोशिश करते रहे. उनका मानना था, ''कब्रिस्तान में सबसे धनी व्यक्ति होने से मुझे कोई अंतर नहीं पड़ता... रात को बिस्तर पर जाते हुए कहना कि हमने कुछ आश्चर्यजनक किया है- यह मेरे लिए महत्वपूर्ण है.”
जॉब्स की अध्यात्म में गहरी रुचि थी. 1974-75 में वे भारत में नैनीताल के पास नीम करौली बाबा के आश्रम में भी ज्ञान प्राप्ति के लिए आए थे. जेन बौद्धमत के बारे में उनका यह कहना था कि उसको वे इसलिए महत्व देते हैं क्योंकि उसमें बौद्धिक समझ की तुलना में अनुभव को महत्व दिया जाता है. लेकिन उनकी असली आस्था विज्ञान में ही थी. उनका यह प्रसिद्ध कथन इस पुस्तक में है, ''थॉमस एडिसन ने दुनिया को सुधारने के लिए कार्ल मार्क्स और नीम करौली बाबा (हिंदू गुरु), दोनों द्वारा किए गए संयुक्ïत प्रयासों से कहीं अधिक प्रयास किए थे.”
'मैं स्टीव: मेरा जीवन मेरी जुबानी’ पुस्तक में स्टीव जॉब्स के मानस को सामने रखने का प्रयास किया गया है. उनके अपने शब्दों में. संपादक ने पूरा प्रयास किया है विचारों का संयोजन पुस्तक में इस तरह हो कि पुस्तक आम पाठकों के लिए भी रोचक बनी रहे. कहना न होगा कि इस अर्थ में जॉर्ज बेहम संपादित यह पुस्तक सफल साबित हुई है. हिंदी में नीरू ने प्रवाहमय अनुवाद किया है. पुस्तक से स्टीव जॉब्स का एक ऐसा व्यक्तित्व उभरकर आता है, जो प्रेरणादायक है.