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कुछ लोग कहते, औरत है, क्या बजाएगी: कमला शंकर

शास्त्रीय वाद्य यंत्र बजाने वाली महिलाएं बहुत मुश्किल से मिलती हैं और इनमें भी आप चिंतनशील की खोज करने लगें, फिर तो और भी मुश्किल होगी. ऐसे में इस बार जब शंकर गिटार बजाने वालीं कमला शंकर को कुमार गंधर्व सम्मान से नवाजा गया.

अपडेटेड 6 मई , 2013

शास्त्रीय वाद्य यंत्र बजाने वाली महिलाएं बहुत मुश्किल से मिलती हैं और इनमें भी आप चिंतनशील की खोज करने लगें, फिर तो और भी मुश्किल होगी. ऐसे में इस बार जब शंकर गिटार बजाने वालीं कमला शंकर को कुमार गंधर्व सम्मान से नवाजा गया तो उनका चुनाव बिल्कुल सही था क्योंकि उनमें एक दिग्गज बनने के सभी गुण मौजूद हैं. उनके पूर्वज तमिलनाडु के तंजौर के थे लेकिन उनका जन्म, परवरिश और पढ़ाई भगवान शिव की नगरी बनारस में हुई. इसीलिए अपने वाद्य यंत्र गिटार को शंकर गिटार नाम देना उनके लिए सहज स्वाभाविक बात थी.

कमला की संगीत यात्रा छह बरस की उम्र से शुरू होती है, जब उनकी मां उन्हें शास्त्रीय संगीत की कर्नाटक शैली में गायन की शिक्षा देना शुरू करती हैं. लेकिन कमला का मन तो पश्चिम के एक साज हवाइयन गिटार में लगा हुआ था. यह संभव है कि उन्नीसवीं सदी में हवाई पहुंचने वाले कुछ यूरोपीय नाविकों के साथ कुछ गिटार वहां पहुंच गए रहे हों. लेकिन हवाइयन गिटार म्युजिक की शुरुआत का श्रेय आम तौर पर मेक्सिको और स्पेन के चरवाहों को जाता है, जिनकी सेवाएं 1832 के आसपास किंग कामेहामेहा-3 ने ली थीं.

कमला ने गायकी अंग के गुर पंडित अमरनाथ मिश्र और पं. छन्नूलाल मिश्र से सीखे. इसके बाद वे इमदादखानी घराने के मशहूर सितारवादक पंडित बिमलेंदु मुखर्जी की शिष्या बन गईं. गौरतलब बात यह है कि कमला हवाइयन गिटार की टोनल क्वालिटी से बहुत संतुष्ट नहीं थीं. वे दिल्ली में रिखीराम ऐंड संस के पंडित बिशन दास शर्मा के पास गईं और गिटार की सीमाओं पर उनके साथ चर्चा की. शर्मा के बेटे अजय ने गिटार में बदलाव करने में उनकी मदद की. इसके बाद जो साज बनकर सामने आया, वह हवाइयन गिटार और सितार का एक मिलाजुला रूप था. इसके सुर कुछ-कुछ क्लासिकल वीणा से मेल खाते थे.

अवार्ड मिलने पर कमला कहती हैं, ‘‘मैंने कभी इस पुरस्कार की उम्मीद नहीं की थी. मैं तो अभी संगीत की विद्यार्थी हूं. यह पुरस्कार मेरे लिए बहुत मायने रखता है क्योंकि यह महान कुमार गंधर्व के नाम पर है. इसका श्रेय मेरे परिवार और गुरुओं को जाता है, जिन्हें मेरी रचनात्मक क्षमताओं पर पूरा भरोसा था.’’

कमला की संगीत यात्रा इतनी आसान न थी. चूंकि संगीत की कोई विरासत उनके पास नहीं थी इसलिए आरंभ में उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा. महिला होने की वजह से भी उनके लिए मुश्किलें आईं. उन्हीं के शब्दों में, ‘‘मैं नहीं समझ पाती कि लोग आम तौर पर महिलाओं के साथ सहानुभूति क्यों दिखाते हैं? मैंने इस तरह की टिप्पणियां भी सुनी हैं कि औरत है, क्या बजाएगी. या फिर, लेडीज हैं, थोड़ी देर सुन लो. खूबसूरत पर्सनालिटी है, अच्छा बजाएगी.’’ कुछ लोग इस बात से सहमत हो सकते हैं कि एक संगीतकार के तौर पर वास्तव में महिलाओं को पुरुषों से चुनौती झेलनी पड़ती है.

कमला हालांकि इससे डिगी नहीं. वे कहती हैं, ‘‘औरत होने को लेकर की जाने वाली टिप्पणियों से मैं बिल्कुल प्रभावित नहीं हुईं. मैं अपने भीतर नकारात्मकता को प्रवेश नहीं करने देती. धार्मिक व्यक्ति होने के नाते मैं आध्यात्मिक ग्रंथों से शक्ति प्राप्त करती हूं और यह मुझे व्यक्ति के तौर पर मजबूत बनाता है.’’

कमला ने अपने मीठे सुरों से दुनिया का दिल जीत लिया है. उन्हें अपने वाद्य यंत्र पर बेहतरीन नियंत्रण और विविधतापूर्ण वादन के लिए जाना जाता है. कमला इस बात को लेकर चिंतित हैं कि हवाइयन गिटार अब मंचों पर दुर्लभ हो चला है. इसके नामलेवा भी थोड़े ही हैं. कई दुकानों ने इसे बनाना तक बंद कर दिया है. किसी जमाने में बॉलीवुड संगीत की जान रहा यह गिटार अब संकट में है. उनके पास हालांकि कुछ चुनिंदा विद्यार्थी हैं जो हिंदुस्तानी शास्त्रीय शैली में हवाइयन गिटार की शिक्षा ले रहे हैं.

वे खासकर गरीब बच्चों को संगीत सिखाती हैं. ‘‘संगीत साझा करने की चीज है और अगर हमें कलाकारों की अगली पीढ़ी तैयार करनी है तो कुछ हटकर सोचना होगा.’’ हालांकि वे खुद भी गुरु-शिष्य परंपरा में दीक्षित हैं पर उनका मानना है कि गुरुओं को ज्यादा व्यवस्थित होना चाहिए और शिष्यों को व्यवस्था से काट नहीं देना चाहिए. उनकी राय में, ‘‘गुरु-शिष्य परंपरा को आधुनिक समय में विद्यार्थियों की जरूरत के हिसाब से खुद में बदलाव लाना चाहिए.’’ इसी उद्देश्य से उन्होंने शंकर फाउंडेशन की स्थापना की है. वे बताती हैं कि फाउंडेशन का मुख्य उद्देश्य संगीत में उच्च कौशल और प्रशिक्षण देना है. इसके अलावा वे ऐसे कलाकारों को प्रोत्साहित करना और आगे बढ़ाना चाहती हैं, जो प्रतिभाशाली हों न कि सिर्फ उनको, जिन्हें संगीत विरासत में मिला हो.

कमला नियति में विश्वास करती हैं. दंत चिकित्सा की प्रवेश परीक्षा निकाल लेने के बावजूद उन्होंने संगीत को चुना और बीएचयू से संगीत में डॉक्टरेट किया. वे कहती हैं, ‘‘इसी को मैं ईश्वरीय इच्छा कहती हूं.’’ ईश्वर जब किसी खूबसूरत राग की रचना कर रहा होगा तो कमला जरूर उसमें एक खूबसूरत स्वर के रूप में उपस्थित रही होंगी.

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