छठी इंडियन प्रीमियर लीग शुरू होने से एक सप्ताह पहले 26 मार्च को जब तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता ने फैसला किया कि श्रीलंका के क्रिकेट खिलाडिय़ों को चेन्नै में नहीं खेलने दिया जाएगा तो पूरा टूर्नामेंट ही खतरे में पड़ता दिखाई दिया. इसका सीधा-सा मतलब यह था कि चेन्नै सुपर किंग्स के साथ मैचों में पुणे वॉरियर्स को एंजिला मैथ्यूज, डेहली डेयरडेविल्स को माहेला जयवर्धने, सनराइजर्स हैदराबाद को कुमार संगाकारा और मुंबई इंडियंस को लसित मलिंगा के बगैर ही खेलना पड़ता. आइपीएल के बिलियन डॉलर क्लब में विरोध के स्वर उठने लाजिमी थे.
तभी आइपीएल के अध्यक्ष राजीव शुक्ल ने अपनी चिकनी-चौड़ी मुस्कान और बिना कवर वाले मोबाइल फोन के साथ मोर्चा संभाला. इसी तरह की मुश्किल के मौके पर अपनी सेवाएं देने वाले भारत के इस प्रमुख राजनैतिक संकटमोचन और संपर्क बनाने में माहिर इंसान ने नाम कमाया है. एक के बाद एक फोन कॉल, कुछ वादों और कुछ व्यक्तिगत आश्वासनों के साथ उन्होंने आखिरकार संकट का हल निकाल लिया. उसके बाद शुक्ल ने मुस्कुराते हुए इंडिया टुडे से कहा, ‘‘अगर आप लोगों को जानते हैं और यह भी पता है कि उनके साथ संवाद कैसे किया जाए तो सब कुछ आसान है.’’ इसके बाद वे एक और युक्ति का खुलासा करते हैं, ‘‘अहं को साधना एक कला है. आपको उसका गुर आना चाहिए.’’
अहं को साधने और दुश्मनों को भी अपने तरीके से पटा लेने की उनकी कला ने ही 5 सफदरजंग रोड को राजधानी दिल्ली में सत्ता के गलियारों में एक अहम ठिकाना बना दिया है. उनका फोन लगातार बजता रहता है और जालीदार दरवाजा तमाम दलों की नामी हस्तियों के आने-जाने से खुलता-बंद होता रहता है. कई एक तो आइपीएल के अगले मैच के लिए वीआइपी पास लेने भर के लिए आते हैं.
53 साल के राजीव शुक्ल के पास एक नहीं, कई जिम्मेदारियां हैं-संसदीय कार्य और नियोजन राज्यमंत्री, कांग्रेस के प्रवक्ता, आइपीएल के अध्यक्ष, बीसीसीआइ की मार्केटिंग कमेटी के सदस्य, उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष, हॉकी इंडिया लीग बोर्ड के सदस्य, राजनैतिक समीक्षक और अब एक मीडिया कंपनी के कर्ताधर्ता.
दोपहर के बाद का व्यस्त समय था. शुक्ल सफेद कमीज और डार्क कलर की पैंट पहने लेदर चेयर पर विराजमान थे. हर तरह की पोशाक उन पर अजीब-सी ही लगती है, चाहे संसद के लिए कुर्ता-पाजामे की पोशाक हो, आइपीएल मैचों के लिए कोट-टाइ, बीसीसीआइ की बैठकों के लिए सफारी सूट और पेज 3 पार्टियों के लिए टी शर्ट और काला चश्मा. हर जगह उनकी भूमिका संकटमोचन की ही रहती है. सदा मुस्कराते हुए उनकी नजर इसी बात पर रहती है कि किससे भाईचारा बनाया जाए.
शुक्ल का वेटिंग रूम दूसरे किसी वेटिंग रूम जैसा ही है. हां, एक दीवार ऐसी जरूर है, जिस पर लगी तस्वीरों से उनके सामाजिक जीवन के साथ-साथ आधुनिक भारत में राजनीति से लेकर बॉलीवुड तक हर बड़े-छोटे कद की झलक मिलती है. सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ एक ग्रुप फोटो, पॉप स्टार केटी पेरी के साथ हाथ मिलाते हुए फोटो, और इसके अलावा उनके कान में फुसफुसाते शाहरुख खान का बड़ा सा फोटो. लेकिन इन सब पर भारी पड़ती है एक फोटो, जो 2002 की है. इसमें लॉर्ड्स क्रिकेट मैदान पर अप्रत्याशित जीत मिलने पर कप्तान सौरव गांगुली अपनी कमीज उतार कर लहरा रहे हैं. शुक्ल उनसे हाथ मिलाकर उठाए नजर आते हैं.
ये कुछ अहम नाम हैं, जिनके साथ अपनी दोस्ती के बारे में शुक्ल बताना चाहते हैं. शुक्ल की असली ताकत उनकी फोन बुक की मोटाई, बीबीएम में दर्ज कॉन्टैक्ट्स और इस चतुर बुद्धि में छिपी है कि किसको क्या चाहिए. आजकल अधिकतर शाम को वे किसी आइपीएल स्टेडियम में लग्जरी सोफे पर विराजमान मिलते हैं जहां कभी ललित मोदी विराजा करते थे. आजकल मोदी वित्तीय अनियमितताओं के आरोप झेलते हुए लंदन में वनवास काट रहे हैं. शुक्ल कहते हैं, ‘‘मुझे मालूम था कि मोदी के साथ तुलना होकर रहेगी क्योंकि उन्होंने अपना खूब प्रचार जो कर लिया था. लेकिन बात मोदी बनाम शुक्ल की लाइन पर क्यों? आइपीएल अगर वाकई मोदी की देन था तो उन्होंने एक दूसरा क्यों नहीं खड़ा कर लिया?’’
शुक्ल ने 2011 में एक मुश्किल वक्त में आइपीएल की कमान संभाली थी. उस वक्त प्रायोजक साथ छोड़ रहे थे, टीआरपी गिर रही थी और फ्रेंचाइज मालिक घाटा उठा रहे थे. उन्होंने उस दौर में नाव पार लगाई: पेप्सी के साथ 396 करोड़ रु. का करार किया और आइपीएल के दर्शकों की तादाद 192 देशों में 10 करोड़ तक पहुंचा दी. इसके बावजूद उन्होंने खुद को मैनेजर की तरह नहीं बल्कि संकटमोचन के रूप में स्थापित किया है. कांग्रेस जब अपने सहयोगियों या विपक्ष के साथ मुश्किल में फंसती है, जब बीसीसीआइ को सरकार से परेशानी होती है या जब शाहरुख खान मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन से भिड़ जाते हैं तब शुक्ल ही सबके विघ्नविनाशक, अंग्रेजी में कहें तो मैंस फ्राइडे का अवतार लेते हैं.
अपने बारे में इस तरह के विशेषण सुनते ही शुक्ल थोड़ा असहज हो जाते हैं. उनका कहना है कि फ्राइडे जैसा शब्द उन लोगों के लिए इस्तेमाल होना चाहिए जो मुझसे ज्यादा गुणी हों. ‘‘मेरा काम तो समस्याएं सुलझाना है.’’ इसके बाद वे अपनी कामयाबी का राज भी खोल देते हैं, ‘‘रिश्ते बनाए रखने में खासा समय भी देना पड़ता है और अटेंशन भी. खासी भाग-दौड़ भी करनी होती है. उसमें पैसा भी खर्च होता है और ऊर्जा भी. आपको भरोसा रखना होता है कि सब हो जाएगा.’’
शुक्ल की राय में उनका सीधा-सा सिद्धांत है कि भइया, सबको खुश कर पाना तो मुमकिन है नहीं. पर फिर भी ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को खुश रखना आपके हाथ में है.’’ और इसके लिए वे रोज 17 घंटे काम करते हैंरू 7-8 बैठकें, 2-3 प्रेस वार्ताएं और सैकड़ों फोन काल. किसी भी फोन करने वाले को अक्सर वे यही कहते हैं, ‘‘नो प्राब्लम.’’
शुक्ल के करियर की शुरुआत सियासी रिपोर्टिंग के जरिए हुई थी. उन्हें 1978 का वह दिन आज भी याद है, जब पहली दफा नार्दन इंडिया पत्रिका के कानपुर संस्करण में एक मामूली रेल दुर्घटना की खबर उनके नाम से छपी थी. उसके बाद उन्होंने रविवार पत्रिका में वी.पी. सिंह से जुड़े जमीन के सौदों की खोजी खबरें लिखीं. इसी के जरिए वे कांग्रेस और उसके प्रथम परिवार के करीब पहुंचे. उनका जुड़ाव राजीव गांधी से हुआ और उनकी हत्या के बाद भी परिवार से रिश्ता कायम रहा. बताते हैं कि 10 जनपथ में उनकी बेरोकटोक आवाजाही है और वहां के वे एक प्रमुख सिपाही हैं. पत्नी अनुराधा प्रसाद के साथ उन्होंने एक प्रोडक्शन हाउस शुरू किया. अनुराधा बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद की बहन हैं. चार न्यूज और एंटरटेनमेंट चैनल चलाने वाले बीएजी फिल्म्स की अब वे ही मालकिन हैं और उनकी घोषित संपत्ति 23.3 करोड़ रु. की है.
शुक्ल कहते हैं, ‘‘मैं अपने दोस्तों की गिनती नहीं कर सकता. उनकी लिस्ट तो बहुत लंबी है. मेरे दुश्मनों को गिनना आसान है और उन्हें मैं दोस्तों के पाले में लाने के लिए काम करता हूं. लड़ते तो बच्चे हैं. मैं तो यारों का यार बनना चाहता हूं.