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उपन्यास: भर्तृहरि पर अहम आख्यान

उपन्यास इस तरह से भी अपने समय को चित्रित करता है कि उसमें हमारा समय भी झांकने लगता है.

कामिनी काय कांतारे
कामिनी काय कांतारे
अपडेटेड 16 फ़रवरी , 2013

महेश कटारे
अंतिका प्रकाशन,
शालीमार गार्डन, गाजियाबाद-5,
कीमत: 830 रु.
antika56@gmail.com

इतिहास के जानकार भर्तृहरि की जीवनी, काल के संबंध में एकमत नहीं हैं. कोई उन्हें नाथ परंपरा से जोड़ता है तो कोई बौद्ध परंपरा से. उन्होंने सात बार वैराग्य लिया और सात बार ही राजकाज संभाला. जनश्रति के अनुसार वे विक्रमादित्य के बड़े भाई थे. गुरु गोरखनाथ के वे शिष्य थे तो उनका कार्यकाल दसवीं शताब्दी होना चाहिए. इतिहास, जनश्रुति, शोध आदि को खंगालते हुए कथाकार महेश कटारे ने एक क्लासिक रचा है, उपन्यास कामिनी काय कांतारे की शक्ल में.

उपन्यास की सबसे महत्वपूर्ण बात है इसकी भाषा, इसका प्रवाह, जो भर्तृहरि के समय, काल को जीवित कर देती है. परिवेश का ऐसा निर्माण कि भाषा से चित्रमय प्रस्तुति हो. उपन्यास दो भागों में भर्तृहरि के राजा, गृहस्थ, प्रेमी, पति, कवि, योगी आदि रूपों, गुणों का इस तरह से निर्वहन करता है कि उपन्यास के चरित्रों पर लेखक की मुकम्मल पकड़ बनी रहती है और काल की कसौटी पर कसे जा चुके भर्तृहरि मानवीय खूबी-खामियों के साथ निखरकर सामने आते हैं.

उपन्यास कहीं-कहीं इस तरह से भी अपने समय को चित्रित करता है कि उसमें हमारा अपना समय भी झंकने लगता है. श्रेष्ठि वर्ग और जनसामान्य में उस वक्त भी फर्क था, महानगरों, राजधानियों से दूर के अंचल भी आज की तरह ही थे. राजधानियों, महानगरों या नगरों के श्रेष्ठि वर्ग के आवास-स्थल, वहां पसरा-ओढ़ा अभिजात्य उसी तरह का भय, हीनभावना एक सामान्य जन में भरता है जैसा उस वक्त. राजधानियों, महानगरों की छोटी घटना उस वक्त भी चर्चा में रहती थी जैसे आज. उस वक्त भी दूर-दराज, गांव-खेड़े की घटना पर कोई कान नहीं धरता था.

कटारे ने उस काल में जड़ जमा रहे जैन धर्म को भी कथा-सूत्र में बांधते मूल-कथा को गति दी, जैन कोई पद या नाम या वेशभूषा नहीं. वह एक चर्चा है, विचार है, वृत है. इसमें कोई शक नहीं कि महेश कटारे के लेखकीय कद में यह उपन्यास इजाफा करता है. इस उपन्यास में भर्तृहरि के साथ-साथ अंतर्कथाएं भी चलती हैं जैसे किराल कथा, उर्वशी-पुरुरवा की कथा, गुरु गोरखनाथ जन्म कथा आदि.

यह उपन्यास हिंदी साहित्य को न केवल समृद्ध करता है, बल्कि मनुष्य के, श्रम के पक्ष में खड़ा हो उसके झंडे फहराता है. संपूर्ण उपन्यास में उनके ऐसे प्रसंग हैं जब वैभव, धन, उपभोक्तावाद के बरक्स उपन्यासकार ने श्रम को, मनुष्यता को प्रतिष्ठित किया है और यह सप्रयास नहीं लगता. जहां कहीं भी यह कमजोर हुआ, वह इसे रेखांकित कर देता है. भर्तृहरि जब तक राजा रहे जन से दूर रहे, जब स्वयं चलकर जन के पास आए तो लोक-मानस में, लोकगीत में बस गए.

भर्तृहरि को केंद्र में रख यह एक बड़ा काम उपन्यासकार महेश कटारे ने किया है. एक अरसे बाद हिंदी में एक महत्वपूर्ण उपन्यास आया है, क्लासिक. इतिहास को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण चरित्रों पर अमृतलाल नागर, वृंदावनलाल वर्मा, आचार्य चतुर सेन शास्त्री, भगवतीचरण वर्मा, कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी, सुरेशचंद्र वर्मा, शरद पगारे, नरेंद्र कोहली ने महत्वपूर्ण  उपन्यास लिखे हैं, पर कटारे के इस उपन्यास का अंदाजे-बयां और ही है.

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