सुबह के 6 बज रहे हैं और प्रिया (नाम बदला हुआ) को मुंबई की फ्लाइट पकडऩी है. हमेशा की तरह उसके हाथों में मीटिंग्स की अंतहीन फेहरिस्त है. 32 वर्षीया प्रिया दिल्ली की एक निजी फर्म में कंपनी सेक्रेटरी हैं और हर समय काम में व्यस्त रहती हैं. उनके पास न शादी के लिए सोचने का वक्त है, न बच्चों के लिए. वे कहती हैं, ‘‘मैं छह साल से लिव-इन में हूं पर 36 से पहले शादी, बच्चों के बारे में सोच भी नहीं सकती.’’
प्रिया को भविष्य को लेकर कोई हड़बड़ी नहीं है. फिर भी उसने दो चीजों की योजना तैयार कर ली है-अपने पैसे और अपने मातृत्व की सुरक्षा. शादी के बाद बिना किसी परेशानी के मां बनने के सुख के लिए उन्होंने अपने एग्स फ्रीज करवा लिए हैं. प्रिया के मुताबिक, ‘‘एक आजाद लड़की को जीवन में एक बार इस दुविधा से गुजरना होता है कि वह करियर या मातृत्व में से किसे चुने. मुझे एक को चुनने के लिए दूसरे की बलि नहीं देनी थी. लिहाजा जहां मैं करियर पर ध्यान दे रही हूं, वहीं अपने एग्स भी फ्रीज करवा लिए हैं जिससे 40 की उम्र में भी मैं मां बन सकूं.’’
मातृत्व की सुरक्षा
इस तरीके को अपनाने के बाद प्रिया आत्मविश्वास और सुकून महसूस कर रही हैं. और ऐसा सोचने वाली वे अकेली नहीं हैं. माना जाता है कि हॉलीवुड अदाकारा जेनिफर एनिस्टन ने भी अपने एग्स फ्रीज करवाए हैं. एक रियलिटी टीवी शो, किपिंग अप विथ द कार्डियंस की सोशलाइट किम को अपने एग फ्रीज करने की तैयारी के लिए हार्मोन का इंजेक्शन लेते हुए पूरी दुनिया ने देखा.
दिल्ली के मैक्स हॉस्पिटल में आइवीएफ विशेषज्ञ डॉ. तान्या बख्शी कहती हैं, ‘‘यह तरीका बांझपन झेल रही महिलाओं के लिए भी एक विकल्प पेश करता है. साथ ही बच्चे को जन्म देने की सही उम्र और सामाजिक-आर्थिक नजरिए से बच्चे पैदा करने की उम्र के बीच बढ़ते अंतर को पाटने में मदद करता है.’’
शादी और करियर के उतार-चढ़ाव
एक सफल करियर के अलावा शादी से जुड़ी आशंकाएं और बांझपन का डर ऐसी दो अहम वजहें हैं, जिनसे कारण यह ट्रेंड बढ़ा है. दिल्ली के रॉकलैंड हॉस्पिटल में प्रसूति विशेषज्ञ डॉ. आशा शर्मा कहती हैं, ‘‘पश्चिम की तुलना में भारत में यह बात अब भी शुरुआती दौर में है. लेकिन हमने इस संबंध में पूछे जाने वाले सवालों में 20 से 25 फीसदी का इजाफा देखा है. उनमें भी अकेली महिलाओं की संख्या ज्यादा है.’’ 35 वर्षीया पीएचडी छात्रा उमा (नाम बदला हुआ) के अनुसार यह एक शानदार विकल्प है. यह औरत को अपना करियर दांव पर लगाए बगैर मां बनने के सुख को जीने का मौका देता है.
विशेषज्ञों के अनुसार इन फ्रोजेन अंडाणुओं से बच्चों के पैदा होने की उम्मीद महज 30 से 40 फीसदी है. फिर भी महिलाएं इसे आजमाने के लिए तैयार हैं. गुडग़ांव की एक कंपनी में कार्यरत 32 वर्षीया शालिनी (नाम बदला हुआ) इसे अपना ‘बैक-अप प्लान’ मानती हैं. अपनी सहेलियों की बच्चे पैदा करने से जुड़ी कुछ समस्याओं को देखकर शालिनी ने यह तरीका चुना.
बढ़ती उम्र के नतीजे
औरत की मां बनने की क्षमता उम्र पर निर्भर करती है. दिल्ली के फोर्टिस ला फेम में आइवीएफ विशेषज्ञ डॉ. पारुल कटियार कहती हैं, ‘‘औरत की उम्र जितनी कम होगी, वह उतनी आसानी से गर्भवती हो सकती है.’’
हालांकि, आज शहरी महिलाओं की जिंदगी डेडलाइन में बंध गई है. काम की लंबी अवधि, नाइट शिफ्ट और कड़ी प्रतिस्पर्धा ने उन्हें अपना परिवार बनाने के लिए सोचने का वक्त नहीं दिया. डॉ. बख्शी कहती हैं, ‘‘मां बनने के लिहाज से बीस साल की उम्र सबसे सही समय है. लेकिन यही समय करियर को ठोस शक्ल देने का भी होता है. हालात अक्सर महिलाओं को उस उम्र में मां बनने के लिए मजबूर करते हैं, जब वे इसके लिए सबसे सही स्थिति में नहीं होतीं. करियर में खास मुकाम पाने वाली महिलाएं तय लक्ष्य को पूरा करने से पहले मातृत्व का जिम्मा नहीं संभालना चाहतीं. ऐसी महिलाएं अपनी शर्तों पर जीना चाहती हैं. डॉ. बख्शी कहती हैं, ‘‘अंडाणु फ्रीजिंग की सुविधा से महिलाएं उस समय तक मां बनना टाल सकती हैं, जब तक वे खुद को इसके लिए तैयार न कर लें. इससे उन्हें दोनों का आनंद उठाने का मौका मिलता है-पहले एक शानदार करियर और फिर मातृत्व.’’
सही समय पर करें फ्रीज
उम्र बढऩे के साथ अंडाणु की संख्या घटती है और वे उतने स्वस्थ भी नहीं रहते. अंडाणु सहेजने की सबसे उपयुक्त उम्र 20-30 (आदर्श तौर पर 35 से पहले) है. डॉ. कटियार कहती हैं कि उम्र जितनी कम होगी, मां बनने की संभावना उतनी अधिक होगी. लेकिन अंडाणु फ्रीज करने की प्रक्रिया के बारे में जानकारी न होने के कारण महिलाएं इस विकल्प के बारे में बहुत देर से सोचती हैं. डॉ. बख्शी के मुताबिक, ‘‘हाल के आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि एग फ्रीजिंग अपनाने वाली महिलाओं की औसत उम्र 38 वर्ष तक होती है और तब उनके मां बनने की संभावना काफी कम हो चुकी होती है.’’
मिले भावनात्मक संबल
अंडाणु फ्रीज करने की प्रक्रिया चुनौतीपूर्ण होती है. दिल्ली के आइसिस आइवीएफ हॉस्पिटल की निदेशक डॉ. शिवानी सचदेव गौड़ कहती हैं, ‘‘यह भावनात्मक अवस्था है क्योंकि महिला को सबसे पहले मानसिक तौर पर यह लड़ाई लडऩी होती है कि उसे अपने अंडाणु को फ्रीज करने का विकल्प अपनाना है या नहीं.’’
प्रिया कहती हैं, ‘‘अंडाणु फ्रीज करने का सुझाव मेरा था, लेकिन फैसला मैंने और मेरे लिव-इन पार्टनर ने मिलकर किया.’’ शालिनी कहती हैं, ‘‘इसके लिए मुझे दो लाख से ज्यादा रु. खर्च करने पड़े, लेकिन मैं इस बात से संतुष्ट हूं कि अपने मातृत्व के लिए मैं जो कर सकती थी, मैंने किया. आज मैं खुद को ज्यादा सकारात्मक पाती हूं.’’