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नील आर्मस्ट्रांग: भविष्य की ओर पहला कदम

नील आर्मस्ट्रांग को हमेशा ऐसे शख्स के रूप में याद किया जाएगा जिसने लोगों को सितारों तक पहुंचने की प्रेरणा दी.

नील आर्मस्ट्रांग
नील आर्मस्ट्रांग
अपडेटेड 5 सितंबर , 2012

यह 20 जुलाई, 1969 की देर शाम की बात है, हमने हॉस्टल का रेडियो ऑन कर दिया था. मैं बिट्स पिलानी में इंजीनियरिंग का छात्र था. मुझे अब भी याद है कि हम 16 जुलाई को अमेरिकी अंतरिक्ष रॉकेट अपोलो-11 के फ्लोरिडा के केप केनेडी से उड़ान भरने के बाद से ही रोमांचित थे.

नील आर्मस्ट्रांग और उनकी टीम के अन्य अंतरिक्ष यात्री एडविन 'बज़' एल्ड्रिन और माइकल कोलिंस मानव इतिहास में पहली बार चांद पर कदम रखने वाले थे. हम बिल्कुल भावविभोर होकर सुन रहे थे, जब आर्मस्ट्रांग ने यह घोषणा की, "यह आदमी के लिए एक छोटा कदम है, मानवता के लिए एक बड़ी छलांग."

शनिवार, 25 अगस्त को उनका निधन हो गया, अपालो-11 ने जिस तरह से अंतरिक्ष विज्ञान के प्रति लगाव पैदा किया, यह क्षण उनको सलाम करने का है. इसने हमेशा के लिए हमारे ग्रह पृथ्वी और उसके सैटेलाइट (उपग्रह) चंद्रमा को देखने का हमारा नजरिया ही बदल दिया.

चांद की बारीक धूल में खड़े होकर आर्मस्ट्रांग ने अपना अंगूठा उठाया, एक आंख बंद की और देखा कि उनके अंगूठे ने पृथ्वी को ढक लिया है. बाद में उन्होंने इस बारे में बताया, "मैं अचानक यह देख कर दंग रह गया कि वह छोटी-सी मटर जैसी, सुंदर और नीली हमारी पृथ्वी थी.

मैं खुद को बहुत-बहुत छोटा महसूस कर रहा था." लेकिन इस एहसास के पीछे एक विशाल सच्चाई खड़ी थीः ब्रह्मांड की खोज की कोशिशों ने मानवता को टेक्नोलॉजी और जानकारी के लिहाज से एकजुट कर दिया. हर चंद्र अभियान (अब तक करीब 110) और अधिक साहसिक प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए आत्मविश्वास बढ़ाता है.

ब्रह्मांड के रहस्यों को समझ्ने के लिए अमेरिका, रूस, चीन, जापान और भारत अब एक-दूसरे से होड़ लगा रहे हैं. रूस 2025 तक चांद पर इंसान के रहने लायक बेस बनाने की तैयारी में है. चीन के चंद्रमा की ओर जाने वाले अंतरिक्ष यान (चांग सिरीज का यान 2007 में लॉन्च किया गया था) ने चांद की सतह का अब तक का सबसे स्पष्ट 3डी मैप भेजा है. भारत के पहले चंद्र अभियान चंद्रयान-1 की कामयाबी के बाद अब देश 2014-15 में चंद्रयान-2 भेजने की तैयारी कर रहा है.

20 जुलाई, 1969 को कोङ्क्षलस ने चांद की परिक्रमा की जबकि आर्मस्ट्रांग और एल्ड्रिन ने सी ऑफ ट्रैंक्विलिटी (शांति का सागर) पर कदम रखा. यह जलविहीन सागर असल में चांद पर 1,00,000 साल पहले बने पिघले हुए लावा का विस्तार है. चांद के उबड़-खाबड़ क्रेटर के मुकाबले यह उतरने के लिए आसान सतह है. दोनों ने करीब ढाई घंटे तक चांद पर चहलकदमी की, 166 फोटोग्राफ लिए, अपनी जेबों में करीब 47 पाउंड वजन की चट्टानों के सैंपल भरे और चांद की सतह पर अमेरिका का झंडा और स्मृति चिन्ह गाड़ दियाः"हम संपूर्ण मानवता के लिए शांति संदेश लेकर आए हैं."

अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. केनेडी ने 1961 में दिए एक भाषण में चांद पर जाने के मकसद को खुलकर बतायाः रूस से "बराबरी करना और उसे पीछे छोडऩा", जिसने 1957 में दुनिया का पहला कृत्रिम सैटेलाइट स्पुतनिक लॉन्च किया था और 1961 में अंतरिक्ष में यूरी गैगरिन को भेजा था. इसके जवाब में अमेरिका ने चांद पर मानव अभियान अपोलो की शुरुआत की, जिसे छह बार सफलता मिली और 1972 में अपोलो-17 के साथ इस अभियान की समाप्ति हुई. यह सबसे लंबी उड़ान थी, जिसके माध्यम से चांद से सबसे बड़ा सैंपल लाया गया था.

जब भारत ने अपना चंद्रयान-1 शुरू किया, सैटेलाइट बनाना भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के लिए आम बात बन चुकी थी. अब हमारी दिलचस्पी चंद्र विज्ञान में हो गई थीः गुरुत्व क्षेत्र, सतह की बनावट से लेकर अंतरिक्ष यान भेजने के नए तरीकों तक. चांद की कक्षा में पहुंचना एक बड़ी टेक्नोलॉजी है, हमने खुद के ज्ञान से ऐसा कर दिखाया है.

अपोलो-11 के 43 साल बाद भी कई सवालों के जवाब नहीं मिले हैंरू हम हमेशा चांद की एक ही साइड देख पाते हैं. अब भी इसकी दूसरी साइड रहस्य बनी हुई है. माना जाता है कि चांद पर हीलियम-3 का बड़ा भंडार है जो न्यूक्लियर रिएक्टरों के लिए अगली पीढ़ी का फ्यूल है. अभी इसके बारे में हमारी जानकारी थ्योरिटिकल ही हैः पानी और चैबीसों घंटे सूरज की रोशनी वाले चांद के ध्रुवों के बारे में और खोज करनी होगी.

एकांत प्रेमी के रूप में प्रसिद्ध आर्मस्ट्रांग अपने बारे में बात करने से बचते थे. उन्होंने यह कभी नहीं बताया कि चांद पर कदम रखने पर उन्हें कैसा लगा. सूरज की तीखी किरणों से क्या उन्हें अपने सूट के कूलिंग सिस्टम या अंतरिक्ष यान को लेकर कोई चिंता हो रही थी? क्या वे इस बात को लेकर निश्चित थे कि चांद पर कदम रख लेंगे और सुरक्षित पृथ्वी पर वापस आ जाएंगे? 

चांद पर वायुमंडल नहीं है. अगर आप चांद पर धूल उड़ाएंगे तो यह कोई भी ज्योमीट्रिक शेप ले सकती है. आर्मस्ट्रांग सोचते थे कि धूल में पांव मारने पर वह "गुलाब की पंखुड़ी"  का आकार ले रही थी. इंसान की असल कीमत उसकी वैज्ञानिक कल्पना में ही निहित होती है.
दमयंती दत्ता से बातचीत पर आधारित
(पाल इसरो सैटेलाइट सेंटर के पूर्व एसोसिएट डायरेक्टर रह चुके हैं. वे चंद्रयान-1 अभियान के टेलीकम्युनिकेशंस और डाटा ट्रांसमिशन के लिए जिम्मेदार टीम के प्रमुख थे)

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