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आंदोलन ने बनाया सबसे महंगा कवि

अण्णा आंदोलन से जुड़कर युवा कवि कुमार विश्‍वास ने नाम तो पाया ही, कमाई भी 1,000 फीसदी बढ़ गई.

अपडेटेड 18 अगस्त , 2012

कवि का नाम सुनते ही झोला लटकाए और कुरता-पाजामा पहने दाढ़ी वाले एक बेबस और गरीब आदमी की छवि सामने आ जाती है लेकिन 42 वर्षीय युवा कवि कुमार विश्वास पर ये बातें लागू नहीं होतीं. कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है... कविता से युवाओं के दिलों में जगह बनाने वाले कुमार विश्वास इस समय देश के सबसे महंगे कवि हैं. हिंदी, इंग्लिश या किसी भी भाषा का कवि तीन घंटे के कवि सम्मेलन के 4 लाख रु. मांगने की शायद सोच भी नहीं सकता. वे कवि सम्मेलनों में अपनी खुद की टोयोटा इनोवा कार से जाते हैं. वैसे उनके पास टाटा आरिया भी है. वे एपल की मैकबुक इस्तेमाल करते हैं.

2010 में जब अण्णा हजारे के आंदोलन की नींव तैयार हो रही थी, उसी दौरान इस आंदोलन से युवाओं को जोड़ने के लिए कुमार को याद किया गया. और हुआ यह कि आंदोलन के साथ कुमार विश्वास का कद भी बढ़ता गया. 2010 तक वे एक कवि सम्मलेन में भाग लेने के लिए जहां 40,000- 50,000 रु. लिया करते थे, अण्णा आंदोलन के बाद तो उनके भाव आसमान पर जा पहुंचे. उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि फेसबुक पर पिछले हफ्ते केंद्र सरकार को लताड़ते हुए नौकरी छोड़ने का ऐलान करने वाले उनकी पोस्ट को लगभग 25 हजार लोगों ने लाइक किया है. यही नहीं, करीब 2,670 लोगों ने उनकी इस पोस्ट पर टिप्पणी की. फेसबुक पर उन्हें पौने दो लाख से ज्‍यादा लोग पसंद करते हैं और यह संख्या लगातार बढ़ रही है. खुद कुमार के ही शब्दों में,  ''अण्णा आंदोलन से पहले मुझे केवल युवा ही कवि के रूप पहचाना करते थे. आंदोलन से जुड़ने के बाद मुझे और ज्‍यादा लोग पहचानने लगे. इस साल सिर्फ जुलाई में 48 कार्यक्रमों में बुलावा आया.''

गाजियाबाद के पिलखुवा कस्बे के एक मामूली से शर्मा परिवार की पांचवीं संतान कुमार ने जब इंजीनियरिंग की पढ़ाई अधूरी छोड़ने का फैसला किया तो एक डिग्री कॉलेज में प्रोफव्सर उनके पिता को बेहद निराशा हुई. कविताओं के पीछे भागने वाले कुमार ने बीए करने की इच्छा जाहिर की तो नाराज पिता ने इसकी फीस खुद जुटाने का फरमान सुना दिया. 1988 के आसपास की बात है. वे हापुड़ में अपने एक दोस्त के घर गए जहां कवि सम्मलेन चल रहा था. कुमार ने भी वहां कविता सुनाई, जिसे खूब पसंद किया गया. दोस्त के पिता ने खुश होकर उन्हें 100 रु. दिए. यह कुमार की पहली कमाई थी, जिससे उन्होंने बीए की फीस भरी. वे कविताओं के लिए बुलाए जाने लगे. सिलसिला चल पड़ा.

नाम तो होने लगा पर उन्हें कुछ खटक रहा था. कवि सम्मलेन सुनने और सुनाने वाले दोनों अधेड़ उम्र के होते. उन्होंने तय किया कि कैसे भी हो युवाओं में कविता के प्रति प्रेम जगाना है. कॉलेजों में जाकर कवि सम्मेलन करना शुरू कर दिया उन्होंने पहला आयोजन 2002 में एनआइटी दिल्ली में किया. यहीं पर उन्होंने अपनी कविता कोई दीवाना कहता है...सुनाई और साथ में जब यह जुमला जोड़ा कि इस बार के सेमेस्टर में यह कविता आने वाली है तो हॉल तालियों से गूंज उठा. युवाओं से उन्हीं की भाषा में बात करना, उनके जैसे ही कपड़े पहनना, उन्हीं की तरह बोलना, मजाक करना, कुमार की इन्हीं खासियतों ने उन्हें युवाओं में लोकप्रिय बना दिया.

युवाओं की तरह तकनीक का भरपूर इस्तेमाल करने वाले कुमार ट्विटर और यू ट्यूब पर प्रमुखता से मौजूद हैं. गूगल पर उनके नाम पर 11,30,000 रिजल्ट सामने आते हैं तो यू ट्यूब  पर 2,740. वे हिंदी के शायद पहले कवि हैं, जिन्होंने अपना बिजनेस मैनेजर (विशाल) और ब्रांड मैनेजर (रुचि) रखा हुआ है. उनका दावा है कि वे देश के पहले कवि हैं जिनके प्रशंसक उनकी कविताओं की कॉलर रिंग बैंक टोन (ष्टक्चञ्ज) अपने सर्विस प्रोवाइडर से ले सकते हैं.

उनके प्रशंसकों में फिल्मकार अनुराग कश्यप, क्रिकेटर सुरेश रैना और अभिनेता शेखर सुमन भी शामिल हैं. कश्यप ने तो उनकी कविता एक पागल लड़की थी के अधिकार मांगे हैं. फिल्म निर्माता सुनील बोहरा ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा है कि ''कोई भी कुमार विश्वास का मुझसे बड़ा फैन हुआ तो मैं उसे गोली मार दूंगा.'' कुमार के दावे के मुताबिक, वे इकलौते कवि हैं, जिन्हें कॉर्पोरेट शो के लिए बुलाया जाता है. जापान, विएतनाम, न्यू जर्सी समेत दुनिया में वे शो करते हैं. इसी साल न्यू जर्सी में हुआ उनका शो हाउसफुल था. जिसे देखने से वंचित रह गए प्रशंसकों की मांग पर आयोजकों को उसी हफ्ते एक और शो करना पड़ा.

पर उनके चाहने वालों की तादाद के साथ-साथ उनके 'दुश्मन' भी बढ़ने लगे. 2004 से 2009 का उनका समय खासा संघर्ष भरा रहा. ''स्थापित कवियों को मेरी लोकप्रियता अच्छी नहीं लग रही थी. इसी बीच 15-20 कवियों ने मिलकर तय किया कि जहां मुझे बुलाया जाएगा, वहां वे नहीं जाएंगे. सरकारी सम्मेलनों में तो मुझे आज भी नहीं बुलाया जाता.'' लेकिन अण्णा आंदोलन ने उन्हें निडर बनाया और बेबाक भी. तभी तो वे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को कुशल प्रशासक और कांग्रेस नेता राहुल गांधी की तुलना मंदबुद्धि बच्चे से कर पाते हैं. आंदोलन के दौरान तो उन्हें उनके करीबियों तक के जरिए तरह-तरह की धमकियां दिलवाई गईं: ''ये हिंदुस्तान है. ट्रक मारकर चला जाएगा, पता भी नहीं चलेगा.'' कुमार विश्वास का विवादों से भी नाता रहा है. अण्णा आंदोलन के दौरान उन पर मंच से भड़काने वाले बयान देने के आरोप लगे. रामलीला मैदान में जब उन्होंने इस आशय की कविता पढ़ी कि पटना की गलियों से ये आवाज आती है, जिसको चरानी है भैंस वो सरकार चलाते हैं तो उन पर जातिवादी टिप्पणी करने के आरोप लगे. इंडिया अगेंस्ट करप्शन के फेसबुक पेज को उनकी यह कविता हटानी पड़ी.

साहिबाबाद के लाला लाजपत राय कॉलेज में हिंदी के इस एसोसिएट प्रोफव्सर की पत्नी मंजू शर्मा राजस्थान के भरतपुर में प्रोफेसर हैं. आंदोलन के लिए कॉलेज से 'वैधानिक छुट्टी' पर होने के बावजूद उन पर कॉलेज न आने के आरोप लगे. ''मेरे हस्ताक्षर काट दिए गए. एक दिन में 11-11 कारण बताओ नोटिसों के जवाब दिए मैंने.'' हाल के दिनों में उन्हें लग रहा था कि नौकरी छोड़ देनी चाहिए. उन्होंने कॉलेज को इस्तीफा दे दिया है जो अभी मंजूर नहीं हुआ है. फिलहाल वे छुट्टी पर ही रहेंगे.

अण्णा आंदोलन ने कुमार को एक साधारण कवि से सेलेब्रिटी बना दिया. 2005 तक 20,000 रु. का मामूली इनकम टैक्स भरने वाला इस साल 10 से 12 लाख रु. टैक्स भरने जा रहे हैं. जाहिर है, अण्णा आंदोलन और कुमार विश्वास दोनों को एक-दूसरे का फायदा मिला है.

गीत जो चढ़ा युवाओं की जुबां पर
कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है,
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है.
मैं तुझसे दूर कैसा हूं, तू मुझसे दूर कैसी है,
ये तेरा दिल समझता है, ये मेरा दिल समझता है,
के मोहब्बत एक एहसासों की पावन-सी कहानी है,
कभी कबिरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है.
यहां सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आंसू हैं,
जो तू समझे तो मोती हैं, जो ना समझे तो पानी हैं
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भ्रमर कोई कुमुदिनी पर मचल बैठा तो हंगामा,
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा,
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का,
मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा
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बहुत बिखरा बहुत टूटा थपेड़े सह नहीं पाया,
हवाओं के इशारों पर मगर मैं बह नहीं पाया,
अधूरा अनसुना ही रह गया यूं प्यार का किस्सा,
कभी तुम सुन नहीं पाए, कभी मैं कह नहीं पाया
मैं उसका हूं वो इस एहसास से इनकार करता है,
भरी महफिल में भी रुसवा मुझे हर बार करता है,
यकीं है सारी दुनिया को, खफा है मुझसे वो लेकिन,
मुझे मालूम है, फिर भी मुझी से प्यार करता है
मैं जब भी तेज चलता हूं, न.जारे छूट जाते हैं,
कोई जब रूप गढ़ता हूं तो सांचे टूट जाते हैं,
मैं रोता हूं तो आकर लोग कंधा थपथपाते हैं,
मैं हंसता हूं तो मुझसे लोग अक्सर रूठ जाते हैं.
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे आगे,
तू देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे.
समंदर पीर का अंदर है लेकिन रो नहीं सकता,
ये आंसू प्यार के मोती हैं, इसको खो नहीं सकता,
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले,
जो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा हो नहीं सकता

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