
वह 2 नवंबर की रात थी जब दिलों की धड़कनें थाम लेने वाले कुछ लम्हे आए. यह तब हुआ जब क्रिकेट दीवानों को भारतीय टीम की जीत मुट्ठी में दिखने लगी. इस 2025 के महिला क्रिकेट विश्व कप फाइनल मैच पर देश भर में रिकॉर्ड 19 करोड़ लोग टीवी पर आंख गड़ाए बैठे थे और नवी मुंबई के डीवाइ पाटिल स्टेडियम में ज्यादातर नीले रंग की पोशाक में मौजूद 40,000 लोगों का जज्बा उफान ले रहा था.
उस पल तो धड़कनें अट्ठाहास करने लगीं, जब दक्षिण अफ्रीका की कप्तान लॉरा वूल्वाडर्ट के बल्ले से निकली गेंद आसमान छूने लगी और कलाबाजी खाकर अमनजोत कौर ने उसे लपक लिया, जो पहले ही सीधे विकेट पर गेंद फेंक कर रन आउट कराने से सबकी नजरों में चढ़ चुकी थीं. उस एक कैच ने ऐसे वक्त वूल्वाडर्ट की उम्मीदों पर पानी फेर दिया, जब वे भारत से मैच छीनती दिख रही थीं. ऐसा ही उफनता दूसरा पल वह था, जब दीप्ति शर्मा की यॉर्कर गेंद ने एन्नेरी डेरक्सेन को चलता कर तीसरी बार मैच जिताऊ पांच विकेट निकाले.
दीप्ति पहले उतनी ही गेंदों में 58 रन के जरिए घरेलू पारी को संभाला चुकी थीं. फिर, अपनी साथी खिलाड़ियों की हैरी दी, कप्तान हरमनप्रीत कौर ने गजब की दिमागी बाजीगरी दिखाई और बल्ले की छलांग दिखाने के लिए चर्चित शेफाली वर्मा को गेंद थमाकर जोखिम उठाया, लेकिन शेफाली ने दो बहुमूल्य विकेट चटका कर मानो तोहफा दे दिया. आखिरी करिश्मा कप्तान ने जादुई कलाबाजी के साथ कैच लपक कर मैच की इतिश्री की.
ज्यादातर कपिल के डेविल्स की बाद की पीढ़ी में जन्मीं इन 'हैरी की हिरोइनों’ ने न सिर्फ भारत की पहली महिला विश्व कप जीत की पटकथा लिखी, बल्कि देश में स्त्री सशक्तीकरण का भी बुलंद मुकाम तैयार किया. 1983 में भारत की पहला पुरुष विश्व कप जीतने वाली टीम का हिस्सा रहे क्रिकेट दिग्गज सुनील गावस्कर ने ऐलान किया, ''यह सदियों की जीत है. इसे भारतीय क्रिकेट के इतिहास की सबसे बड़ी जीत में एक माना जाएगा.’’
अपनी खुद की अकेली राह बनाने वाली टेनिस स्टार सानिया मिर्जा तो भावुक हो उठीं और कहा, ''यह जीत अपनी-सी लगती है. अगली बार जब कोई छोटी लड़की मां-बाप से कहेगी, 'मैं स्मृति मंधाना बनना चाहती हूं’, तो वे उसे बकवास सपना नहीं समझेंगे.’’ स्मृति की दीवानी दस वर्षीया स्ट्रेना सौम्या बिस्वाल यही भावना दर्शा रही थी. वह उस दिन स्टैंड में एक पोस्टर पकड़े खड़ी थी, जिस पर लिखा था 'वंडर वुमन ऑफ इंडिया—गो इंडिया गो!’
हरमनप्रीत कौर, 736 वर्ष 7, पारी: 8; रन: 260; औसत: 32.5
सेमीफाइनल के बाद हरमनप्रीत कौर ने कहा, ''हमें पता है कि हारने पर कैसा लगता है, मगर अब हम यह जानने को बेताब हैं कि जीत का एहसास कैसा होता है.”” पंजाब के मोगा की यह खिलाड़ी इससे पहले दिल तोड़ने वाले उन पलों से गुजर चुकी थीं, जब 2017 के विश्व कप फाइनल में भारत को इंग्लैंड ने नौ रनों से हरा दिया था.
फिर 2020 के टी20 विश्व कप फाइनल में भी जब टीम ऑस्ट्रेलिया से बुरी तरह हार गई. वनडे विश्व कप में पहली बार कप्तानी कर रहीं कौर उन पुरानी नाकामियों के दाग मिटाने के मिशन पर थीं. पूरी टीम के जोश-जज्बे के केंद्र के अलावा वे ऐसी अगुआ बनकर उभरीं जिन्हें हर कोई मान देता है. चाहे वह फाइनल में अपनी 'गट फीलिंग’ के भरासे शेफाली वर्मा को गेंद थमाने का फैसला हो या फिर सेमीफाइनल में जेमिमा के साथ 167 रनों की तीसरे विकेट की शानदार साझेदारी, टीम की लड़कियों के बीच 'हैरी दी’ के नाम से लोकप्रिय हरमनप्रीत ऐसी कप्तान थीं जिन्होंने सबसे नाजुक पलों में टीम को जीत की राह दिखाई.
लंबा और उबड़-खाबड़ सफर
महिला क्रिकेट को इस बुलंदी पर झंडा गाड़ने में लगभग आधी सदी लग गई. राह में रोड़ा तो जाने-पहचाने पितृसत्तात्मक समाज, लड़कियों के प्रति भेदभाव, संस्थागत उदासीनता और पैसे, सुविधाओं तथा सबसे बढ़कर अपने पर भरोसे की कमी रहे हैं. 1974 में पहली महिला क्रिकेट टीम का हिस्सा रहीं 69 वर्षीया अनुभवी क्रिकेटर डायना एडुल्जी याद करती हैं, ''कुछ पुरुष क्रिकेटर कहते थे कि लड़कियों को क्रिकेट नहीं खेलना चाहिए, किचन में रहना चाहिए.’’ लगभग हर परिवार को बेटियों को लड़कों का विशेषाधिकार माने जाने वाले खेल में भेजने पर ताने सुनने पड़े. अमूमन सुनने को मिलता 'लड़की है, कहां भेज रहे हो.’ जिन छोटे शहरों और गांवों से ये लड़कियां आईं, वहां लड़कों के साथ मिलना-फिरना सही नहीं समझा जाता.
पंजाब के मोगा में हरमनप्रीत दसवीं कक्षा में पहुंचीं, तब उन्हें समझ आया कि ऐसी बातों के क्या मायने में हैं कि ''वह बड़ी हो गई है, अब लड़कों के साथ खेलना सही नहीं है.’’ हरियाणा के रोहतक की शेफाली को कोचिंग पाने के लिए लड़कों का भेष धरना पड़ा. क्रांति गौड़ अपने 'बॉय कट’ बालों की बदौलत ही मध्य प्रदेश के छतरपुर में अपने घुवारा मोहल्ले में लड़कों के साथ खेल पाती थी.

दूसरों के पिता में पहलवान महावीर सिंह फोगट जैसा जज्बा था, जिन्होंने अपने खेल के सपनों को साकार करने के लिए रूढ़ियों को तोड़ने का दमखम दिखाया. अमनजोत के बढ़ई पिता ने अपनी बेटी के लिए अपने हाथ से बल्ला बनाया. हरमनप्रीत के पिता ने अपनी नवजात बच्ची के लिए ऐसी शर्ट खरीदी, जिस पर लिखा था, 'अच्छी बल्लेबाजी’ और अनजाने में उसकी किस्मत को दिशा दे रहे थे. जेमिमा रोड्रिग्स के पिता उनके पहले कोच थे. प्रतीका रावल के पिता बीसीसीआइ से मान्यता प्राप्त अंपायर हैं और बेटी को खुद अकादमियों और टूर्नामेंटों में ले गए.
बतौर नायक प्रेरणा देने वाली महिला खिलाड़ी थोड़ी ही थीं और थीं भी, तो खासकर बैडमिंटन, मुक्केबाजी और कुश्ती जैसे एकल खेलों की ही थीं. क्रिकेट के नायक ज्यादातर लड़के थे: क्रांति के नायक हार्दिक पांड्या, तो शेफाली ने जोरदार बल्ला घुमाने के लिए वीरेंद्र सहवाग की नकल की. महानगर की लड़की जेमिमा जैसी थोड़ी ही लड़कियों को पता था कि कोई महिला क्रिकेट टीम भी है.
2005 के विश्व कप फाइनल खेलने वाली ऐतिहासिक टीम का हिस्सा रहीं नूशिन अल-खदीर को याद है कि महिला टीम की कोई पूछ नहीं थी, कोई लिवाला नहीं था. कोई प्रायोजक नहीं था, उन्हें अक्सर डॉरमिटरी में सोना पड़ता था, कंकड़-पत्थर साफ करके खुद पिच तैयार करनी पड़ती थी और स्टेडियम खाली होते थे. बीसीसीआइ के महिला क्रिकेट की कमान संभालने के पहले मैच फीस जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी. एडुल्जी कहती हें, ''देश की खातिर खेलने के लिए हमें अपनी जेब से खर्च करना पड़ता था.’’ नूशिन याद करती हैं कि 2005 में उनकी उपलब्धि के लिए 8,000 रुपए का इनाम दिया गया था, यानी हर मैच के लिए 1,000 रुपए.
स्मृति मंधाना, 729 वर्ष 7, पारी: 9; रन: 434; औसत: 54.25
अगर उनके खुद के ऊंचे मानकों को देखें, तो 2024 की आइसीसी वनडे क्रिकेटर ऑफ द ईयर और महिला प्रीमियर लीग की सबसे महंगी इस खिलाड़ी के लिए यह टूर्नामेंट 'ठीक-ठाक’ ही रहा. फिर भी, उन्होंने 434 रन बनाए जो दक्षिण अफ्रीकी लॉरा वूल्वाड्र्ट के बाद दूसरा सर्वाधिक स्कोर है.
उसमें न्यूजीलैंड के खिलाफ 'करो या मरो’ सरीखे मुकाबले में बेहद अहम और शानदार शतकीय पारी शामिल है. उन्होंने ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के खिलाफ अर्धशतक भी लगाए. महाराष्ट्र के सांगली की यह भारतीय महिला क्रिकेट की इस 'पोस्टर गर्ल’ की 18 नंबर की जर्सी की डीवाइ पाटिल स्टेडियम में धूम थी. वे सोशल मीडिया पर सबसे अधिक फॉलो की जाने वाली महिला क्रिकेटर (1.32 करोड़ इंस्टाग्राम फॉलोअर) हैं और भारतीय टीम की भावी कप्तान बनने की दिशा में अग्रसर हैं.
मैच भी गिने-चुने हुआ करते थे. महिला टीम 1978-83 और फिर 1987-91 तक कोई अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट नहीं खेल पाई. इसके मायने यह है कि 1988 में ऑस्ट्रेलिया में महिला क्रिकेट विश्व कप में भी नहीं खेली थी. महिला क्रिकेट की महानतम गेंदबाज झूलन गोस्वामी का भी यही कहना है कि यह अनिश्चित-सा था कि महिला टीम कब खेलेगी. वे याद करती हैं, ''कभी-कभी हम पूरे साल कोई एक अंतरराष्ट्रीय शृंखला ही खेल पाते थे.’’
पूर्व भारतीय कप्तान तथा फिलहाल आइपीएल गवर्निंग काउंसिल की पहली महिला सदस्य शुभांगी कुलकर्णी कहती हैं, ''यह देखना काफी निराशाजनक था कि करियर के चरम पर खिलाड़ी खेलने का मौका गंवा बैठीं.’’ टीम को मैटिंग और सीमेंट के विकेटों तथा कीचड़ भरे आउटफील्ड पर खेलना पड़ा. शुभांगी कहती हैं, ''डाइविंग करके गेंद लपकने या रोकने जैसा कोई मामला ही नहीं बनता था.’’ झूलन बताती हैं कि कैसे आर्थिक तंगी की वजह से अच्छे बल्ले और पैड जैसा क्रिकेट का सामान खरीदना बहुत मुश्किल हो जाता था.
जेमिमा रोड्रिग्स, 725 वर्ष 7, पारी: 7; रन: 292; औसत: 58.4
इस साल जनवरी में जेमिमा डीवाइ पाटिल स्टेडियम में कोल्डप्ले के 'पैराडाइज’ और 'विवा ला विडा’ गानों पर झूम रही थीं. उन्हें अंदाजा भी नहीं था कि नौ महीनों के बाद वह उसी मंच पर लौटेंगी, मगर दर्शक बनकर नहीं, बल्कि उस स्टेडियम और देश की 'रॉकस्टार’ बनकर. उन्होंने सात बार की चैंपियन ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपनी सबसे शानदार 127 रन की पारी खेली और भारत को फाइनल में पहुंचा दिया.
यह उपलब्धि उनके लिए इसलिए भी खास हो गई क्योंकि उन्हें टूर्नामेंट के बीच में ही टीम से बाहर कर दिया गया था. वास्तव में वह टीम की चीयरलीडर की तरह हैं जो टीम के होटल में गिटार बजाती हैं और साथियों के साथ मजेदार रील बनाती हैं. सब उन्हें जेमी नाम से बुलाते हैं और वे सबकी चहेती हैं. मैच के बाद के उनकी साफगोई भरी बातचीत सेे तो उनके प्रशंसकों की संख्या में भारी इजाफा हो गया. उन्होंने कहा, ''इस टूर के दौरान मैं लगभग हर दिन रोई हूं. मैं बेचैन थी. मुझे पता था कि मुझे कुछ करके दिखाना है और ईश्वर ने बाकी सब संभाल लिया.’’ अब पूरे देश को जेमिमा पर भरपूर भरोसा है.
बाजी कैसे पलटी
अमूमन बाजी पलटने के लिए बस एक जीत की जरूरत होती है. यह तब हुआ जब मिताली राज की अगुआई वाली टीम 2017 विश्व कप के फाइनल में पहुंची, जिसका टीवी पर प्रसारण हुआ था. उससे भारतीय महिला क्रिकेटरों को भरोसा और उम्मीद मिली कि वे शायद आखिरी बाधा लांघ सकेंगी. उनमें आत्मविश्वास भर गया, जो 2025 के विश्व कप में टीम में दिखा.
यह जोश और जज्बा ही था, जिससे मजबूत प्रतिद्वंद्वी टीमों से हार की हैट ट्रिक के बाद भी टीम करिश्मा कर बैठी. हरमनप्रीत कहती हैं कि टीम कैंप में तब भी 'जोश’ का माहौल था जब मामला ठीक नहीं चल रहा था. वे कहती हैं, ''कोच [अमोल मजूमदार] हमें याद दिलाते रहे कि हममें करिश्मा दिखाने की क्षमता है.’’ यह उपलब्धि किसी एक खिलाड़ी की नहीं, वे टीम की तरह खेलीं, और हर खिलाड़ी ने खूब मेहनत की और योगदान दिया.
सिर्फ पांच महीने पहले सीनियर टीम में आई 22 वर्षीय क्रांति को रेणुका सिंह ठाकुर के साथ गेंदबाजी आक्रमण की शुरुआत की जिम्मेदारी सौंपी गईं. टीम की सबसे जोशीली खिलाड़ी जेमिमा ने सबसे यादगार शतकीय पारी खेलकर भारत को सेमीफाइनल में सात बार की विश्व चैंपियन ऑस्ट्रेलिया को हराने में मदद की.
जीत के बाद जेमिमा ने स्पोर्ट्स टुडे चैनल से कहा, ''हम उतार-चढ़ाव से गुजरे, लेकिन सभी ने एक-दूसरे का ख्याल रखा. वही असली चैंपियन टीम होती है, जो गिरने के बाद उठना जानती हो.’’ यह ऐसी टीम भी है जो मैदान पर अपनी भावनाएं जाहिर करने से नहीं डरती थी. मैच के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में हरमनप्रीत ने कहा, ''मैं भावुक हूं, रो पड़ती हूं. मैं साथियों से कहती हूं, तुम्हें अपनी भावनाएं काबू में नहीं रखनी, बस खुलकर मजा लो.’’
दीप्ति शर्मा, 728 वर्ष 7, पारी: 7; रन: 215; औसत: 30.71, विकेट: 22; स्ट्राइक रेट: 22.18; इकोनॉमी: 5.52
भारत को दीप्ति के परिवार का शुक्रगुजार होना चाहिए, जिसने पूरी मजबूती से दीप्ति का साथ दिया जब आगरा में पड़ोसियों ने क्रिकेट को करियर चुनने पर सवाल उठाए. उनके भरोसे का शानदार फल भी मिला और दीप्ति को प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट चुना गया. श्रीलंका के खिलाफ पहले मैच में उन्होंने 53 रनों की संयमित पारी खेलकर भारत की जीत पक्की की और फिर फाइनल में पांच विकेट झटककर खिताब सुनिश्चित कर दिया, और एन्नेरी डर्कसेन को आउट कर दक्षिण अफ्रीका की लय बिगाड़ दी. ऑलराउंडर दीप्ति के खेल में विविधता है—डीप से शार्प थ्रो, मध्यक्रम में भरोसेमंद रन, और स्पिन से बल्लेबाज की लय तोड़ देना.
तीन साल पहले जब बीसीसीआइ ने अहम कदम उठाए तो महिला क्रिकेट टीम के लिए हालात सुधरने लगे. जय शाह के अध्यक्ष बनने के बाद मैच फीस में समानता, बेहतर प्रशिक्षण सुविधाओं तक पहुंच, ज्यादा सक्रिय मैच कैलेंडर और सबसे महत्वपूर्ण, महिला प्रीमियर लीग की शुरुआत हुई. डब्ल्यूपीएल के अब तक तीन संस्करण हो चुके हैं, जिससे राष्ट्रीय टीम में नए और युवा खिलाड़ियों का आगमन हुआ है.
दो बार की डब्ल्यूपीएल चैंपियन मुंबई इंडियंस की गेंदबाजी कोच झूलन कहती हैं, ''डब्ल्यूपीएल ने घरेलू और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के बीच के अंतर को कम किया है. किसी को राष्ट्रीय टीम में जगह नहीं मिलती है, तब भी पैसे और पहचान मिलती है. खेल का स्तर बेहतर हुआ है क्योंकि ड्रेसिंग रूम में विदेशी क्रिकेटरों का साथ मिलता है, उनके साथ खेलते हैं. खिलाड़ी देखती हैं कि वे कैसे खेल की तैयारी करती हैं और अपनी घबराहट पर काबू पाती हैं. इससे विश्वास पैदा होता है कि उन्हें हराया जा सकता है.’’
महिला खिलाडिय़ों को बिग बैश और द हंड्रेड जैसी विदेशी लीगों में अपने हुनर को निखारने का मौका मिलने से भी मदद मिली है. हरमनप्रीत और स्मृति दोनों ने विदेश यात्राएं की हैं और फिटनेस पर ज्यादा फोकस करके लौटीं. विश्व कप जीत के लगभग फौरन बाद जेमिमा ऑस्ट्रेलिया उड़ गईं और बिग बैश लीग में खेलने वाली पहली भारतीय क्रिकेटर बन गईं. उन्होंने इस साल की शुरुआत में कहा था, ''बहुत कुछ सीखने को मिलता है. किसी फ्रैंचाइजी ने चुना है, यह जानकर ही भरोसा बढ़ जाता है और अच्छे खिलाड़ियों के खिलाफ और अलग-अलग हालात में अच्छा प्रदर्शन करने का जोश पैदा होता है.’’
आगे की राह
पहले महिला क्रिकेट में थोड़े मैचों के दौर से अब सुधार हो रहा है. 2023 में आइसीसी ने अंडर-19 टी20 विश्व कप की शुरुआत की (भारतीय टीम दोनों में जीती); 2026 में महिला टी20 विश्व कप का दसवां संस्करण होगा, जिसके पहले फरवरी-मार्च में डब्ल्यूपीएल का नया सीजन होगा; 2027 में चैंपियंस ट्रॉफी का पहला संस्करण होगा, जो टी20 प्रतियोगिता है. जरूरत है ज्यादा टेस्ट मैचों की, जो लंबा फॉर्मेट होता है और धैर्य और कौशल की परीक्षा होती है. आइसीसी में टेस्ट में टीम या खिलाड़ियों की रैंकिंग तक नहीं है.
ऋचा घोष, 722 वर्ष 7, पारी: 8; रन: 235; औसत: 39.16
पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में बाघाजतिन क्रिकेट कोचिंग सेंटर में प्रशिक्षण लेने वाली एकमात्र लड़की होना ऋचा के लिए वरदान ही साबित हुआ. हर दिन लड़कों के खिलाफ खेलते हुए उन्होंने जल्दी ही रक्रतार, उछाल और लेदर बॉल को झेलना सीख लिया. यही निडरता विश्व कप के दौरान मैचों में सामने आई, जहां विकेटकीपर-बल्लेबाज ने हर बार अपनी क्षमता का कायल बना दिया.
फिर चाहे ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सेमीफाइनल में जेमिमा रोड्रिग्स पर दबाव घटाना हो या फाइनल में दीप्ति शर्मा का साथ देना. ऋचा के 133.52 के स्ट्राइक रेट और 23 चौकों और 12 छक्कों की मदद से भारत ने न केवल बड़े स्कोर खड़े किए बल्कि चुनौतीपूर्ण लक्ष्यों का भी आसानी से पार कर लिया. यही नहीं, ऋचा ने अपनी बेबाक बल्लेबाजी से दर्शकों की प्रशंसा भी बटोरी. 2023 अंडर-19 महिला टी-20 विश्व कप विजेता टीम की सदस्य रही ऋचा ने सीनियर टीम में अपनी जगह मजबूत कर ली है.
लेकिन बदलाव की हवा बह रही है. पिछली बार जब भारत ने 2013 में विश्व कप की मेजबानी की थी, तो मैच खाली स्टेडियमों में हुए थे. लेकिन विशाखापत्तनम और नवी मुंबई के खचाखच भरे स्टेडियम और मैचों के रिकॉर्ड टीवी और स्ट्रीमिंग दर्शकों ने दिखाया कि महिला क्रिकेट कितनी तरक्की कर ली है. झूलन ने इंडिया टुडे से कहा, ''महिला क्रिकेट के लिए 1983 के विश्व कप जैसे बड़े धमाके की जरूरत थी. इससे नई क्रिकेटरों को रोल मॉडल और पेशेवर रुख में मदद मिलेगी.’’
शेफाली वर्मा, 721 वर्ष 7, पारी: 2; रन: 97; औसत: 48.5
उन्हें किस्मत की धनी कह सकते हैं. विश्वकप के शुरुआत में उन्हें टीम से बाहर रखा गया था और वे हरियाणा के सुल्तानपुर में एसआरएनसीसी एकेडमी में अभ्यास कर रही थीं. तभी किस्मत ने करवट ली. बांग्लादेश के खिलाफ लीग मैच में ओपनर प्रतीका रावल के टखने और घुटने में अचानक चोट लग गई और इससे टीम में शेफाली की वापसी का रास्ता खुल गया. विश्वकप के सेमीफाइनल सरीखे बड़े मैच में डेब्यू करना अधिकतर खिलाड़ियों को असहज कर सकता है, मगर शेफाली वैसी नहीं हैं.
इस निडर हिटर बल्लेबाज ने बचपन में लड़कों की तरह क्रिकेट खेलने के लिए अपने बाल छोटे करा लिए थे. 2023 में भारत की अंडर-19 टीम को पहला आइसीसी खिताब दिला चुकी शेफाली ने इस टूर्नामेंट के फाइनल में भी वैसा ही संयम और जज्बा दिखाया. उन्होंने अपने करियर की 87 रनों की सर्वेश्रेष्ठ पारी खेली और 36 रन देकर 2 विकेट भी चटकाए. अब वे पुरुष या महिला किसी भी विश्वकप के फाइनल या सेमीफाइनल में 'प्लेयर ऑफ द मैच’ चुनी जाने वाली सबसे कम उम्र की खिलाड़ी बन गईं.
शुभांगी का सुझाव है कि इस जीत की लय बरकरार रखने के लिए राज्य संघों को क्रिकेट पर फोकस करना होगा और खिलाड़ियों को फिटनेस पर. नूशिन घरेलू मैच फीस बढ़ाने की वकालत करती हैं. फिलहाल, यह वनडे के लिए 20,000 रुपए और टी-20 के लिए 10,000 रुपए है. कमाई बढ़ने से क्रिकेट करियर बीच में छोड़ने की संभावना कम होगी, क्योंकि युवतियां स्नातक के बाद निश्चित कमाई वाला करियर चुनती हैं. भारत की नीली जर्सी की लड़कियों ने 2 नवंबर को आत्म-संदेह पर विजय पा ली है और कामयाबी में बड़ी छलांग लगाई.

