स्टंप पर गेंद के टकराने की आवाज के साथ भारत के 11वें नंबर के बल्लेबाज मोहम्मद सिराज लॉड्रर्स टेस्ट के आखिरी दिन गमगीन होकर घुटनों के बल बैठ गए.
30 गेंदें झेलने के बाद आखिरकार वे आउट हो गए और साथ ही खत्म हुई पांच मैचों की एंडरसन-तेंडुलकर ट्रॉफी में 2-1 की बढ़त लेने की भारत की उम्मीद.
जीत के लिए 192 रनों की जरूरत थी, लेकिन भारत 170 पर ढेर हो गया, और सबसे कम अंतर से जीतने से चूक गया. तीन हफ्ते बाद गेंद दूसरे हाथ में थी. और इस बार पांचवें दिन गेंद के ऑफ-स्टंप से टकराने की मधुर आवाज भारत की नामुमकिन जीत का ऐलान कर रही थी; सिराज फिर इस गहमागहमी के ऐन बीचोबीच थे.
ज्यों ही भारत के इस तेज गेंदबाज ने 180 डिग्री घूमकर अपने फुटबाल के नायक क्रिस्टियानो रोनाल्डो की याद दिलाते हुए अपने हाथ हवा में लहराते हुए जीत का जश्न मनाया, लंदन के ओवल मैदान में चारों तरफ हर्षोल्लास का नजारा छा गया.
भारत के टेस्ट इतिहास में सबसे नजदीकी छह रनों की इस जीत को विदेशी धरती पर देश की सर्वश्रेष्ठ जीत कहा जाने लगा है. गाबा 2021 (ऑस्ट्रेलिया में सीरीज जिताने वाला टेस्ट) जैसी तो शायद नहीं लेकिन साफ तौर पर वैसी ही रंगत की जीत—पैमाने के लिहाज से गहरी धुन और लगन से रची गई, और नाटकीयता की छाप से ओतप्रोत. सीरीज का समापन, चौथी पारी में रिकॉर्ड चेज, चटख पिच, और कगार से वापसी—क्रिकेट की लोककथा के तमाम मसाले लंदन के उस आसमान के नीचे खदबदा रहे थे.
फूटी चिंगारी
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि ओवल की यह परीकथा मैनचेस्टर में दिखाए गए पक्के इरादे की कोख से उपजी थी. चौथे टेस्ट में जब इंग्लैंड ने मेहमान टीम के सामने आंखें चौंधिया देने वाला 669 रनों का भारी-भरकम लक्ष्य रखा—और मैच को प्रभावी तौर पर पहुंच से बाहर निकाल दिया—तो भारतीयों ने घुटने टेकने के बजाय लड़ने का रास्ता चुना.
पूरे पांच थकाऊ सत्रों में भारत ने वक्त से लोहा लेते हुए खेल में बने रहने के लिए जी-जान लड़ा दी. जो हुआ वह रोमांचक चेज भर नहीं, बल्कि दमदार ड्रॉ था. गतिरोधों को आम तौर पर टेस्ट क्रिकेट का सबसे बड़ा गुनाहगार माना जाता है, लेकिन भारत की अटूट धुन और लगन ने उसकी खूबियों के कसीदे पढ़े और उद्घाटक एंडरसन-तेंडुलकर ट्रॉफी पर बराबरी का दावा कायम किया—वह संभावना जो लगातार खयाली पुलाव जान पड़ती थी.
भारत की ऑफ स्पिन गेंदबाजी के मुख्य आधार रहे और दूर बैठकर यह सारा नजारा देखते आए रविचंद्रन आश्विन ने अपने यूट्यूब चैनल पर इसे बेहतरीन तरीके से बयां किया, ''कोई न कोई ऊपर उठेगा. जब हमें आखिरी कगार तक धकेल दिया जाता है, यह भारतीय टीम अलग ही जानवर बन जाती है.’’ वह जानवर ओवल में दहाड़ा. 374 का पीछा करते हुए 301/3 के दबदबे वाली स्थिति से इंग्लैंड ने 66 रनों के भीतर सात विकेट गंवाकर हथियार डाल दिए.
भारत ने इंग्लैंड का लहूलुहान होना भांप लिया, और सिराज ने आखिरी धक्का दिया. अंतिम औपचारिकताओं के बाद एक सवाल पूछा गया—पिछले छह महीनों में आपने अपने और इस टीम के बारे में क्या सीखा? कप्तान शुभमन गिल ने सहज भाव से कहा, ''कभी हार मत मानो.’’ इन चार शब्दों में इस युवा टीम का स्वभाव और चरित्र समाया था, जिसने मुश्किलों, चोटों और उम्मीदों के बोझ की आंख में आंख डालकर देखा—और जरा पलक तक नहीं झपकाई.
गिल ऐंड कंपनी के जज्बे का सिराज से बेहतर कोई और खुलासा नहीं करता. उन्होंने 146 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से सीरीज की चौथी सबसे तेज गेंद फेंकी, वह भी दो महीने लंबे दौरे के आखिरी पलों में, और उस वक्त जब वे सीरीज के दौरान पहले ही 1,100 से ज्यादा गेंदें फेंक चुके थे. ऋषभ पंत के बारे में क्या कहें, जिन्होंने ओल्ड ट्रैफर्ड टेस्ट के खत्म होने तक टूटे हुए पैर के अंगूठे पर प्लास्टर चढ़वाने से मना कर दिया, ताकि मैच बचाने के लिए बल्लेबाजी करते समय उनकी तरफ से कोई कमी न रह जाए.
यह पूछे जाने पर कि इस सीरीज के दौरान क्या इस भारतीय टीम ने कोई खास चरित्र दिखाया, पूर्व भारतीय कप्तान सुनील गावस्कर ने इंडिया टुडे से कहा, ''हां, आप साफ तौर पर देख सकते थे कि किस तरह उसने मुश्किल हालात से उबरकर वापसी की.’’ कप्तान गिल की उन्होंने खास तारीफ की, ''कप्तान वह शख्स था जिसने कभी हार नहीं मानी. शतक बनाने के बाद भी, दोहरा शतक बनाने के बाद भी, यहां तक कि 250 बनाने के बाद भी उसने अपना विकेट नहीं दिया. यही वह जज्बा था जिसके साथ यह टीम खेली. हालात चाहे जो हों, डटे रहना...ऐसी कठिन परिस्थितियों में उन्होंने जोश और उत्साह का वह अतिरिक्त कतरा हासिल किया जो उन्हें जीत के पार ले गया.’’
उभर आया अगुआ
नए कप्तान गिल के लिए यह अग्निपरीक्षा थी. वे निखरकर निकले. हालांकि कुछ गलतियां भी हुईं—ओल्ड ट्रैफर्ड में वाशिंगटन सुंदर को गेंदबाजी का ज्यादा मौका न देना, हेडिंग्ले में अजीबोगरीब ढंग से रक्षात्मक फील्ड सजाना, नंबर 3 पर साई सुदर्शन और करुण नायर को बदल-बदलकर खिलाना, और गैर-आजमाए अंशुल कांबोज के लिए प्रसिद्ध कृष्ण को बाहर बिठाना (ओल्ड ट्रैफर्ड में ही)—नतीजे कुल मिलाकर सकारात्मक थे. यह 25 वर्षीय कप्तान अपनी प्रतिष्ठा में काफी निखार के साथ उभरा.
जब आप अपने सबसे अच्छे बल्लेबाज को कप्तान बनाते हैं, तो हमेशा उसे रन बटोरू के तौर पर खो देने की संभावना होती है. क्रिकेट का इतिहास ऐसे हादसों से भरा पड़ा है. मगर गिल ने सीरीज में 754 रन बटोरकर उन आशंकाओं पर तगड़ा विराम लगा दिया. आइपीएल का उनका वह सुनहरा दौर जारी रहा जिसमें वे पांच सबसे ज्यादा रन बनाने वालों में थे और गुजरात टाइटंस के कप्तान भी थे. दोहरी जिम्मेदारी ने उन्हें जोश से भर दिया था.
आंकड़ों से कहीं ज्यादा गिल के स्वभाव ने अपनी छाप छोड़ी. आम तौर पर सौम्य और संयमित माने जाने वाले गिल का इस सीरीज में कहीं ज्यादा अनगढ़ रूप सामने आया. लॉर्ड्स में वक्त बर्बाद करने की रणनीति के खिलाफ अंग्रेज बल्लेबाजों पर उनकी जुबानी गोलियों की बौछार—जो विराट कोहली की याद दिलाने वाली भभक के साथ बरसाई गई—से इस काम में रच-बस रहे नौजवान की झलक मिली.
सवाल उठे—क्या अपने मूल स्वभाव के खिलाफ जाने का उनकी बल्लेबाजी की लय पर असर पड़ेगा? फटाफट जवाब भी आ गया—मैनचेस्टर के बिल्कुल अगले ही टेस्ट में दमदार शतक और सीरीज के आखिर में प्लेयर ऑफ द सीरीज अवार्ड ने उन संदेहों का समाधान कर दिया है.
मगर नेतृत्व का मतलब केवल रन बनाना और शेखियां बघारना नहीं है. इसका मतलब है भरोसा, और गिल ने इसे भर-भरकर कमाया. टीम के कई खिलाड़ियों के पास ज्यादा तजुर्बा था. पंजाब के इस लड़के के बाजी मारने से पहले कई खुद कप्तानी के दावेदार थे. तो भी उन्होंने कप्तान की धुन पर मुकम्मल ताल ठोंकी, अपने निजी लक्ष्यों को टीम के लक्ष्य से जोड़ा, और मौके की नजाकत के हिसाब से अपना सब कुछ देने के लिए तैयार रहे. यह अब तक गिल की सबसे बड़ी तारीफ थी.
ड्रेसिंग रूम के माहौल के बारे में ओपनर के.एल. राहुल की बातें उससे पूरी तरह मेल खाती हैं जो दुनिया बाहर से देखती है, ''शुभमन अद्भुत रहा. उसने अगुआई की, पर्दे के पीछे और जुड़ाव बनाने के लिए लड़कों के साथ मशक्कत की...जिसे बहुत लोग देख नहीं पाते. वह इस टीम को नई ऊंचाई पर ले जाएगा.’’
गिल की कप्तानी को अभी और निखारने की जरूरत होगी—व्यूहरचना के लिहाज से वे अभी सीख रहे हैं. मगर कप्तान में नेतृत्वकर्ता को उभरना होता है. और उभर तो वे आए हैं 2025 की गर्मियों में.
अनकहा और बेजोड़
भारतीय टीम सिर्फ मुकाबले में नहीं बल्कि फॉर्म पाने के मामले में भी संघर्षरत थी. वह हर मायने में हुनर और मौके के मुताबिक ढलने की काबिलियत का प्रदर्शन था. मसलन, सुंदर को सीरीज के ज्यादातर वक्त गेंदबाजी का मौका नहीं मिला, लेकिन बल्ले से अमूल्य योगदान के जरिए खांटी थ्री-डायमेंशनल खिलाड़ी बनकर उभरे. सदा से भरोसेमंद रवींद्र जडेजा ने गेंद और बल्ले दोनों में अपनी काबिलियत से बढ़कर प्रदर्शन किया.
फिर पूरी तरह चुस्त-दुरुस्त और नियंत्रित आकाश दीप ने गेंदबाजी में गजब तो किया ही, निचले क्रम में महत्वपूर्ण रन बनाए. यशस्वी जायसवाल और राहुल ऊपरी क्रम में डटे रहे, घने बादलों और दबाव के बीच ड्यूक्स की गेंदों का सामना करते रहे. कुछ देर के लिए टीम से बाहर रहे प्रसिद्ध कृष्ण ने अपनी चतुराई दिखाई और सेट बल्लेबाजों को सहज लगने वाली लेंथ से छकाया और उन्हें आउट कर दिया. पंत के स्कोर (134, 118, 65 और 74) सिर्फ जवाबी हमले नहीं, बल्कि एक बयान थे.
फिर सिराज तो इस सीरीज की धड़कन ही थे. उनकी क्षमता का मुकाबला सिर्फ उनके अपने हुनर से ही था—अंदर की ओर या बाहर जाती गेंदें हल्के से एंगल बदल रही थीं और रफ्तार तो लाजवाब एक जैसी थी. टीम इंडिया किसी मसीहा की अगुआई वाली नहीं, बल्कि नायकों की पूरी एक कड़ी थी. लगभग दर्जन भर अलग-अलग खिलाड़ी अलग-अलग मौकों पर खड़े दिखे, जो किसी मजबूत टीम की बानगी है. मसलन, इस सीरीज के एक नायक राहुल ने आखिरी टेस्ट के बाद कहा, ''यह बदलाव की शुरुआत है. यह भारतीय टीम आने वाले वर्षों में देश के बाहर और भी बहुत कुछ जीतेगी.’’
जांचा-परखा-आजमाया
यह 21वीं सदी की बेहतरीन टेस्ट सीरीज में से एक थी. सीरीज के सभी पांच टेस्ट मैच अंतिम दिन तक बेहद रोमांचक रहे (पिछली बार ऐसा ऑस्ट्रेलिया में 2017-18 की ऐशेज सीरीज में हुआ था). यह सिर्फ क्रिकेट नहीं, बल्कि एक जंग थी, जिसमें एक-एक सेशन खेला जा रहा था. और जंग में टीम इंडिया ने साबित किया कि वह सिर्फ हुनर में पुख्ता ही नहीं, बल्कि ठोस इरादे वाली भी है.
ओवल में छह रन के अंतर ने ड्रॉ हुई सीरीज और ऐतिहासिक हार के बीच का फर्क बता दिया. लेकिन इसका असर कहीं ज्यादा हो सकता है, क्योंकि भारत 3-1 से हार जाता, तो सवाल उठ खड़े होते—क्या गिल कप्तानी के लिए नौसिखिया थे? क्या टीम ने कोहली और रोहित शर्मा से जल्दबाजी में आगे पैर बढ़ा दिए? क्या आइपीएल पीढ़ी टेस्ट की लंबी पारी झेल सकती है?
लेकिन कम से कम फिलहाल तो तीखे सवाल परे कर दिए गए हैं. अब ड्रॉ सीरीज अपने मायने, मुकाबले और आगे के लिए उसमें छुपे वादे के चलते जीत जैसी लगती है. शायद सबसे स्थायी उपलब्धि वह खामोशी थी जो दूसरी तरफ घने बादल की तरह छा गई. इंग्लैंड में सुखद पूरी गर्मियों में 'बैजबॉल’ का जिक्र तक नहीं हुआ, लेकिन अचानक उसकी क्रिकेट टीम की बेपरवाह अंदाज से परदा उठ गया.
भविष्य की तैयारी
अब भारतीय टीम सफेद गेंद के सीजन में प्रवेश कर रही है, जिसमें खास अगले साल की शुरुआत में होने वाला टी-20 विश्व कप है, इसलिए उसे भविष्य के लिए अपनी टेस्ट टीम को मजबूत करते रहना चाहिए. एक तो यही कि जसप्रीत बुमरा की उसमें क्या जगह होगी? सबसे खास मैच जिताऊ खिलाड़ी बुमरा हाल के दिनों में चोट से जूझते रहे हैं.
उनके असामान्य ऐक्शन का मतलब यह भी है कि टीम इंडिया को उनकी जिम्मेदारी को सावधानी से तय करना होगा, वरना उन्हें सफेद गेंद वाले क्रिकेट से भी बाहर होने का जोखिम उठाना पड़ सकता है. इंग्लैंड में तीन में से दो टेस्ट मैचों में उनका न होना टीम की योजनाओं में अड़चन पैदा कर रहा था. शायद अब समय आ गया है कि खेल के सबसे लंबे प्रारूप में बुमरा से आगे सोचा जाए. इससे सीरीज से पहले की योजनाएं बनाते समय ज्यादा स्पष्टता मिलेगी और बुमरा को अन्य अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में भी सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने का मौका मिलेगा.
लेकिन यह तभी संभव होगा जब बीसीसीआइ को ऐसे तेज गेंदबाजों का जत्था मिल सके, जो खासकर बल्लेबाजों के अनुकूल पिचों के इस दौर में पांच दिवसीय क्रिकेट की मुश्किलों का सामना कर सकें. ज्यादा समय नहीं हुआ जब कोहली की कप्तानी में ऐसे तेज गेंदबाज थे, जिनसे दुनिया घबराती थी, जिसमें ईशांत शर्मा, मोहम्मद शमी, भुवनेश्वर कुमार, उमेश यादव और जसप्रीत बुमरा जैसे गेंदबाज थे. सिराज, प्रसिद्ध, आकाश दीप, अर्शदीप और शायद मुकेश कुमार और हर्षित राणा के रूप में गिल के पास ऐसा ही एक और गेंदबाजी जत्था बनाने का मौका है.
अगला सवाल तीसरे नंबर के बल्लेबाज को लेकर है, और टीम अभी भी उसे तलाश रही है. इस बेहद अहम जगह पर पहले गुंडप्पा विश्वनाथ, दिलीप वेंगसरकर, मोहम्मद अजहरुद्दीन, राहुल द्रविड़ और चेतेश्वर पुजारा जैसे नामचीन खिलाड़ी उतरते रहे हैं. बदकिस्मती से, करुण नायर और साई सुदर्शन इंग्लैंड में मिले मौकों का फायदा उठाने में नाकाम रहे. तो क्या टीम सुदर्शन पर भरोसा जताएगी या फिर किसी और की ओर देखेगी, क्या सरफराज खान की तरफ?
अगली सीरीज वेस्टइंडीज के साथ घरेलू मैदान पर है, उसके बाद मौजूदा विश्व टेस्ट चैंपियन दक्षिण अफ्रीका के साथ दो मैचों की घरेलू सीरीज नयों को परखने का मौका होगा. इंग्लैंड दौरे से ठोस इरादे वाली युवा टीम तैयार हुई है. यह सिर्फ टेस्ट सीरीज नहीं, यादगार पल था.
कप्तानी सिर्फ रन बनाना और शेखी बघारना नहीं, वह भरोसे का मामला है. शुभमन गिल ने सबका खूब भरोसा कमाया. 754 रन बनाकर उन्होंने सुनील गावस्कर को पीछे छोड़ दिया, जो एक सीरीज में बतौर कप्तान (1978 में वेस्टइंडीज में 732 रन) उन्होंने बनाए थे.
भारतीय बल्लेबाजों ने 12 शतक के साथ इंग्लैंड के खिलाफ 3,807 रन ठोक दिए, जो पांच मैच की टेस्ट सीरीज में किसी भी टीम ने अब तक नहीं बनाया.
कभी हार न मानने का जज्बा ही भारतीय टीम की खासियत थी, जिसने विकट चुनौतियों को मात दी, उम्मीदों के बोझ तले दबी नहीं और उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा.
ओवल के अंतिम टेस्ट में भारत की छह रन के फासले से जीत टेस्ट मैच के इतिहास में उसकी सबसे कम रन से विजय थी.
इंग्लैंड दौरे ने कई खासियतों से सराबोर एक भारतीय टीम तैयार कर दी. यह एक टेस्ट सीरीज भर नहीं थी, इसने खिलंदड़ नौजवानों को तजुर्बेकार पुरुष बना दिया.
शुभमन गिल 25, कप्तान, दाएं हाथ के बल्लेबाज
टेस्ट मैच
37
रन: 2,647
औसत: 41.35
सर्वाधिक स्कोर: 269
जिसे दुनिया ने युवा और अनुभवहीन टीम के तौर पर देखा, उसे कोच गौतम गंभीर ने 'गन टीम’ माना. और उस टीम में केवल शुभमन गिल ही खौफनाक हमलावर की भूमिका अदा कर सकते थे. कप्तान और नंबर 4 बल्लेबाज के तौर पर अपनी पहली पारी में गिल ने शतक बनाया और उसके बाद एजबेस्टन में 269 और 161 रनों की दो शानदार पारियां खेलकर भारत को बड़ी जीत दिलवाई.
लॉर्ड्स में जब वे लड़खड़ाए, तो भारत भी लड़खड़ा गया. लेकिन यह ओल्ड ट्रैफर्ड का सीरीज बचाने वाला शतक था जिसने दिखाया कि वे दबाव को संभाल सकते हैं और सबसे अहम और जरूरी मौके पर आगे आ सकते हैं. हर मैच के साथ गिल दोहरी जिम्मेदारी निभाने में अपनी सहजता का प्रदर्शन करते हुए रच-बस गए. सीरीज के समापन पर उन्होंने कहा, ''अब मुझे ज्यादा अच्छी तरह पता है कि टीम और कप्तान के तौर पर हमें किन क्षेत्रों में काम करने की जरूरत है. मैं टीम के बारे में ज्यादा सोच रहा था, जिससे मुझे अपने को दबाव से निकालने में मदद मिली.’’
अपने और टीम के बारे में सजग जानकारी इस बात का सबूत है कि भारतीय क्रिकेट का भविष्य सुरक्षित और भरोसेमंद हाथों में है. यह सोने पर सुहागे जैसा है कि वे ऐसे स्ट्रोक की झड़ी भी लगा सकते हैं जो गेंदबाजों के छक्के छुड़ा दे.
—सुहानी सिंह
यशस्वी जायसवाल 23, बाएं हाथ के बल्लेबाज
टेस्ट मैचः 24
रन: 2,209
औसत: 50.20
सर्वाधिक स्कोर: 214*
यशस्वी जायसवाल बेखौफ जज्बे के साथ क्रिकेट खेलते हैं. मुंबई के बेरहम मैदानों में गढ़ा गया यह विलक्षण प्रतिभासंपन्न खिलाड़ी इंग्लैंड में ड्यूक्स ब्रांड की गेंदों के बेहतरीन सीम के खिलाफ अपने पहले असली इम्तिहान में उतरा और शानदार प्रदर्शन करते हुए लौटा. उन्होंने दो शतक और दो अर्धशतकों के साथ 41.10 के औसत से 411 रन बटोरे. उनका पहला सैकड़ा—लीड्स में 101—बेहद चुनौतीपूर्ण आक्रमण के खिलाफ आया.
उसमें उनके बल्ले से निकले फुर्तीले कट और जानदार ड्राइव शामिल थे. सीरीज के निर्णायक मैच के दौरान ओवल की दूसरी पारी में 118 के साथ उनका दूसरा नपा-तुला शतक उनकी बढ़ती परिपक्वता का प्रमाण था. यह धैर्य और गंभीरता से भरी पारी थी. कभी-कभार शुरुआती स्विंग से परेशान होकर भी उन्होंने अपने कदम कभी पीछे नहीं खींचे. उनकी तकनीक में कच्चेपन का जो पुट है, वह स्वाभाविक टाइमिंग और बिजली-सी चमक के साथ संतुलित हो जाता है. एक शानदार करियर उनका इंतजार कर रहा है.
—अमिताभ श्रीवास्तव
मोहम्मद सिराज 31, दाएं हाथ के तेज गेंदबाज
टेस्ट मैचः 41
विकेट: 123
औसत: 31.05
बेहतरीन गेंदबाजी: 6/15
सिराज की किस्मत का सितारा भारत-इंग्लैंड सीरीज में ही चमकना था, जहां वे कुछ प्रमुख लम्हों के नायक बने—लॉर्ड्स में बेन डकेट को आउट करने के बाद उनके साथ खुल्लमखुल्ला तीखी कहा-सुनी, उसी मैच के पांचवें दिन गेंद के पीछे लुढ़ककर उनकी गिल्लियां गिरा देने के बाद—जिससे इंग्लैंड को 2-1 की बढ़त मिल गई—उनकी मायूस हालत, और पांचवें टेस्ट के चौथे दिन बाउंड्री पर हैरी ब्रूक का कैच पकड़ने में हुई गलती जिसने वह मैच इंग्लैंड के हाथों में तकरीबन सौंप ही दिया था.
तकदीर इस 31 वर्षीय हैदराबादी के साथ कोई निष्ठुर खेल खेल रही मालूम देती थी. मगर अंग्रेजी का शब्द 'बिलीव’ (विश्वास) उनके फोन पर स्क्रीनशॉट भर नहीं बल्कि उनके डीएनए का हिस्सा है. सिराज ने खुद में यकीन करना कभी छोड़ा नहीं. बुमरा के दो टेस्ट से बाहर रहने के कारण सिराज को भारत के तेज गेंदबाजी आक्रमण की अगुआई करनी पड़ी.
सिराज ने कदम बढ़ाए—ठीक-ठीक कहें तो 1,122 बार—और सपाट पिचों पर अपने जोशीले प्रदर्शन की बदौलत 23 विकेट हासिल किए. ओवल में आखिरी टेस्ट जीतने और अपने नौ विकेट के लिए प्लेयर ऑफ द मैच चुने जाने के बाद उन्होंने कहा, ''आप देश के लिए खेलते हैं...आप बहुत ज्यादा सोचते नहीं कि (आपने) कितने ओवर गेंदबाजी की.’’ अच्छा ही हुआ कि सिराज की जिंदगी में यह गर्व और कीर्ति का क्षण आया. सिराज पर अब पूरे देश को भरोसा है.—सुहानी सिंह
रवींद्र जडेजा 36, बाएं हाथ के बल्लेबाज/गेंदबाज
टेस्ट मैच: 85
रन: 3,886
औसत: 37.72
सर्वाधिक स्कोर: 175*
विकेट: 330
औसत: 25.16
बेहतरीन गेंदबाजी: 7/42
रवींद्र जडेजा को सीधी और आसान परिभाषाओं में बांधना हमेशा ही मुश्किल रहा है. अपनी तड़क-भड़क के लिए कभी मखौल का विषय बना और 'सर जाडेजा’ के उपनाम से नवाजा गया यह खिलाड़ी भारतीय क्रिकेट की पूंजी बनकर उभरा है.
वह उपनाम उनके सम्मान में आज भी फबता है. 36 वर्ष की उम्र में जडेजा ने बल्लेबाजी में 86.00 के औसत—शीर्ष क्रम के बल्लेबाजों में सर्वाधिक—से 516 रन बटोरकर शायद अपनी सबसे विलक्षण सीरीज पूरी की है. ज्यादातर नंबर 6 या उससे भी नीचे बल्लेबाजी करते हुए उन्होंने चार मैचों में या तो अर्धशतक या शतक लगाए.
मैनचेस्टर में उनकी 107 रनों की नाबाद पारी बेशक बेहतरीन पारी थी—जब हार भारत की आंखों में ताक रही थी, जडेजा के संयम और कारीगरी ने मैच ड्रॉ करवाकर हार से बचा लिया. एक के बाद एक पारी में उन्होंने पुछल्ले बल्लेबाजों को रास्ता दिखाया, दबाव झेला, और निचले क्रम को मजबूती दी. गेंदबाजी में उन्होंने 7 विकेट लिए, जो उनके स्तर के लिहाज से मामूली थे लेकिन एक छोर को थामे रखने की उनकी काबिलियत की बदौलत भारत की तेज गेंदबाजी छोटे-छोटे और ज्यादा धारदार हमले कर पाई. साहसी अफसानों वाली इन गर्मियों में सर जडेजा ने भारत के अभियान का तानाबाना बुना.—अमिताभ श्रीवास्तव
के.एल. राहुल 31, दाएं हाथ के बल्लेबाज
टेस्ट मैच
63
रन: 7,789
औसत: 35.41
सर्वाधिक स्कोर:199
कनानुर लोकेश राहुल भारतीय बल्लेबाजी परंपरा की सादगीपूर्ण गरिमा को चुपचाप साकार करते हैं. अपनी लचीली कलाइयों और ऑफ स्टंप से बाहर की गेंदों की पैनी समझ के बूते वे सभी फॉर्मेट और बल्लेबाजी क्रमों के हिसाब से खुद को ढाल पाते हैं.
इंग्लैड के खिलाफ टेस्ट सीरीज के कड़े मुकाबले में राहुल ने 53.20 के औसत से 532 रन बटोरकर—जिसमें दो रौबदार शतक और दो बेहद अहम अर्धशतक शामिल हैं—अपनी श्रेष्ठता एक बार फिर साबित की. रक्षात्मक और आक्रामक बल्लेबाजी का जैसे उन्होंने नापतौल कर एक पैमाना बना दिया.
यही नहीं, जिस तरह उन्होंने दबाव जज्ब किया और साझेदारियां बनाईं, उससे उनका योगदान परिभाषित हुआ. परिस्थितियों को समझने और युवा खिलाड़ियों को राह दिखाने की उनकी काबिलियत परिपक्वता की बानगी है. उनका प्रदर्शन उनके करियर के 35.41 के मामूली औसत के बिल्कुल उलट था—साफ तौर पर राहुल निरंतरता और प्रभाव की कहीं ऊंची आसमानी कक्षा में हैं. वे सीरीज के उन मात्र दो खिलाड़ियों में से एक थे जिन्होंने 1,000 से ज्यादा गेंदों का सामना किया, जो उनके धैर्य और पक्के इरादे को दिखाता है.