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पायलटों की कमी, बुढ़ाता बेड़ा; आखिर कैसे सुधरेगा एयर इंडिया?

अहमदाबाद हादसे ने एयर इंडिया की सुरक्षा, स्टाफिंग और सिस्टम में मौजूद खामियां उजागर कर दी है. टाटा समूह की इस एयरलाइन को दोबारा लोगों का भरोसा हासिल करने के लिए अब आखिर क्या करना होगा?

cover story Air India
अहमदाबाद में दुर्घटनाग्रस्त हुए एयर इंडिया विमान का मलबा

अहमदाबाद में 12 जून को एयर इंडिया की लंदन-गैटविक फ्लाइट एआइ-171 उड़ान भरने के कुछ सेकंड बाद दुर्घटनाग्रस्त होने से ठीक 10 दिन पहले एयरलाइन निजीकरण के बाद अपने पहले सबसे हाइ-प्रोफाइल मीडिया अभियान को अंजाम देने में व्यस्त थी.

1-3 जून को नई दिल्ली में इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (आइएटीए) की वार्षिक आम बैठक के मौके पर एयर इंडिया के एमडी और सीईओ कैंपबेल विल्सन ने वरिष्ठ नेतृत्व के साथ देश-विदेश के 30 से ज्यादा शीर्ष विमानन लेखकों और संपादकों से मुलाकात की.

उस दौरान खासे उत्साहित दिख रहे विल्सन बता रहे थे कि कैसे टाटा समूह संकट में घिरी इस एयरलाइन को नियंत्रण में लेने के तीन साल बाद ही उसे खस्ता हालत से बाहर ले आया है. अब महत्वाकांक्षी उड़ान भरने के लिए इसके पास पर्याप्त संख्या में विमान हैं.

अगला लक्ष्य है, परिचालन दक्षता बढ़ाना. उन्होंने बताया कि एयरलाइन की सूरत बदलने के लिए सितंबर 2022 में शुरू किए गए कार्यक्रम विहान.एआइ का लक्ष्य पांच साल में एयर इंडिया को ''भारतीयता को सहेजे रखने वाली वैश्विक एयरलाइन’’ में बदलना है, जो सफलता के साथ अपने अंतिम पड़ाव के आधे रास्ते तक पहुंच चुका है.

लेकिन एयर इंडिया के बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर हादसे से यह योजना नाकाम हो गई. भारत के विमानन इतिहास की सबसे घातक दुर्घटनाओं में से एक इस घटना में उस पर सवार 242 में से 241 यात्री तथा क्रू और 19 लोग जमीन पर मार गए. इसने टाटा समूह के स्वामित्व वाली एयरलाइन को मीडिया की कड़ी निगरानी और नियामक जांच के घेरे में ला दिया.

इसके फौरन बाद एयरलाइन ने एक हफ्ते के भीतर 83 अंतरराष्ट्रीय उड़ानें रद्द कर दीं और फिर जुलाई मध्य तक अपने वाइडबॉडी अंतरराष्ट्रीय परिचालन में 15 फीसद की कमी का ऐलान किया. केंद्रीय गृह सचिव की अध्यक्षता वाली एक उच्चस्तरीय, मल्टी-एजेंसी समिति को दुर्घटना की जांच करने और सुधार संबंधी सुझाव देने के लिए तीन महीने का समय दिया गया.

लेकिन 20 जून को नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) ने क्रू ड्यूटी मानदंडों के बार-बार उल्लंघन को लेकर एयर इंडिया की खिंचाई की और क्रू रोस्टरिंग के लिए जिम्मेदार एक डिवीजनल वाइस प्रेसिडेंट समेत तीन वरिष्ठ अधिकारियों को हटाने का आदेश जारी कर दिया. एयरक्राफ्ट एक्सीडेंट इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो ने अपनी शुरुआती जांच रिपोर्ट केंद्र को दे दी है. उसमें क्या कहा गया है इसका पता नहीं चल सका.

आखिर विमानन व्यवसाय में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी हासिल करने का लक्ष्य रखने वाले समूह के लिए हालात इतने खराब कैसे हो गए? 1932 में टाटा संस के पूर्व अध्यक्ष जे.आर.डी. टाटा ने टाटा एयरलाइंस के तौर पर इसकी स्थापना की थी लेकिन जून 1953 में राष्ट्रीयकरण के बाद समूह ने एयरलाइन पर नियंत्रण खो दिया.

करीब 70 साल बाद 27 जनवरी, 2022 को टाटा समूह ने आधिकारिक तौर पर जब एयर इंडिया का फिर अधिग्रहण किया तो यह न सिर्फ लंबे दौर के रणनीतिक विनिवेश का बल्कि भारत में सुधार के दौर के बड़े अध्यायों में से एक का भी अंत था. इसने उड्डयन के कारोबार में बड़ी हिस्सेदारी बनाने की टाटा समूह की महत्वाकांक्षाओं से उपजी कॉर्पोरेट दक्षता के भी इस क्षेत्र में आने का इशारा किया.

अहमदाबाद में 12 जून को उड़ान भरने के कुछ क्षण बाद ही एक इमारत से टकराने के बाद एयर इंडिया का विमान.

यह काम इतना आसान भी न था. अधिग्रहण 18,000 करोड़ रु. में और उस समय हुआ जब राष्ट्रीय विमानन कंपनी भारत के अंतरराष्ट्रीय और घरेलू दोनों क्षेत्रों में एक प्रमुख खिलाड़ी थी और 61,562 करोड़ रुपए के कर्ज में डूबी थी. वित्त वर्ष 2022 में इसने 9,591 करोड़ रुपए का घाटा दर्ज किया था. सौदे की शर्तों के तहत टाटा समूह ने एयरलाइन के 15,300 करोड़ रुपए का कर्ज अपने ऊपर ले लिया; शेष 46,000 करोड़ रुपए सरकार की तरफ से स्थापित स्पेशल पर्पज व्हीकल एआइ एसेट होल्डिंग लिमिटेड को हस्तांतरित कर दिए गए.

बड़ी महत्वाकांक्षा, कड़ी चुनौतियां

हालांकि, टाटा समूह की विमानन क्षेत्र में वापसी कई साल पहले ही शुरू हो गई थी. 2014 में इसने एयरएशिया इंडिया को लॉन्च करने के लिए मलेशिया की एयरएशिया बरहाद के साथ एक संयुक्त उद्यम में प्रवेश किया, जिसमें टाटा की हिस्सेदारी 51 फीसद थी.

2022 में टाटा ने एयरएशिया इंडिया पर पूर्ण नियंत्रण हासिल कर लिया और अक्तूबर 2024 में एयर इंडिया एक्सप्रेस के साथ विलय से पूर्व इसका नाम बदलकर एआइएक्स कनेक्ट कर दिया. टाटा संस और सिंगापुर एयरलाइंस के बीच एक और संयुक्त उद्यम विस्तारा का परिचालन 2015 में शुरू हुआ लेकिन नवंबर, 2024 में इसका एयर इंडिया के साथ विलय हो गया. विलय के बाद नई संयुक्त इकाई में टाटा की हिस्सेदारी 74.9 फीसद है, बाकी सिंगापुर एयरलाइंस के पास है.

दरअसल, टाटा समूह विमानन क्षेत्र में बड़ा दांव लगा रहा था. आखिरकार, भारत में नागरिक विमानन पहले कभी भी इतनी बेहतर स्थिति में नहीं था. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, देश में हवाई यात्री यातायात घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर पिछले दशक में दोगुने से भी ज्यादा हो गया है, जो वित्त वर्ष 2024 में 37.6 करोड़ तक पहुंच गया. इसने भारत को अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा विमानन बाजार बना दिया है.

सरकारी अनुमानों के साथ-साथ स्वतंत्र एजेंसियों का आकलन भी यही कहता है कि अगले कुछ वर्षों में घरेलू हवाई यातायात में 7-10 फीसद और अंतरराष्ट्रीय यातायात में 15-20 फीसद की वार्षिक वृद्धि हो सकती है. विल्सन ने हादसे से कुछ दिन पहले ही मीडिया को दिए एक साक्षात्कार में एयर इंडिया के दुनिया के दूरदराज के ठिकानों से जुड़ने की योजना के बारे में बात की थी. हादसे के बाद टाटा को विमानन क्षेत्र में अपनी आगे की यात्रा फिर शुरू करने से पहले कई चुनौतियों से निबटना होगा.

पहली चुनौती, बोझ घटाना

इसमें दो-राय नहीं कि टाटा ने लंबे वक्त से संकटों से घिरी एयरलाइन खरीदी थी. निवेश की उपेक्षा, अत्यधिक कार्यबल के साथ कर्मचारियों में लगातार असंतोष और भारी घाटे ने एयर इंडिया को दशकों से परेशान कर रखा था. जाहिर है, टाटा के लिए बदलाव आसान नहीं था. नाम न छापने की शर्त पर एक विमानन विशेषज्ञ कहते हैं, ''एयर इंडिया में टाटा को कई पुराने मुद्दों से जूझना पड़ा क्योंकि इसे ऐसे बाबू चला रहे थे जिन्हें विमानन क्षेत्र के बारे में बिल्कुल भी जानकारी नहीं थी.

जाहिर है, सुरक्षा मामले में समझौता किया गया.’’ नाम न बताने के इच्छुक एक अन्य उद्योग विशेषज्ञ का मानना है कि एयर इंडिया की संस्कृति अभी भी सरकारी है. वे कहते हैं, ''अगर आपके विमान की छत से पानी टपक रहा और एयर कंडीशनिंग काम नहीं कर रही तो यह आपकी कंपनी की संस्कृति का ही परिचायक है.’’

एयर इंडिया का कहना है कि उसके घरेलू बेड़े के 59 फीसद और अंतरराष्ट्रीय विमानों में से करीब 40 फीसद में नए या उन्नत केबिन हैं. एक प्रवक्ता ने इंडिया टुडे को बताया, ''सीट की हालत या इनफ्लाइट एंटरटेनमेंट सिस्टम जैसी केबिन सुविधाओं को विमान की उड़ान योग्यता से जोड़ना गलत है.

ये पहलू विमान की सुरक्षा या मेंटेनेंस प्रोटोकॉल से जुड़े नहीं हैं, जिन पर कड़ी नजर रखी जाती है.’’ उन्होंने बताया कि वैश्विक आपूर्ति शृंखला में व्यवधानों के कारण इसके रेट्रोफिट (सुविधाओं को बेहतर बनाने के) कार्यक्रम में देरी हुई, और पहले बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर की रेट्रोफिटिंग जुलाई में ही शुरू होने वाली है.

ड्रीमलाइनर समेत एयर इंडिया के तकरीबन 60 फीसद विमानों का रखरखाव एयर इंडिया इंजीनियरिंग सर्विसेज लिमिटेड (एआइईएसएल) करता है. एआइईएसएल मुनाफे वाला एक सरकारी उपक्रम है जिसका  वित्त वर्ष 2023 में शुद्ध लाभ 629.5 करोड़ रुपए रहा है. एआइईएसएल  को एक अलग सहायक कंपनी के तौर पर अलग किया गया था और एयर इंडिया के विनिवेश से इसे बाहर रखा गया था. माना जा रहा है कि केंद्र सरकार इस साल इसे बेचने की योजना बना रही है.

कुछ लोग टाटा के ''एक पुरानी, बीमार कंपनी’’ खरीदने के फैसले पर सवाल उठा रहे हैं, और वह भी ''कम मार्जिन, ज्यादा जोखिम वाले उद्योग’’ में. ऊपर उद्धृत विमान विशेषज्ञों में से एक ने कहा, ''प्रतिस्पर्धा और ऊंची लागत के कारण एयरलाइन का लाभ मार्जिन केवल 1-3 फीसद होता है. दुनिया की हर बड़ी घटना व्यवसाय को प्रभावित करती है. इसलिए यह सवाल उठना लाजिमी ही है कि एक असंगत व्यवसाय को चलाने की जरूरत क्या है.’’ वे कहते हैं कि एयर इंडिया के कामकाज की संस्कृति को बदलने में 15-20 साल लगेंगे.

एयर इंडिया ने खुद माना है कि 93 साल पुरानी कंपनी की संस्कृति को बदलना ''एक जटिल और लंबी प्रक्रिया’’ है. बीते तीन साल में उसका पूरा ध्यान चार विमान कंपनियों का दो में विलय करने, संचालन, प्रणालियों और टीमों के बीच समन्वय सुधारने पर केंद्रित रहा है. प्रवक्ता ने कहा, ''इस बीच पेशेवर रुख और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए अहम संगठनात्मक बदलाव किए गए. यह एक सतत यात्रा है.’’

भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो—जिसके पास 400 से ज्यादा विमानों का बेड़ा है—अब 40 अंतरराष्ट्रीय समेत कुल 130 से ज्यादा ठिकानों के लिए 2,200 से ज्यादा दैनिक उड़ानें संचालित करती है. एयर इंडिया बहुत पीछे नहीं है, जो 44 घरेलू और 44 अंतरराष्ट्रीय गंतव्यों के लिए दैनिक उड़ानें संचालित करती है. फिलहाल सहायक कंपनी एयर इंडिया एक्सप्रेस के साथ इसके संयुक्त बेड़े में 308 विमान हैं.

एयरलाइन ने वित्त वर्ष 2025 में 61,000 करोड़ रुपए का राजस्व जुटाया. वित्त वर्ष 2024 में इसे 4,444 करोड़ रुपए का नुक्सान हुआ जो वित्त वर्ष 2022 की तुलना में 54 फीसद कम था. कैंपबेल का दावा है कि इसके घाटे में तीन साल पहले की तुलना में 40 फीसद की कमी हुई, वैसे वे पूरे आंकड़े नहीं बताते. जाहिर है, विकास की संभावनाएं मजबूत हैं. मौजूदा संकट से उबरने के लिए इसे कुछ अन्य चुनौतियों को भी संबोधित करना है.

दूसरी चुनौती, पुराना होता बेड़ा

नागरिक उड्डयन मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि एयर इंडिया के उड़ान भरने वाले 199 विमानों में 35 फीसद दशक भर से ज्यादा पुराने हैं. उनमें 43 विमान तो 15 साल से भी ज्यादा से उड़ान भर रहे हैं. उसके कई ड्रीमलाइनर भी अब लगभग 10-11 साल पुराने हैं. अहमदाबाद में हादसे का शिकार हुआ ड्रीमलाइनर करीब 12 साल पुराना था. इसके उलट, इंडिगो के विमान बेड़े में सिर्फ 6 फीसद 10 साल से ज्यादा पुराने हैं.

इन दोनों एयरलाइनों के बेड़े में नए विमानों की खरीद का भारी अभियान चल रहा है. हाल के वर्षों में 1,500 से ज्यादा विमानों के लिए ऑर्डर दिए गए हैं. एयर इंडिया का फरवरी, 2023 में 470 विमानों का ऑर्डर तब सूचीबद्ध कीमतों पर अनुमानित 70 अरब डॉलर (6 लाख करोड़ रुपए) था, जो एयरबस से 250 और बोइंग से 220 विमानों के लिए है.

ये ऑर्डर नैरोबॉडी और वाइडबॉडी दोनों प्रकार के विमानों के लिए हैं, जिसका मकसद एयर इंडिया के घरेलू और अंतरराष्ट्रीय उड़ानों का कायापलट करना है. नैरोबॉडी के विमानों के लिए ए320नियो के 140, ए321नियो के 70 और बोइंग 737 मैक्स के 190 विमानों का ऑर्डर दिया गया है. वाइडबॉडी के पहले ही छह ए350-900 विमान आ चुके हैं और 2025 और 2029 के बीच 34 बड़े ए350-1000 आने वाले हैं.

20 बोइंग 787-9 की डिलिवरी 2025 के अंत में शुरू होने की उम्मीद है. उसके बाद 2025 और 2027 के बीच 777-9 के 10 विमानों की डिलिवरी होगी. एयर इंडिया के पास अतिरिक्त 70 बोइंग जेट (737 मैक्स के 50 और 787 ड्रीमलाइनर के 20) खरीदने का विकल्प भी है, और 2029 और 2034 के बीच डिलिवरी के लिए एयरबस से ए320/ए321नियो के 90 और ए350एस के 10 विमानों के संभावित टॉप-अप ऑर्डर भी हैं. नए सौदों के तहत कुल 640 विमान होंगे.

इस बीच, इंडिगो एयरबस पर दोगुना खर्च कर रही है. जून 2025 तक उसके 916 विमानों की डिलिवरी लंबित है, जिसमें ए320नियो के लिए 500 पक्के  ऑर्डर 2023 में दिए गए और डिलिवरी 2035 तक होनी है. उनमें 125 बेस मॉडल के और 375 विस्तारित ए321नियो के हैं. उसकी लंबी दूरी की उड़ान की महत्वाकांक्षा ए321एक्सएलआर के 69 विमानों पर टिकी है, जो 2026 और 2029 के बीच आएंगे.

उसके अलावा ए350-900 के 60 वाइडबॉडी विमानों की डिलिवरी 2027 से 2035 तक आठ साल में की जाएगी. उसके पास 40 और विमान खरीदने का विकल्प भी है. ए320नियो की डिलिवरी पहले से ही चल रही है, उसके ए321नियो का बड़ा हिस्सा 2030 के बाद बेड़े में शामिल होने वाला है.

कतर एयरवेज और अमीरात जैसी लंबी दूरी की उड़ान की प्रमुख एयरलाइनों के पास कहीं उन्नत वाइडबॉडी विमानों के बेड़े हैं. उनके बेड़े के विमानों की औसत आयु एयर इंडिया के समान ही है. कतर के 233 विमानों के बेड़े की औसत आयु सात वर्ष है और उसमें नैरोबॉडी (ए320, 737 मैक्स) और वाइडबॉडी (ए350, 787, और 777) जेट का संतुलन है.

अमीरात  के 260 विमानों—ए380 और 777—के ऑल-वाइड-बॉडी बेड़े की औसत आयु 10.5 साल है. इस बीच, एयर इंडिया ए350-900 जैसे नए मॉडल खरीद रही है और 106 मौजूदा विमानों को अपग्रेड करने के लिए 40 करोड़ डॉलर (3,450 करोड़ रुपए) का निवेश कर रही है. इसमें केबिन इंटीरियर और इनफ्लाइट सिस्टम को भी अपग्रेड किया जाना है. विश्लेषकों का कहना है कि उसके पुराने बेड़े के विमानों में आधुनिक ऑनबोर्ड सिस्टम बनाने में कई साल लगेंगे.

तीसरी चुनौती रखरखाव में खामियां

सभी विमानों का नियमित रखरखाव, मरम्मत और ओवरहाल (एमआरओ) जरूरी होता है. इसके तहत विमान की सुरक्षा, उसकी उड़ान योग्यता वगैरह की व्यापक जांच-पड़ताल की जाती है. रखरखाव में नियमित उड़ान से पहले भी जांच शामिल है.

एयरलाइन के पूर्व कार्यकारी निदेशक जितेंद्र भार्गव कहते हैं, ''विनिवेश से पहले एयर इंडिया के विमानों का रखरखाव उसका इंजीनियरिंग विभाग ही करता था, जिसे बाद में एक सहायक कंपनी, एयर इंडिया इंजीनियरिंग सर्विसेज लिमिटेड (एआइईएसएल) में बदल दिया गया.’’ विशेषज्ञों का मानना है कि जब एयर इंडिया टाटा को बेचा गया तो उसके साथ एआइईएसएल को भी शामिल किया जा सकता था. शायद केंद्र सरकार उसे बाद में बेचकर अधिक मुनाफा कमाने की सोच रही थी.

एआइईएसएल एमआरओ का अकेला साझीदार नहीं है. एयर इंडिया बेंगलूरू में खुद की एमआरओ इकाई बनाने की प्रक्रिया में है. उसने अपने एयरबस ए320 विमानों के बेड़े के लिए सिंगापुर की एसआइए इंजीनियरिंग कंपनी के साथ 12-वर्षीय इन्वेंट्री तकनीकी प्रबंधन समझौते समेत रणनीतिक करार किए हैं. उसने अपने बोइंग 777 बेड़े के लिए लुफ्थांसा टेक्नीक के साथ एक और बहु-वर्षीय करार किया है.

फिर, मौजूदा और नए दोनों बेड़े के लिए आफ्टरमार्केट मदद के लिए अमेरिका  के हनीवेल के साथ दीर्घकालिक समझौता किया है. ऑपरेशन सिंदूर के बाद एयर इंडिया सरकारी जांच के दायरे में भी आई जब पता चला कि उसने बोइंग 777 बेड़े के लिए कुछ एमआरओ काम तुर्किए टेक्नीक को आउटसोर्स किया क्योंकि तुर्किए ने पाकिस्तान को गुपचुप समर्थन किया था. जून के प्रारंभ में विल्सन ने कहा कि ''जन भावना’’ को ध्यान में रखकर एयरलाइन के देश में ही विकल्प तलाश रही है.

एआइईएसएल में काम करने वाले इंजीनियरों के एयर इंडिया एयरक्राफ्ट इंजीनियर एसोसिएशन के अध्यक्ष एस.एन. भट्ट ड्रीमलाइनर बेड़े में ''रखरखाव संबंधी किसी खामी’’ से इनकार करते हैं. वे कहते हैं, ''हम पुर्जे बदलने और मरम्मत में डीजीसीए के दिशानिर्देशों का पालन करते हैं. ये निर्माता के अपने दिशानिर्देशों से ज्यादा सख्त हैं.’’

फिर भी, आंतरिक कागजात से पता चलता है कि 4 अगस्त, 2023 को लंदन जाने वाले एक एयर इंडिया ड्रीमलाइनर को उड़ान के दौरान इंजन बंद होने के बाद मुंबई लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा. यह विमान अहमदाबाद में क्रैश हुए ड्रीमलाइनर जैसा ही था. उसमें इंजन के उच्च दबाव वाले हिस्से में एक पंखे का ब्लेड ढीला हो गया था, जिससे इंजन बंद हो गया. पड़ताल करने वालों ने पाया कि 2018 में ही ब्लेड को जैसे-तैसे जोड़ दिया गया था.

अहमदाबाद हादसे के फौरन बाद डीजीसीए हरकत में आया और उसने एयर इंडिया के सभी 33 ड्रीमलाइनरों की तत्काल जांच के आदेश दिए. 25 जून को एयर इंडिया ने एक बयान में कहा कि डीजीसीए ने 29 विमानों का निरीक्षण पूरा कर लिया है, और सभी को ''उड़ान के लिए मंजूरी दे दी गई है.’’ फिर भी, इस तथ्य से कोई इनकार नहीं कर सकता कि एयर इंडिया लंबे समय से तकनीकी और प्रक्रिया संबंधी खामियों से जूझ रही है.

व्हिसलब्लोअरों ने शिकायतों की बढ़ती सूची में इजाफा किया है. मसलन, दो पूर्व फ्लाइट अटेंडेंट ने आरोप लगाया है कि मई, 2024 में उड़ान के दौरान एक इमरजेंसी वाकए की स्लाइड में अपनी गवाही को बदलने से इनकार करने पर उन्हें बर्खास्त कर दिया गया. एक दूसरा मामला कैप्टन देवेन कनानी का है, जिन्होंने 2023 में अल्ट्रा-लांग-हॉल उड़ान में बोइंग 777 में अपर्याप्त ऑक्सीजन आपूर्ति की शिकायत की थी.

उड़ान के मानकों के मुताबिक, ऐसे जेट में रासायनिक रूप से उत्पन्न ऑक्सीजन की व्यवस्था होती है, जो आपात स्थिति में सिर्फ 12 मिनट की सांस लेने योग्य हवा प्रदान करते हैं. यह बेहद छोटी अवधि है, खासकर दिल्ली-सैनफ्रांसिस्को उड़ान में, जिसे अक्सर काफी ऊंचाई पर लंबी उड़ान भरनी पड़ती है. उनकी शिकायत के बाद डीजीसीए ने जनवरी, 2024 में एयर इंडिया पर 1.1 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया, और एयरलाइन ने कनानी की सेवाएं समाप्त कर दीं.

अपनी ओर से एयर इंडिया ने हमेशा सभी आरोपों और सुरक्षा चूक के दावों को खारिज किया है. मसलन, 'व्हिसलब्लोअर’ के मामले में एयरलाइन ने दावा किया कि संबंधित कर्मचारियों ने ''गलत आचरण’’ किया, जिसके कारण उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया.

चौथी चुनौती, पायलट संकट

एयर इंडिया के लिए उड़ान के विस्तार की योजना में स्टाफ की कमी बड़ी चुनौती बनी हुई है. 2025 की शुरुआत में एयरलाइन के पास लगभग 3,280 सक्रिय पायलट थे. उसमें अनुभवी दिग्गज भी हैं और नए भर्ती किए गए पायलट भी. लेकिन यह पूल उसके तेज विस्तार के लिए नाकाफी है.

पायलटों की इस कमी से एयरलाइन विदेशी पायलटों पर ज्यादा निर्भर होने पर मजबूर हुई है—2024 तक, टाइप-रेटेड भारतीय कैप्टनों की कमी के कारण 58 विदेशी पायलट लीज पर लिए गए बोइंग 777 उड़ा रहे थे. यह एयर इंडिया के ऐतिहासिक भारतीय पायलट कोर से बदलाव को दिखाता है और देसी प्रतिभा की पाइपलाइन के बजाए संक्रमणकाल में विदेशी निर्भरता को जाहिर करता है. इसके उलट, प्रतिद्वंद्वी इंडिगो के पास 5,463 पायलटों का बड़ा आधार है, जिनमें लगभग सभी भारतीय हैं.

कॉकपिट में भी तनाव बढ़ रहा है. 2023-24 में विस्तारा एयरलाइन के पायलटों का एयर इंडिया के रैंक में शामिल करना सहज नहीं रहा है. मार्च 2024 में विस्तारा के पायलटों ने वेतन में फेरबदल के विरोध में सामूहिक मेडिकल छुट्टी ले ली थी, जिसमें जूनियर पायलटों के वेतन में कथित 50 फीसद तक की कटौती की गई थी. यह चाहे छिटपुट हो, मगर मेहनताने और करार की शर्तों को लेकर गहरे असंतोष की ओर इशारा करता है.

अहमदाबाद हादसे ने चालक दल की तैयारियों और सुरक्षा जांच की शंकाओं को और बढ़ा दिया है. अपने 20 जून के नोटिस में डीजीसीए ने ''शेड्यूलिंग प्रोटोकॉल और ओवरसाइट्स में खामियों’’ को उजागर किया, जिसके कारण मई में लगातार दो दिनों में बेंगलूरू से लंदन के लिए एयर इंडिया की दो उड़ानों में अधिकतम स्वीकार्य ड्यूटी घंटों ज्यादा हो गईं. दुर्घटना के बाद क्रू सदस्यों में थकान और मनोबल की चिंताएं बढ़ रही हैं. वे बड़ा सवाल यह उठा रहे हैं कि एयरलाइन तेजी से विस्तार के लिए अपने संसाधनों का इस्तेमाल हद से ज्यादा कर रही है.

एयर इंडिया भर्ती और प्रशिक्षण में तेजी की ओर है. निजीकरण के बाद से उसके ए320, ए350 और 737 विमानों के बेड़े में 1,500 से ज्यादा कैडेट और टाइप-रेटेड पायलट जोड़े गए हैं.  एविएशन कंसल्टेंसी सीएपीए इंडिया और डीजीसीए के अनुमानों के मुताबिक, कम से कम 470 विमानों के ऑर्डर के साथ, एयर इंडिया को अगले दशक में अनुमानित 5,000-6,000 पायलटों की जरूरत होगी. सरकार ने भी एविएशन बूम के साथ तालमेल की खातिर भविष्य के लिए तैयार बड़ा पायलट कार्यबल बनाने की जरूरत को स्वीकार किया है.

पांचवीं चुनौती, भारी लेट-लतीफी का मामला

एयर इंडिया के खराब ऑन-टाइम परफॉर्मेंस (ओटीपी) की कहानी टाटा के आने से बहुत पहले से जाहिर थी. अक्तूबर 2019 में समय पर प्रस्थान की उसकी दर सिर्फ 54.3 फीसद थी. अधिग्रहण के फौरन बाद उसने अक्तूबर, 2022 तक 90.8 फीसद ओटीपी का प्रभावी प्रदर्शन किया, जो बड़ा बदलाव था. फिर भी, इस गति को बनाए रखना मुश्किल रहा है.

दिसंबर, 2024 में घरेलू मार्गों पर उसका ओटीपी  67.6 फीसद तक गिर गया, जो इंडिगो के 73.4 फीसद से लगभग छह फीसद कम है. 2024 में तो बाहरी रोलबैक के कारण एयरलाइन की देरी सभी उड़ानों में बढ़ गई. यानी एयर इंडिया को अभी भी बहुत कुछ कवर करना है. हालांकि उसका औसत ओटीपी 2022 से पहले देखे गए निराशाजनक 50-60 फीसद से बेहतर है, लेकिन यह 60-80 फीसद पर अटका हुआ है. यह इसका स्पष्ट संकेत है कि साख पर शंकाएं अभी बनी हुई हैं.

अप्रैल 2024 में एयर इंडिया की एक फ्लाइट में यात्रियों से बात करती एयरहोस्टेस

वैसे, एयरलाइन ने सिरियम एविएशन एनालिटिक्स की रिपोर्ट का हवाला देकर बताया कि मार्च 2025 में वह पहली बार एशिया की शीर्ष 10 सबसे समय पर चलने वाली एयरलाइनों में शुमार होगी. प्रवक्ता ने कहा, ''एयर इंडिया की 80 फीसद से ज्यादा उड़ानें निर्धारित समय से 15 मिनट के भीतर पहुंचीं और उड़ान पूरी होने की दर 99.8 फीसद रही.’’

छठी चुनौती, सुरक्षा के सवाल

अहमदाबाद दुर्घटना क्या बस होने का इंतजार ही कर रही थी? ब्लैक बॉक्स विश्लेषण अभी जारी है, ऐसे में विमानन विशेषज्ञ जल्दबाजी में किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से बचने की सलाह देते हैं. अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों का कहना है कि विमान को चलाने वाले जीई जीईएनएक्स इंजन का सुरक्षा रिकॉर्ड बहुत बढ़िया है. हालांकि कई अन्य दोनों इंजन के खराब होने या पायलट की गलती की संभावना से इनकार नहीं करते. हालिया वर्षों में बोइंग अपने सुरक्षा रिकॉर्ड को लेकर गहरी पड़ताल के दायरे में रहा है.

अहमदाबाद हादसे को बड़ी चेतावनी के रूप में देखा जा रहा. टाटा संस के चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन ने उसे ''सुरक्षित एअयरलाइन’’ बनाने के लिए ''प्रेरणा’’ करार दिया है. विमानन सुरक्षा सलाहकार मोहन रंगनाथन का मानना ​​है कि टाटा के तहत एयर इंडिया की सुरक्षा निगरानी असल में ''परिपक्व’’ नहीं हुई है. नए प्रबंधन ने भले सख्त अनुपालन लागू किया हो मगर कुछ पर्यवेक्षकों को लगता है कि दुर्घटना महत्वपूर्ण सबक प्रदान करती है—विमानन के विस्तार के साथ सुरक्षा मानकों को सक्चत बनाना चाहिए.

प्रबंधन परामर्श फर्म प्राइमस पार्टनर्स की वाइस प्रेसिडेंट प्रज्ञा प्रियदर्शिनी कहती हैं, ''दुर्घटना से बोइंग 737 मैक्स जैसे पिछले मामलों के बाद उद्योग को मिली सीख भी पुष्ट हुई है. यही कि उत्पादन और उड़ान संबंधी दबाव सुरक्षा उपायों को खत्म कर सकते हैं.’’ उनके मुताबिक, इससे यह जरूरत भी रेखांकित होती है कि एयरलाइन और रेगुलेटर अपने स्तर पर मैन्युफैक्चरर की पुष्टि करें, मेंटेनेंस के काम पर भी यही मानक लागू करें. रखरखाव के मानकों को सख्ती से लागू किया जाए. ऐसी कार्य संस्कृति को बढ़ावा दिया जाए जहां उड़ान का क्रू बिना डरे हुए किसी भी बात को रिपोर्ट कर सके.

सातवीं चुनौती, बिगड़ी छवि को संवारना

एशिया पैसिफिक फ्लाइट ट्रेनिंग अकादमी के सीईओ डी.पी. हेमंत कहते हैं, ''इस तरह की दुर्घटना लोगों की धारणा खराब करती है. अब लोग विकल्प सामने होने पर एयर इंडिया को चुनने से पहले दो बार सोच सकते हैं.’’ वैसे, टाटा ने पिछले तीन वर्षों में बुनियादी और आइटी ढांचे से लेकर बड़े पैमाने पर कर्मचारियों तक में सुधार लाने की कोशिश की है.

6,000 कर्मचारियों की स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ने नए कौशल और क्षमताओं वाले नए कर्मचारियों को लाने का मार्ग प्रशस्त किया. एयर इंडिया में अब लगभग 18,000 कर्मचारी हैं. जब टाटा ने कार्यभार संभाला था उस वक्त गैर-उड़ान कर्मचारियों की औसत आयु 54 वर्ष थी; अब यह 35 वर्ष है. केबिन क्रू के लिए औसत आयु चालीस से पचास वर्ष के बीच थी; अब यह 29 वर्ष है. इसके अलावा, 35 फीसद वाइडबॉडी विमानों को अपग्रेड किया गया है.

जितेंद्र भार्गव का मानना ​​है कि इस त्रासदी से आगे बढ़ने का सबसे अच्छा तरीका यह देखना है कि दूसरी प्रमुख एयरलाइन इस तरह के संकटों से कैसे बची हैं. मसलन, एयर फ्रांस को ही लें. 2009 में एयरबस ए330 की उड़ान संख्या 447 रियो डी जेनेरियो से पेरिस जाते समय अटलांटिक में गिर गई, जिसमें सवार सभी 228 लोग मारे गए.

एयरलाइन ने गहन वैश्विक जांच के जवाब में पारदर्शिता और सुधार को अपनाया, पीछे हटने के बजाए उसने जनता का विश्वास बनाए रखा और विकास का सिलसिला जारी रखा. सीएपीए इंडिया के सीईओ कपिल कौल का मानना ​​है कि जहां तक ​​हवाई सुरक्षा का सवाल है, भारत के लिए ''संस्थागत जवाबदेही’’ का वक्त आ गया है, जिसके लिए ''मजबूत नियामक महत्वपूर्ण है.’’ वे कहते हैं, ''यह केवल एयरलाइनों के बारे में नहीं बल्कि पूरे सिस्टम के बारे में है,’’ जिसमें एयर ट्रैफिक कंट्रोल, एयरपोर्ट, प्रशिक्षण और एमआरओ गतिविधियां शामिल हैं.

जैसा कि चंद्रशेखरन ने बताया है, 12 जून को न सिर्फ टाटा समूह के इतिहास में, बल्कि पूरे भारतीय विमानन के लिए ''सबसे काले दिनों’’ में एक के रूप में याद किया जाएगा. तेजी से बढ़ते विमानन बाजार में सुरक्षा से कतई कोई समझौता नहीं किया जा सकता. खुद को वैश्विक एयरलाइन बनाने के लिए टाटा विश्व स्तरीय सुरक्षा मानकों को लेकर स्पष्ट रूप से प्रतिबद्ध होकर ही अग्रणी भूमिका निभा सकता है.

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