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इंडिया टुडे-एमडीआरए सर्वे 2025: कौन हैं देश के बेस्ट कॉलेज?

इंडिया टुडे-एमडीआरए सर्वे 2025 बताता है कि देश के उच्च शिक्षा क्षेत्र में बदलाव की बयार हुई तेज, नए कॉलेज अच्छी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने की चुनौती से निबटने के लिए पूरे दमखम से जुटे

भारत के बेस्ट कॉलेज 2025: इमेजिंग: नीलांजन दास/एआई
भारत के बेस्ट कॉलेज 2025: इमेजिंग: नीलांजन दास/एआई
अपडेटेड 30 जून , 2025

विशाल पैमाना, गगनचुंबी आकांक्षाएं और जड़ें जमाए बैठी विसंगतियां. देश की उच्च शिक्षा प्रणाली की यही मौजूदा कहानी है. बीते कुछ दशकों में इसका अच्छा-खासा विस्तार हुआ है. तृतीयक शिक्षा युवा आबादी के ज्यादा बड़े और असमान हिस्से को पहले से कहीं ज्यादा सुलभ है.

मील के प्रमुख पत्थर बढ़ते लोकतंत्रीकरण की दिशा में प्रगति की ओर इशारा करते हैं. मसलन, 28.4 फीसद का सकल दाखिला अनुपात (जीईआर), कहीं ज्यादा अनुकूल स्त्री-पुरुष समानता सूचकांक और सामाजिक रूप से साधनहीन समूहों के बढ़ते दाखिले.

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) और भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) सरीखे प्रीमियम केंद्रों समेत अकादमिक जगहों के फैलाव और उसके साथ शोध तथा अनुसंधान के बढ़ते पदचिन्हों से ऐसे देश की झलक मिलती है जो वैश्विक अकादमिक मंच पर अपनी जगह हासिल करने के लिए बेताब है.

अलबत्ता तादाद में यह प्रभावशाली वृद्धि गुणवत्ता की लगातार कायम चुनौतियों को छिपा लेती है. उनमें सबसे अहम यह जोखिम है कि कुछेक कुलीन संस्थानों में उत्कृष्टता पर ज्यादा ध्यान न देने से तमाम बाकी संस्थाओं में औसतपन और गहरा हो सकता है. देश में उच्च शिक्षा का पारिस्थितिकी तंत्र असमान बना हुआ है, जिसमें लंबे वक्त से स्थापित और उभरते कॉलेजों के बीच और शहरी केंद्रों तथा छोटे शहरों के बीच घोर गैर-बराबरी कायम है.

कोई एक मानदंड है जिस पर उल्लेखनीय प्रगति हुई है, तो वह वैश्विक परिदृश्य पर दिखाई देने के मामले में है. बीते दशक में भारत ने ग्लोबल यूनिवर्सिटी रैंकिंग में आने वाले संस्थानों की संख्या में 286 फीसद बढ़ोतरी दर्ज की, जो जी20 देशों में सबसे ज्यादा बताई जाती है. क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग: एशिया 2026 में भारत रैंकिंग में सबसे ज्यादा (163) संस्थानों के साथ महाद्वीप में शीर्ष पर है, और शीर्ष 100 में अब चार भारतीय विश्वविद्यालय शुमार हैं.

लेकिन इस अंतरराष्ट्रीय जयघोष से उस असंतुलन की झलक नहीं मिलती जो इसकी सतह के नीचे दुबका है. भारत के शीर्ष पांच संस्थानों की औसत रैंकिंग में अच्छा-खासा सुधार आया है—यह 2024 की ग्लोबल क्यूएस रैंकिंग में 224 से 2025 की रैंकिंग में 173—लेकिन ज्यादा व्यापक तस्वीर कम भरोसा दिलाने वाली है. वैश्विक सूची में आने वाले 54 भारतीय विश्वविद्यालयों में औसत रैंक अब भी मामूली 452 पर ही मंडरा रही है.

इस निपट गैर-बराबरी से एक बहुत अहम बात सामने आती है: कुछेक संस्थानों के शानदार प्रदर्शन में खतरा यह है कि इससे बाकी पूरी व्यवस्था में लगातार कायम ढांचागत कमजोरियां ओझल और धुंधली हो जाती हैं. भारत के सर्वश्रेष्ठ संस्थानों और उनकी उच्च शिक्षा प्रणाली के विशाल हिस्से के बीच खाई बढ़ती मालूम देती है, और उसके साथ ही सच्चे समावेशी और समान रूप से उत्कृष्ट शैक्षिक परिदृश्य के निर्माण की चुनौती भी.

इंडिया टुडे ग्रुप का 2025 का सर्वश्रेष्ठ कॉलेज सर्वेक्षण इस खाई को पाटने का जतन करता है. तकरीबन तीन दशकों में इस सालाना कवायद ने देश के अंडरग्रेजुएट कॉलेजों के सबसे विश्वसनीय और व्यापक आकलन होने की प्रतिष्ठा और ख्याति अर्जित की है. कठोर कार्यप्रणाली, लगातार नवाचार और निष्पक्षता के प्रति अडिग प्रतिबद्धता के बूते ये रैंकिंग छात्रों, संकायों, नीति-निर्माताओं और उद्योग के अगुआ के लिए समान रूप से अहम बैरोमीटर का काम करती हैं.

इंडिया टुडे ने अलबत्ता कभी अपने तमगों और उपलब्धियों से संतुष्ट रहने में यकीन नहीं किया. उत्कृष्टता की उसी खोज में आगे बढ़ते हुए सर्वश्रेष्ठ कॉलेजों के इस सर्वे ने लगातार बेहतर होने की कोशिश की. इन वर्षों के दौरान साफ होता गया कि जिन संस्थाओं की ऐतिहासिक जड़ें गहरी हैं, जिनमें कई के पास बेहद अच्छी फैकल्टी, अत्याधुनिक बुनियादी ढांचा और अव्वल छात्रों को आकर्षित करने की विरासत है, शीर्ष पायदानों पर उन्हीं का बोलबाला होता है. ऐसा प्रदर्शन बेशक हकदार है, लेकिन इसमें खतरा यह है कि यह प्रगति के लंबे और असरदार डग भर रही छोटी और नई संस्थाओं को अपनी छाया में ढंक लेता है.

इस कमी को पूरा करने के लिए इस साल के संस्करण में एक नई श्रेणी शुरू की गई है: देश के सबसे सुधरे कॉलेज. सभी 14 धाराओं—आर्ट्स, साइंस, वाणिज्य, मेडिकल, डेंटल, इंजीनियरिंग, आर्किटेक्चर, लॉ, मास कम्युनिकेशन, होटल प्रबंधन, बीबीए, बीसीए, सामाजिक कार्य और फैशन डिजाइन—में हमने हर धारा के उस एक कॉलेज को प्रमुखता से सामने रखा है जिसने बीते पांच साल के दौरान अंकों और रैंकिंग में सबसे ज्यादा सुधार प्रदर्शित किया है. यह रैंकिंग में हल्का-सा सुधार भर नहीं; यह दृढ़निश्चय, पुनराविष्कार और ऊपर उठने को मान्यता देना है.

इस पहल का मकसद दोहरा है. पहला, यह उन कॉलेजों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देता है जिनके पास शुरुआती बढ़त भले न हो लेकिन जो फासले को कम करने के लिए कड़ी मेहनत और नए-नए तरीके तलाश रहे कर रहे हैं. दूसरे, यह छात्रों और अभिभावकों के लिए विकल्पों के क्षितिज का विस्तार करता है. तथाकथित 'टॉप' कॉलेजों में जगह न बना पाना अब कोई झटका नहीं रह गया है.

अब ऐसे कई उभरते उत्कृष्टता केंद्र हैं जो अगर बेहतर नहीं भी तो समान स्तर का तुलनायोग्य शैक्षिक अनुभव मुहैया करा रहे हैं. और यह कतई जरूरी नहीं कि वह कॉलेज बड़े शहर में हो. नियोक्ताओं के लिए यह भर्ती के नए निकायों के दरवाजे खोल देता है, जहां कच्ची, अनगढ़ और प्रशिक्षण देकर तैयार की जा सकने वाली प्रतिभाओं को लगातार सान पर चढ़ाया जा रहा है.

यह नया हिस्सा भारतीय उच्च शिक्षा के लंबे समय से चले आ रहे क्षेत्रीय असंतुलन को भी पाटने का जतन करता है. विश्वस्तरीय व्यवस्था के निर्माण का मतलब महज क्षमता बढ़ाना नहीं है. इसका मतलब गुणवत्ता आश्वस्त करना और तमाम भौगोलिक इलाकों में एक समान सहज सुलभ करवाना भी है. आज शीर्ष संस्थानों की खासी बड़ी संख्या मुट्ठी भर राज्यों में केंद्रित है.

इस क्षेत्रीय खाई को पाटने के लिए जानी-बूझी और लगातार कोशिश की दरकार है. हमारी रैंकिंग से इसकी झलक मिलती है: वे महानगरों से आगे जाकर दूसरी और तीसरी कतार के शहरों की होनहार संस्थानों को सामने लाती हैं, जिनमें कई ऊपर चढ़कर टॉप 30 में आ गई हैं. लगता है कि गुणवत्ता आखिरकार अपने को लोकतांत्रिक होने दे रही है.

2025 का सर्वेक्षण, पहले की तरह, कई छोटे शहरों में हरेक के तीन शीर्ष कॉलेजों को सूचीबद्ध करता है, जो इसे देश के उच्च शिक्षा पारिस्थितिकी तंत्र का सबसे समावेशी और बारीक ब्योरेवार आकलन बनाता है. हैरानी की बात नहीं कि सर्वे में हिस्सा लेने वाले कॉलेजों की संख्या में खासा उछाल आया है, जो 2018 में 988 से बढ़कर इस साल 1,865 हो गई है. शिक्षाविदों ने इसका श्रेय दूरदराज की संस्थाओं तक में प्रतिस्पर्धी भावना की चिनगारी सुलगने को दिया है, जो उन्हें अपना स्तर ऊंचा उठाने के लिए ठोस प्रोत्साहन लाभ देती है.

ये मूल्य संवर्धन सहज रूप से इंडिया टुडे बेस्ट कॉलेज सर्वेक्षण के बुनियादी फलसफे—अच्छी प्रथाओं को सामने लाना, उत्कृष्टता को मान्यता देना और उभरते रुझानों को उनके मुख्यधारा में आने से पहले पकड़ना—के अनुरूप हैं. इस कवायद के केंद्र में वे लोग हैं जो सबसे ज्यादा मायने रखते हैं—छात्र और शिक्षक.

सर्वे ने समय के साथ कई नई बातें जोड़ी हैं ताकि छात्रों के सामने मौजूद वास्तविक विकल्पों की झलक मिल सके. सांस्थानिक प्रतिष्ठा मायने रखती है, वहीं छात्र जिस चीज की ज्यादा तलाश करते हैं, वह विभागीय शक्ति है. किसी धारा के सर्वश्रेष्ठ कॉलेज में विषय विशेष का शीर्ष विभाग नहीं भी हो सकता है, और इसका उलटा भी हो सकता है.

इससे पार पाने में छात्रों की मदद के लिए 2023 में हमने अलग-अलग विषयों के सर्वश्रेष्ठ कॉलेजों की श्रेणी शुरू की. अर्थशास्त्र और अंग्रेजी से लेकर रसायनशास्त्र और संस्कृत तक कला और विज्ञान के 12 विषयों में अब हम कॉलेजों की तरफ से दिए गए वस्तुपरक डेटा के आधार पर विभागों का आकलन करते हैं.

समूची प्रक्रिया पांच प्रमुख मानदंडों पर हरेक कॉलेज के सूक्ष्म मूल्यांकन पर आधारित है. ये पांच मानदंड हैं: 'दाखिला गुणवत्ता और प्रशासन', 'अकादमिक उत्कृष्टता', 'बुनियादी ढांचा और रहन-सहन का अनुभव', 'व्यक्तित्व और नेतृत्व विकास' और 'करियर की प्रगति और प्लेसमेंट.' पारदर्शिता का यह पैमाना महज कॉलेज या संस्थान की प्रतिष्ठा के आधार पर नहीं, बल्कि मापने योग्य नतीजों के आधार पर जानकार विकल्प चुनने में छात्रों की मदद करता है.

छात्रों और माता-पिता के लिए सबसे ज्यादा चिंता का विषय निवेश पर मिलने वाला रिटर्न है. मतलब यह कि आखिर किसी कॉलेज विशेष की डिग्री लेने पर नौकरी और तनख्वाह के लिहाज से क्या हासिल होता है? हमारा सर्वेक्षण लगातार इस पर सीधे ध्यान देता रहा है, जिनमें उन कॉलेजों को प्रमुखता से सामने रखा जाता है जो बेहतरीन प्लेसमेंट पैकेज, सबसे ज्यादा तनख्वाह और सबसे कम फीस की पेशकश करते हैं, ताकि आकांक्षी छात्र आकांक्षा के साथ जेब की सामर्थ्य का संतुलन बिठा पाएं.

भारत 2025 में जनसंख्या के लिहाज से दोराहे पर खड़ा है. दुनिया में सबसे ज्यादा युवा आबादी के साथ देश के पास अपने जनसंख्यागत लाभांश को आर्थिक फायदों में बदलने के लिए झीनी-सी खिड़की है. लेकिन यह तभी मुमकिन होगा जब युवा पीढ़ी भरपूर पढ़े-लिखे और रोजगार के लायक हो. एक बड़ी चिंता ग्रेजुएट युवाओं के रोजगार के लिहाज से कम लायक होने की है, खासकर जब हाल के कुछ अनुमानों से पता चलता है कि आधे से भी कम नौकरी के लिए तैयार हैं. मतलब यह कि वे कामकाज के हुनर के मामले में कच्चे हैं और उन्हें व्यावहारिक जरूरी ज्ञान और प्रशिक्षण की बेहद दरकार है.

हौसला बढ़ाने वाली बात यह कि अब इस बात पर सर्वानुमति तेजी से बढ़ रही है कि 'आम ढर्रे पर कामकाज' अब काफी नहीं रह गया है. राजनैतिक इरादों के मेल (जैसा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 से झलकता है), टेक्नोलॉजी से पैदा उथल-पुथल और समाज की तरफ से पढ़ाई के बेहतर नतीजों की मांग ने व्यवस्थागत आमूलचूल बदलाव के लिए अनोखा अवसर पैदा कर दिया है.लगभग ठीक वैसा ही जैसा अमेरिकी विश्वविद्यालयों और उनके विदेशी छात्रों पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से थोपी गई उथलपुथल ने किया है.

बहरहाल, दुनिया के इतिहास के इस बेहद अहम मोड़ पर इंडिया टुडे बेस्ट कॉलेज सर्वेक्षण आईना और नक्शा दोनों हो सकता है, एक रेडी रेकनर जो बताता है कि भारत की उच्च शिक्षा आज कहां खड़ी है और कल किस तरफ बढ़ने जा रही है. यह महज बेहतरीन कॉलेजों की फेहरिस्त नहीं है. यह सुधार, चिंतन और नई शुरुआत का जरिया है.

सर्वेक्षण का तरीका

कॉलेजों को इस तरह दी गई रैंक

देश भर में 58,000 से ज्यादा कॉलेज हैं. इंडिया टुडे ग्रुप की तरफ से देश के कॉलेजों की रैंकिंग के इस 29वें सालाना संस्करण का इरादा समृद्ध जानकारियों और आंकड़ों के आधार पर आकांक्षियों के लिए करियर के बेहद अहम फैसलों को आसान बनाना है. इस रैंकिंग को नौकरी-रोजगार के लिए भर्ती करने वालों, माता-पिता, पूर्व छात्र, नीति-निर्माता, आम लोग और संस्थानों सरीखे अन्य संबंधित पक्षों के लिए स्वर्णिम मानक के तौर पर जाना जाने लगा है.

2018 से यह सर्वेक्षण दिल्ली स्थित प्रतिष्ठित मार्केट रिसर्च एजेंसी मार्केटिंग ऐंड डेवलपमेंट रिसर्च एसोसिएट्स (एमडीआरए) के साथ मिलकर किया जाता रहा है और इसकी निरंतरता की वजह से इसे व्यापक रूप से सराहा गया है. इसके तहत कॉलेजों को कुल 14 धाराओं—आर्ट्स, साइंस, कॉमर्स, मेडिकल, डेंटल, इंजीनियरिंग, आर्किटेक्चर, कानून, मास कम्युनिकेशन, होटल प्रबंधन, बीबीए, बीसीए, सामाजिक कार्य और फैशन डिजाइन—में रैंकिंग दी गई.

कॉलेजों की सबसे विस्तृत और संतुलित तुलना प्रस्तुत करने के लिए एमडीआरए ने वस्तुपरक रैंकिंग के दौरान हरेक धारा के 112 से ज्यादा प्रदर्शन संकेतकों पर सावधानी से गौर किया. इन संकेतकों को मिलाकर पांच व्यापक मानदंड बनाए गए—'दाखिला गुणवत्ता और प्रशासन', 'अकादमिक उत्कृष्टता', 'बुनियादी ढांचा और रहन-सहन का अनुभव', 'व्यक्तित्व और नेतृत्व विकास' और 'करियर की प्रगति और प्लेसमेंट'.

यही नहीं, ज्यादा वास्तविक, प्रासंगिक और सटीक जानकारी देने के लिए एमडीआरए ने मौजूदा साल के आंकड़ों के आधार पर कॉलेजों का मूल्यांकन किया. विभिन्न संबंधित पक्षों की तरफ से लिए जाने वाले फैसलों के प्रमुख पहलुओं के बारे में ज्यादा गहरी जानकारियां देने के लिए रैंकिंग तालिकाओं में मानदंड-वार अंक भी दिए गए हैं. इसके अलावा, 2023 से यह सर्वे कॉलेजों की तरफ से दिए गए वस्तुपरक डेटा के आधार पर अर्थशास्त्र, इतिहास, अंग्रेजी, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, राजनीति विज्ञान, भौतिक विज्ञान, रसायनशास्त्र, वनस्पतिशास्त्र, प्राणिविज्ञान, हिंदी और संस्कृत सरीखे प्रमुख विषयों में कॉलेजों की पहले-पहल रैंकिंग लेकर आया है.

रैंकिंग कई चरणों में की गई

> प्रत्येक धारा में कॉलेजों की सूची तैयार करने के लिए एमडीआरए के डेटाबेस और द्वितीयक रिसर्च की व्यापक डेस्क समीक्षा की गई. केवल उन्हीं कॉलेजों पर विचार किया गया जिन्होंने पूर्णकालिक और कक्षाओं में पढ़ाए जाने वाले कोर्सों की पेशकश की और जो 2024 तक कम से कम तीन उत्तीर्ण बैच निकाल चुके थे. अंडरग्रेजुएट कोर्सों को 12 धाराओं में रैंक दी गई. जनसंचार और सामाजिक कार्य में पोस्टग्रेजुएट कोर्स का मूल्यांकन किया गया.

> अलग-अलग धाराओं के मानदंड और उपमानदंड तय करने के लिए अपने क्षेत्र का समृद्ध अनुभव रखने वाले विशेषज्ञों से सलाह-मशविरा किया गया. सर्वश्रेष्ठ कॉलेज निर्धारित करने के लिए बेहद अहम संकेतकों को बहुत सतर्कतापूर्वक तय किया गया, और उनके सापेक्ष भारांश को अंतिम रूप दिया गया. साल-दर-साल तुलना के लिए पिछले दो साल के मानदंडों के भारांश में बदलाव नहीं किया गया.

चुनिंदा प्रदर्शन संकेतकों को ध्यान में रखते हुए 14 में से हरेक धारा के लिए विस्तृत वस्तुपरक प्रश्नावली तैयार की गई और इंडिया टुडे तथा एमडीआरए की वेबसाइटों पर सार्वजनिक अधिकार क्षेत्र में डाल दी गई. हमारे रिसर्च पार्टनर ने पात्रता की कसौटी पर खरे उतरने वाले करीब 10,000 कॉलेजों से सीधे संपर्क किया और सत्यापन के लिए वस्तुपरक डेटा मांगा. सत्यापित हार्ड और सॉफ्ट कॉपी मांगी गईं, और 1,865 योग्य कॉलेजों ने तय समय सीमा के भीतर सांस्थानिक डेटा और उसके समर्थन में भारी-भरकम दस्तावेज प्रस्तुत किए.

सर्वे में भाग ले रहे कॉलेजों से वस्तुपरक डेटा मिलने के बाद एमडीआरए ने उनकी तरफ से दी गई जानकारियों का सत्यापन किया. नाकाफी या गलत डेटा मिलने की स्थिति में संबंधित कॉलेजों से पूरी, सही और अद्यतन जानकारी देने को कहा गया.

> देश भर के 27 शहरों में फैले 1,854 सुविज्ञ जानकारों (563 वरिष्ठ संकाय सदस्य, 310 भर्तीकर्ता/ पेशेवर, 397 करियर एक्सेलेटर और 584 अंतिम वर्ष के छात्र) के बीच इन कॉलेजों के बारे में अवधारणात्मक सर्वे किया गया. ये शहर चार क्षेत्रों में बंटे थे:

उत्तर: दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम, फरीदाबाद, लखनऊ, कोटा, अमृतसर, चंडीगढ़, लुधियाना और जालंधर

पूर्व: कोलकाता, भुवनेश्वर, गुवाहाटी, पटना और रायपुर

पश्चिम: मुंबई, पुणे, अहमदाबाद, इंदौर, भोपाल और नागपुर

दक्षिण: चेन्नै, बेंगलूरू, हैदराबाद, कोच्चि और कोयंबत्तूर

> उनसे उनके अपने-अपने अनुभव से जुड़े क्षेत्र में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय रैंकिंग ली गई और उन्हें क्रमश: 75 फीसद और 25 फीसद भारांश दिया गया. उन्होंने पांच प्रमुख मानदंडों में हरेक पर 10 सूत्री रेटिंग पैमाने पर संस्थानों का आकलन भी किया.

> वस्तुपरक अंकों की गणना करते समय यह पक्का किया गया कि केवल कुल जोड़े गए डेटा का ही इस्तेमाल न किया जाए, और इसलिए न्यायसंगत और निष्पक्ष तुलना के लिए डेटा सेट को छात्रों की संख्या के आधार पर सामान्य बनाया गया. वस्तुपरक और अवधारणात्मक सर्वेक्षणों से मिले कुल अंकों को 11 पेशेवर कोर्सों के लिए 60:40 के अनुपात में और कला, विज्ञान और वाणिज्य के अकादमिक कोर्सों के लिए 50:50 के अनुपात में जोड़कर अंतिम संयुक्त अंक निकाले गए.

नई शुरुआत: सर्वाधिक सुधार वाले कॉलेज

इस साल के इंडिया टुडे-एमडीआरए सर्वश्रेष्ठ कॉलेज सर्वे की एक बड़ी प्रमुख बात नई श्रेणी—'सर्वाधिक सुधरे कॉलेज'—की शुरुआत है, जो समय के साथ प्रगति के लंबे और बड़े कदम रखने वाली संस्थाओं को पहचानती और मान्यता देती है. यह रैंकिंग 2020 से 2025 तक सालाना रैंकिंग में उनकी सापेक्ष स्थितियों में आए बदलाव का विश्लेषण करके सभी 14 धाराओं में कॉलेजों की पांच साल की वृद्धि के यात्रापथ को दिखाती है. यह रैंक में फीसद सुधार पर ध्यान देती है और इस तरह ठहरी हुई जल्दबाजी की तस्वीर के बजाए सांस्थानिक प्रदर्शन के बारे में गतिशील नजरिया प्रदान करती है.

> पांच साल की अवधि में रैंक में सबसे ज्यादा फीसद बढ़ोतरी दर्ज करने वाले कॉलेज को इस सूची में शीर्ष पर रखा गया, जिसके बाद सुधार के घटते क्रम में अन्य कॉलेज हैं. यह नई श्रेणी शैक्षिक संस्थाओं की तरफ से अपनी स्थिति और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए की गई बदलाव की कोशिशों का प्रमाण है, और ऐसा नया नजरिया देती है जिसके जरिए आकांक्षी, माता-पिता, भर्तीकर्ता और नीतिनिर्माता संस्थाओं के सतत विकास का आकलन कर सकते हैं.

> शोधकर्ताओं, सांख्यिकीविदों और विश्लेषकों की अनुभवी और विशाल टीम ने इस प्रोजेक्ट पर काम किया. अभिषेक अग्रवाल (एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर) की अगुआई में एमडीआरए की मूल टीम में अविनाश झा (प्रोजेक्ट डायरेक्टर), वैभव गुप्ता (डिप्टी रिसर्च मैनेजर), रोबिन सिंह (असिस्टेंट रिसर्च एग्जीक्यूटिव), ऋषभ शर्मा (असिस्टेंट रिसर्च एग्जीक्यूटिव) और मनवीर सिंह (असिस्टेंट मैनेजर ईडीपी) शामिल थे.

कुछ अहम तथ्य

13 लाख  शोध-पत्र भारत में 2017 और 2022 के बीच प्रकाशित हुए, जो चीन, अमेरिका और ब्रिटेन के बाद सबसे बड़ी संख्या है.

54% बढ़ोतरी आकदमिक क्षेत्र में शोध-पत्रों के मामले में भारत में 2017 और 2022 के बीच हुई है.

#9 भारत की वैश्विक रैंकिंग, शोध-पत्रों की मान्यता से पैदा होने वाली संतुष्टि के मामले में

0.6-0.7% जीडीपी का भारत में खर्च होता है शोध-अनुसंधान और विकास के मद में, जबकि इस मामले में वैश्विक औसत 1.8 फीसद है.

1,865 कॉलेज इस साल सर्वेक्षण में शामिल हैं, जबकि 2018 में यह संख्या 988 थी. 

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