
जवाबी कार्रवाई भी, इंसाफ की तरह, न सिर्फ की जानी चाहिए, बल्कि होते हुए दिखनी भी चाहिए. भारतीय सेना को यह कठोर सबक 2019 में मिला था, जब पुलवामा हमले के जवाब में पाकिस्तान के बालाकोट में आतंकी शिविरों पर हवाई हमलों के सबूत के तौर पर कुछेक तस्वीरें ही पेश की गई थीं.
पाकिस्तान ने किसी तरह के नुक्सान से इनकार किया था और ऑपरेशन की कामयाबी को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संदेह बना रहा. छह साल बाद, 7 मई को भारतीय सशस्त्र बलों ने सतर्कता बरती कि ऐसी कोई अस्पष्टता न रहे. 22 अप्रैल के पहलगाम कत्लेआम के कड़े जवाब में पाकिस्तान में नौ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया और ऑपरेशन की कामयाबी के सबूत के तौर पर स्पष्ट वीडियो और तस्वीरें जारी की गईं.
इस अभियान को ऑपरेशन सिंदूर नाम दिया गया, जिसकी अहमियत सैन्य जवाबी कार्रवाई से कहीं अधिक थी. यह उसके लोगो में भी जाहिर है, जिसमें अंग्रेजी में 'सिंदूर’ के एक अक्षर से सिंदूर बिखरता दिखाया गया. इसमें उन महिलाओं का मार्मिक संदर्भ छुपा है, जो पहलगाम की बैसरन घाटी में आतंकवादियों की गोलियों से 26 लोगों की हत्या से विधवा हो गईं. यही नहीं, नारी शक्ति का भी इजहार किया गया. मोदी सरकार ने ऑपरेशन की कामयाबी की प्रेस को जानकारी देने के लिए सशस्त्र बलों से दो महिला अधिकारियों को आगे किया.

ऑपरेशन सिंदूर के जरिए मोदी सरकार ने 25 साल में पाकिस्तान को सबसे जोरदार सैन्य संदेश दिया है कि पाकिस्तान की आतंकी करतूतें अब बर्दाश्त के बाहर हैं और दो-टूक जवाब दिया जाएगा.
इस जवाबी कार्रवाई के बारे में 2016 के उड़ी सर्जिकल स्ट्राइक के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर) दीपेंद्र सिंह हुड्डा कहते हैं, ''आतंकवाद से निबटने के लिए छोटी कार्रवाइयां नाकाफी होती हैं, जिनसे सिर्फ रंगरूटों पर असर पड़ता है. भारत अब सीधे आतंकी आकाओं को निशाना बनाने के लिए तैयार है, यहां तक कि पंजाब के अंदर घुसकर भी. ये हमले बालाकोट या उड़ी जैसी कार्रवाइयों से आगे फौजी-जिहादी ठिकानों को जद में लाते हैं, ताकि पाकिस्तान यह सोचने पर मजबूर हो कि क्या वह आतंकियों की अपनी पनाहगाहों को लेकर जंग छेड़ने को तैयार है."
भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान में जिन नौ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया, उनमें पांच पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में और चार सियासी रूप से सबसे अहम पंजाब प्रांत में हैं. असल में यह 1971 के युद्ध के बाद पंजाब पर पहला भारतीय हवाई हमला था, जिसमें बहावलपुर में जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) के मुख्यालय और लाहौर के पास मुरीदके में लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) का अड्डा शामिल था.

हालांकि, अंतरराष्ट्रीय सरोकारों को ध्यान में रखकर भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने एक प्रेस ब्रीफिंग में यह साफ किया कि भारत तनाव बढ़ाने के पक्ष में नहीं है. उनके शब्द थे, ''ये कार्रवाइयां किसी तरह के इजाफे से परहेज करने वाली, आनुपातिक और जिम्मेदारी भरी थीं." भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि उसने पाकिस्तान के किसी भी फौजी ठिकाने पर हमला नहीं किया है.
इस जवाबी सैन्य कार्रवाई के पहले भारत पहलगाम आतंकी हमले के ठीक एक दिन बाद पाकिस्तान के खिलाफ कूटनीतिक पहल कर चुका था, जिसमें 65 साल पुरानी सिंधु जल संधि को स्थगित करना भी शामिल था. यह संधि सिंधु बेसिन में गिरने वाली छह नदियों के पानी के बंटवारे को लेकर है. पाकिस्तान ने फौरन इसे जंग जैसा ऐलान करार दिया क्योंकि उसके दो सबसे ज्यादा आबादी वाले प्रांत- पंजाब और सिंध- पीने के पानी और सिंचाई के लिए इन्हीं नदियों पर निर्भर हैं.

पाकिस्तानी जवाब
भारत ने जिस पैमाने पर सैन्य हमले किए उसने पाकिस्तान को चौंका दिया और उसने उसे जंग की कार्रवाई बताया. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने 7 मई को एक्स पर पोस्ट में धमकी दी, ''पाकिस्तान को इस बेवजह भारतीय कार्रवाई का मुकम्मल जवाब देने का पूरा हक है, ठोस जवाबी कार्रवाई जारी है...दुश्मन के नापाक मंसूबों को कभी पूरा नहीं होने दिया जाएगा." पाकिस्तान ने उसी रात 7 मई को जवाब दिया.
उसकी फौज ने जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान और यहां तक कि गुजरात में उत्तरी और पश्चिमी सीमा पर ड्रोन और मिसाइल हमले किए. जवाब में भारत ने लाहौर समेत कई जगहों पर पाकिस्तान के वायु रक्षा रडार और प्रणालियों को निशाना बनाया, जिससे उसके प्रमुख शहर भारतीय सशस्त्र बलों के हवाई हमलों के मामले में असुरक्षित हो गए. बदले में पाकिस्तान ने जम्मू में ड्रोन हमलों का सिलसिला शुरू किया, रिहाइशी बस्तियों के अलावा जम्मू और जैसलमेर हवाई अड्डों को भी निशाना बनाया गया. इस बीच, भारत ने एक पाकिस्तानी नौसैनिक अड्डे पर मिसाइल हमला किया, जो अगर सच है, तो 1971 के युद्ध के बाद पहली बार होगा.
सैन्य कार्रवाइयों में लगातार इजाफा भारत और पाकिस्तान को ऐसी जंग की ओर ले जा रहा है जिसे दरअसल कोई भी देश नहीं चाहता या झेल नहीं सकता. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है, जिसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से मिले 7 अरब डॉलर की मदद की बदौलत गर्त में जाने से बचाया जा सका.
सियासी मोर्चे पर शहबाज शरीफ की अगुआई में कमजोर गठबंधन सरकार फौज प्रमुख जनरल आसिम मुनीर के कंधे पर सवार है. वे ही अब देश के असली हुक्मरान हैं. देश में ठप पड़े आर्थिक विकास से नौजवान पीढ़ी में भारी नाराजगी है. फिर बलूच बागियों के जफर एक्सप्रेस को हाइजैक करने और फौजी जवानों के मारे जाने से फौज की साख धूमिल हुई है.
भारत की मजबूरियां
कई जानकारों का मानना है कि पहलगाम आतंकी हमला घरेलू नाकामियों से लोगों का ध्यान हटाने के लिए मुनीर की करतूत है. ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान में भारत विरोधी भावनाएं और भी बढ़ गई हैं. मुनीर अपने देशवासियों को एकजुट करने के लिए इस्लामी राष्ट्रवाद की घुट्टी पिला रहे हैं और पाकिस्तान को ऐसे सख्त देश के रूप में पेश करते हैं, जो बाहरी और घरेलू खतरों का तगड़ा फौजी जवाब दे सकता है.
पाकिस्तान की 'बचाव और फौजी जवाब’ की पहले की नीति से हटकर मुनीर मोदी सरकार के हवाई हमलों के जवाब में खतरनाक हद की ओर बढ़ चले हैं जिसमें भारत के खिलाफ भड़काऊ हमलों का सिलसिला जारी रखना है और फिर अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता की मांग करनी है.
रणनीतिक तौर पर भारत ने मिसाइल या तोपखाने का ही इस्तेमाल किया, ताकि लड़ाई न बढ़े और हालात काबू में रहें. लेकिन बाद में पाकिस्तान ने सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया, जिससे दोनों पक्षों को अपने घरेलू अवाम को यह दिखाने का मौका मिला कि माकूल जवाब दे दिया गया है. 2019 में यह टकराव फटाफट हुआ और खत्म हो गया. भारत ने 1971 के युद्ध के बाद पहली बार पाकिस्तानी क्षेत्र के अंदर बालाकोट में एक आतंकवादी शिविर पर हवाई हमला किया.
पाकिस्तान ने अगले दिन लड़ाकू विमानों का एक दस्ता भेजकर भारतीय सैन्य गोला-बारूद के भंडार के पास एक गोला गिराकर जवाबी कार्रवाई की, और यह दिखा दिया कि वह अपनी मर्जी से भारत के हवाई क्षेत्र में घुस सकता है. जब भारतीय लड़ाकू विमानों ने उनका पीछा किया, तो पाकिस्तानी जेट विमानों ने एक मिग-21 को मार गिराया, जिससे विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान पीओके में जा गिरे. उन्हें बंदी बना लिया गया.
कड़ी बातचीत और वैश्विक शक्तियों के हस्तक्षेप के बाद ही तब के प्रधानमंत्री इमरान खान ने उन्हें रिहा किया था. भारत और पाकिस्तान दोनों ने अपने-अपने देशवासियों के आगे अपनी जीत का ऐलान किया और टकराव खत्म हो गया. लेकिन उसके उलट, मौजूदा टकराव पूर्ण युद्ध की ओर बढ़ गया है.
दोनों की तुलना
दोनों देशों की सैन्य ताकत की स्थिति आखिर क्या है? संख्याबल और अस्त्र-शस्त्र के मामले में नई दिल्ली की पाकिस्तान पर बढ़त साफ है. भारत दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे आधुनिक सेनाओं में से एक है. रूस, अमेरिका, फ्रांस और इज्राएल जैसी वैश्विक शक्तियों के साथ रणनीतिक साझेदारी और स्वदेशी विकास की वजह से उसके पास अत्याधुनिक हथियार और लाव-लश्कर हैं. उसमें मोर्चे के लिए तैयार जवानों की तादाद 14.6 लाख है, इसके अलावा 11.5 लाख रिजर्व और 25 लाख अर्धसैनिक बल हैं, जिससे जवानों की कुल संख्या 50 लाख से ज्यादा हो जाती है.

दूसरी ओर, पाकिस्तान के पास 6,54,000 मोर्चे पर तैनाती को तैयार जवान, 5,50,000 रिजर्व और 5,00,000 अर्धसैनिक बल हैं. उसकी कुल ताकत 17 लाख है, जो आतंकवाद विरोधी अभियानों के तहत युद्ध के लिए प्रशिक्षित है. पाकिस्तान को तगड़ा चीनी समर्थन, केंद्रीकृत फौजी कमान और छद्म युद्ध में लंबे अनुभव का भी फायदा है. हालांकि भारत का रक्षा बजट 79 अरब डॉलर (2025-26) पाकिस्तान के 7.6 अरब डॉलर से काफी ज्यादा है, लेकिन भारत को चीन के खिलाफ अपनी उत्तरी सीमा पर पूरी सैनिक तैनाती करनी पड़ी है.

लिहाजा, पाकिस्तान के खिलाफ उसकी सैनिक तैनाती और हथियारों की बढ़त कम हो गई है. पाकिस्तान को भी अफगानिस्तान और ईरान के साथ सीमा पर फौजियों और हथियारों वगैरह की तैनाती करनी पड़ी है, लेकिन ये मुख्य रूप से आतंकवाद विरोधी भूमिकाओं के लिए हैं जिसमें खासकर उसकी थल सेना ही जुड़ी है.
थल सेना यानी मोर्चे के जवान, तोपखाना और बख्तरबंद कोर (टैंक) के मामले में भारतीय सेना पाकिस्तानी फौज से बेहतर स्थिति में है. उसकी तीन स्ट्राइक कोर—मथुरा में I कोर, अंबाला में II कोर और भोपाल में XXI कोर—पाकिस्तान के खिलाफ निर्णायक सैन्य कार्रवाई करने में सक्षम है. उधर, पाकिस्तान के पास केवल दो स्ट्राइक कोर हैं—I कोर (पीओके में मंगला) और II कोर (मुल्तान, पंजाब)—दोनों ही भारतीय सीमा के करीब हैं.
सैन्य अभियानों के पूर्व महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर) अनिल के. आहूजा कहते हैं, ''हमारे बख्तरबंद दल रेगिस्तान या मैदानी इलाकों में हमला करने के लिए पाकिस्तान की सीमा की तरफ ही मौजूद हैं. हमारे मशीनीकृत बल और तोपखाना पाकिस्तान पर भारी हैं." वे यह भी कहते हैं कि फौज की मोर्चे पर तैनाती के मामले में पाकिस्तान को भौगोलिक स्थिति के मद्देनजर बढ़त है.

उनके शब्दों में, ''चीन के साथ उत्तरी सीमा पर हमारी तैनाती पहले से घटी है, लेकिन अभी भी तनाव कम करना और तैनाती मोर्चे से हटना बाकी है, इसलिए पाकिस्तान के खिलाफ पारंपरिक बल का स्तर कुछ कम हो गया है. मौजूदा बल का स्तर जवाबी कार्रवाई के लिए काफी है, लेकिन दूसरी तरफ की कार्रवाई को रोकने के लिए उसे मजबूत करने की जरूरत है."
भारतीय सेना के पास 280 आर्टिलरी रेजिमेंट हैं जो 105 मिमी फील्ड गन, उन्नत धनुष और शारंग तोपों के साथ बोफोर्स हॉवित्जर, एम-777, अल्ट्रा-लाइट हॉवित्जर और के-9 वज्र स्व-चालित ट्रैक्ड गन से लैस हैं. पिनाक मल्टी-लॉन्च रॉकेट सिस्टम, स्मर्च और ग्रैड रॉकेट, यूएवी, निगरानी प्रणाली, मिसाइल और अन्य उन्नत मारक क्षमता वाले उपकरण इसकी ताकत में इजाफा करते हैं.
पाकिस्तान के पास 25 आर्टिलरी रेजिमेंट हैं और उसने लगातार अपनी मारक क्षमता को बढ़ाया है, जिसमें चीन निर्मित एसएच-15 स्व-चालित हॉवित्जर भी शामिल है जिसे उसने 2022 में शामिल किया. एसएच-15 अत्याधुनिक तकनीक से लैस है और यह सटीक-निर्देशित हथियारों के साथ है जिसने खतरा पैदा करने के लिहाज से पाकिस्तान की आर्टिलरी की प्रोफाइल को बढ़ाया है. बख्तरबंद वाहनों के मामले में, पाकिस्तान के 2,627 के मुकाबले भारत अपने 4,200 से ज्यादा टैंकों के साथ पाकिस्तान से आगे है, जिसमें टी-90 भीष्म और स्वदेशी अर्जुन के वैरिएंट शामिल हैं.
हवाई लड़ाइयां
सैन्य रणनीतिकारों का मानना है कि यह जमीनी लड़ाई उतनी नहीं होगी जितना कि हवाई और मिसाइल शक्ति का प्रदर्शन होगा. जहां तक हवाई शक्ति की बात है, भारत राफेल, एसयू-30एमकेआई और तेजस के अलावा 80 अटैक हेलिकॉप्टर समेत 606 लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल करता है. उसकी हवाई प्रतिरक्षा एस-400 और बराक-8 प्रणालियों के साथ-साथ एआई पावर से स्थितियों की निगरानी, विश्लेषण और सिचुएशनल अवेयनेस प्लेटफॉर्मों से मजबूत हुई है.
भारतीय वायु सेना के पास अंदरूनी इलाके तक हमले के लिए एयर-लॉन्च्ड क्रूज मिसाइलों (एएलसीएम) का विशाल भंडार है. इनमें 450 से 800 किलोमीटर की रेंज वाली ब्रह्मोस मिसाइल, 260 किलोमीटर की रेंज वाली केएच-35 एएलएम और इज्राएल में विकसित क्रिस्टल मेज 2 शामिल हैं, जो 250 किलोमीटर से ज्यादा की स्ट्राइक रेंज वाली हवा से सतह पर सटीक मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइल है.

यह जीपीएस रहित इलाकों में भी प्रभावी है और लंबी दूरी के रडार और वायु रक्षा प्रणालियों जैसी बेहद कीमती संपत्तियों को निशाना बनाने में सक्षम है. आईएएफ के पास स्पाइस 2000 ग्लाइड बम भी है, जिसमें 450/900 किलोग्राम के वारहेड के लिए एक अतिरिक्त किट लगी हुई है. इसकी सटीकता बहुत अधिक है और इसकी रेंज लगभग 60 किलोमीटर है.
दूसरी ओर, पाकिस्तानी वायु सेना 387 लड़ाकू विमानों का संचालन करती है, जिनमें जेएफ-17, जे-10 सीई और एफ-16 शामिल हैं. इसके अलावा 57 हमलावर हेलिकॉप्टर भी हैं और यह चीनी सहयोग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से संचालित इलेक्ट्रॉनिक युद्ध क्षमताओं के साथ एलवाई-80 एसएएम और पीएल15 मिसाइलों पर निर्भर करती है.
दरअसल, पाकिस्तान हवाई निगरानी और युद्ध प्रबंधन के लिए जरूरी एयरबोर्न वार्निंग ऐंड कंट्रोल सिस्टम (अवाक्स) और एयरबोर्न अर्ली वार्निंग ऐंड कंट्रोल (एईडब्ल्यूऐंडसी) विमानों के मामले में भारत पर संख्यात्मक रूप से अधिक बढ़त रखता है.
उसके पास भारत के पांच की तुलना में नौ प्लेटफॉर्म हैं. पाकिस्तानी वायु सेना के पास 5-6 साब 2000 ईरीआई एईडब्ल्यूऐंडसी है, जिनमें 2024 में एक नई इकाई (सीरियल 23-058) शामिल की जाएगी, जिसमें 450 किमी की डिटेक्शन रेंज, 150-300 डिग्री कवरेज वाला एईएसए (एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड ऐरे) रडार और विमानों, मिसाइलों और जमीनी लक्ष्यों की रियल-टाइम ट्रैकिंग शामिल है.
इसके विपरीत, भारत 400 किमी रेंज और 360 डिग्री ईएल/डब्लू-2090 रडार के साथ तीन आइएल-76 आधारित फाल्कन एडब्ल्यूएसीएस, 240 डिग्री स्वदेशी एईएसए रडार और 200-250 किमी रेंज के साथ दो एम्ब्रेयर ईआरजे-145 नेत्रा एमके-1 एईडब्ल्यूऐंडसी संचालित करता है, इसके अलावा 12 पी8आइ का उपयोग जमीन, हवा और समुद्र में मल्टी-डोमेन निगरानी के लिए किया जाता है.
एयर वाइस मार्शल (रिटायर) मनमोहन बहादुर कहते हैं, ''संख्याबल के लिहाज से हम मजबूत स्थिति में हैं और हमारे पास बेहतर टेक्नोलॉजी भी है, लेकिन हमें देखना होगा कि पाकिस्तान ने चीन से कौन-सी नवीनतम टेक्नोलॉजी हासिल की हो सकती हैं. दोनों देशों के पास 4.5 पीढ़ी के लड़ाकू विमान हैं."
उन्होंने कहा कि हालांकि दोनों देशों के पास 4.5 पीढ़ी के लड़ाकू विमान हैं (भारत के पास राफेल और पाकिस्तान के पास जे10सी है), लेकिन अहमियत इस बात की है कि सामरिक व्यूहरचना में आप उनका इस्तेमाल कैसे करते हैं.
दुनिया में अपनी ताकत दिखाने के लिए भारतीय नौसेना के पास दो विमानवाहक युद्धपोत (आईएनएस विक्रमादित्य और विक्रांत), 20 पनडुब्बियां (एक एटमी शक्तिसंपन्न पनडुब्बी समेत) और 75 नौसैन्य विमानों समेत 294 पानी के जहाज हैं. आठ पनडुब्बियों और नौ फ्रिगेट से लैस पाकिस्तान की 114 जहाजों वाली नौसेना तटीय प्रतिरक्षा पर ध्यान केंद्रित करती है और उसे चीन से मिले टाइप 054ए/पी फ्रिगेट का सहारा भी हासिल है.
पारंपरिक युद्ध में, जहां भारत की नौसैन्य श्रेष्ठता और हवा से दागी जाने वाली सटीक मिसाइलों की मुठभेड़ पाकिस्तान के फुर्तीले ड्रोन बेड़े और अवाक्स में बढ़त के साथ होती है, भारत-पाकिस्तान सैन्य संतुलन खतरनाक बराबरी पर पहुंच गया है. तुर्किए के लड़ाकू जलपोतों ने पाकिस्तान के तटों की सुरक्षा को मजबूत किया है, जबकि भारत के विमानवाहक युद्धपोतों का हिंद महासागर में दबदबा है, जिससे 2025 में अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी और भूराजनैतिक पैंतरेबाजी से परिभाषित ऊंचे दांव वाली प्रतिद्वंद्विता का पता चलता है.

रूस और यूक्रेन के बीच टकराव ने ड्रोन युद्ध को वैध बना दिया है और ऐसे में संभावना यही है कि भारत और पाकिस्तान के बीच गतिरोध में इसकी अहम भूमिका होगी. भारत के पास इज्राएली-निर्मित हेरोन, सर्चर और हारोप यूएवी सरीखे मानवरहित प्लेटफॉर्म के अलावा सीमा-पार निगरानी, दुश्मन की हवाई प्रतिरक्षा और सटीक हमलों को नाकाम करने के लिए अमेरिकी-निर्मित एमक्यू94 रीपर हैं.
देश ने सॉफ्ट-किल (जैमिंग) और हार्ड-किल (लेजर, काइनेटिक या नेट-आधारित) दोनों के लिए मिली-जुली स्वदेशी और आयातित इलेक्ट्रॉनिक युद्धक प्रणालियों से अपनी एंटी-ड्रोन क्षमताओं को भी मजबूत किया है. इनमें रूस की क्रसुखा और इज्राएल की स्मैश 2000 प्लस प्रणालियां शामिल हैं. उधर, पाकिस्तान ने अपनी ड्रोन और इलेक्ट्रॉनिक युद्धक क्षमताओं को बढ़ाने के लिए तुर्की और चीन का रुख किया. मसलन, उसने बायकार से दो उन्नत तुर्की ड्रोन—बायरकतार टीबी2 और बायरकतार अकिंसी—हासिल किए.
40,000 फुट की ऊंचाई, 25 घंटे से ज्यादा की टिकाऊ क्षमता, 7,500 किमी की दूरी और हवा से हवा और हवा से जमीन अभियानों के लिए एईएसए रडार सरीखी खूबियों से लैस और मुरीद एयरबेस पर 64वीं कॉम्बैट अनमैन्ड एरियल सिस्टम स्कवाड्रन के हाथों संचालित अकिंसी ने पाकिस्तान की आईएसआर (खुफिया, निगरानी और टोही) और हमलावर क्षमताओं में अच्छा-खासा इजाफा किया है. इसीलिए अपने शुरुआती हमलों में पाकिस्तान ने भारतीय और नागरिक निशानों पर हमला करने के लिए ड्रोन के झुंड भेजने पर बहुत ज्यादा भरोसा किया.
भारत को क्या करना चाहिए
अपने करियर के दौरान एलओसी (नियंत्रण रेखा) पर व्यापक सेवा दे चुके मेजर जनरल ए.पी. सिंह (सेवानिवृत्त) सलाह देते हैं कि रक्षात्मक दृढ़ता और आक्रामक सटीक हमलों के लिए भारत की रणनीति बहुआयामी और नपी-तुली होनी चाहिए. वे कहते हैं, ''पहली प्राथमिकता एलओसी पर मजबूत पकड़ बनाए रखना है, जहां भूभाग चुनौतियों से भरा है और किलेबंद सुरक्षा के साथ पाकिस्तानी सशस्त्र बल बहुत ज्यादा तैनात किए गए हैं. उस इलाके में बड़ी चढ़ाई या घुसपैठ की संभावना कम भी है और महंगी भी."

वे यह भी कहते हैं कि भारत को साथ ही नपे-तुले हवाई और नौसैन्य हमलों के लिए पहले से तय निशानों की सूची रखनी चाहिए, ताकि जरूरत पड़ने पर सटीक हमलों को तेजी से अंजाम दिया जा सके.
हुड्डा कहते हैं, ''हमें पाकिस्तान पर पारंपरिक श्रेष्ठता हासिल है जिसका हमें फायदा उठाना चाहिए. एलओसी का भूभाग ज्यादा मुश्किल है, जहां पाकिस्तान हमारे बराबर ताकत जुटा सकता है, इसलिए हमे रणक्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय सीमा (आइबी) पर फैलाना चाहिए जहां हमारे पास विशाल खुले इलाके हैं और हम कामयाबी हासिल कर सकते हैं."
भारतीय नौसेना की श्रेष्ठता को देखते हुए दूसरे विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को आइबी पर जमीनी हमलों के साथ नौसैन्य नाकेबंदी कर देनी चाहिए और फिर पाकिस्तान पर शांति की गुजारिश करने के लिए दबाव डालना चाहिए. कुल मिलाकर, भारत की लॉजिस्टिक बढ़त और हवाई-नौसैन्य दबदबा पाकिस्तान को तेजी से पस्त कर सकता है, तो उसका एटमी शस्त्रागार सीमित टकरावों पर अपनी छाया डाल सकता है.
साथ ही भारत को अंतरराष्ट्रीय समुदाय पर जोर डालना चाहिए कि वह पाकिस्तान पर लगाम कसे. तनाव में यह बढ़ोतरी इससे ज्यादा बेवक्त नहीं हो सकती थी, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने वैश्विक व्यापार और शुल्कों में विश्वव्यापी तूफान बरपा दिया है.
पाकिस्तान के साथ उलझे होने के बावजूद भारत ने बहुत चतुराई से 6 मई को ब्रिटेन के साथ ऐतिहासिक मुक्त व्यापार समझौते पर दस्तखत किए और अमेरिका तथा यूरोपीय यूनियन दोनों के साथ व्यापार समझौतों के लिए सख्त बातचीत कर रहा है. इन कदमों ने यह पक्का कर दिया कि चीन को छोड़कर दुनिया के महाशक्ति देश पाकिस्तान से निबटते वक्त उसका पक्ष लेंगी.
दोनों देशों पर तनाव नहीं बढ़ाने के लिए जोर डालते हुए भी ट्रंप प्रशासन भारत के साथ है. इसी तरह यूरोप भी है. चीन ने अभी तक पाकिस्तान का समर्थन किया है और पाकिस्तान को जरूरत पड़ने पर कलपुर्जों और अतिरिक्त गोला-बारूद की आपूर्ति के अलावा इलेक्ट्रॉनिकयुद्धक क्षमताओं और खुफिया जानकारियों के मामले में भी हर तरह की दबी-छिपी मदद देगा.
भारत को पाकिस्तान के साथ लड़ाई में उलझाए रखना जहां बीजिंग के हित में है और उसे हिंद महासागर में चुनौती देने की ज्यादा बड़ी महत्वाकांक्षा से नजर हटा लेने की मोहलत मिल जाती है, वहीं चीन नहीं चाहेगा कि यह लड़ाई एटमी टकराव की हद तक जाए.
कारनेगी इंडिया के डायरेक्टर रुद्र चौधरी कहते हैं, "अमेरिका भारत से कह सकता है कि वह दक्षिण एशिया में कोई अस्थिरता नहीं चाहता और पाकिस्तान के साथ बातचीत के रास्ते खोलने के लिए दिल्ली पर जोर डाल सकता है. चीन भी पाकिस्तान को हालात की गंभीरता कम करने की दिशा में बढ़ने की सलाह दे सकता है."
पाकिस्तान को आतंकवाद के प्रति अपनी शून्य सहनशीलता का मजबूत संदेश देते हुए गरमागरमी कम करने के लिए यह भारत का सबसे अच्छा दांव है.