scorecardresearch

हिंदुत्व की 'हिफाजत' के लिए कैसे इतिहास बना हथियार?

औरंगजेब की विवादास्पद विरासत पर महाराष्ट्र में भड़की हिंसा और उग्र बहसों की लपटें तो हिंदुत्व के पैरोकारों की अपनी धारणा के मुताबिक इतिहास की गलतियों को दुरुस्त करने की कोशिश की ताजा मिसाल भर

खुल्दाबाद में स्थित औरंगजेब की कब्र (फाइल फोटो)
खुल्दाबाद में स्थित औरंगजेब की कब्र (फाइल फोटो)
अपडेटेड 7 अप्रैल , 2025

किसी फिल्म की कामयाबी का अंदाजा न सिर्फ बॉक्स ऑफिस पर उसकी कमाई से लगाया जाता है, बल्कि इससे भी कि वह दर्शकों में किस कदर भावनाएं जगा पाती है. मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज के बेटे, 17वीं शताब्दी की शख्सियत छत्रपति संभाजी महाराज के चरित्र पर केंद्रित लोकप्रिय मराठी उपन्यास पर आधारित छावा (शेर का शावक) दोनों ही कसौटियों पर खरी उतरती है.

14 फरवरी को रिलीज होने के छठे हफ्ते में ही फिल्म 541 करोड़ रुपए बटोर चुकी है. लेकिन यह असल में, सुर्खियों में इस वजह से छाई कि इसमें मुगल बादशाह औरंगजेब (अभिनय: अक्षय खन्ना) के हाथों 1689 में संभाजी (अभिनय: विक्की कौशल) को दी गई यातनाओं और मौत का लंबा और विस्तृत दृश्य है. उसे देखकर लोग फूट-फूटकर रोने लगे और नारे लगाने लगे, जिसे पूरे कर्तव्यभाव से वीडियो में रिकॉर्ड किया गया और सोशल मीडिया पर वायरल किया गया.

यही नहीं, 27 मार्च को फिल्म का विशेष प्रदर्शन संसद भवन के जीएमसी बालयोगी सभागार में आयोजित किया जाना था, जहां दर्शकों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और एनडीए के दूसरे मंत्रियों और साथियों को भी होना था, हालांकि ऐन मौके पर वह टल गया.

परदे के बाहर पहले से प्लॉट तैयार था. मैडॉक फिल्मस के बैनर तले बनी इस फिल्म में मुख्य पात्रों का चरित्र चित्रण वाकई इतना विश्वसनीय था कि भावनाएं सिनेमाघरों से निकलकर सड़कों पर फैल गईं. खासकर जब मुंबई से समाजवादी पार्टी (सपा) के विधायक अबू आसिम आजमी ने 3 मार्च को औरंगजेब का बचाव करते हुए कहा, ''गलत इतिहास दिखाया जा रहा है. औरंगजेब ने कई मंदिर बनवाए. मैं उन्हें बर्बर शासक नहीं मानता. यही नहीं, छत्रपति संभाजी महाराज और औरंगजेब के बीच लड़ाई हिंदुओं और मुसलमानों के बीच नहीं, बल्कि राज्य प्रशासन के लिए थी."

असली लड़ाई के नतीजे जो भी रहे हों, इतिहास के लंबे परिप्रेक्ष्य में मराठा योद्धा दोटूक विजेता थे और औरंगजेब हर जगह धिक्कारी गई शख्सियत. अबू आजमी के बयान से नाराज होकर विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल सरीखे संघ परिवार से जुड़े संगठनों ने औरंगाबाद (जिसका नाम कुछ साल पहले बदलकर छत्रपति संभाजीनगर कर दिया गया) के नजदीक खुल्दाबाद स्थित औरंगजेब की कब्र को ढहाने का आह्वान कर डाला.

उन्हें राज्य में सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन के भाजपा और शिवसेना का हाथोहाथ समर्थन मिला. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इस बहस में कूद पड़े और कहा कि गद्दारों को महिमामंडित करना देशद्रोह है जिसे 'नया भारत' बर्दाश्त नहीं करेगा. आजमी को मौजूदा बजट सत्र के लिए महाराष्ट्र विधानसभा से निलंबित कर दिया गया.

खुल्दाबाद में औरंगजेब की मजार
खुल्दाबाद में औरंगजेब की मजार

आखिर महाराष्ट्र में असहज शांति लौटी जब मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने औरंगजेब की कब्र को ढहाने में यह कहकर लाचारगी जाहिर की कि यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के तहत संरक्षित है. अलबत्ता यह दावा उन्होंने जरूर किया कि उनकी सरकार इस मुगल बादशाह के महिमामंडन की इजाजत नहीं देगी.

उन्होंने सवाल किया, ''हमें औरंग्या (औरंगजेब) की कब्र क्यों चाहिए? लेकिन आप जानते ही हैं कि एएसआई ने इसे 50 साल पहले संरक्षित स्थल घोषित किया था और उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य और केंद्र सरकारों की है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम उस औरंग्या के मकबरे की हिफाजत करने को मजबूर हैं जिसने हमारे हजारों लोगों की हत्याएं की थीं."

इस बीच 17 मार्च को हिंदू दक्षिणपंथी धड़ों के राज्यव्यापी प्रदर्शनों के दौरान कुरान की आयतें लिखी चादर को जलाने की अफवाहों के चलते राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मुख्यालय वाले शहर नागपुर में सांप्रदायिक दंगा भड़क उठा. हिंसा में एक शख्स की मौत हो गई और कुछ पुलिसजनों समेत 30 से ज्यादा लोग घायल हुए.

प्रतिशोधवाद की लहर

मराठा इतिहासकार टी.एस. शेजवलकर ने 1940 के दशक में लिखा था, ''एक खौफनाक प्रेत—जबरदस्त पिशाच—महाराष्ट्र पर मंडरा रहा है. इसका नाम है इतिहास." फर्क बस इतना है कि सिर्फ महाराष्ट्र ही ऐतिहासिक धारणाओं को लेकर सामाजिक और सांप्रदायिक आग का गवाह नहीं बन रहा. उत्तर प्रदेश से लेकर तेलंगाना तक अतीत की घटनाओं की विवादास्पद व्याख्याएं, इतिहास की विवादित शख्सियतें और पूजा स्थलों पर दावे देश के सामाजिक-राजनैतिक परिदृश्य पर लगातार ज्यादा से ज्यादा टकराव के बिंदु रच रहे हैं.

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर कानूनी लड़ाई चल ही रही है, जो इस दावे के इर्द-गिर्द घूमती है कि औरंगजेब की हुकूमत के दौरान 17वीं सदी में बनी मस्जिद हिंदू मंदिर को तोड़कर बनाई गई. मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि विवाद में दावा है कि शाही ईदगाह मस्जिद, औरंगजेब की ही हुकूमत के दौरान, भगवान कृष्ण के जन्मस्थल पर मंदिर तोड़कर बनाई गई.

राजस्थान में हिंदुत्व धड़ों का दावा है कि अजमेर स्थित सूफी संत मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह मूलत: शिव मंदिर थी. हैदराबाद में मशहूर चारमीनार की दक्षिणपूर्वी मीनार के नीचे स्थित भाग्यलक्ष्मी मंदिर को लेकर भावनाएं लगातार खौल रही हैं. महज पांच महीने पहले उत्तर प्रदेश के संभल में 16वीं सदी की इमारत और देश की सबसे पुरानी और प्रसिद्ध मुगल मस्जिद शाही जामा मस्जिद को लेकर नई लड़ाई छिड़ गई.

महज मजहबी इमारतें ही नहीं, सड़कें, जगहें और यहां तक कि मुस्लिम हुक्मरानों की याद में मनाए जाने वाले पर्व-त्योहार भी इतिहास को सुधारने के हिंदुत्व के अभियान का शिकार होते जा रहे हैं. इसीलिए औरंगाबाद का नाम बदलकर छत्रपति संभाजीनगर, उस्मानाबाद का धाराशिव और अहमदनगर का 18वीं सदी की योद्धा रानी अहिल्याबाई होल्कर के नाम पर अहिल्यानगर रख दिया गया. इलाहाबाद को प्रयागराज और मुगलसराय को पंडित दीनदयाल उपाध्याय नगर कहते तो कुछ अरसा हो गया.

हिंदुत्व के नजरिए से इतिहास के उस विकृत नजरिए को दुरुस्त भर करने की कोशिश है जिसे साम्राज्यवादियों और वामपंथी इतिहासकारों ने प्रचारित किया. संघ परिवार के लोग अपनी विचारधारा का मर्म अमृतकाल के उस 'पंच प्रण' को बताते हैं जिसका प्रतिपादन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था.

उसमें 2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य, औपनिवेशिक मानसिकता को जड़ से मिटाना, भारत की धरोहर और जड़ों पर गर्व करना, लोगों के बीच एकता और कर्तव्य की भावना को मजबूत करना शामिल हैं. आरएसएस के एक शीर्ष नेता कहते हैं, "मुसलमान या इस्लाम हमारे दुश्मन नहीं हैं. हिंदू समुदाय का मनोबल तोड़ने के लिए रचे गए उपनिवेशवाद के प्रतीकों का महिमामंडन नहीं किया जाना चाहिए."

हिंदुत्व की इस परियोजना के साथ दिक्कत, बकौल इतिहासकार पुरुषोत्तम अग्रवाल यह है कि इसका ऐतिहासिक सामग्री की प्रामाणिकता से लेनादेना नहीं. इसके बजाए यह ''जज्बाती आक्रोश और आहत भावना की उत्तेजना पर बहुत ज्यादा निर्भर है और इसने हमारे जनसंचार माध्यमों के बड़े हिस्से का मुखर समर्थन हासिल कर लिया है, जो सहर्ष इस आग को हवा देते और सुलगाते हैं."

छावा सरीखी फिल्में इतिहास में हुए असल तथा कथित दोनों अपमानों का बदला लेने को सही ठहराने में मदद करती हैं. उस जमाने की तमाम निशानियां, चाहे वे मकबरे हों या रीति-रिवाज, अदालतों में, सड़कों पर और राजनैतिक रैलियों से पहचान और विरासत की इस लड़ाई में घसीटे जा रहे हैं. कानूनी विवाद के तौर पर जो शुरू होता है, वह जल्दी ही विचारधारा की व्यापक मुठभेड़ का हलचल भरा रणक्षेत्र बन जाता है. ऊंचे दांव वाले इस मुकाबले में खुद इतिहास ही सबसे ज्यादा विवादित क्षेत्र बन जाता है.

संभल का अध्याय

छावा ने 1979 के शिवाजी सावंत के उपन्यास को परदे पर उतारकर नया रणक्षेत्र रचा, तो संभल की अपनी पटकथा है. शाही जामा मस्जिद को लेकर कानूनी और वैचारिक लड़ाइयों ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इस इलाके में पुरानी दरारों को फिर चौड़ा कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट के वकील विष्णु शंकर जैन और महंत ऋषिराज गिरि की अगुआई में हिंदू याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि मुगल बादशाह बाबर ने मस्जिद के लिए भगवान कल्कि को समर्पित हरिहर मंदिर को तोड़ने का फरमान दिया था.

उनकी दलील बाबरनामा और आईन-ए-अकबरी के अलावा एएसआई की 1879 की एक रिपोर्ट पर आधारित है, जिसमें उनका दावा है कि ढांचे के भीतर हिंदू वास्तुकला के तत्वों की पहचान की गई है. मस्जिद की प्रबंधन समिति इन दावों का यह कहकर खंडन करती है कि यह स्थल 16वीं सदी से ही लगातार इस्लामी इबादत की जगह रहा है.

उन्होंने पूजा स्थल कानून, 1991 का सहारा लिया, जो राम जन्मभूमि विवाद को छोड़कर किसी भी उपासना स्थल के 15 अगस्त 1947 के दिन के स्वरूप को पलटने या बदलने पर रोक लगाता है. लेकिन हिंदू पक्ष उप-धारा 3ए का हवाला देता है, जिसमें ''प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक या पुरास्थल या 1958 के प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्व स्थल तथा अवशेष कानून के तहत आने वाले अवशेष..." को उस प्रावधान में छूट है.

अदालत के आदेश पर 19 नवंबर, 2024 को एडवोकेट कमिशनर रमेश सिंह की देखरेख और भारी पुलिस बल की मौजूदगी में किया गया सर्वे किसी बड़ी घटना के बिना संपन्न हो गया. मगर ऐसे ही दूसरे सर्वे के चलते हिंसा फूट पड़ी; मस्जिद समिति को कथित तौर पर पहले से नोटिस नहीं देने की वजह से इस कवायद के इरादे को लेकर संदेह पैदा हो गए.

सर्वेकर्ता निरीक्षण पूरा करने के लिए पांच दिन बाद लौटे, तब माहौल विस्फोटक हो चुका था. अफवाहें तेजी से फैलीं कि प्रशासन ने मस्जिद के नीचे खुदाई का मंसूबा बनाया है, कि खुदाई का रास्ता साफ करने के लिए वुजूखाने को खाली कर दिया गया है, और कि यह सर्वे मंदिर स्थल के रूप में इस जगह को वापस हासिल करने के बड़े अभियान की पूर्वपीठिका है. सुबह तड़के हजारों लोग मस्जिद के बाहर इकट्ठा हो गए.

फौरन बाद पथराव शुरू हो गया. पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे और लाठी चार्ज किया. दोपहर तक चार लोग मारे गए, कई घायल हुए. धारा 144 लगा दी गई. इंटरनेट सेवाएं रोक दी गईं, स्कूल बंद थे. मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने कहा कि पुलिस कार्रवाई जुम्मे की नमाज के बाद दिए गए 'भड़काऊ भाषणों' के जवाब में की गई. विपक्ष ने भाजपा की सरकार पर मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने के लिए जान-बूझकर तनाव भड़काने का आरोप लगाया.

कुछ ही दिनों में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. शाही जामा मस्जिद कमेटी ने सर्वे की वैधता को चुनौती देते हुए तत्काल याचिका दायर की और कहा कि यह सर्वे उपासना स्थल अधिनियम का उल्लंघन है. सर्वोच्च अदालत ने 29 नवंबर को संभल की निचली अदालत में चल रही कार्यवाही पर रोक लगा दी और सर्वे रिपोर्ट को सील करने का आदेश और 'शांति तथा सद्भादव’ बनाए रखने की जरूरत पर जोर दिया.

इसी अशांत और बेहद ध्रुवीकृत माहौल में मार्च में संभल पर विवाद की एक नई लहर बरपा दी गई, जब राज्य प्रशासन ने सैयद सालार मसूद गाजी के सम्मान में हर साल होली के बाद होने वाले पारंपरिक नेजा मेले पर रोक लगा दी. श्रद्धालु 12वीं सदी की इस शख्सियत को योद्धा-संत मानते हैं, वहीं बाद में 17वीं सदी की एक रिवायत गाजी को महमूद गजनी का फौजी कमांडर बताती है, जो 1025 में सोमनाथ मंदिर की लूट समेत उत्तर भारत के सारे अभियानों में शामिल था. मुस्लिम समुदाय का एक हिस्सा नेजा मेला मनाता है और इसमें गाजी के सम्मान में आनुष्ठानिक झंडा (नेजा) गाड़ा जाता है और नमाज पढ़ी जाती है.

सहायक पुलिस अधीक्षक (एएसपी) श्रीश चंद्र की अगुआई में संभल प्रशासन ने 17 मार्च को नेजा मेले की इजाजत देने से इनकार कर दिया, जो 25-27 मार्च को होना था. यह फैसला नेजा मेला समिति के साथ बातचीत के बाद किया गया, जिसमें गाजी को सम्मानित करने के बारे में आपत्ति जताई गई. चंद्र ने कहा, ''इतिहास गवाह है कि वह महमूद गजनी का कमांडर था. उसने सोमनाथ को लूटा, देश भर में लोगों का नरसंहार किया. ऐसे लुटेरे की याद में कोई जश्न नहीं मनाया जाएगा.’’ उन्होंने आगाह किया कि नेजा झंडा गाड़ने की कोशिश को ''राष्ट्र-विरोधी" माना जाएगा और सख्त कार्रवाई की जाएगी.

इस पाबंदी से नेजा मेला समिति और राजनैतिक नेताओं में आक्रोश भड़क उठा और उन्होंने इसे धार्मिक परंपराओं का उल्लंघन करार दिया. समाजवादी पार्टी के सांसद जियाउर रहमान बर्क ने गाजी की विरासत का बचाव करते हुए पाबंदी का विरोध किया. उन्होंने कहा, ''उन्हें 1026 के सोमनाथ हमले से जोड़ना ऐतिहासिक तौर पर गलत है, क्योंकि गाजी उस वक्त महज 11 साल के थे. इतिहासकारों को ऐसा कोई सबूत नहीं मिलता.

वे आक्रमणकारी नहीं बल्कि श्रद्धेय सूफी संत थे, जिन्होंने दमन के खिलाफ लड़ाई लड़ी और मानवता की सेवा की.’’ संभल में लगी रोक से बहराइच और भदोही के हिंदू धड़ों के हौसले बढ़ गए और उन्होंने 23 मार्च को ज्ञापन देकर ऐसी ही पाबंदियां लगाने की मांग की. विहिप और दूसरे संगठनों ने आरोप लगाया कि नेजा मेला जमीनों के अतिक्रमण और गैर-कानूनी धर्मांतरण को बढ़ावा देता है. संयोग से बहराइच में गाजी की दरगाह पारंपरिक तौर पर हिंदुओं और मुसलमानों दोनों का मिलाजुला उपासना स्थल रही है.

आखिर यह इतिहास किसका है?

लेखक नीलांजन मुखोपाध्याय का मानना है कि निश्चित तौर पर इतिहास का इस्तेमाल बहुसंख्यकवादी राजनीति की धार पैनी करने के हथियार के तौर पर किया जा रहा है. वे कहते हैं, "हम भारत में जनभावनाओं के उबाल के लिए इतिहास के इस्तेमाल के गवाह रहे हैं." साथ ही बताते हैं कि ’80 के दशक के मध्य में राम मंदिर आंदोलन के दौरान यह सबसे अधिक स्पष्ट तौर पर नजर आया. पुरुषोत्तम अग्रवाल कहते हैं, ''सियासी संदेश साफ है—यहां हिंदू ही राष्ट्र हैं, बाकी सभी खासकर मुसलमान उनके रहमोकरम पर रह सकते हैं, यह उनका अधिकार नहीं है."

इसलिए, चाहे महाराष्ट्र हो या उत्तर प्रदेश—जो लोकसभा में क्रमश: 48 और 80 सदस्य भेजने वाले देश के दो सबसे ताकतवर राज्य हैं—हिंदुत्व समूह देश के मध्ययुगीन अतीत का सहारा लेकर इस्लाम या इस्लाम से जुड़ी हर चीज के खिलाफ लोगों की भावनाएं भड़का रहे हैं. मध्ययुगीन शासकों को खलनायक बनाकर पेश किया जा रहा है, भले ही सचाई उतनी सपाट न हो. बारीकियों या जटिलताओं पर गौर करने के लिए कोई जगह ही नहीं बची है.

लेखक तथा सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी विश्वास पाटील कहते हैं, "इतिहास किसी का गुलाम नहीं, बल्कि तथ्यों पर आधारित होता है." वे मुस्लिम शासकों की तरफ से हिंदू संस्थाओं को दान देने और हिंदू राजाओं की तरफ से मुसलमानों की आर्थिक मदद करने का उदाहरण देते हैं. वे कहते हैं, "अफजल खान (आदिलशाही सिपहसालार) को मारने के बाद शिवाजी महाराज ने उसकी मजार के लिए जमीन दी और अपने खर्चे से उसका रखरखाव तय किया. शिवाजी महाराज के पिता शाहजी और चाचा शरीफजी का नाम सूफी संत शाह शरीफ के नाम पर रखा गया था, जिनकी दरगाह अहमदनगर में है."

इस बीच, छत्रपति शिवाजी एक अद्वितीय ऐतिहासिक और समकालीन नायक बनकर उभरे हैं, और हर रंग-पांत की राजनैतिक पार्टी मराठा दिग्गज को अपनाने में पीछे नहीं है. हिंदुत्ववादी उन्हें मुस्लिम आक्रांताओं से लड़ने वाले एक सशक्त हिंदू शासक के तौर पर देखते हैं, जबकि गोविंद पानसरे जैसे वामपंथी विचारकों की नजर में वे ऐसे जननायक थे, जिन्होंने जाति और धर्म से परे जन-कल्याणी राज की स्थापना की.

दरअसल, मराठी इतिहासकार इंद्रजीत सावंत औरंगजेब की कब्र को मराठा वीरता के प्रतीक के तौर पर देखते हैं. हालांकि, लेखक और कार्यकर्ता संजय सोनवानी इससे सहमत नहीं. वे कहते हैं, ''औरंगजेब की मृत्यु 89 वर्ष की आयु में हुई और वसीयत में जाहिर की गई इच्छा को देखते हुए मुगल शासक को खुल्दाबाद में दफनाया गया. अगर मृत्यु कहीं और होती तो भी यहीं दफनाया जाता. यह दावा कि कब्र महाराष्ट्र में स्थित होना मराठा वीरता का प्रतीक है, सही नहीं है."

राजनैतिक पंडित अभय देशपांडे की मानें तो औरंगजेब का मुद्दा इस वर्ष के अंत में प्रस्तावित स्थानीय निकाय चुनाव को ध्यान में रखकर उठाया गया है. हिंदुत्व के मुद्दे ने मुसलमानों के बीच अपना आधार बढ़ाने वाले विपक्षी दल शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) को उलझाकर रख दिया है. यह विवाद सत्तारूढ़ गठबंधन के भीतर एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ भी है. वे कहते हैं, "भाजपा और शिवसेना दोनों यह साबित करने की कोशिश में जुटी हैं कि हिंदुत्व पर उनका रुख अधिक आक्रामक है."

इन दोनों दलों ने तीखे तेवर अपना रखे हैं. पर उनके सहयोगी तथा उप-मुख्यमंत्री अजित पवार की अगुआई वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) बहुसंख्यक राजनीति में उबाल से बेचैन दिखती है. पवार आगाह करते हैं कि मुसलमानों को धमकाने वालों को बख्शा नहीं जाएगा. राकांपा नेताओं का कहना है कि राज्य निवेशकों को आकृष्ट करने की कोशिश में जुटा है, तब कानून-व्यवस्था में व्यवधान अच्छा नहीं.

हिंदुत्व के लक्ष्य

हिंदुत्व समर्थक सियासी लाभ के लिए इतिहास के गड़े मुर्दे उखाड़ने के आरोपों को खारिज करते हैं. विहिप अध्यक्ष आलोक कुमार कहते हैं, "औरंगजेब का महिमामंडन नहीं किया जाना चाहिए. उसने अपने पिता को कैद में डाल दिया, अपने भाइयों को बेरहमी से मार डाला...बड़े पैमाने पर धर्मांतरण कराया, मंदिरों को अपवित्र किया. वह हमारा नायक नहीं हो सकता." लेखक अमीश त्रिपाठी मध्ययुगीन मुस्लिम शासकों की ऐतिहासिक अहमियत को स्वीकारते हैं, लेकिन कहते हैं, ''उनका गुणगान नहीं करना चाहिए."

आश्चर्य यह है कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के बाद आरएसएस अपनी रणनीति को लेकर अधिक गंभीर हो गया है. जोर अदालतों का दरवाजा खटखटाने पर है. वाराणसी, मथुरा, संभल में अदालती लड़ाई का सहारा लिया जा रहा है. संघ से जुड़े लोगों ने 1991 के कानून की संवैधानिकता को चुनौती दी है. इस पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार है.

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने 2022 में कहा था कि हर मस्जिद के नीचे शिवलिंग की तलाश न करें, क्योंकि संगठन को अंदरखाने कहीं न कहीं डर सता रहा था कि इस तरह की ''अति सक्रियता’’ पूरे मुस्लिम समुदाय को उसके खिलाफ कर सकती है. भागवत के बयान की याद दिलाए जाने पर आलोक कुमार ने कहा कि इससे उनका आशय यह था कि "शिवलिंग की तलाश वहीं करें जहां वे हैं."

इस सबके बीच, नागपुर में हिंसा भड़कने के एक हफ्ते बाद नगर निगम अधिकारियों ने दंगों के एक आरोपी का घर ध्वस्त कर दिया. वहीं, बॉम्बे हाइकोर्ट ने हिंसा में शामिल होने के आरोपी दो लोगों की संपत्तियां ध्वस्त करने पर रोक लगा दी. मध्ययुगीन रक्तपात वाली सिनेमाई पृष्ठभूमि, डिजिटल स्क्रीन पर उभरते जुनून और चारों ओर छाए राजनैतिक लामबंदी के शोर के बीच शहर में तनावपूर्ण शांति बनी हुई है.

—साथ में अनिलेश एस. महाजन, अमरनाथ के. मेनन, रोहित परिहार, अजय सुकुमारन और अर्कमय दत्ता मजूमदार

सुलगते सियासी शोलों को हवा

"हम सभी एक जैसा सोचते हैं (कि मजार को ढहा देना चाहिए), लेकिन इसे कानूनी तरीके से करना चाहिए, क्योंकि वह संरक्षित ढांचा है. उसे पूर्व कांग्रेस सरकार ने संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया था."
—देवेंद्र फडणवीस, मुख्यमंत्री, महाराष्ट्र

 

"बाबरी मस्जिद ढहाई गई तो हम एक-दूसरे से पूछने नहीं गए थे. हमारे कारसेवकों ने बस वह कर डाला था...फिर वही दोहराने का वक्त आ गया है. समझदार को इशारा काफी है."
—नीतेश राणे, बंदरगाह और मत्स्य पालन मंत्री, महाराष्ट्र

 

 

"औरंगजेब कब दफनाया गया था? इतने साल बाद उसे मुद्दा क्यों बनाना? कानून-व्यवस्था बिगाड़ने की किसी तरह की कोशिश से सख्ती से निबटा जाएगा. भारत अनेकता में एकता का प्रतीक है. हमें विभाजनकारी ताकतों के किसी झांसे में नहीं आना चाहिए."
—अजित पवार, उप-मुख्यमंत्री, महाराष्ट्र

 

"वह (औरंगजेब) लूटने आया था, चोर था, उसका महिमामंडन क्यों? लोग उसके दर्शन को जाते हैं, क्या वे उसके वंशज हैं? वह खून चूसने वाला था, इसे (मजार को) ढहा दो."
—उदयनराजे भोंसले, छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज तथा भाजपा सांसद

 

 

"गलत इतिहास बताया जा रहा है. औरंगजेब ने कई मंदिर भी बनवाए थे. मैं उन्हें क्रूर शासक नहीं मानता. फिर, छत्रपति संभाजी महाराज और औरंगजेब की लड़ाई जमीन के लिए थी...वह हिंदू और मुसलमान की लड़ाई नहीं थी."

—अबू आजमी, समाजवादी पार्टी के विधायक, महाराष्ट्र

 

"आक्रांताओं के महिमामंडन का अर्थ है देशद्रोह की जड़ें मजबूत करना. नया भारत उन्हें बर्दाश्त नहीं करेगा, जो हमारे महान पुरखों का अपमान करते हैं और उनकी प्रशंसा करते हैं, जिसने हमारी सभ्यता पर हमला किया, स्त्रियों को बेइज्जत किया और आस्था से खिलवाड़ किया."
—योगी आदित्यनाथ, मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश

 

"भाजपा इतिहास ढंग से पढ़े. स्वामी विवेकानंद सभी धर्मों की सार्वभौमिक स्वीकार्यता की बात करते हैं. भाजपा के नेता अगर वाकई विवेकानंद का आदर करते होते तो वे उनसे धार्मिक सहिष्णुता और सबको साथ लेकर चलना सीखते."
—अखिलेश यादव, अध्यक्ष, समाजवादी पार्टी

 

"किसान आत्महत्या कर रहे हैं. बेरोजगारी बढ़ी है. इसे छुपाने के लिए भाजपा हिंदू-मुसलमान का नया मुद्दा लेकर आई है और लोगों का ध्यान मुख्य मुद्दों से भटकाने के लिए इतिहास के मसलों में उलझाना चाहती है."

—अतुल लोंधे पाटील, राष्ट्रीय प्रवक्ता, कांग्रेस

Advertisement
Advertisement