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खेती से लेकर चिकित्सा तक, जुगत से कैसे बदल रही लोगों की जिंदगी?

इंडिया टुडे की 38वीं वर्षगांठ विशेषांक में विभिन्न क्षेत्रों में ऐसे 27 इनोवेटर्स को शामिल किया गया है जिन्होंने अपने हालात से समझौता नहीं किया. उन्होंने अपनी अथक मेहनत/जुगत की बदौलत न केवल अपनी जिंदगी को संवारा बल्कि समाज का भी कल्याण किया है

जुगत से बदली ज़िंदगी/सांकेतिक तस्वीर
जुगत से बदली ज़िंदगी/सांकेतिक तस्वीर
अपडेटेड 16 दिसंबर , 2024

इंसान की जरूरतें कभी खत्म नहीं होतीं, इसलिए वह हमेशा कुछ नया करता रहता है. उद्यम-नवाचार की उसकी इसी कोशिश से जिंदगी आसान होती है. मसलन, सत्तर के दशक में हरित क्रांति से पहले भारत खाद्यान्न के मामले में दूसरे देशों पर निर्भर था. बहुत कम लोगों ने ध्यान दिया होगा कि भारत पिछले दशक में हरित क्रांति 2.0 के दौर में प्रवेश कर गया.

आज अगर भारत में सर्दियों की सब्जियां और फल गर्मियों में उपलब्ध हैं, तो यह कृषि क्षेत्र में नवाचार की ही वजह से. हमारे वैज्ञानिकों ने न केवल उत्पादन बढ़ाया है, बल्कि फलों और सब्जियों में पोषक तत्वों और विटामिन की मात्रा भी बढ़ाई है. यह तो महज एक मिसाल है. तकनीक ने हर क्षेत्र में जीवन आसान बना दिया है.

ये इनोवेटर्स देश के महानगरों के साथ ही छोटे शहरों, कस्बों और यहां तक कि गांवों में भी हैं. मिसाल के तौर पर बिहार के पूर्वी चंपारण जिले में अशोक ठाकुर ने स्मोकलेस चूल्हा बनाया तो वहीं के रोजाद्दीन ने कॉफी मशीन का विकल्प तैयार कर दिया. लेकिन स्मोकलेस चूल्हे और कॉफी मशीन तो पहले से ही हैं.

तो क्या अशोक ठाकुर और रोजाद्दीन ने पहिए का आविष्कार किया है? कतई नहीं. उन्होंने सस्ता और सुलभ विकल्प मुहैया कराया है. यह खासकर इसलिए महत्वपूर्ण है कि महज दो साल पहले नवंबर में पूर्वी चंपारण का जिला मुख्यालय मोतिहारी एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) में वायु प्रदूषण के मामले में राजधानी दिल्ली से होड़ लगा रहा था.

दूसरी ओर किसी भी कमर्शियल कॉफी मशीन की कीमत हजारों रुपए में है. उसे चलाने के लिए बिजली जरूरी है. लेकिन जो राज्य एक दशक पहले तक बिजली की किल्लत की वजह से 'अंधकार युग' (इंडिया टुडे, 17 अप्रैल, 2013) में जी रहा था, वहां मशीन की कॉफी पर निर्भरता बेमानी थी. ऐसे में रोजाद्दीन के जुगाड़ को अशोक ठाकुर के चूल्हे पर रखकर झागदार कॉफी बनाई जा सकती है. ताज्जुब नहीं कि दोनों को राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान ने पुरस्कृत किया है.

वैज्ञानिक निकोला टेस्ला का मानना था कि पृथ्वी के पर्यावरण में असीमित विद्युतीय ऊर्जा है और महज एक एंटीना के जरिए हर घर में मुफ्त बिजली आ सकती है. देश में अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में क्रांति उनकी मान्यता की पुष्टि करती है. नेपाल सीमा के पास स्थित बिहार के गांव बर्निहार के विवेक प्रियदर्शी गोबर गैस से ट्रैक्टर, जीप और यहां तक कि क्रेन भी चला रहे हैं!

इस तरह वे न केवल जीवाश्म ईंधन की मद में होने वाले देश के खर्चे और प्रदूषण को कम कर रहे हैं, बल्कि बेहद कम लागत में लोगों के जीवन को आसान बना रहे हैं. कानपुर के राहुल गुप्ता ने धरती पर ऊर्जा के प्रमुख स्रोत सूरज की रोशनी का भरपूर इस्तेमाल करने के लिए सोलर पैनल में ऐसी तकनीक जोड़ दी है, जिससे पैनल का रुख हमेशा सूरज की तरफ रहता है. इससे उत्पादकता बढ़ गई है.

उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस अधिकारी शैलेंद्र सिंह ने गोवंश की दशा सुधारने की फिराक में ऐसा आविष्कार कर डाला जो हर किसी को हैरतजदा कर देता है. वे बैलों को ट्रेडमिल जैसी मशीन 'नंदी ऊर्जा' पर हांक देते हैं, जिससे उनकी मशीन की गरारियां घूमने लगती हैं. यह अनोखी मशीन चार बैलों की जोड़ी से एक घंटे में 50 किलोवाट बिजली पैदा करती है. उन्होंने अपने पांच नवाचार का पेटेंट हासिल कर लिया है.

ऊर्जा के बाद संभवत: सबसे ज्यादा नवाचार खेतीबाड़ी-बागबानी के क्षेत्र में हुआ है. पारंपरिक खेती से पर्यावरण को नुक्सान के मद्देनजर नई-नई विधियां सामने आ रही हैं. ज्यादा पानी पीने वाले धान-गेहूं की जगह बागबानी पर ध्यान दिया जा रहा है. रायबरेली के किसान आनंद मिश्र ने शैंपू के पाउच का इस्तेमाल कर नींबू की खेती को चमकाया और अब हर साल 200 क्विंटल नींबू बेच रहे हैं.

बरेली के एक होम्योपैथी डॉक्टर की क्लीनिक में लोग अपने पौधों को लेकर पहुंचते हैं. वे गेहूं, धान, सरसों, गन्ना आदि की बैक्टीरियल, वायरल और फंगल बीमारियों का भी होम्योपैथी इलाज करते हैं! यकीन नहीं होता न! लेकिन किसान न केवल बीमारी दूर होने बल्कि 20 फीसद ज्यादा पैदावार की तस्दीक करते हैं.

इसी तरह स्वास्थ्य और चिकित्सा के क्षेत्र में नवाचार हो रहे हैं. देश में बवासीर, फिस्ट्यूला, फिशर के रोगियों की संख्या के बारे में सटीक आंकड़ा नहीं है पर अपोलो हॉस्पिटल्स के मुताबिक, पिछले साल केवल बवासीर के दो करोड़ मरीज सामने आए. छोटे शहरों और गांव-देहात में रहने वाले रोगियों के पास नीमहकीमों के पास जाने और मर्ज खराब करने के अलावा खास विकल्प नहीं होता. लेकिन लखनऊ की किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर रहे एक डॉक्टर ने इन गुप्त बीमारियों के मुकम्मल इलाज की न केवल व्यवस्था की है बल्कि आईआईटी-कानपुर के साथ मिलकर दो तरह के उपकरण तैयार किए हैं, जिन्हें पेटेंट भी हासिल हो गया है.

हालांकि तरक्की के साथ ही लोगों के पास कबाड़ भी बढ़ गया है. इस तकनीकी समस्या का हल भी टेक्नोलॉजी से ही निकला है. देश में पुराने मोबाइल और गैजेट के सबसे बड़े कारोबारी मनदीप मनोचा कहते हैं, "घरों में पड़ा वेस्ट तब तक वेस्ट नहीं है जब तक कि वह कूड़ेदान में न जाए." उनकी कंपनी कैशिफाई में 2,100 कर्मचारी हैं, जिनमें से 650 रिपेयर इंजीनियर तो सिर्फ नोएडा में हैं.

इंडिया टुडे की 38वीं वर्षगांठ विशेषांक में खेतीबाड़ी, ऊर्जा, चिकित्सा, पर्यावरण समेत सात विभिन्न क्षेत्रों में ऐसे 27 इनोवेटर्स को शामिल किया गया है जिन्होंने अपने हालात से समझौता नहीं किया. उन्होंने अपनी अथक मेहनत/जुगत की बदौलत न केवल अपनी जिंदगी को संवारा बल्कि समाज का भी कल्याण किया है. हरेक की जिंदगी का सफर बेहद रोचक और प्रेरणादायक है.

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